हम ? पागल हो क्या , त्रिलोचन ऐसे नही हुआ जा सकता ।
– वो भी कमाल की शख्सियत रही , कमबख्त गुरबत से गुरुर लेकर खड़ा हो जाता था और दाढ़ी पर बाद में हाथ फेरता था पहले पेट को सहलाता था । ‘ दाल में लगी हींग छौंक ने गजब ढा दिया । ‘
लेकिन कहां त्रिलोचन ,कहां हम ?
त्रिलोचन केवल कविता नही है कि , गुटका दबा के उसे उस दस्तरखान पर ला दो जिसपर दर्जन भर मुर्गमुसल्लम और बिरियानी पसरी पड़ी हो और खानेवाले हिकारत की नजर से देखते हों और जुगाली कर रहे हों ।बहस त्रिलोचन पर । त्रिलोचन अपने हिस्से की भूख को खदेड़ता हुआ एक जीवट रहा जो पीतल के बड़के लोटे में भरे पानी से भूख को पछाड़ कर अपना नाम दर्ज कराता है ,-‘ उस जनपद का कवि हूं। ‘
बेटी के घर आया हूँ , डॉ क्या कहेगा , कल बताऊंगा । अभी तो धूप है और हम रोटी से बात कर रहे हैं
Chanchal
Adv from Sponsors