डॉ सुरेश खैरनार
अभि गत एक दो दिन पहले की हिंदी रंगमंच पर कोई मिश्राजी कीसी दलित लेखक के साथ काफी जाती वाचक और असभ्यता से लगातार हमला कर रहे हैं तो मैं यह मेरी पूरानी पोस्ट पुनः पोस्ट कर रहा हूँ !
संविधान सभा में बाबासाहब ने संविधान पेश करते हुए कहा था कि संविधानिक नैतिकता यह अपने आपमें निसर्गताह नहीं आती हैं उसे बडी शिद्दत से हासील करना पड़ता है ! जो संन्घपरिवारके बसमे नही है ! क्योंकि संन्घपरिवारकी इमारत एकचालकानुवर्त के सिद्दांत पर खड़ी है !
और मनुस्मृति का महिमा मंडन आज भी जारी है ! 5 अगस्त को अयोध्या के कार्यक्रम में मनुस्मृति के ब्राह्मण वाद का श्लोक जोर जोर से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जिस बेशरमी से बोला है यही उसकी परिणति है और वैसे भी भारत के संविधान को संघ परिवार की कभी भी मान्यता नहीं रही है !
95 साल के संघ के इतिहास में कोई एक भी कार्यक्रम जाती व्यवस्था के खिलाफ किया हो तो कोई बता सकता है ? हाँ हम शाखामे किसीकी जाती नहीं पूछते ! लेकिन भंवरलाल मेघवंशी जैसे दलित स्वयंसेवक की आत्मकथा हंडी के एक चावल के दाने जैसा उदाहरण पर्याप्त है !
वैसे भी भारतीय सामाजिक संरचना बाबा साहब की भाषा में एक चार मंजिल इमारत जैसी है जिसमें सीढ़ियाँ ही नहीं हैं ! ऊपर का ऊपर निचेका निचे,जिसमें आवागमन की सुविधा हजारों वर्षों से नहीं है लेकिन भारतीय संविधान 26 नवम्बर 1949 के दिन को घोषित हुआ और 26 जनवरी 1950 से लागू किया उसके लिये सिर्फ संविधान कागजपर नहीं रहना चाहिए उसे अमलीजामा पहनाने के लिए बहुत शिद्दत के साथ कोशिस करनी होगी जो 26 जनवरी 2020 को 70 साल होने के बावजूद काफी कुछ बाकी है सो सही मायनों में अपने आपको जाती धर्मनिरपेक्ष सम्तामुलक समाज बनाने के लिए पृतिबध्द लोगों का कर्तव्य है कि हमारे संविधानका अमल कैसे होगा ? चार मंजिल की इमारत में सिर्फ सीढिया बना कर नही चलेगा उसे गिराकर नई इमारत जो हमारे संविधान के अनुसार हो ! इसकी सही शुरुआत करने के लिए सभी समतामुलक,जनतांत्रिक समाज बनाने वाले लोगों का काम है !
क्योंकि हमारे समाज की रचना हूबहू मनुस्मृति के अनुसार होनेके कारण उसे सचमुच हमारे संविधान के अनुसार बनाना हमारा मुख्य लक्ष्य होना चाहिए वर्तमान सरकार और उसकी नकेल कसने वाले सन्घपरिवारने भारतीय संविधानका स्वीकार ही नहीं किया ! क्योंकि संविधानकी घोषणा होने के दो दिन के भीतर ही ऑर्गनायझर नामके संघ के मुखपत्र में उस समय के सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने स्पष्ट किया है कि हमारे देश में हजारों सालोसे ऋषी मनु ने लिखा संविधान होनेके बावजूद यह देश विदेश के संविधानोकी नकल कीया हूआ गुधडी की क्या जरूरत है ?
जिस संन्घपरिवारके सबसे अधिक समय रहे प्रमुख (30 सालसे ज्यादा!) ने ही वर्तमान सन्घपरिवारके शाखाओं से निकलने वाले स्वयंसेवक जिसके ज्यादा तर लोग वर्तमान सरकार के कोई प्रधान-मंत्री है तो कोई गृह मंत्री जो गोलवलकर के कल्पनाओको अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रहे हैं उसि कडिके रुपमे नागरिकता को लेकर जो भी कुछ करनेकी कोशिश कर रहे हैं उसमे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को हिन्दुओ की सदाशयता पर रहना होगा !
