हमारे देश के पिछले कुछ सेनाध्यक्षों ने बार-बार सरकार को चेताया था कि हमारे लिए वास्तविक ख़तरा पाकिस्तान नहीं, बल्कि चीन है, लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे हमारी सरकार के नीति निर्धारकों एवं सरकार चलाने वाले प्रमुख लोगों को चीन ने किन्हीं कारणों से अपने प्रभाव में कर लिया है, क्योंकि चीन से ख़तरे का वास्तविक रूप पिछले चार महीने से हमारे सामने आ रहा है.
भारत-चीन सीमा के कई जगहों पर महीनों से चीन कब्जा किए बैठा है. कहीं पर उसने चौकियां बनाई हैं और कहीं पर स़िर्फ टेंट लगा रखे हैं. भारत के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री एवं प्रधानमंत्री की बातों को चीन कोई महत्व ही नहीं दे रहा है, क्योंकि उसे मालूम है कि भारत सरकार की धमकी, धमकी नहीं है, स़िर्फ एक दिखावा है. भारत सरकार का कोई भी मंत्री चीन को साफ़ शब्दों में चेतावनी ही नहीं दे रहा. भारतीय सेना, जो पाकिस्तान के सामने दहाड़ती दिखाई देती है, चीनी सेना के सामने उसकी हालत ऐसी लगती है, जैसे बिल्ली के सामने चूहा खड़ा है.
इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जिनकी तह में भारत की जनता को जाना चाहिए, क्योंकि सरकार ने जानबूझ कर इन कारणों का निर्माण किया है. भारत की जनता को इस तथ्य को समझना चाहिए कि पिछले सालों में जानबूझ कर भारतीय बाज़ार को चीनी सामान के लिए खोल दिया गया. चीन का सामान अब हमारे जीवन का अंग बन गया है. यह अकारण नहीं हुआ है. ज़रूर भारत सरकार के अधिकारियों एवं मंत्रियों को चीन ने विदेशों में कुछ न कुछ मदद पहुंचाई होगी, वरना पूरा भारतीय बाज़ार, जिनमें लघु उद्योग एवं बड़े उद्योग भी शामिल हैं, चीन के कब्जे में चला गया है और भारतीय निर्माता धीरे-धीरे बाज़ार से बाहर हो गए हैं. इस समस्या पर किसी ने जरा भी ध्यान नहीं दिया. चीन द्वारा भारतीय बाज़ार को खोखला किया जाना, कभी भी भारतीय संसद, भारत सरकार और भारत के राजनीतिक दलों की चिंता का विषय नहीं बना. आज इनके कारणों की तलाश शायद कोई न करें, लेकिन कल इतिहास ऐसे लोगों को माफ बिल्कुल नहीं करेगा, जिन्होंने भारतीय बाज़ार को बर्बाद करने में चीनी हितों का साथ दिया है.
जो सबसे ख़तरनाक काम भारत सरकार ने किया है, वह है हमारे संचार क्षेत्र में चीन का सारा सामान लगा देना. भारत सरकार के संचार क्षेत्र में 90 प्रतिशत सामान चीन का बना हुआ लगा है और इसीलिए हमारी कोई भी बातचीत बीजिंग में बैठे या बीजिंग द्वारा स्थापित किए गए भारतीय जासूसी केंद्रों के पास सीधे पहुंच रही है. हमारी सारी जानकारियां, चाहे वे रक्षा संबंधी हों, राजनीति संबंधी हों, व्यापार संबंधी हों, या फिर सरकार जो भी योजनाएं बनाती है, वे सब भारत की जनता या भारतीय मीडिया तक पहुंचने से पहले ही चीन के पास पहुंच जाती हैं. हमारे सारे सर्वर, हमारा पूरा संचार क्षेत्र और उसमें लगी हुई एक-एक चीज चीन निर्मित है. इसलिए चीन जिस दिन चाहे, हमारी संचार व्यवस्था ठप्प कर सकता है. हमारी तकनीक का पूरा दखल चीन के पास है. इस फैसले को करने में जिन सरकारों ने रोल प्ले किया, या जिन सरकारी अधिकारियों के साथ मंत्री शामिल हुए हैं, उनके लिए फौरन अदालत के दरवाजे खोलने चाहिए और उन पर सार्वजनिक मुकदमा भी चलाना चाहिए.
