मेरे बंगाली भाषा के प्रिय साहित्यकारों में से एक साहित्यिक श्री. ताराशंकर बंदोपाध्याय की 23 जुलाई को 125 वीं जयंती पर विनम्र अभिवादन !
23 जुलै 1898 के दिन लभपूर नाम के बिरभूम जिले के एक छोटे से गांव में जन्म हुआ था ! अनायास मेरी मित्र मनिषा बॅनर्जी वर्तमान समय में लभपूर गव्हरमेंट गर्ल्स हायस्कूल की मुख्याध्यापिका, और ताराशंकर बंदोपाध्याय मेमोरियल कमेटी की एक सदस्य होने के कारण ! मुझे दो एक बार लभपूर जाने का मौका मिला ! तो मेरे लिए ताराशंकर बंदोपाध्याय की जन्मभूमि वाले गांव में जाने की बात, किसी भी तरह के तिर्थक्षेत्रसे कम नहीं थी ! तो मैं गणदेवता (चंडीमंडप) में लिखी हुई जगहों को ढूंढ रहा था ! 2020 – 22 में ! हमारे देश के गांव अब कहा बचे हैं ? दुनिया भर की दुकानों की भरमार लगता है ! पूरा देशही एक बाजार में तब्दील होते जा रहा है ! और उसमे भी मोबाइल फोन से लेकर फॅशनेबल कपडोके और इलेक्ट्रानिक सामान की भरमार ! लगता है कि लोगों को रोजमर्रा के जीनसो की जगह मोबाइल फोन और इलेक्ट्रानिक सामान ही हो गऐ है ! शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जो आज बचा है ! तो ताराशंकर बंदोपाध्याय के लभपूर का अपवाद कैसे हो सकता है ?
जीवन में पहली बार 1982 के बाद मै, मेरी मराठी भाषा की विश्वभारती में पढाने वाली मित्र, विणा आलासे के कारण, बोलपूर स्टेशन से उतरकर शांतिनिकेतन के रास्तेभर मराठी भाषी लेखक श्री. पु. ल. देशपांडे ने लिखा हुआ मुक्काम पोस्ट शांतिनिकेतन को , ढूंढने की कोशिश कर रहा था ! और मुझे दिखाई दे रहे थे ! विडियो पार्लर्स, और भारत की कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति को लेकर स्थापित विश्वभारती के बच्चे – बच्चियों की भीड़, उन विडियोपार्लरो में ! देखकर मै हैरान-परेशान हो गया था ! वहीं हाल लभपूर जो शांतिनिकेतन से पच्चीस किलोमीटर की दूरी से भी कम अंतर का गांव है ! जिला बिरभूम ही है !
ताराशंकर बंदोपाध्याय की 14 सितंबर 1971 के दिन कलकत्ता में मृत्यु हुई है ! कुल 73 साल के जीवन में 65 उपन्यास, 53 कहानीसंग्रह, 12 नाटक, 4 निबंध संग्रह, 4 आत्मकथा और दो प्रवास वर्णन ! और शेकडो गितोके लेखन करने वाले ताराशंकर बंदोपाध्याय , अपनी सेंट झेवियर्स कॉलेज कलकत्ता की शिक्षा अधुरी छोड़कर, महात्मा गाँधी जी के आवाहन पर, 1930 में असहकार आंदोलन मे शामिल होते हैं ! और जेल भी जाते हैं ! और जेल से बाहर निकलने के बाद 1932 में पहली बार शांतिनिकेतन में जाकर रविंद्रनाथ टागौर से मिलने जाते हैं ! और इसी साल उनके चैताली धुरनी नाम का पहला उपन्यास का प्रकाशन होता है ! और लभपूर छोड़कर कलकत्ता के बागबाजार में रहने के लिए चले जाते है ! और 1948 में ताला पार्क में अपने खुद के मकान को बनाने के बाद उसमें रहने चले जाते हैं ! सुना है कि उस मकान को बंगाल सरकार ने ताराशंकर बंदोपाध्याय के स्मृति मुझीयम के लिए लेने की कोशिश की थी ! लेकिन वर्तमान में ताराशंकर बंदोपाध्याय के वंशजों के प्रॉपर्टी को लेकर झगडो में अब वह जगह किसी मॉल में तब्दील हो गई है ! कालाय तस्मै नमः !
1942 में बिरभूम जिला साहित्य संमेलन के अध्यक्ष और अंटी फासिस्ट राईटर्स और आर्टिस्ट असोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष चुने गए थे ! बंगाल प्रदेश के अध्यक्ष बनने के बाद, फासिस्जम के खिलाफ अभियान को सफल बनाने के लिए ! विरभूम के लभपूर से लेकर अविभाजित बंगाल में, युद्धखोर हिटलर – मुसोलीनी के खिलाफ प्रचार – प्रसार करने के लिए विशेष रूप से कोशिश करते हैं !