वर्तमान सरकार 2024 में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रही हैं और सन्घकी स्थापना को 2025 में सौ साल पूरे होने के अवसर पर वर्तमान सरकार सत्ता में रहेंगी या नहीं इसका उन्हें खुद आत्मविश्वास नही है इसलिए वे कुछ भी करके गुरु गोलवलकर के द्वारा लिखित हिन्दु राष्ट्रके निर्माण में लगे हुए हैं और उसीका हिस्सा तथाकथित नागरिकताको लेकर जो कसरत करने का मन बना लिया है और इसिलिए सही मायनों में हमारे-आपके संविधानका बचाव करने के लिए हम सभी प्रगतिशील,समाजवादी विचारधारा के लोगों का नैतिक और सविधानिक दायीत्व हैं की हर हालत में यह काला कानून जैसे 1919 में अन्ग्रेजोने रौलट अक्ट के नाम से काला कानून लाने की कोशिश की थी और जिस कारण लाला लाजपत राय शहीद हुए और उनकी शहादत के बाद शहीद-ए-आज़म भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु ने भी अपनी जिंदगी दावपर लगा दी थी और महत्मा गाँधी के द्वारा भारत में आनेके बादके यह पहला मौका था जिसमें उन्होंने संम्पुर्ण भारत में स्वतंत्रता संग्राम सही मायनों में देश के कोने-कोने में अपने अनूठे सत्याग्रह नामके दक्षिण अफ्रीका की लड़ाई से तराशकर तैयार किया हुआ शस्त्र का सही प्रयोग शुरू हुआ और 28 साल की अथक मेहनत से बाद अन्ग्रेजोको भारत छोडकर वापस जाना पड़ा ! आज उसी तरह देश भर में शांततामय संघर्ष बगैर किसी नेतृत्व से जारी है ! शाहीन बाग का सत्याग्रह उसकी जितिजागती मिसाल है ! इतनी ठण्ड में ! वह भी महिलाओं के नेतृत्व में जारी आन्दोलन को देखते हुए मुझे पूरा भरोसा है कि भारत में 1974 के बाद पहली बार समाजका हर तबका भारतीय संविधान की दुहाई देकर हाथोमे हमारा राष्ट्रीयझंडा को हाथोमे लेकर जिस शिद्दत के साथ जगह जगह सत्याग्रह कर रहे हैं यह बहुत बड़ी बात है !
वर्तमान सरकार की पूरी कोशिश भारत का संविधान को परे रखकर हिन्दुराष्ट्र को कानुनी जामा पहनाना जिसमे वो हमारी संसदके तथाकथित बहुमत का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं ! मेरी तो भारतीय जनता पार्टी के भी कुछ लोग जिह्ने भारतीय सांविधान के बारे में अगर सचमुच कुछ आदर सम्मान करते हैं तो उन्हें भी विनती है कि बडी मुश्किल से 70 साल के भीतर हम एक राष्ट्र की कल्पना साकार करने के लिए लगे थे और उसे तार तार करने के कामको रोकनेके लिए कम्सेकम आपमेसे कुछ लोग आगे आने चाहिए क्योंकि आपकी राय कुछ भी हो लेकिन 130 या 135 करोड़ लोकसंख्यामें 30-35 करोड मुसलमानोंको असुरक्षाके मानसिकतामे डलवाने की कोशिश जो देश के समाजस्वास्थके लीये बहुत खतरनाक साबित होगा क्योंकि ये लोग यही पैदा हुए और यही रहंगे कयोंकि वे सिर्फ मुसलमान है इसलिए दुनिया का कोई मुसलमान देश इन्हे लेने वाला नहीं है 1971के समय दस हजार की संख्या में बिहारी मुसलमान जो बँगला देशमे रह गए जो आज दस लाख से अधिक हो गये है !उन्हें आज 50 साल बाद भी नागरिकता नही मिल रही है ! 30-40 साल साऊदी अरब देशों में कामके लिये गए हुये मुसलमान वहाके नागरिक नहीं बन सके आखिरकार उन्हे वापस लौटना पड़ा जब यह वास्तव है तो हिन्दु मुसलमान का खेल खेलते हुए देश की एकता-अखंडता खतरे में डलवाने की गलती सन्घपरिवारके लोग गत 95 वर्षों से कर रहे हैं ! इसे राष्ट्र प्रेम कहेंगे?उसी कारण 1946-47 मे देशका बटवारे के लिये अकेले मुस्लिम लीग जिम्मेदार नहीं है सन्घपरिवारके द्विराष्ट्रका सिद्दांत भी जिम्मेदार है ! क्योंकि जिनाने हिन्दु बहुल भारत में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखेंगे यही डर मुसलमानोको दीखा दिखाकर पकिस्तान की मांग आगे बढ़ाने में कामयाब हुए लेकिन अब अगर 72 साल के बाद भी भारत में जो मुसलमान रह गए वे चाहते तो पकिस्तान में जा सकते थे लेकिन नहीं गये तो वे भारतीय है इसमे उन्हे बार बार गुजरात,भागलपुर,मलियाना,मु