अब एक और ख़तरनाक स्थिति पैदा हो गई है. भारत के आकाश में चीनी सेटेलाइट घूम रहा है और उस चीनी सेटेलाइट को किराए पर लेने का काम भारत के एक प्रमुख उद्योगपति ने किया है. जब चाइनीज सेटेलाइट श्रीलंका द्वारा लिया जा रहा था, तब भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इसका कड़ा विरोध किया था, क्योंकि उन्हें लगा था कि हमारी सारी सुरक्षा संबंधी जासूसी इस सेटेलाइट के जरिये होगी और चीन के पास सारी जानकारियां पहुंच जाएंगी, लेकिन अब भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के विरोध के बावजूद, भारतीय आकाश पर भारत के एक प्रमुख उद्योगपति ने चीनी सेटेलाइट किराए पर ले लिया है. यह उद्योगपति सरकारें चलाने और सरकारी अधिकारियों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेने के लिए विख्यात है. सुरक्षा एजेंसियों की चेतावनियों को नज़रअंदाज कर भारत सरकार ने किस तरह इस सेटेलाइट के उपयोग की अनुमति दी, यह अपने आप में न केवल रहस्य का विषय है, बल्कि खोज का भी विषय है. वे कौन मंत्री या प्रधानमंत्री सीधे इस अनुमति में शामिल हैं, जिन्होंने देश के हितों के ख़िलाफ़ सौदा किया?
इसीलिए आज भारत,चीन को न तो चेतावनी दे पा रहा है और न ही उससे अपनी ज़मीन खाली करा पा रहा है. चीन अमेरिका को सबक सिखाना चाहता है और यही सही समय है, जब चीन अमेरिकी प्रभुत्व को ललकार सकता है. अमेरिका को सबक सिखाने के लिए चीन को उस पर हमला करने की ज़रूरत नहीं है. उसे अमेरिका को सबक सिखाने के लिए स़िर्फ भारत को सबक सिखाना या भारत पर हमला करना जरूरी है. अगर वह भारत पर हमला करता है और भारत अपना उत्तर-पूर्व चीन के हाथों गंवा देता है, तो दुनिया में अमेरिका सबसे कमजोर माना जाएगा और चीन नंबर एक की ताकत के रूप में पहचाना जाएगा. हमारे उत्तर-पूर्व में न तो सैनिक तैयारी है और न राजनीतिक तैयारी. उत्तर-पूर्व में हमने क्या बनाया है, यह गूगल अर्थ में देखकर कोई भी जान सकता है. हमारी सेना की तैयारी भी वहां पूरी नहीं है. यह भी दुनिया की सैनिक पत्रिकाओं में अक्सर छपता रहता है.
पिछले सेनाध्यक्ष ने भारत के प्रधानमंत्री को लगभग 6 या 7 खत लिखे थे, जिनमें सेना की तैयारियों के बारे में प्रधानमंत्री को सीधे जानकारी दी गई थी. सीधे इसलिए दी गई थी, क्योंकि हमारा बाबू तंत्र या हमारी ब्यूरोक्रेसी सेना की ज़रूरतों पर कुंडली मारकर बैठ जाती है और यहीं से शुरू होता है भ्रष्टाचार और कमीशन का सिलसिला. जो ख़बर रक्षा मंत्रालय या प्रधानमंत्री कार्यालय से लीक हुई थी, उसमें यह कहा गया था कि पिछले सेनाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को अपने पत्र में लिखा है कि अगर हमारी चीन या पाकिस्तान के साथ लड़ाई होती है, तो हमारे पास 3 से लेकर 6 दिन तक का गोला-बारूद है, उससे ज़्यादा गोला-बारूद नहीं है.