140 से उपर किताबों के लेखक ! देश की स्वतंत्रता संग्राम से लेकर, आंतराष्ट्रीय संकट फासिज्म के खिलाफ ! आंदोलन में शामिल होने, और उसके लिए जेल जाने से लेकर, धुआंधार प्रचार करने के लिए सभा संमेलन करने वाले ! हमारे देश में और कितने साहित्यकारों के नाम मिलते हैं ? ज्यादा तर साहित्यकार आत्ममुग्ध, नार्सिस्ट होने के कारण अपनी खुद की प्रतिमा से बाहर नहीं आतें ! और लोग भी उन्हें क्रिएटीव्ह आर्टिस्ट है ! समझकर उनके नाज – नखरों को बर्दाश्त करते हैं ! इनमें से कुछ लोग अपनी खुद की ही दुनिया में मशगूल रहने के कारण ! उन्हें देश – दुनिया को लेकर रत्तीभर का लेना-देना नहीं है ! और इनके इस तरह की हरकतों का फायदा शासकों को होता है ! और वह आज वर्तमान समय में भारत में तो बहुत ही साफ-साफ दिखाई दे रहा है !
मैने तो खुद अपने 69 साल के जीवन में, जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के समय, फिर उसके बाद आपातकाल, और आज गत आठ सालों से जारी अघोषित आपातकाल के समय में अपनी आंखों से देख रहा हूँ ! वर्तमान समय में भारत के चंद अपवादों को छोड़कर कितने लेखक-पत्रकार, कवि अपनी तथाकथित बुद्धिजीवि वर्तमान स्थिति पर, भुमिका लेकर कुछ कृती कर रहे हैं ? और इसलिए राजनीति के लोग दलितों, आदिवासी, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समुदायों के बीच काम करने वाले लोगों को, आंदोलन जीवी जैसी गालियाँ देने की हिम्मत कर रहे हैं ! उन्हें किसका डर है ? और अब तो किसी को आतंकवादी और किसी को नक्सली बोलकर जेलों में बंद करने का सिलसिला जारी किया है ! क्या यह सब देखकर भी हमारे देश के लेखक – कवी (कुछ अपवाद छोड़कर) और तथाकथित बुद्धिजीवियों की अभिव्यक्ति को कुछ भी संवेदना प्रकट करने की इच्छा नहीं होती है ?


