|| महामारी के ठीक बाद ||
महामारी के ठीक बाद
निकल पड़ा मैं
शमशानों /कब्रिस्तानों / सड़कों की टोह लेने
मुर्दों / अधमरों की पहचान करने
कई लाशें पड़ी थीं
कई कराह रहीं थीं
जो जल चुके थे
उनकी राख भी
असली पहचान बताने की कोशिश कर रही थी,,,
एक कोने में
इतिहास कराह रहा था
भविष्य के सैकड़ों घावों से बेकारी की मवाद बह रही थी
इंसानों की सड़ चुकी देहों के बीच पड़ी
पीड़ित मानवता तड़प रही थी
मंदिर/मस्ज़िद हो गए थे भुतहा
कुछ बचे हुए थे, गिद्ध भी
शायद सारे गोया वे ऊंचाई पर रहते हैं
अलग अलग रंग के लिबास पहने
काले, सफेद, धूसर
जीभ से टपक रहा था लालच
अधमरों का भी मांस नोचने
जो बच गए थे जिंदा
बने कुछ
कोल्हू के बैल
खेत में जुते जुए
कागजी तालाबों के फावड़े
राशन दुकानों के तराजू
बहुराष्ट्रीय बंधुआ जंजीर
बैंक की बही में काले धब्बे
मशीनों में दर्ज वोट
पर बवा के कहर के बाद भी
टूटा नहीं जज्बा जिजीविषा का
बहुतेरे अब भी
बना रहे हैं
आकाश की ओर सीढ़ी
लाने अंजुरी में
गंगा
आंखों में ऊषा
और
झोले में कुछ मीठे बीज
पद्मनाभ