स्वर्ण मंदिर के प्राथमिक निरीक्षण के बाद उस अधिकारी ने पाया कि सेना का प्रयोग सबसे आख़िरी में किया जाना चाहिए, जब सारी बातचीत और सारे प्रयास विफल हो जाएं. समस्या के जल्द से जल्द समाधान और मृतकों की संख्या कम करने के लिए इस बात की भी सलाह दी गई थी कि हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जाए. उसकी इस सलाह को भारत सरकार द्वारा नहीं माना गया. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस अधिकारी के पास एंटेबे ऑपरेशन और म्यूनिख ओलंपिक का अनुभव था, जहां से लोगों को निकालना एक दुरुह कार्य था.
लाख प्रयासों के बावजूद वर्ष 1984 की यादें बार-बार हमें डराने के लिए वापस आ जाती हैं और अब इंग्लैंड में भी इसकी यादों ने दस्तक दी है. बीते माह कुछ दस्तावेज जारी किए गए, जिनमें यह बताया गया था कि जब जरनैल सिंह भिंडरवाला स्वर्ण मंदिर पर क़ब्जा करने की कोशिश कर रहा था, तब ब्रिटिश सरकार ने भारत को सैन्य मदद देने के लिए पूछा था. यह बात सांसद विलियम हेग ने हाउस ऑफ कॉमन्स में कही. इसे हाउस ऑफ लार्ड्स में भी दोहराया गया. जिस समय यह बात कही गई, उस वक्त प्रभारी मंत्री सईदा वारसी थीं, जो पाकिस्तान मूल की नागरिक हैं. जिस समय यह वक्तव्य पढ़ा गया, मैं भी वहां मौजूद था.
इस रिपोर्ट को कैबिनेट सचिव सर जेरेमी हेवर्ड द्वारा तैयार किया गया था और इसके तैयार होने के चार सप्ताह के भीतर ही इसे प्रस्तुत भी कर दिया गया. इस वक्तव्य के साथ-साथ उस पत्र की कॉपी भी संलग्न थी, जो ब्रिटिश सरकार ने भारत सरकार को लिखा था. इसके अलावा उस पत्र की भी कॉपी थी, जो तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर को लिखा था. इसमें से एक फाइल को रूटीन कार्य के तहत 25 वर्षों बाद नष्ट कर दिया गया, लेकिन उनमें से कुछ दस्तावेजों की फोटोकॉपी कर ली गई थी और प्रस्तुत किए गए दस्तावेज वही हैं, जो बच गए थे. नष्ट की गई फाइल में जो कुछ भी महत्वपूर्ण रहा होगा, उसके बारे में हम कभी भी जान नहीं पाएंगे.

1984 में मारग्रेट थैचर के प्रिंसिपल
प्राइवेट सेक्रेटरी रहे रॉबिन बटलर भी इस दस्तावेज को हाउस ऑफ कॉमन्स में रखे जाने के समय उपस्थित थे. उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि थैचर से उस अधिकारी की यात्रा के बारे में विचार-विमर्श किया गया था. इसके अलावा भारत में जो कुछ हो रहा था, उस पर थैचर ने निगाह भी रखी हुई थी. इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार हो जाने के बाद थैचर को एक पत्र लिखा था और इस बात की जानकारी दी थी कि उस दौरान क्या-क्या घटित हुआ? उन्होंने लिखा था, चरमपंथियों का लक्ष्य देश को बांटना और अस्थिरता पैदा करना था.

