सपा प्रमुख मुलायम सिंह के अनुज शिवपाल सिंह यादव हैं. जो सपा को आगे बढ़ाने के लिए अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की आहुति दे रहे हैं. एक तरफ मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, आज़म ख़ां जैसे नेता अपनी लच्छेदार बातों से समाजवादी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव पर्दे के पीछे से मोर्चा संभाले हुए हैं, जो कार्य काफी दुरूह है. वैसे तो शिवपाल अखिलेश कैबिनेट में मंत्री हैं, उनके पास कई विभागों की ज़िम्मेदारी है, लेकिन चुनावी जंग में वह आम कार्यकर्ता की तरह जुटे हुए हैं. राजनीतिक पंडितों का कहना है संगठन और कार्यकर्ताओं में मज़बूत पकड़ के कारण शिवपाल मुलायम की ताक़त बने हुए हैं.
समाजवादी पार्टी के छोटे-बड़े सभी नेता एकजुट होकर मुलायम सिंह को तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाने का बीड़ा उठाए हुए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लेकर सपा के बड़े नेताओं में यह विश्वास नहीं दिखाई देता है. यही वजह है कि सूबे में आज मुख्यमंत्री तो एक ही है, लेकिन उनके ऊपर सुपर मुख्यमंत्रियों की लाइन लगी है, जो अपने आप को मौजूदा सीएम अखिलेश यादव से कई मायनों में बेहतर समझते हैं. यह वह नेता हैं जो मुलायम के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके अधीन काम करने में तो अपने आप को असहज नहीं महसूस करते थे, लेकिन अखिलेश के अधीन काम करने में वे सहज नहीं हैं. ये नेता अपने आप को चतुर चालाक और अखिलेश को राजनीति के नये खिलाड़ी से अधिक महत्व नहीं देते हैं. पार्टी के कद्दावर नेता आज़म ख़ां, राम गोपाल यादव और स्वयं मुलायम सिंह खुले तौर पर तो सपा के अन्य कुछ बड़े नेता मौक़ा पड़ने पर युवा सीएम को यह एहसास कराने में पीछे नहीं रहते हैं कि अनुभव के हिसाब से वह उनसे बीस हैं. अगर ऐसा न होता तो उक्त नेता मौके-बेमौके यह जुमला बोलने का साहस नहीं जुटा पाते कि अगर मैं सीएम होता तो दंगा न होता, सरकारी कर्मचारियों को ठीक कर देता, नौकरशाहों की लगाम कस के रखता आदि-आदि. सीएम को इन नेताओं के बड़बोलेपन और बयानबाजी के कारण अक्सर दबाव में देखा जा सकता है. इसी के चलते वह कोई महत्वपूर्ण फैसला अपने दम पर लेने से हिचकते हैं कि कहीं कथित सुपर सीएम द्वारों उनकी गर्दन न पकड़ ली जाए. सपा के बड़े नेता अखिलेश को भाव नहीं देते हैं. इसका ख़ामियाज़ा यह होता है कि विपक्ष को भी अखिलेश की क़ाबिलियत पर सवाल खड़ा करने का मौका मिल जाता है. ऐसी परिस्थितियों में किसी भी सीएम के लिए शासन करना आसान नहीं होता है. अखिलेश सरकार की नाकामी की जब-जब बात होगी तो इसके लिए सुपर मुख्यमंत्रियों पर भी उंगलियां ज़रूर उठेंगी.
आज स्थिति यह है कि पार्टी के दिग्गज नेता, अखिलेश सरकार और समाजवादी संगठन के लोग मुलायम के मिशन-2014 को पूरा करने के लिए तो पूरी तरह से हाथ पैर मार रहे हैं, लेकिन इस बात की चिंता किसी को नहीं है कि अगर वह सीएम को कमजोर करेंगे तो इसका विपरीत प्रभाव दिल्ली मिशन पर पड़ेगा. खैर, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच एक नेता ऐसा भी है जो कभी सीएम की दौड़ में मुलायम के बाद सबसे आगे हुआ करता था, लेकिन अखिलेश की राजनीति में इंट्री होने और सीएम बनने के बाद भी उसने अपना आपा नहीं खोया और हालात से समझौता करना बेहतर समझा. यह नेता और कोई नहीं, सपा प्रमुख मुलायम सिंह के अनुज शिवपाल सिंह यादव हैं. जो सपा को आगे बढ़ाने के लिए अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की आहुति दे रहे हैं. एक तरफ मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, आज़म ख़ां जैसे नेता अपनी लच्छेदार बातों से समाजवादी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव पर्दे के पीछे से मोर्चा संभाले हुए हैं, जो कार्य काफी दुरूह है. वैसे तो वह अखिलेश कैबिनेट के कद्दावर मंत्री हैं, उनके पास कई विभागों की ज़िम्मेदारी है, लेकिन चुनावी जंग में वह आम कार्यकर्ता की तरह जुटे हुए हैं. राजनीतिक पंडितों का इस संबंध में अलग ही नज़रिया है. उनका कहना है संगठन और कार्यकर्ताओं पर मज़बूत पकड़ के कारण शिवपाल यादव सपा सुप्रीमो की ताक़त बने हुए हैं. संगठन से जुड़े मसले हों या फिर अन्य विवादित मुद्दे, नेताजी उन्हें सुलझाने के लिए शिवपाल को आगे करते हैं. शिवपाल अपनी बात बेधड़क कहते हैं. चाहे मामला पार्टी के हित का हो या फिर आज़म ख़ां जैसे नेताओं के विरोध का. उन्होंने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. आज भी आज़म ख़ां को लेकर शिवपाल की त्योरियां चढ़ रहती हैं, बावजूद इसके, वह जानते हैं कि खां साहब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के सबसे अजीज़ बने हुए हैं. शिवपाल यादव जितने समय तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे, आज़म ख़ां की सपा में वापसी नहीं हो पाई.
