हमारा देश क्यों मर रहा है, इसका कारण कोई हिंदुस्तानी नहीं बता सकता, लेकिन देश मर रहा है, यह सबके मन में है और देश मर रहा है, यह भावना अमेरिकन-इंडियन के मन में होना कुछ दुख भी देता है, लेकिन उनका अन्ना के प्रति आशा रखना संभावना भी दिखाता है.
अमेरिका की सड़कों पर 18 अगस्त को एक अजीब नजारा दिखाई दिया. आमतौर पर यहां की सड़कों पर एक लाख के आस-पास लोग होते हैं, लेकिन 18 अगस्त को यहां की सड़कों पर दो लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा थे. दोनों तरफ ठीक वैसी ही भीड़ थी, जैसी दिल्ली में इंडिया गेट पर 26 जनवरी की परेड के दौरान दिखाई देती है. लोग उत्साह से लबरेज थे. झंडे लहरा रहे थे. अवसर था न्यूयार्क में भारतीय स्वतंत्रता दिवस को मनाने का. हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है. न्यूयार्क में अमेरिका में रहने वाले भारतीय इसे इतवार के दिन मनाते हैं, ताकि दूर-दूर से लोग आसानी से इस समारोह में शामिल हो सकें. और सड़कें सचमुच भरी हुई थीं, दूर-दराज से लोग आए हुए थे.
इस परेड में विद्या बालन चल रही थीं और अन्ना हजारे चल रहे थे. विद्या बालन आगे थीं. बिद्या बालन को देखकर लोग नारे तो नहीं लगा रहे थे, हाथ जरूर हिला रहे थे और उनके अभिवादन के जवाब में विद्या बालन अपने फिल्मी अंदाज में ही लहराते हुए डांस की मुद्रा में अपने हाव-भाव प्रदर्शित कर रही थीं. अमेरिका के भारतवासी, जो हर साल इस परेड को देखते हैं, मनाते हैं और हर साल कोई न कोई फिल्मी सितारा इस परेड में शामिल होता है. विद्या बालन को भी ठीक वैसा ही रेस्पॉन्स मिल रहा था, जैसा कि पूर्व में आयोजित परेड में शामिल फिल्मी सितारों को मिलता रहा है. पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह भी अपनी पत्नी के साथ इस परेड में शामिल हुए. चूंकि पहले से ही इस परेड का विज्ञापन अमेरिका में टेलीविजन पर प्रसारित हो चुका था, इसलिए काफी लोग जनरल वी के सिंह को पहचान रहे थे और वो लोग उनके अभिवादन में हाथ हिला रहे थे और दौड़कर उनसे हाथ मिला रहे थे और मिलाने की कोशिश कर रहे थे. इस परेड में जो तीसरी शख्सियत थी, वह अन्ना हजारे की थी. अन्ना हजारे इस परेड में शामिल होने के लिए विशेष तौर पर भारत से न्यूयार्क से पहुंचे थे. वे एक खुली कन्वर्टेबल कार में सवार थे. चूंकि अन्ना का कद छोटा है, इसलिए अन्ना खुली कार में सीट के ऊपर बैठ गए. अन्ना को लोगों ने जैसे ही देखा, चारों तरफ से लोगों का हुजूम रेलिंग को तोड़कर अन्ना की तरफ दौड़ पड़ा. अन्ना को छूने का, उनसे हाथ मिलाने का और अन्ना से बात करने का इतना ज्यादा माहौल बन गया कि अन्ना के सुरक्षाकर्मियों को काफी मुश्किलें आईं. अन्ना के लिए सुरक्षाकर्मी इसलिए रखे गए थे, क्योंकि लोगों को अंदाजा था कि भीड़ में आए हुए लोग अन्ना के नजदीक जाने की कोशिश करेंगे. सुरक्षाकर्मियों के लिए मुश्किल का समय था, लेकिन अन्ना ने किसी को भी निराश नहीं किया. उन्होंने हाथ मिलाए, नमस्ते किया और सबके अभिवादन का मुस्करा कर जवाब दिया. इस पूरी परेड में अन्ना हजारे का जिस तरह स्वागत हुआ, वह स्वागत अद्भुत था.
