मुकेश कुमार
बूंदें
बारिश की बूँदें
हल्के मेंगो शॉवर जैसी
बादल से उतरकर
तुम्हारे दूब – देह से मिलेंगीं
बदल जाएँगी मोती में
खिलखिलाती हुई छमकेगी नाभि पर
केशो से उलझकर मोगरा बनेंगी
सुवासित कर देंगी धरा गगन,
उस भीगे केशराशी को
कि कैसे वो जवा कपोलों को
ढक लेगी स्नेहिल स्पर्श के साथ
जिन्हे चाहूँगा फूंक कर हटाना
कुछ बूँदें ठहर जाएंगी
तुम्हारे गालों के गड्ढों में
अठखेलियों से बज उठेगा मधुर संगीत
झंकृत कर देगा मन के क्षितिज को .
एक बूँद रुकेगी होंठ पर
जिसके प्रिज्मीय आवरण में
चमकेगी मेरी तस्वीर
चुपके से होंठो को तिरछा कर
तुम गटक लेना वो बूँद, ताकि
थम जाऊंगा तुम में इस तरह
तुम्हारे माथे के बीचोबीच ठिठकी
एक बूंद
चमक उठेंगी बिंदी की तरह
जैसे तुम्हारा चमकता आत्मसम्मान
दिखती हो सबसे अलग
बूंदों सी लरजती आँखे हर पल
बुलाती है कहती है आ भी जाओ न
कुछ बूंदे
गर्दन से उतरती
मन की गहराइयों तक पहुंचेंगी
जहां अंकुरित होगा अनुराग
गहराईयों को नापती
रूकती ठहरती फिसलती बहेंगी
देखना चाहता हूं सब तुम में
बहते, रुकते, पार उतरते हुए
राग के हर पड़ाव को
आत्मा की स्वर्णिम बिंदु तक
मुझे महसूसना है
वो हर पड़ाव
जो है तुममे
जो फिसलते हुए पहुँचाता है
मुझे अपने चरम की स्थिति तक
हां, उसे चूम अमर होने के भाव से कांपेंगी
बहेंगी मोक्ष की नदी
बूंदें जब कभी बरसे हरहरा कर
तब देखना है मुझे
चेहरे को, सुर्ख गालों को
और महसूसना है
बाहुपाश में स्वयं को
ताकि पिघलती बूंदे उतरती हुई ग्रीवा से
जा पहुंचे दिल के छोटे-छोटे कंदराओं में
तब तुम भींच कर कहना
बूंद के माफिक समाहित हो जाओ न मुझ में
कुछ बूँदें
वहां से भी सिहरते हुए जाना चाहेगी
आत्मा के स्वर्णिम बिंदु तक
चूम कर अमर होने के भाव से झूम उठेंगी
और मोक्ष के सरिता में समा जायेंगी
काश, बूंदों के आदान-प्रदान से
बहते हुए बह जाएँ और फिर
ठिठक कर रुकें, झांके नजरों में
जिससे तेज साँसों से उठे ज्वार उस समय
बूंदों से बनती नदियों की तरह
तुम भी बह जाना मुझमें
आखिर संगम तो नियति है
और हर संगम के बाद की स्थिरता
….है न एक प्यारी जिंदगी !
