उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने आगरा को पर्यटन की सूची में शामिल नहीं करने की चूक तो की, लेकिन उससे ताजमहल का महत्व कम नहीं हो गया. पर्यटन की दृष्टि से आगरा का महत्व बना रहेगा. लेकिन स्वच्छता की दृष्टि से आगरा की बदनुमा तस्वीर ही सामने है. भ्रष्टाचारी नेताओं-नौकरशाहों और ठेकेदारों ने पूरे स्वच्छता अभियान को अपना चारा बना लिया है. आगरा शहर के कई हिस्सों में सीवर लाइन नहीं बिछने से भीषण गंदगी फैल रही है. बड़ी मात्रा में दूषित जल भूगर्भ में समा रहा है. करोड़ों रुपए खर्च कर जहां सीवर लाइन डाली भी गई, वह सब ध्वस्त और नाकाम हो चुकी है. सीवर लाइन से कनेक्शन ही नहीं किए गए. सीवर का गंदा पानी भूगर्भ में जा रहा है या सड़कों पर बह रहा है. वर्ष 2008 में ही यहां की भीम नगरी और देवरी रोड पर सीवर लाइन बिछाने के लिए 53.36 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत हुआ था. जल निगम ने 63 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाकर जल संस्थान को सौंप भी दी, लेकिन यह सब कागजों पर हो गया. जमीनी असलियत यही है कि अभी तक सीवर लाइन का निस्तारण नहीं हो सका है. जगह-जगह काम अधूरा होने से सीवर लाइनें बंद पड़ी हैं.
सीवेज मास्टर प्लान में आगरा शहर को आठ जोन में बांटा गया था. यमुना एक्शन प्लान और जेएनएनयूआरएम के तहत सीवर लाइनें बनीं. जल संस्थान ने सीवर लाइन जल निगम को हस्तांतरित भी कर दी, लेकिन इन सीवर लाइनों को कनेक्ट करने के लिए कनेक्टिंग चैंबर ही नहीं बनाए गए. लिहाजा, ये चालू ही नहीं हुए. आगरा सीवेज स्कीम फेज-वन में सेंट्रल और ताजगंज जोन में सीवर लाइन, पंपिंग स्टेशन और एसटीपी के लिए 195 करोड़ रुपए का बजट आवंटित हुआ था. सेंट्रल सीवर लाइन के लिए शाहजहां पार्क से पुरानी मंडी मार्ग के बीच कॉमन चैंबर प्रस्तावित हैं. लेकिन ये सीवर चैंबर नौकरशाही के चैंबर में फंस गए हैं. ताजनगरी में यमुना किनारे बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट फेल पड़े हैं. सीवर लाइन नहीं होने से कई इलाकों से गंदगी नालों के जरिए बहती हुई सीधे यमुना नदी में गिर रही है. यह सत्ताधारियों को नहीं दिखता.
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि आगरा क्षेत्र का भूगर्भ जल भयानक रूप से प्रदूषित हो चुका है. इससे डेंटल फ्लोरोसिस के साथ-साथ अन्य कई गंभीर बीमारियां फैल रही हैं. यमुना सूखती जा रही है. तालाबों पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गई हैं. सीवर और औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी भूगर्भ जल को दूषित कर रहा है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने आगरा के 15 ब्लॉकों में 46 जगह से पानी के सैंपल लिए थे. उसकी जांच में अलग-अलग क्षेत्रों में फ्लोराइड की मात्रा 0.2 से 12.8 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पाई गई. मानसून बाद लिए गए 27.4 प्रतिशत नमूनों में यह अधिकतम सीमा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी अधिक मिली. आगरा के नगला तल्फी, देवरी की गढ़ी, जारुआ कटरा, मुहम्मदाबाद और नगला प्रताप सिंह में डेंटल फ्लोरोसिस के गंभीर लक्षण देखे गए. पट्टी पचगाई में प्रदूषित भूगर्भ जल के चलते हड्डियों की विकृति के कई मामले सामने आए. 46 प्रतिशत नमूनों में क्लोराइड जरूरत से अधिक पाया गया. 11.6 प्रतिशत नमूनों में यह अंतिम सीमा 1000 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी अधिक पाया गया. 28 प्रतिशत नमूनों में कैल्शियम जरूरत से अधिक पाया गया. 80 प्रतिशत नमूनों में आयरन की उच्च मात्रा पाई गई. 92 प्रतिशत नमूनों में मैग्नीशियम जरूरत से अधिक पाया गया, यहां तक कि 31.3 प्रतिशत नमूनों में यह अधिकतम सीमा से भी अधिक मिला. 15.7 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा अधिकतम सीमा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मिली और 49 प्रतिशत से अधिक नमूनों में सोडियम की मात्रा मानक से अधिक पाई गई. पेट की बीमारियां बढ़ाने वाले टीडीएस की मात्रा भी आगरा के पानी में खतरनाक स्तर पर पाई गई है. मानक के अनुसार एक लीटर पानी में 500 माइक्रोग्राम टीडीएस ही होना चाहिए, जबकि आगरा शहर के पानी में टीडीएस की मात्रा प्रति लीटर पानी में 722 से 1910 माइक्रोग्राम पाई गई है.