अमेरिका की सड़कों पर अन्ना हजारे जिंदाबाद, अन्ना आगे बढ़ो, जैसे नारे सुनना एक अलग तरह का अनुभव था. अन्ना हजारे को लोग अमेरिका में पहचानते हैं. नई उमर के लोग हों, बुजुर्ग हों, महिलाएं हों, या बच्चे हों. अन्ना का चेहरा अमेरिका में भारतीयों के बीच कैसे इतना जाना-पहचाना हो गया, शायद अन्ना भी इसे नहीं समझ पा रहे थे, क्योंकि अन्ना को भी यह अंदाजा नहीं था कि उनका यहां पर इतना स्वागत होगा. अन्ना अपने स्वागत से अभिभूत थे और इस अवस्था में उन्होंने अमेरिका की सड़कों पर वैसे ही नारे लगाए, जैसा कि वे अपनी सभाओं में लगाते हैं. भारत में अपनी सभाओं की शुरुआत में अन्ना खुद ही नारे लगाते हैं. वंदे मातरम्, भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद, यह तीनों नारे अन्ना ने अमेरिका की सड़कों पर लगाए और वहां मौजूद भारतीयों ने इसका जबरदस्त जवाब दिया, जिंदाबाद के रूप में. समूचा मेडिसन स्न्वॉयर, जहां से यह रैली जा रही थी, इंकलाब जिंदाबाद के नारों से गूज गया.
बहुत सारे दृश्य देखने को मिले. लोग दौड़कर बच्चों के सर पर हाथ रखवा रहे थे. औरतें किसी भी तरीके से एक बार अन्ना को छू लेना चाहती थीं और पुरुष अन्ना के साथ चलने, अन्ना से हाथ मिलाने, उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए तरह-तरह के रास्ते निकाल रहे थे, क्योंकि अन्ना कहीं रुके नहीं थे. उनकी कार चल रही थी, लेकिन कार के आगे-पीछे, दाएं-बाएं सुरक्षाकर्मियों को धता बता कर, किसी भी तरीके से एक फोटो अन्ना के साथ हो जाए, इसको लेकर वैसा ही क्रेज अमेरिका में दिखाई दिया, जैसा क्रेज हम हिंदुस्तान में देखते हैं. हिंदुस्तान में भी हवाई अड्डा हो, बाजार हो, सभा हो, हर जगह अन्ना का पैर छूने की और उनके साथ फोटो खिंचाने की होड़ मची रहती है. जिस तरह हिंदुस्तान में अन्ना की बात सुनना दूसरी प्राथमिकता बन जाती है और उनके साथ फोटो खिंचवाना पहली प्राथमिकता बन जाती है. ऐसा ही माहौल यहां अमेरिका में दिखाई दिया.
लोग दौड़कर आते और कहते अन्ना! हिंदुस्तान को बचा लो. अन्ना! हिंदुस्तान आपके सहारे है. अन्ना! हम आपके साथ हैं, आप हमें आदेश दीजिए कि हम क्या करें. इन सारी बातों को सुनकर अन्ना मुस्कराते हुए अपना हाथ हिलाते हुए लोगों का अभिवादन कर रहे थे. अन्ना की इस शख्सियत का गवाह अमेरिका का मेडिसन स्न्वॉयर बना. अन्ना के स्वागत का गवाह अमेरिका का आकाश बना. अमेरिका में जो पुलिस वाले ड्यूटी पर थे, उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि एक शख्स जिसका न कोई व्यक्तित्व है और सामान्य-सी वेश-भूषा धोती-कुर्ता-टोपी और एक सदरी में है, ऐसी शख्सियत को देखकर उन्हें लगता कि इस आदमी को देखकर लोग क्यों इतना उत्साहित हो रहे हैं. स्वागत कर रहे हैं. लोग अन्ना-अन्ना क्यों चिल्ला रहे हैं? अन्ना भला कौन हैं? अमेरिका के पुलिसकर्मियों का यह आश्चर्य शायद बहुत सारे अमेरिकियों के लिए भी आश्चर्य था. अन्ना इस आश्चर्य के बीच में से गुजर रहे थे और अमेरिका अन्ना की वह यात्रा देख रहा था, जिस यात्रा को भारत के प्रधानमंत्री तक तरसते हैं. निकलते हुए लोगों का हृदय से स्वागत भारत में प्रधानमंत्रियों का पिछले हाल के वर्षों में कम होता हुआ देखा गया. अमेरिका में अन्ना प्रधानमंत्री तो नहीं थे, जो नजारा उनके स्वागत में दिखाई दे रहा था, उससे यह जरूर लग रहा था कि अन्ना यहां पर लोगों के दिलों के राजा हैं.
