भाजपा नरेंद्र मोदी को आगे करके चर्चा में है, तो कांग्रेस अपने कारनामों के चलते. ऐसे में, एक तीसरे मोर्चे की जो संभावना दिखाई दे रही है, वह देश के लिए कितनी कल्याणकारी साबित हो सकती है, पेश है इसी बिंदु पर यह विश्लेषण.
राजनीतिक क्षितिज पर अभी भी उम्मीद की किरण बाकी है. यही वह समय है, जबकि एक तीसरे मोर्चे को सकारात्मक रवैया अपनाते हुए आगे आना चाहिए. वह एक सरकार का गठन कर सकता है. अभी राजनीतिक परिदृश्य में उसके लिए जगह उपलब्ध है. कांग्रेस और भाजपा इस जगह का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी. आडवाणी जी यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि समय फिर उनके पक्ष में आएगा, लेकिन ऐसा होने के लिए धर्मनिरपेक्ष चेहरा और धर्मनिरपेक्ष कामकाज का तरीका भी आना चाहिए.
भाजपा एक अद्भुत पार्टी है. चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम घोषित होने के बाद अभी देश में जिस तरह की बहस चल रही है, उससे तो यही साबित होता है, लेकिन ऐसा करके भाजपा ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है. कांग्रेस को हराकर सत्ता में आने की जो भी थोड़ी-बहुत संभावना दिख रही थी, उसे भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नाम पर ख़त्म कर लिया है. ज़ाहिर है, वर्तमान स्थिति में कांग्रेस को भी कोई खास फ़ायदा नहीं होने जा रहा है. इसकी वजह भी है. कांग्रेस के शासन में देश को क्या मिला, सिवाय घोटालों, अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के? लोगों के बीच आम धारणा यही है कि इस सबके लिए कांग्रेस ही ज़िम्मेदार है. खुद कांग्रेस भी यह सब समझ रही है. लेकिन एनडीए का क्या होगा? एनडीए को अगर जनता चुनती है, तो प्रधानमंत्री कौन होगा?
यह सवाल इसलिए भी, क्योंकि भाजपा शायद अब तक देश की जनता की भावना को समझ नहीं सकी है. अगर वह उसे समझती, तो शायद नरेंद्र मोदी को आगे न करती. बेशक, अभी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन धारणा यही है कि भाजपा मोदी को पेश करने की कोशिश कर रही है. किसी भी व्यक्ति की आम जानकारी यही है और वह यह समझता है कि नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए विभाजनकारी कारक हैं और इस देश के लिए भी. पहली बार मतदान करने जा रहे युवाओं के सामने भी यह बात स्पष्ट है. मुसलमानों को उन पर भरोसा नहीं है, जो कि क़रीब 15 फ़ीसद मतदाता हैं. भाजपा को यह समझना चाहिए कि परीक्षा पास करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा सवालों के जवाब देने पड़ते हैं.
नरेंद्र मोदी को आगे करने के फैसले से भाजपा ने यह दिखा दिया है कि वह केंद्र में सत्ता में आने की इच्छुक नहीं है. आरएसएस अपने एजेंडे आगे करना चाहता है, मसलन राम मंदिर आदि. उसे केंद्र में सत्ता या देश की भलाई में रुचि नहीं है. लेकिन भाजपा एक राजनीतिक दल है और उसे राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से देश की बेहतरी के लिए ही काम करना होगा तथा इसी कार्य से उसकी प्रासंगिकता बचेगी. आज कांग्रेस क्या कर रही है? कॉरपोरेट सेक्टर को मदद देने के लिए ही सरकार की नीतियां बन रही हैं और सरकार मदद दे भी रही है. लेकिन अभी सरकार की क्या हालत हो गई है? अर्थव्यवस्था के मौजूदा रुझान से सरकार हतोत्साहित है.
राजनीतिक क्षितिज पर अभी भी उम्मीद की किरण बाकी है. यही वह समय है, जबकि एक तीसरे मोर्चे को सकारात्मक रवैया अपनाते हुए आगे आना चाहिए. वह एक सरकार का गठन कर सकता है. अभी राजनीतिक परिदृश्य में उसके लिए जगह उपलब्ध है. कांग्रेस और भाजपा इस जगह का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी. आडवाणी जी यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि समय फिर उनके पक्ष में आएगा, लेकिन ऐसा होने के लिए धर्मनिरपेक्ष चेहरा और धर्मनिरपेक्ष कामकाज का तरीका भी आना चाहिए. तीसरे मोर्चे की बात शुरू हो चुकी है. ममता बनर्जी और जदयू के प्रतिनिधि के बीच बातचीत भी हुई है. नवीन पटनायक भी इसे लेकर उत्साहित हैं. उन्हें चाहिए कि वह मायावती एवं मुलायम सिंह यादव से बात करें और यह कोशिश करें कि दोनों या फिर उनमें से कोई एक उनके साथ आए. इस तरह का गठबंधन संभव है. इन चार- पांच लोगों की ताकत कांग्रेस या भाजपा से कम नहीं होगी. यह चुनाव के बाद तय किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री कौन होगा.
मैं तीसरे मोर्चे को देश के लिए एक बहुत-बहुत सकारात्मक विकास के रूप में देख रहा हूं. बेशक, कई लोग कहते हैं कि तीसरा मोर्चा सरकार ने पहले कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले कोई बहुत ज़्यादा काम नहीं किया है. यह सच है, लेकिन आज देश के पास विकल्प क्या है? क्या कांग्रेस और भाजपा ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई? आज ज़रूरत इस बात की है कि अपने अहंकार को परे हटाकर सही लोग और नेता आगे आएं. देश के हक में, उसकी भलाई के लिए एक सरकार के गठन की खातिर तीसरे मोर्चे का समर्थन करें, ताकि सही मायनों में देश को एक ऐसी सरकार मिले, जिसका वह हकदार है.