देश में आएदिन आतंकी हमले होते रहते हैं, लेकिन हमारी सुरक्षा-खुफिया एजेंसियां ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगा पाती हैं, जबकि हमारे यहां संसाधनों की कोई कमी नहीं है. तो फिर इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? पढ़िए, एक गंभीर एवं विश्लेषणात्मक टिप्पणी…
बंगलुरू में हाल में हुए बम विस्फोट हमें फिर से याद दिलाते हैं कि हमारे सुरक्षा बल अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं. यह बात सभी जानते हैं कि सीमा पार के आतंकियों के कई ऐसे स्लीपर सेल्स हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों में छिपे रहते हैं. देश में जगह-जगह और बार-बार घट रही ऐसी घटनाएं तो कम से कम यही बताती हैं कि इस तरह के हादसे अब आम बात हो गए हैं. अकेले मुंबई में ऐसे 20 से 30 सेल्स हैं. यह बात पुलिस को भी पता है, लेकिन उसे उनके लोकेशन के बारे में जानकारी है या नहीं, उन्हें ध्वस्त करने की अनुमति है या नहीं, हमें नहीं पता.
प्रधानमंत्री को चाहिए कि वह एक सख्त गृह मंत्री नियुक्त करें. मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आखिर उपलब्ध प्रतिभाओं का पूर्ण रूप से उपयोग न कर पाने के पीछे उनकी क्या मजबूरी है? आखिरकार, यह पूरे देश का मामला है, किसी खास पार्टी या व्यक्ति की बात नहीं है. प्रधानमंत्री जितनी जल्दी गंभीरता से इस मामले में दखल देंगे, उतना ही इस देश के लिए अच्छा होगा.
हमारे पास सुरक्षा के लिए एक कैबिनेट कमेटी (कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी) है, एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद है और एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी है. आखिर ये सब लोग मिलकर क्या कर रहे हैं? इन सभी पदों और समितियों का काम क्या है. क्या ये अपना काम गंभीरता से कर रहे हैं. क्या ये अपना दिमाग इस बात के लिए लगा रहे हैं कि इस देश में बार-बार बम विस्फोट न हों और यहां के लोग सुरक्षित रह सकें? क्या बम विस्फोट होने के बाद कुछ बयान देने भर से समाधान निकल आएगा? इस वक्त दो काम करने की ज़रूरत है. एक, स्लीपर सेल के लोगों को गिरफ्तार करके उन्हें ध्वस्त करना चाहिए. दूसरा, यह कि रॉ और आईबी को क्रियाशील (एक्टीवेट) बनाए जाने की ज़रूरत है, ताकि सीमा पार उनके सेल भी एक्टीवेट हो सकें. कूटनीतिक तौर पर इसे खारिज किया जा सकता है, लेकिन दुनिया का कोई भी पड़ोसी देश ऐसा नहीं है, जो बम विस्फोट की घटनाओं को इतनी लापरवाही से लेता हो, जैसा कि हमारा रवैया है. हम एक ग़रीब राष्ट्र हैं, बावजूद इसके हम सुरक्षा, अर्द्धसैनिक बलों, पुलिस, सीबीआई और रॉ पर भारी-भरकम रकम खर्च करते हैं. लेकिन होता क्या है? सीबीआई भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों की जांच के लिए बनाई गई थी. उसका काम ऐसे मामले देखना है, जिन्हें राज्य सरकार की पुलिस नहीं संभाल सकती, लेकिन आज क्या हो रहा है? हर एक मामला सीबीआई के पास भेज दिया जाता है. जाहिर है, ऐसे में सीबीआई अपना मूल काम कैसे कर पाएगी?
अभी इस बात की ज़रूरत है कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी मिलकर बैठें, कम से कम दो दिनों के लिए यह बैठक हो, राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बातचीत हो और पूरी गंभीरता के साथ सुरक्षा तंत्र के पुनर्गठन के लिए निर्णय लिए जाएं. इसका राजनीतिक जवाब यह हो सकता है कि बोस्टन में भी बम विस्फोट होते हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि अमेरिका में 9/11 की घटना के 12 साल बाद बम विस्फोट हुआ है. मुझे पूरा विश्वास है कि वहां का खुफिया नेटवर्क अपना काम ठीक से कर रहा है और आगे भी करता रहेगा और बिना वक्त गंवाए आरोपियों को पकड़ लेगा, लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है. यहां समय-समय पर, हर कुछ महीनों में आतंकवादी हमारे धैर्य की परीक्षा लेते रहते हैं और निर्दोष लोगों की मौत होती रहती है, कभी हैदराबाद में, कभी बंगलुरू में, तो कभी पुणे में. यह तब तक चलता रहेगा, जब तक कि सरकार और गृह मंत्री विशेष रूप से यह नहीं दिखाएंगे कि वे इसे लेकर गंभीर हैं. यही नहीं, वे इस संबंध में कुछ ठोस करें भी. मौजूदा गृह मंत्री कभी-कभी बहुत ही लापरवाही भरा बयान दे देते हैं. प्रधानमंत्री को चाहिए कि वह एक सख्त गृह मंत्री नियुक्त करें. मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आखिर उपलब्ध प्रतिभाओं का पूर्ण रूप से उपयोग न कर पाने के पीछे उनकी क्या मजबूरी है? आ़िखरकार, यह पूरे देश का मामला है, किसी खास पार्टी या व्यक्ति की बात नहीं है. प्रधानमंत्री जितनी जल्दी गंभीरता से इस मामले में दखल देंगे, उतना ही इस देश और हम सबके लिए अच्छा होगा.