कहा ताराशंकर बंदोपाध्याय,और गौरकिशोर घोष, नागार्जुन, धर्मवीर भारती, अज्ञेय, दुर्गा भागवत, विजय तेंडुलकर, पी एल देशपांडे, वसंत बापट, देवानूर महादेव,यू आर अनंतमूर्ति, उमाशंकर जोशी, विरेंद्र भट्टाचार्य, मुन्शी प्रेमचन्द, फणीश्वरनाथ रेणु, दिनकर, महाश्वेता देवी, रघुवीर सहाय, दुष्यंत कुमार, भिष्म साहनी जैसे चंद अपवादों को छोड़कर ! 135 करोड की आबादी के देशभरके सौ साहित्यकार भी नहीं है ! जिन्होंने आजादी के आंदोलन से लेकर, आजादी के बाद देश – दुनिया के सवालों पर कोई भुमिका लेकर काम किया होगा ! ऐसे बांझ साहित्य एके साहित्य करने वाले लोगों के कारण भी समाज की चेतन शक्ति पर असर पड़ता है ! और सत्ताधारी लोगों की असंवेदनशीलता बढते जा रही है !
हमारे जैसे लोगों को क्या करना है ? भागलपुर के दंगों के कामों में जाकर ! हमें तो अपने लेखन से मतलब है ! ऐसे बोलने वाले ! तथाकथित बुद्धिजीवियों के साथ मेरी कलकत्ता और शांतिनिकेतन में बौध्दिक मुठभेड़ हुई है ! और आज सिर्फ राजनीतिक दलों के लोगों को कोसने से क्या होगा ? तथाकथित बुद्धिजीवियों की जमात की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं ! जो इतिहास के क्रम में संतोने (जिन्हें मैं हजारों साल पहले के साहित्यकार बोलता हूँ ! ) निभाने का काम किया है ! वहीं हमारे बौद्धिक पूर्वज थे ! जिन्होंने आजसे हजारों वर्ष पहले हस्तक्षेप किया है ! तो वर्तमान में हमारे साहित्यिक जमाते जिस तरह से मौन धारण कर के बैठी है ! इन्हें इतिहास कभी भी माफ नहीं करेगा ! आज ताराशंकर बंदोपाध्याय की 125 वीं जयंती पर मुझे रह – रहकर लगता है कि सिर्फ उन्हें कर्मकाण्ड के तहत अभिवादन करने से क्या होगा ? उन्होंने अपने जीवन में साहित्य से लेकर देश और दुनिया के सवाल पर कृतिशीलता भी दिखाई है ! इसलिए मैंने यह बात लिखी है !
हम तो कला के कार्यों को करने वाले लोगों को, लेखन या अपनी कलात्मक कृतियों को छोड़कर किसी आंदोलन को छोडिए ! अगल – बगल में दंगे फसादों के समय भी शुतुरमुर्ग की तरह कला की रेत में सर गडाकर अपनी कलाओं के आड में छुपकर तथाकथित निर्मिति को मै नपुंसक और पाखंडीयो की कला कहता हूँ !
ताराशंकर बंदोपाध्याय की चंडीमंडप जिसे हमारे मराठी भाषी लेखक-पत्रकार मित्र अशोक शहाणे ने गणदेवता के नाम से मराठी में अनुवाद किया है ! भारतीय ग्रामीण परिवेश के बारे में हिंदी भाषा के श्री. श्रीलाल शुक्लकी रागदरबारी और डॉ राही मासुम रजा के आधा गाँव की कडी में गणदेवता या चंडीमंडप का समावेश होता है !
उसी तरह ताराशंकरबाबु का आरोग्यनिकेतन नाम के प्रचंड उपन्यास में भी उन्होंने उस समय की स्थिति को देखते हुए सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया है ! उनके साहित्य में से चंडीमंडप और आरोग्यनिकेतन मेरे प्रिय किताबों में से हैं !


1952 – 60 तक वह पस्चिम बंगाल विधानपरिषद के मनोनीत सदस्य रहे हैं ! 1955 में ही उन्हें बंगाल सरकार के तरफसे रविंद्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! और उसी साल अफ्रो – एशियाई लेखक समिति की तरफ से सोवियत रूस की यात्रा पर गए थे ! और अखिल भारतीय साहित्य संमेलन मद्रास (वर्तमान चैनैई) के अध्यक्ष बने थे ! 1960-66 तक राष्ट्रपति के तरफसे भारतीय संसद के वरिष्ठ सभागृह राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत हुए थे ! इसके अलावा हमारे देश के सर्वोच्च पुरस्कारों में से पद्मश्री 1962 और 1969 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! 1966 में हमारे नागपुर के बंगला साहित्य संमेलन के अध्यक्ष के रूप में नागपुर भी आऐ है ! 1966 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! और कलकत्ता तथा जादवपुर विश्वविद्यालय के तरफसे मानद डॉक्टरेट की उपाधियां प्रदान की गई है !


ताराशंकर बंदोपाध्याय की 73 साल की जीवन यात्रा में ! आजादी के आंदोलन से लेकर, फासिस्जम विरोधी आंदोलन, तथा उसके साथ 140 के उपर किताबों का लेखन ! और आठ साल बंगाल की विधानपरिषद के सदस्य और छ साल भारतीय संसद के वरिष्ठ सभागृह राज्यसभा के सदस्य मतलब चौदह साल की हमारे देश की संसदीय क्षेत्र में शामिल होने से लेकर, लगभग जीवन के हर विधा में साहित्य की निर्मिति ! ताराशंकरबाबु आपनाके विनम्र अभिवादन जानातछी !
डॉ सुरेश खैरनार 24 जुलै 2022, नागपुर

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