लड़के प्रेम में
जल्दी जल्दी में नहाते समय माथे के साथ
छाती पे उगते हल्के बालों को भी
शैम्पू से धोकर
लगा लेते है कंडीशनर
साथ ही, कुल्ला कर थूक लेते हैं
पान पराग व जाफरानी
और फिर बिना गमछे से पौंछे ही
आईने में हल्के लहराते हुए बालों को निहार कर
शर्ट के ऊपर के दो या तीन बटनों को
खोले व कॉलर उठाये
मुस्कुराते हुए खुद से कह उठते हैं लड़के
साला प्यार काहे हुआ यार
चमकते सूरज की धौंस से बिना डरे
साइड स्टैंड पर स्टाइल से खड़ा करके
पल्सर बाइक को
रे बैन के नकली ब्रांड वाले चश्मे को
खोंसते हैं बेल्ट में और
पसीने की बूंद को उतरने देते हैं
कान और गर्दन से होते हुए बनियान के भीतर तक
नहीं कोशिश होती हैं छायेदार पेड़ के नीचे ठहरने की
फिर खुद ही को बुदबुदाते हुए कह देते हैं
नए नए जवान हुए लड़के
कि साला बेकार में ही हुआ ये प्यार
पैर को आड़ा कर, जूते को अपनी पैंट से
रगड़ कर चमकाते हुए
इंतजार करने की अदा में
होते हैं बेवजह परेशान
और फिर बाइक की टँकी पर
हल्के से मुक्के को मारते हुए खीजते हैं
अबे यार, आओगी भी
या अकेले ही जाऊं देखने
‘प्रेम रोग’
प्यार के नाटक में गिरफ्त हुए छोकरे
प्यार पर तंज कसते हुए
खुद से ही लड़ते हुए क्यूट से हो जाते हैं
प्यार हुआ
प्यार नहीं हुआ
सिक्के के दो पहलू की तरह
हेड टेल से प्रेम के परिमाण को मापते हुए
हेड कह कर उछालते हैं सिक्का
पर टेल आने पर, खुद से आंखे बचाकर
उल्टा करके सिक्के को
कह देते हैं थोड़ा जोर से
देखो मुझे तो प्यार हुआ ही है न
उसको ही समय नहीं है
मेरे लिए
अकेले में खुद ब खुद मुस्काते हुए
बात बेबात के फुल शर्ट की आस्तीन को
ऊपर कर के
बिना होंठ हिलाए कहते हैं स्वयं से ऐसे
जैसे रिहर्सल कर रहे हों कहने का
कि अबकी तो लेट करने के बदले
तुमको देना ही होगा
तीन चुम्मा ।
एक आज का, एक लेट का
और एक ?
छोड़ो यार, मत करो न बहस, बस दे देना।
पोखर की रोहू मछली की तरह
कम पानी में कूद-फांद मचा कर
शिथिल हो
गुस्से में तमतमाने के बावजूद
समय बीत जाने पर भी
इंतजार करते हुए लड़के
रखते हैं चाहत उम्मीदों की गुलाबी रंगत का
कि शायद भरी दोपहरी में
रूमानी बादल छा ही जाये
शायद वो आकर चुपके से कंधा थपथपाए
औऱ कह ही दे
मैं आई आई आई आ ही गयी
प्रेमिका के आ जाने पर
कोशिश करते हैं कि दिखाएं अपना अभिमान
लाल आंखों को तरेरते हुए
चाहते हैं कि जाहिर करें अपना गुस्सा
पर लड़की के चंचल मुस्कान पर
पल भर में हो जाते हैं कुर्बान
मजनूं, रोमियो या फरहाद न हो पाने के बावजूद
प्रेम में बहते हुए लड़के कभी कभी
हो जातें हैं डभकते हुए मोमबत्ती
जिनकी बस चाहतें ठिठकते हुए मचलती हैं
जो गर्म होकर पिघलते हुए
स्वयं को बेशक कर लें ख़त्म
पर प्रेम सिक्त प्रकाश में
खुश होती लड़की का रखते हैं
भरपूर ख्याल
ये लड़के गुलाबी कागज पर
लाल कलम से लिख डालते हैं प्रेम पत्र
ताकि हो रूमानी अहसास
रक्त से बहते प्रेम का
बेशक झूठ से गढ़ते हैं प्रेम
पर पत्र की अंतिम पंक्तियों में जरूर लिखते हैं
– सिर्फ तुम्हारा
हाँ तो
प्रेम में डूबे ये खास लड़के
हजार झूठ में एक सच को सँजोये
करते हैं प्रेम
और उस सच के इजहार में
हर बार मिलने पर कहते हैं
आई लव यू जानां