और जिस कश्मिरको हमारा अभिन्न अंग है की रट लगाए जा रहे हैं वह 90% मुसलमान बाहुल्य वाला कश्मिरके मुसलमान क्या सोचते हैं ? जब भी कभी मैं वहाँ पर जाता हूँ मुझे बार-बार सवाल पूछते हैं कि डॉक्टर साहब आज 73 साल बाद भी भारत ने हमारा दिल क्यों नहीं जीता ? सथीयोको मै बता दूं कि मैं लगभग हर रोज कश्मिरके मित्रोँसे बात कर रहा हूँ और यह सब मुझे सुनना पड़ता है ! वही हाल हमारे उत्तर पूर्वी राज्यों का क्या इतने विविधतापूर्ण बहुआयामी देशमे एक कानून,एक भाषा,एक ही तरह की संस्कृती,खान पान,वेशभूषा संभव है ? और इसिलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने सभी लोगों का ध्यान रखना होगा इस उद्देश्य से संविधानको बनाया और अलग अलग प्रावधानों की व्यवस्था की और ये बावले चले सब कुछ बदलने ! इसका परिणाम बडी मुश्किल से भारत एक होनेकी प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन इन जाहिलों नो पूरा गुडगोबर करनेकी ठान ली है लेकिन मुल्क इनके बापकी जागीर नहीं है की जो मनमे आया कर डाला ! नोटबंदी से लेकर जाति धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल कर देशकी एकता और अखंडता को तोड़ने का काम कर रहे हैं इसलिये इन्हे हर हालत में रोकनेकी जरुरत है और यह हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह इस काले कानून के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए प्रतिबद्ध होकर शाहीन बागसे लेकर कर्बिलोँग तक एक होकर लड़ सकते हैं !
अकेला जीना कुछ नहीं कर सकते थे अगर सावरक र का हिन्दुत्व और गोलवलकर के द्वारा संचालित मुसलमानो पर अलवर से लेकर जम्मू तथा देश के विभिन्न हिस्सों में हमलावरों में कैसे शामिल थे यह विनोबाजीने अलवर के मेवाती मुसलमानो के ऊपर किये गये तथाकथित सफाई अभियान चलाया गया था जिसमें अलवर संस्थानके दीवान एन बी खरे खास तौर पर नागपुर से भेजे गए थे ! और इसिलिए महात्मा गाँधी जी ने जानबुझकर एक महाराष्ट्रीय कोकणस्थ ब्राह्मण आचार्य विनोबा भावे को एक सदस्य आयोग द्वारा मेवाती मुसलमानों के वंशसंहार की घटना की जांच के लिए भेजा था और उन्होंनें जो निस्पक्ष होकर इस दंगेकी जो रिपोर्ट तैयार की वह आज भी एक आदर्श रिपोर्ट मानी जाती है !
वैसे ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के समय 2002 में 27 फरवरी के बाद के दंगेकी रिपोर्ट जस्टिस वी के क्रष्णअय्यर के नेतृत्व वाली क्राईम अगेन्स्ट हुमानीटि नामकी रिपोर्ट भि भारत के अबतक के दंगेकी बेहतरीन रिपोर्ट मानी जाती है ! हालाकि उसी दंगेके कारण नरेंद्र मोदी की दिल्ली तक पहुंच भी हूई है यह वास्तव भी एक सेकुलर कार्यकर्ता के नाते मैं स्वीकार करता हूँ ! यह हम सभी को सोचने समझने की बात है लेकिन अब यह एक जुनून होता नजर आ रहा है जो देश की एकता-अखंडता खतरे में जाते हुए हम चुपचाप बैठे बैठे देख नही सकते इसलिए हर हालत में इसे रोक लगाने के लिए हम सभी जाती धर्मनिरपेक्ष और सम्तामुलक समाजका सपना साकार करने के लिए पृतिबध्द लोग अपने पूरी ताकत के साथ रोकनेकी कोशिश कर रहे हैं !
डॉ सुरेश खैरनार,नागपुर 14 सितंबर 2020