जहां से परेड गुजर रही थी, उसके सामने ही मंच लगा था, जिस पर विद्या बालन थीं और वे उसी फिल्मी अंदाज, लटके-झटके और नृत्य की मुद्रा में लोगों का अभिवादन कर रही थीं, जो देखकर मुझे कम से कम ऐसा लगा कि भारत की आजादी की परेड के नाम पर फिल्म स्टार शालीनता से लोगों का अभिवादन करें, अपनी नृत्य की मुद्रा न दिखाएं, जो कि छिछोरी लगती है, तो ज्यादा अच्छा होता, लेकिन विद्या बालन ने ऐसा किया. मंच से जनरल वी के सिंह ने भाषण दिया. जनरल वी के सिंह से कुछ सवाल सेना को लेकर, चीन को लेकर पूछे गए और जनरल ने उनके जवाब दिए, लेकिन जब अन्ना मंच पर पहुंचे, तो बस अन्ना ही अन्ना थे और ऐसा लगा कि इस पूरी भीड़ में जो आजादी का जश्न मनाने आई थी, वह अन्नामय हो गई थी और बस अन्ना-अन्ना के नारे लगा रही थी और एक, जो जबरदस्त नजारा दिखाई दिया कि हजारों लोग मैं अन्ना हूं, की टोपी पहने सड़कों पर मार्च कर रहे थे. मैं इस पूरी मार्च में एक दर्शक के तौर पर था, लेकिन एक समर्थक दौड़कर आया और उसने मुझे मैं अन्ना हूं, कि गांधी टोपी पहना दी. मेरे लिए उस दर्शक का, जो कहीं बाहर से आया हुआ था, टोपी पहनाना अभिभूत कर गया. अमेरिका की सड़कों पर हजारों लोग मैं अन्ना हूं, लिखी गांधी टोपी लगाए मार्च कर रहे थे. यह अद्भुत दृश्य था. अन्ना जब मंच पर गए, तो उन्होंने वहां पर छोटा-सा भाषण दिया. भाषण देकर जब नीचे उतर कर कार की तरफ जा रहे थे, तो एक कार वहां से गुजरी, जिसमें एक दंपत्ति जा रहा था. अचानक कार बीच सड़क पर रुकी और वह दंपत्ति कार से भागते हुए अन्ना के पास आए और कहा कि अन्ना! भारत को केवल आप ही बचा सकते हो. उन्होंने कहा कि हमारा देश मर रहा है, बर्बाद हो रहा है और हमारे देश को केवल आप ही बचा सकते हो और हाथ जोड़कर वहीं रोने लगे. यह दृश्य इतिहास में कहीं नहीं लिखा जाएगा, लेकिन यह दृश्य, जिसने भी देखा उनके जीवन के इतिहास का एक अमिट पन्ना बन गया.
अन्ना हजारे के साथ आशाएं क्यों जुड़ जाती हैं, पता नहीं. अन्ना हजारे को लोग भारत का भाग्य विधाता या भारत को दुर्भाग्य से बचाने वाला क्यों मान रहे हैं, पता नहीं, क्योंकि हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञ तो अन्ना को कहीं गिनते ही नहीं हैं, लेकिन जिस तरह हिंदुस्तान में अन्ना से लोग प्यार करते हैं और अन्ना में एक संभावना देख रहे हैं, वैसा ही अमेरिका की सड़कों पर मुझे देखने को मिला कि लोग अन्ना में एक संभावना देख रहे हैं, अन्ना से आशा करते हैं. अन्ना से आग्रह कर रहे हैं कि वो हिंदुस्तान को बचाने के लिए कोई मजबूत कदम उठाएं. पता नहीं, अन्ना क्या कदम उठाएं, लेकिन लोग तो कम से कम चाहते ही हैं कि अन्ना कोई सख्त कदम उठाएं, ताकि हमारा देश बच सके. हमारा देश क्यों मर रहा है, इसका कारण कोई हिंदुस्तानी नहीं बता सका, लेकिन देश मर रहा है, यह सबके मन में है. और देश मर रहा है यह भावना अमेरिकन-इंडियन के मन में होना कुछ दुख भी देता है, लेकिन उनका अन्ना के प्रति आशा रखना संभावना भी दिखाता है.