इस एक रहस्य के अलावा जो समाचार मिला है, वह भी काफी अजीब है, लेकिन आधा-अधूरा है. समाचार यह था कि 1984 में इंडियन इंटेलिजेंस को-ऑर्डिनेटर (कोई नाम नहीं बताया गया) ने एक्सपर्ट एडवाइस के लिए मदद मांगी थी. इस बात पर उस समय के ब्रिटिश हाई कमिश्‍नर ने कहा था कि यह भारत और ब्रिटेन के नजदीकी संबंधों को दर्शाता है. उन्होंने यह भी कहा था कि इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद ऑपरेशन को कठिन भी महसूस किया था. ये सारे वक्तव्य उसी दस्तावेज में से लिए गए, जो हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों को दिया गया था और इंग्लैंड की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है. प्रधानमंत्री और विदेश सचिव के बीच आपसी विचार-विमर्श के बाद एक मिलिट्री एडवाइजर भारत भेजा भी गया था. स्पेशल एयर सर्विस ऑफिसर (इसका भी नाम नहीं बताया गया) को फरवरी 1984 में आठ दिनों के लिए भारत भेजा गया था. उस अधिकारी को इस बात की पूरी जानकारी थी कि भारतीय सेनाओं के पास कड़े तरीकों के अलावा चरमपंथियों से लड़ने के लिए पर्याप्त विचार नहीं थे.
स्वर्ण मंदिर के प्राथमिक निरीक्षण के बाद उस अधिकारी ने पाया कि सेना का प्रयोग सबसे आख़िरी में किया जाना चाहिए, जब सारी बातचीत और सारे प्रयास विफल हो जाएं. समस्या के जल्द से जल्द समाधान और मृतकों की संख्या कम करने के लिए इस बात की भी सलाह दी गई थी कि हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जाए. उसकी इस सलाह को भारत सरकार द्वारा नहीं माना गया. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस अधिकारी के पास एंटेबे ऑपरेशन और म्यूनिख ओलंपिक का अनुभव था, जहां से लोगों को निकालना एक दुरुह कार्य था. भारत में जून महीने तक हालात और भी ज़्यादा खराब हो गए और ऑपरेशन ब्लू स्टार का निर्णय ले लिया गया था. विदेश सचिव के वक्तव्य के अनुसार, उस ब्रिटिश अधिकारी की यात्रा के बाद भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी और ऑपरेशन का मुख्य कॉन्सेप्ट भी बदल दिया गया था.
1984 में मारग्रेट थैचर के प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेटरी रहे रॉबिन बटलर भी इस दस्तावेज को हाउस ऑफ कॉमन्स में रखे जाने के समय उपस्थित थे. उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि थैचर से उस अधिकारी की यात्रा के बारे में विचार-विमर्श किया गया था. इसके अलावा भारत में जो कुछ हो रहा था, उस पर थैचर ने निगाह भी रखी हुई थी. इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार हो जाने के बाद थैचर को एक पत्र लिखा था और इस बात की जानकारी दी थी कि उस दौरान क्या-क्या घटित हुआ? उन्होंने लिखा था, चरमपंथियों का लक्ष्य देश को बांटना और अस्थिरता पैदा करना था. उनसे निपटने के लिए अर्द्धसैनिक बलों की संख्या कम थी, इस वजह से हमने वहां सेना को भेजा था.
इसमें कोई संदेह नहीं कि अप्रवासी सिख समुदाय यूके सरकार से इस मामले पर जवाब मांगता रहेगा. स्पष्ट रूप से यह लगता है कि अगर उस अधिकारी की बात मानी गई होती, तो यह ऑपरेशन और छोटा होता और नुकसान भी कम हुआ होता, लेकिन भारत सरकार ने इस सलाह को मानने से इंकार कर दिया. जिस निष्कर्ष पर मैं पहुंचा, उसके उनसार तो ऐसा ही है कि उस समय सरकार का मानना था कि यह देश की समस्या है और इससे भारत को अपने ही तरीके से निपटना चाहिए. सलाह उन्हें दी गई, लेकिन उन्होंने मानी नहीं. इंदिरा गांधी ने इस बात का निष्कर्ष निकाल लिया था कि एक संप्रभु राष्ट्र अपनी एकता-अखंडता पर कोई भी सवाल बर्दाश्त नहीं कर सकता. उन्होंने अपने निर्णय की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई. जैसा कि उन्होंने थैचर को भी लिखा था कि सभी तरह के अपराधियों में वे सबसे घातक हैं, जो धर्म का चोला ओढ़े हुए हैं. आज भी इस घटना की यादें देश को डराती रहती हैं.

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