
भोपाल। कोरोना महामारी के सदमें से प्रदेश की जनता घरों में अभी भी कैद बैठी है। व्यापार-धंधे सब बंद है। किसान से लेकर हर तबका परेशान है। किसी के सामने रोजी-रोटी का संकट तो किसी को घटते रोजगार और नौकरी जाने की चिंता ने परेशान कर रखा है। किसान के बाद मजदूर सियासत की धूरी है जिनके विकास का सपना हर चुनाव में दिखाया जाता है। पर विकास कब पैदा होगा इसकी जानकारी किसी को नहीं है। अभी मजदूरों के पांव के छाले ठीक भी नहीं हुए है और नेता झूठी घोषणा का मरहम लगाने को आतुर हो गए हैं। सियासत के खेल में पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहे है लेकिन हकीकत में मुद्दे वही हैं पर दल बदल जा रहे है। आज़ादी के 73 साल बाद भी आम आदमी के साथ दोयमदर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। एक तरफ पुलिस अपनी जरूरतों के लिए निकले आम आदमी पर डड़े बरसा रही तो कहीं मुर्गे बना रही है, वहीं दूसरी और राजनेता खुले आम कोरोना की गाईड लाईन के विपरीत न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन, न ही मास्क फिर भी नेता जनता को हिदायत देने से बाज नहीं आते हैं। शायद प्रदेश के नेताओं को कोरोना का जरा सा भी डर नहीं है। राजनीति के इन योद्धाओं ने कोरोना महामारी को भी अवसर में बदलकर नेताओं का दल-बदल करवा कर आगामी उपचुनाव की तैयारियों का बिगुल बजा दिया है। अपनी मद में मशगूल इन नेताओं ने लोकतंत्र की लक्ष्मण रेखा को भी पार कर दिया है। स्वच्छ राजनीति के हिमायदी इन्ही लोगों ने लोकतंत्र का मजाक बना कर खरीद-फरोक्त का जो गंदा खेल वर्तमान में खेला है। वह राजनीति के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। राजनेताओं ने जनता को बपौती समक्ष रखा है। जनता के माथे पर उपचुनाव की आहट ने एक नई परेशानी खड़ी कर दी है। क्योंकि कर्ज में डूबे प्रदेश को उपचुनाव का भारी भरकम खर्च सहने के लिए एक बार फिर मजबूर होना पड़ रहा है। लेकिन क्या प्रदेश को एक मजबूत सरकार मिल पायेगी या फिर कोई विधायक पलटी मार जायेगा। इसका असर राजनेताओं पर पड़े न पड़े लेकिन प्रदेश की जनता पर जरूर पड़ेगा। क्योंकि राजनेताओं की लालसा भरी सियासत जनता को इस बार एक नया फैसला लेने को मजबूर कर सकती है। जनता अब जागृत हो रही है। कही ऐसा न हो जाए की जनता वोट मांगने वालों की टांग ही न तोड़ दे।