कमलनाथ की ताजपोशी के दौरान भोपाल शहर में बड़े पैमाने पर लगाए गए बैनर-पोस्टर ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सके. अगले ही दिन इसे भोपाल नगर निगम के अमलों द्वारा हटा दिया गया. इसके पीछे उनका उनका तर्क था कि इससे शहर की खूबसूरती प्रभावित हो रही थी, लेकिन ये तो एक बहाना था. दरअसल 4 मई को भोपाल के दशहरा मैदान में आयोजित होने वाले कार्यकर्ता सम्मेलन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आने वाले थे और अब पूरे शहर को उनके पोस्टर-बैनरों से पाटा जाना था.
मध्यप्रदेश की राजनीति और राजधानी भोपाल के लिए बीते कुछ हफ्ते खासा हंगामेदार साबित हुए हैं. अर्से बाद कांग्रेसी अपने किसी नए प्रदेश अध्यक्ष के स्वागत में एकजुट और उत्साहित नजर आए. कमलनाथ अपने साथ एकता का संदेश और भाजपा हटाओ, कांग्रेस बचाओ का नारा लेकर आए. वहीं अमित शाह भी भोपाल आए और उनका फोकस किसी चेहरे की जगह संगठन और कार्यकर्ताओं पर था.
जानकार बताते हैं कि अर्से बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस के आंगन में ऐसा मजमा देखने को मिला है, जहां सभी खेमे नेपथ्य में चले गए और कांग्रेसी एकजुट दिखे. एक मई को जब मध्यप्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष कमलनाथ अपना पदभार ग्रहण करने भोपाल आए तो उनके साथ चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष और कभी इस पद के लिए उनके प्रतिद्वन्द्वी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे. चिलचिलाती धूप में दोनों के स्वागत के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ता दीवानों की तरह उमड़ पड़े. प्रदेश कार्यालय में भी जबर्दस्त चहल-पहल थी. भोपाल होर्डिंग-पोस्टर से पटा नजर आ रहा था. वैसे तो राजाभोज विमानतल से शिवाजी नगर स्थित प्रदेश कांग्रेस कार्यालय की दूरी करीब 18 किलोमीटर है, लेकिन उस दिन इसे तकरीबन सात घंटे में पूरा किया गया.
इस मेगा रोड शो में कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा दिग्विजय सिंह, दीपक बाबरिया, विवेक तन्खा, सुरेश पचोरी, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह सहित सभी बड़े धुरंधर मौजूद थे. लेकिन आकर्षण के केंद्र में सिंधिया और कमल नाथ ही थे. इस रोड शो के जरिए कांग्रेस एकजुटता का संदेश देने में काफी हद तक कामयाब रही. कमलनाथ और उनकी नई टीम की इस धमाकेदार एंट्री ने भाजपा खेमे की बेचैनी जरूर बढ़ाई होगी और उन्हें इसका अंदाजा लग गया होगा कि इस बार का मुकाबला बहुत करीबी होने वाला है.
इन सबके बीच कांग्रेस की गुटबाजी भी बाहर आ गई. पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव रोड शो में शामिल नहीं हुए. बाद में काफी मान-मनौव्वल के बाद वे रैली में शामिल जरूर हुए, लेकिन यहां भी उनका दर्द छलक ही गया. अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, ‘मैं किसान का बेटा हूं. फसल के बारे में जानता हूं, कैसे तैयार होती है..अब चूंकि फसल तैयार है, इसलिए काटने के लिए सभी नेता मंच पर हैं.’
इस दौरान कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की सक्रियता ने सभी को चौंकाया. इससे कांग्रेस के कई नेताओं के कान खड़े हो गए होंगे. राजनीतिक हलकों में इसे एक और नेता पुत्र के लॉन्चिंग के रूप में देखा जा रहा है. नकुल पूरे रोड शो के दौरान अपने पिता कमलनाथ के साथ ही बने रहे. इसके बाद कांग्रेस दफ्तर के सामने हुई रैली में भी वे मंच पर मौजूद थे, जहां उन्हें दूसरी पंक्ति में कांग्रेस के चार नए कार्यवाहक अध्यक्षों के साथ जगह मिली. इसके बावजूद वे पार्टी में किसी अहम पद पर नहीं हैं.
