मुझे याद है कि मेरी ख़ामोशी तुम कभी जिस तरह से पढ़ लिया करती थी न वैसे तो कोई पुजारी पूजा के मंत्र भी नहीं पढ़ता। ऐसा बहुत कुछ है जो मैं तुमसे कहना चाहता, जो तुम बिना कहे ही समझ लिया करती। फिर चीज़ें बदलती चली गईं। यह मैं बाद में जान सका कि अनकहा और बेज़ुबान होने में बड़ा फ़र्क है। मैं जानता हूँ कि मेरे गुस्से ने पहले तुम्हें और बाद में मुझे बदला था।
इंसान का गुस्सा उसकी सारी संवेदनशीलता और भावनाओं को ढक देता है। देखने वाला सिर्फ़ उसका गुस्सा देख पाता है। उस गुस्से के पीछे की बेचैनी और छटपटाहट का उसे अंदाज़ा भी नहीं होता। जबकि कई बार तो उसे सिर्फ़ इस बात पर गुस्सा आ रहा होता है कि उसे कोई सुन नहीं रहा, समझ नहीं रहा। वो भी नहीं जिससे वो बेशुमार मोहब्बत करता रहा है। लेकिन, उस एक पल के गुस्से की वजह से उसकी हज़ार पलों की वेदनाएं अनसुनी रह जाती हैं।
कुछ लोगों की नियति है कि उन्हें ताउम्र गलत समझा जाता रहे। ऐसे लोग हमेशा अपने कलेजे पर एक बोझ लिए चलते हैं। ये कभी खिल नहीं पाते। ये दुनिया उसकी सुगंध से वंचित रह जाती है। उन्हें जीवन के दर्शन का भान तो है पर उसके प्रदर्शन का अवसर उन्हें कभी नहीं मिलता। इसमें सिर्फ़ दो का ही नहीं, इस ब्रह्मांड का भी नुक़सान है।
(एक प्रेमी की डायरी से चुनकर कुछ पन्ने, हम आपके लिए लाते रहेंगे)
“हीरेंद्र झा”