समय-समय पर नेतृत्व को भीतरघातियों से सतर्क करते रहना, हवा-हवाई नेताओं को उनकी औकात बताना, कार्यकर्ताओं के सम्मान के लिए किसी भी हद तक आगे बढ़ जाने से नहीं हिचकिचाना, सरकार और संगठन के मसलों को सुलझाते रहना, पार्टी के विधायकों और सांसदों की मदद करना, जनता के बीच अधिक से अधिक समय देने की आदत जैसी तमाम ख़ूबियों के चलते कुशल वक्ता नहीं होने के बाद भी शिवपाल अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं. मुलायम सिंह यादव 2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर शिवपाल से अक्सर ही गंभीर मंत्रणा करते रहते हैं. सपा प्रमुख को इस बात का अच्छी तरह से एहसास है कि आज अगर सपा सत्ता में है तो इसके लिए शिवपाल यादव के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. बसपा के सत्ता में रहते शिवपाल ही थे, जिन्होंने माया पर दनादन हमलों की रणनीति बनाकर उन्हें बैकफुट पर धकेल दिया था. शिवपाल माया पर हमला बोलने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते थे तो बीते दिनों सपा के एक कार्यक्रम में उन्होंने मंच से ही पार्टी आलाकमान को पार्टी के विभीषणों से सचेत रहने की हिदायत देकर जता दिया था कि उनके लिए पार्टी के हितों से ऊपर कोई नहीं है.
समाजवादी पार्टी के महासचिव शिवपाल आज की तारीख़ में पार्टी के लिए बहुउपयोगी नेता हैं. मुज़फ़्फ़रनगर में दंगा हुआ. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पीड़ितों का हाल लेने के लिए दंगा प्रभावित इलाकों में गए तो वहां उन्हें दंगा पीड़ितों की नाराज़गी झेलनी पड़ी, काले झंडे दिखाए गए. स्थिति यह है कि आज तक सपा प्रमुख दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. मुलायम को डर सताता रहता है कि अगर उनका विरोध हो गया तो उनकी मुल्ला मुलायम वाली छवि पर ग्रहण लग सकता है. यहां तक कि आज़म ख़ां तक दंगा पीड़ितों का हालचाल लेने जाने का साहस नहीं कर सके. इस सब के बीच शिवपाल यादव ऐसे नेता थे जो वहां जाकर दंगा पीड़ितों से मिले और उनके जख्मों पर मरहम भी लगाया, बिना किसी विवाद के उनकी यात्रा पूरी हो गई. वह सभी कौमों के दंगा पीड़ितों से मिले, उनका दुख दर्द बांटा. दंगों के कारणों को पहचाना. इसी तरह से बीते दिनों कुछ प्रत्याशियों का लोकसभा का टिकट काटे जाने पर पार्टी में विरोध शुरू हुआ तो नेताजी ने शिवपाल के कंधों पर ही हालात संभालने की ज़िम्मेदारी डाली. चीनी मिल मालिकों और गन्ना किसानों के बीच का मतभेद दूर करने के लिए भी वह आगे आने में नहीं हिचकिचाए.
बहरहाल, सपा नेता शिवपाल यादव में जहां कई ख़ूबियां हैं तो कई बार अपने व्यवहार और ज़ुबान फ़िसलने के कारण वह विवादों में भी फंस जाते हैं. कभी वह अपने विभाग के कर्मचारियों को डकैती नहीं थोड़ी-बहुत चोरी करने की हिदायत देने के कारण, तो कभी अधिकारियों द्वारा उनका पैर छूने के कारण फंस जाते हैं. वह बेनी प्रसाद को नशेड़ी और तस्कर घोषित कर देेते हैं. सपा की पिछली सरकार के समय हुए निठारी कांड पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि ‘इस तरह के छोटे-मोटे कांड होते रहते हैं.’ शिवपाल को लेकर परिवार में मनमुटाव की ख़बरें भी आती रही हैं, लेकिन आज भी शिवपाल सपा सुप्रीमो मुलायम की गुड लिस्ट में शामिल हैं. अपने कंधे का तमाम भार शिवपाल के कंधों पर डाल कर नेताजी अपने आप को मह़फूज़ समझते हैं, तो यह शिवपाल की ख़ूबी ही है.
शिवपाल के कंधों पर मुलायम का भार
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