कमलनाथ की ताजपोशी के दौरान भोपाल शहर में बड़े पैमाने पर लगाए गए बैनर-पोस्टर ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सके. अगले ही दिन इसे भोपाल नगर निगम के अमलों द्वारा हटा दिया गया. इसके पीछे उनका उनका तर्क था कि इससे शहर की खूबसूरती प्रभावित हो रही थी, लेकिन ये तो एक बहाना था. दरअसल 4 मई को भोपाल के दशहरा मैदान में आयोजित होने वाले कार्यकर्ता सम्मेलन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आने वाले थे और अब पूरे शहर को उनके पोस्टर-बैनरों से पाटा जाना था.
बहरहाल कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान अमित शाह ने कहा कि मध्य प्रदेश भाजपा संगठन का गढ़ है. मध्य प्रदेश के अंदर भाजपा की सरकार अंगद के पैर की तरह है. उसे कोई उखाड़ नहीं सकता है. लेकिन इस दौरान उन्होंने यह कहकर सबको चौंका दिया कि भाजपा आगामी चुनाव में संगठन के बलबूते मैदान में उतरना चाहती है और मध्यप्रदेश में आगामी चुनाव संगठन के दम पर लड़ा जाएगा. जबकि इससे पहले हर कोई ये मानकर चल रहा था कि 2018 का चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में और उनके चेहरे पर ही लड़ा जाएगा. तो क्या मान लिया जाए कि आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होंगे? अमित शाह की बातों से तो यही संकेत मिले हैं कि मध्यप्रदेश में लगातार दो विधानसभा चुनावों से शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा आगामी चुनाव में संगठन के बलबूते मैदान में उतरने वाली है. अमित शाह के इस खुलासे के बाद कमलनाथ चुटकी लेने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता के साथ -साथ भाजपा भी चेहरे की हकीकत जान चुकी है.
इससे पहले शिवराज सिंह चौहान आनंद विभाग के एक कार्यक्रम में ‘मैं तो जाने वाला हूं, मेरी कुर्सी खाली है और इस दुनिया में कुछ भी परमानेंट नहीं है’ जैसी बातें कहते हुए नजर आए थे. हालांकि बाद में उन्होंने इसे एक मजाक करार दिया था लेकिन सियासी हलकों में उनके इस बयान के कई मायने निकाले गए. बताया जाता है कि बयान देने से ठीक पहले शिवराज दिल्ली में अमित शाह से मिलकर लौटे थे, जहां उन्हें कुछ परेशान करने वाले संकेत दिए गए थे, जिसके बाद उन्होंने ये बयान दिया.
इधर कमलनाथ को कमान मिलने के बाद से कांग्रेस की तैयारियों में तेजी आई है. पार्टी ने 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और ऐलान कर दिया है कि विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची अगस्त में ही जारी कर दी जाएगी. एक बड़े कद के नेता की मौजूदगी ने सूबे में कांग्रेस के माहौल को बदला है. कमलनाथ काफी आक्रामक नजर आ रहे हैं और भाजपा को उसी की शैली में साधने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया है कि भाजपा के कई असंतुष्ट नेता उनके संपर्क में हैं.
वे अपनी वरिष्ठता, तेवरों और अनुशासन के पाठ से खेमों में बंटे कांग्रेसियों को भी साधने में लगे हैं. पिछले दिनों उनके एक बुलावे पर पार्टी के लगभग सभी विधायक हाजिर थे. जो दो-चार विधायक किन्हीं कारणों से नहीं आ सके, उन्होंने इसके बारे में लिखित रूप से सूचित किया. पहले ऐसा नहीं होता था और विधायक अध्यक्ष के मुकाबले अपने नेता को ज्यादा तरजीह देते हुए नजर आते थे. जाहिर है मध्यप्रदेश की कांग्रेस में माहौल बदल रहा है.
लेकिन माहौल तो भाजपा में भी बदलता हुआ नजर आ रहा है, जहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा चेहरे की जगह संगठन के सहारे चुनाव में उतरने की बात की जा रही है. इस बदले हुए माहौल में दोनों पार्टियों की अंदरूनी उठापटक अपने आखिरी दौर में है.