पंद्रहवीं लोकसभा इस लिहाज़ से काफ़ी महत्वपूर्ण है कि इसकी अध्यक्ष मीरा कुमार हैं. वैसे तो सदन में सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, जयाप्रदा, मीनाक्षी नटराजन, मेनका गांधी जैसी कई महिला राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन पंद्रहवीं लोकसभा इस मायने में भी ख़ास महत्व रखती है कि इसमें महिलाओं का प्रतिशत पहली लोकसभा से लेकर चौदहवीं लोकसभा तक सबसे अधिक था.
ग़ौरतलब है कि वर्ष 1994 के लोकसभा चुनाव में कुल 284 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिसमें 49 महिलाओं ने जीत हासिल की थी. वर्ष 2004 के चुनाव में 355 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, लेकिन उनमें केवल 45 महिलाएं ही लोकसभा में पहुंच पाईं. इसी तरह वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में 556 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में थीं, जिनमें से 59 महिलाएं पंद्रहवीं लोकसभा में अपनी जगह बना पाईं और आज़ादी के बाद यह सबसे बड़ा प्रतिशत था, जिसके बाद में दो महिलाएं डिम्पल यादव लोकसभा मध्यावधि चुनाव 2012 में उत्तर प्रदेश के कन्नौज से और गिरिजा व्यास जून, 2013 में चुनकर आईं. इस तरह यह तादाद बढ़कर 161 हो गई. ज्ञात हो कि छठी लोकसभा में यह महिलाओं की भागीदारी केवल 3.8 प्रतिशत था, पहली लोकसभा में यह केवल 4.4 प्रतिशत ही था. तेरहवीं लोकसभा में लगभग 9.2 प्रतिशत महिलाएं लोकसभा में थीं और वर्ष 2009 में यह सबसे अधिक 10 प्रतिशत था.
लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी लोकसभा वर्ष महिला सांसदों का प्रतिशत
1 1952 4.4 %
2 1957 4.5 %
3 1962 6.7 %
4. 1967 5.8 %
5. 1971 4.9 %
6. 1977 3.8 %
7. 1980 5.7 %
8. 1985 7.9 %
9. 1989 5.2 %
10. 1991 7.6 %
11. 1996 7.4 %
12. 1998 8.1 %
13. 1991 9.2 %
14. 2004 8.7 %
15. 2009 10.7%
आंकड़ों की बात करें, तो पंद्रहवीं लोकसभा में कांग्रेस से 23 महिला सांसद, भाजपा से 13 महिला संासद, समाजवादी पार्टी से 1, बसपा से 1, जनता दल (यू) से 2, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी से 2, तेलंगाना राष्ट्र समिति से 1, आरजेडी, शिवसेना, डीएमके, सीपीएम सबसे एक-एक महिला सांसद लोकसभा में पहुंची थींं. उनमें उत्तर प्रदेश की सबसे अधिक महिला सांसद हैं, जबकि पश्चिम बंगाल की 7 महिला सांसद थीं.
पंद्रहवीं लोकसभा में एक और महत्वपूर्ण बात यह थी कि पहली बार लोकसभा में लगभग सभी उच्चशिक्षा प्राप्त और नौकरीपेशा महिलाएं थीं. भारतीय राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि इसमें अनपढ़ लोग भी आ जाते हैं. हालांकि, इस बार की लोकसभा में महत्वपूर्ण यह बात थी कि जहां पुरुष सांसद 30 प्रतिशत थे, वहीं 32 प्रतिशत महिलाएं पोस्ट ग्रेजुएट थीं, जबकि 46 प्रतिशत पुरुष सांसद स्नातक थे. उनके मुक़ाबले 42 प्रतिशत महिलाएं स्नातक थीं. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पुरुष सांसदों की उम्र का अनुपात 54 वर्ष था, वहीं महिलाओं में यह प्रतिशत 47 वर्ष था.
पंद्रहवीं लोकसभा में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं के लिए कई विकास योजनाएं बनाईं थी. इसमें 33 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण देना उसकी पहली प्राथमिकता थी, लेकिन लोकसभा के अंतिम सत्र में भी यह विधेयक पास नहीं हो पाया. महिला आरक्षण बिल के प्रावधानों के मुताबिक़, लोकसभा और राज्य विधानसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देना था. इस बिल को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौडा ने 12 सितंबर, 1996 को पेश किया था. उसके बाद यह कई बार लोकसभा में पेश किया गया. राज्यसभा में यह बिल 9 मार्च, 2010 में ही पास हो गया था. हालांकि, इसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ था. इस विधेयक को लेकर राजनीतिक दलों में मतभेद इतना गहरा है कि मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद तक ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी थी. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के मुताबिक़, महिला आरक्षण का लाभ केवल उंची जातियों के महिलाओं को ही मिलेगा. दलित, मुस्लिम और पिछड़ी जाति के महिलाओं को इससे कोई लाभ नहीं मिलेगा. इसलिए उनके लिए अलग से आरक्षण दिया जाए और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो इस आरक्षण में केवल शिक्षित शहरी महिलाओं का क़ब्ज़ा हो जाएगा. चूंकि यह एक संवैधानिक संशोधन विधेयक है, इसलिए इस बिल का दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास होना आवश्यक था, जो अब तक नहीं हो पाया है. बिल को लेकर मायावती को आपत्ति थी कि इस बिल को पेश करने से पहले उनकी पार्टी के सुझावों को विधेयक के मसौदे में शामिल नहीं किया गया. इसलिए उनकी पार्टी ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन ममता बनर्जी ने इस बिल का विरोध एक बड़े कारण को लेकर किया था. उनका कहना था कि इस बिल को जिस प्रकार राज्यसभा में पेश किया गया, वह तरीक़ा सही नहीं था. उनके मुताबिक़, इस बिल में मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की बात नहीं है.
हैरानी की बात यह है कि सोनिया गांधी जैसी सशक्त महिला, जो कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं. वह खाद्य सुरक्षा बिल पास कराने में सफल तो हो गईं, लेकिन महिला आरक्षण विधेयक पास नहीं करा पाईंं.
अगर महिला आरक्षण विधेयक पास हो जाता, तो 543 सदस्यों वाली लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 61 से बढ़कर 181 के क़रीब हो जाती.
15वीं लोकसभा महिलाओं में निराशा
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