इस सत्य का प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई जवाब नहीं दिया था, बल्कि इस बात की जांच की गई कि यह पत्र कहां से लीक हुआ. हम यह मानते हैं कि सेना ने अपनी स्थिति गोला-बारूद के मामले में सुधार ली होगी और हमारे पास अब महीनों लड़ने के लायक गोला-बारूद अवश्य होगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सर्वोच्च कौन है, इसकी स्पर्धा शुरू होने वाली है. और इस प्रतिस्पर्धा का सबसे कड़ा प्रतियोगी हमारा पड़ोसी चीन है, जिसे अमेरिका पर अपना वर्चस्व दिखाना है और उस वर्चस्व को दिखाने के लिए हिंदुस्तान पर हमला कर, हिंदुस्तान के जरिए अमेरिका पर प्रभुत्व जमाना, उसके लिए सबसे आसान होगा. यह ठीक वैसा ही क़दम होगा, जैसा भारत ने 1971 में बांग्लादेश के विभाजन के समय उठाया था, तब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था और पूर्वी पाकिस्तान में हमारी सेना खुलकर नहीं लड़ पा रही थी. ऐसे में श्रीमती इंदिरा गांधी ने पश्चिमी पाकिस्तान पर हमला करने की योजना बनाई और लाहौर पर हमला किया गया. लाहौर पर भारतीय हमले ने पश्चिमी पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान में कुमक भेजने का मौक़ा नहीं दिया और पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में आज़ाद हुआ. पाकिस्तान अपने सिपाहियों को हिंदुस्तान के हाथों कैद कराकर पश्चिमी मोर्चे पर भी हार गया. अब ठीक वही रणनीति चीन अपनाने जा रहा है और वह उसमें सफल होता भी दिखाई देता है, क्योंकि भारतीय सेना भीगी बिल्ली की तरह सीमा पर बैठी हुई है.
चीन भारत पर हमला करेगा, यह दीवार पर लिखे सत्य की तरह हमारी आंखों के आगे है, लेकिन भारत सरकार क्यों इस तथ्य पर आंख बंद किए हुए है, पता नहीं. भारतीय जनता पार्टी सहित तमाम दूसरी पार्टियां इस सत्य को पहचान नहीं पा रही हैं. तीन महीने पहले स़िर्फ मुलायम सिंह यादव ने इस सत्य को रेखांकित किया और उन्होंने खुलकर कहा कि भारतीय सेना चीन के सामने कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है. मुलायम सिंह यादव भारत के रक्षा मंत्री रहे हैं और जाहिर है कि उन्हें हमारी सेना की स्थितियों के बारे में कुछ न कुछ ज़्यादा ज़रूर पता होगा. इसलिए उनके उस बयान की रोशनी में भारत सरकार को देश के साथ इतना बड़ा धोखा करने से बचना चाहिए. इस बात की जांच सांसदों के निष्पक्ष दल को सौंपी जानी चाहिए या सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए कि कैसे हमारे आकाश में चीनी सेटेलाइट पहुंच गया, कैसे उसे परमीशन मिल गई और किस तरीके से हमारा पूरा संचार क्षेत्र, जो हमारा मर्म स्थल है, चीनियों के कब्जे में चला गया? इसके बारे में सत्य क्या है, देश के सामने आना चाहिए.
हम भारत की सेना को सबसे ताकतवर एवं बहादुर मानते हैं, लेकिन सेना के जवान अपनी जान देते चले जाएं और उनके हाथ में न अच्छे हथियार हों, न गोला बारूद हो, न टेक्निकल सपोर्ट हो और स़िर्फ 120 करोड़ लोगों की छाती गोलियां खाते-खाते शांत होती चली जाए, तो इससे बड़ा देशद्रोह का काम और क्या हो सकता है. हम भारत की जनता से स़िर्फ अपील कर सकते हैं कि वह अपनी आंखें खोले, भारत सरकार पर दबाव बनाए और यह जानने की कोशिश भी करे कि आख़िर ये सारे देशद्रोह के काम हुए कैसे और इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? और जो ज़िम्मेदार है, उस पर क़ानून का फंदा पड़ना चाहिए. अन्यथा, हम सचमुच चीन और अमेरिका के वर्चस्व की लड़ाई में घुन बनकर पिस जाएंगे.
चीन भारत पर हमला करेगा, यह दीवार पर लिखे सत्य की तरह से हमारी आंखों के आगे है, लेकिन भारत सरकार क्यों इस तथ्य पर आंख बंद किए हुए है, पता नहीं. भारतीय जनता पार्टी सहित तमाम दूसरी पार्टियां इस सत्य को पहचान नहीं पा रही हैं. तीन महीने पहले स़िर्फ मुलायम सिंह यादव ने इस सत्य को रेखांकित किया और उन्होंने खुलकर कहा कि भारतीय सेना चीन के सामने कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है. मुलायम सिंह यादव भारत के रक्षा मंत्री रहे हैं और जाहिर है कि उन्हें हमारी सेना की स्थितियों के बारे में कुछ न कुछ ज़्यादा ज़रूर पता होगा.
जब तोप मुकाबिल हो : चीन पर भारत का रुख लचीला क्यों
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