बिहार में भले महागठबन्धन बन तो गया है लेकिन अब तक सीटों को ले कर कोई फैसला नहीं हुआ है. दूसरी तरफ रालोसपा की भी इस महागठबन्धन में शामिल होने को ले कर संशय की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में सबसे बडा सवाल है कि कांग्रेस के खाते में लोकसभा की कितनी सीटें आएंगी.
हालांकि लालू प्रसाद के साथ कांग्रेस का रिश्ता काफी पुराना है, पर महागठबंधन में वह दूसरे नम्बर की पार्टी ही है. अर्थात राजद जो चाहेगा, वही होगा. यह कांग्रेस के सभी नेता समझते हैं, वे राहुल गांधी हों या शक्ति सिंह गोहिल. इसीलिए बिहार कांग्रेस की मौजूदा टीम का यह कहना उचित ही है कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस हरसंभव कुर्बानी करेगी.

हालांकि वह यह भी कहती है कि पार्टी सम्मान के साथ ही समझौता करेगी. ऐसा माना जाता है कि महागठबंधन की मौजूदा संरचना में लोकसभा की अधिकतम दस सीटें कांग्रेस को मिल सकती हैं. पर यदि कोई नया घटक इसमें आएगा तो यह संख्या और कम हो सकती है. गत चुनाव में भी इसके हिस्से बारह सीटें आई थीं. सो, कांग्रेस नेतृत्व भजपा को हराने के नाम पर इसे स्वीकार करने को तैयार ही दिखता है. पर, कांग्रेस के लिए महागठबंधन में उसकी हिस्सेदारी और सीटों की पहचान से अधिक परेशानी का सबब है, सक्षम उम्मीदवारों का चयन.

यह बात सही है कि उम्मीदवारों को लेकर अंतिम फैसला आलामान को ही करना है और यह भी कि इसमें शक्ति सिंह गोहिल की भूमिका अहम हो जाएगी. हर सीट के लिए तीन-तीन नामों का पैनल तो राज्य में ही बनना है. वह दृश्य अनुपम होगा जब हर सामाजिक समुदाय, प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व की टीम का हर मेम्बर अपनी हिस्सेदारी मांगेगा. मात्र दस या उससे भी कम सीटों की बदौलत सबको साधना सामान्य राजनीतिक प्रबंध कौशल के बूते संभव नहीं है. फिर पार्टी में जिंदाबाद-मुर्दाबाद का जो अनुपम दृश्य बनेगा, वह बॉलीवुड के किसी थ्रिलर फिल्म से कम रोचक नहीं होगा.

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