Virendra Sengar
आखिर अमरसिंह नहीं रहे। वे लंबे समय से जीवन मौत के बीच संघर्ष कर रहे थे। कई बार उनके न रहने की अफवाहें भी फैली थीं । लेकिन अमर सिंह फिर से अमर हो जाते थे। अब वाकई नहीं रहे। करीब ढाई दशकों तक वे खूब चर्चा, कुचर्चा में रहे। सवाल है कि न रहने के बाद उन्हें किस रूप में याद किया जाएगा? इसका कोई सीधा उत्तर शायद हो भी नहीं सकता? क्योंकि उनका व्यक्तित्व खासा उलझा हुआ था। एक पत्रकार की हैसियत से उनसे मेरी मुलकातें होती थीं। वे खुलकर बातें करते थे। लेकिन वे मुझे कभी बहुत जमे नहीं। इसकी बहुत वजहें थी। इस पर अभी ज्यादा चर्चा नहीं करते। उन्होंने लंबी राजनीतिक पारी मुलायम सिंह के साथ ही खेली। वो भी बगैर समाजवादी बने।सपा में लंबे समय तक उनका दबदबा रहा। कुछ वर्षों तक हालात ये भी रहे कि मुलायम सिंह के बाद उनकी ही चलती थी। इस दबदबे से नेता जी का अपना कुनबा भी दुखी था। इन सब की नजर में वे खलनायक थे। लेकिन अमर कभी सुरक्षात्मक पारी खेलना पसंद नहीं करते थे। सियासत के अलावा बालीवुड ,बिजनेस व खेल सियासत में उनका खासा दखल था। हर दल में ऊंचे स्तर पर उनकी नेटवर्किंग थी।वो भी कमाल की। एक पत्रकार के रूप में मेरी दिलचस्पी यह जानने में रहती थी कि उनमे खास हुनर क्या है? जो वे हर जगह गहरे घुस जाते थे? मैंने कई साल पहले यह जिज्ञासा बाबू जी के सामने रखी थी। बाबू जी यानी ठाकुर हरिशचंद्र सिंह। उनसे मेरी करीबी थी। वजह,अमर सिंह नहीं थे। दर असल,उस दौर में मैं वसुंधरा में रहता था। मेरे एक रिश्तेदार हैं ,जो सूर्यनगर में रहते थे। ठीक बाबू जी के पड़ोस में। उनके बहुत करीबी रिश्ते थे। इस तरह मुलकातें होने लगीं। वे मजेदार व्यकितत्व वाले थे। लॉं ग्रेजुएट थे। गांव से निकलकर कोलकता पंहुचे थे बिजनेस के लिए। संघर्ष दौर के तमाम किस्से सुनाने को होते थे। अपने बेटे अमर को वे बहुत पसंद नहीं करते थे। लेकिन बेटे के जल्बे के चलते उनका दरबार भी बड़ा होता गया। इससे मन ही मन खुश होते थे। दरअसल, वे पक्के ठाकुर थे। उन्हें लगता थ़ा कि उनके बेटे में ठकुराई के अलावा सब कुछ है। मैंने कहा कि वे तो ठाकुरों में अपना वोट बैंक बना रहे हैं ,तो वे बोले थे,ये तो सियासी झांसा भर है। सब कर रहें ,तो वो भी कर रहा है। बाबू जी प्रगतिशील भी थे और घोर ठाकुर वादी भी। वे अपने पास आये ठाकुर दरबारियों से कहते थे, आगे बढ़ना है तो बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दिलाओ। बिजनेस करो।खुद भी बिजनेस में थे। बेटे अमर को नापसंद भी करते थे और प्यार भी करते थे। कह सकते हैं ,उनके बीच हेट एडं लव के रिश्ते थे। इसकी भी तमाम दास्तां है….
एक दिन मैंने बाबू जी से पूछा कि बड़े बिजनेस घरानों के बीच अमर इतनी गहरी पैठ कैसे बना लेते है ? उत्तर दिलचस्प था। वे बोले थे, उनका बेटा बाडी लैंग्वेज का माहिर है। किसी से मुलाकात के पहले उसके बारे में होमवर्क जरूर करता था। हर की कमजोरियों और विशेषताओं के बारे में खास दिलचस्पी रहती है। शायद यही बात अमर को विशेष बनाती है। उन्होंने तमाम किस्से सुनाए कि कैसे उद्योगपति मोदी घराने के अंदरूनी झगड़े सुलझवाये। फिर कैसे घराने के बेटे बहुओं को अपना मुरीद बनाया।
बिग बी के संकटमोचन में उनकी भूमिका जग जाहिर है। अंबानी घराने से नजदीकी का किस्सा भी दिलचस्प है। धीरू भाई के करीबी रिश्तों के बारे में तो अमर जी ने ही बहुत किस्से सुनाए। यहां तक कि कैसे दोनों विदेशी शहरों में मंहगी नाइट लाइफ इंज्वाय करते थे। यह भी बताया कि शुरू शुरु में नेता जी विदेशी दौरों में कैसे शरमा जाते थे। कई साल बाद उनका संकोच खत्म हुआ था। एक बार मैंने पूछा कि आपके पास तो अरबों की माया है? वे बोले थे ,मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं। हां ,मैं करोड़ो का इंतजाम पलक झपकते करा सकता हूं। चाटर्ड प्लेन मंगा सकता हूं। सरकारी बंगले में भी फाइव स्टार वाली सुविधाएं हैं । सब इसी में जलते हैं। इसी में मुझे मजा आता है। ऐसी बात करते वे ठहाके लगाते। ठहाका भी ऐसा कि उनकी पूरी बाडी ठहाका सी लगाती नजर आती। वे बेढब थे।
एक बार उन्होंने लंच पर जी के टू वाले घर में बुलाया। करीब डेढ़ दशक पुरानी बात है। साथ में पत्रकार साथी विनोद अग्निहोत्री भी थे। खाने की मेज पर सियासी चर्चा होने लगी। बातों बातों में एक महिला नेता की चर्चा आ गयी। वे बहुत बड़ी नेता हैं। उनके बारे में खिलंदड़ अंदाज में उन्होंने अश्लीलता भरा कटाक्ष किया ,तो मुझे बहुत बुरा लगा। बीच बीच मे भाभीजी जी भी आ ,जा रही थीं।मैंनें कहा भाई कम से कम भाभीजी का लिहाज तो करो। वो बोले थे,ये तो मेरी बीवी है। इससे क्या छिपा है मेरा, जो लिहाज करूं? उन्होंने तंज किया था, सेंगर भाई! आप भी हमारे नेता जी की तरह शर्माते हो। कई साल पहले की बात है। तड़के फोन आया कि बाबू जी नहीं रहे। वहां पंहुचा। अमर के छोटे भाई सहित पूरा कुनबा इकठ्ठा था। अमर बाबू का इतंजार था।इसी बीच दिल्ली के मशहूर टेंट हाउस से तीन वाहन आए। खास सफेद वर्दी में बीस सेवा दार भी। फटाफट घर ,बाहर व्हाइट थीम पर सजा वट शुरु हुई।सफेद फूल।सफेद कुर्सी कवर।मंहगे विदेशी फूल। एक घंटे में ही फिल्मी सेट सा तैयार हो गया। इसके बाद बुर्राक भेषभूषा में अमर जी आ गये। सफेद कारों के काफिले के साथ । इतने बड़े शो मैन भी थे वे। बाप जी की मौत में भी वे शो करना नहीं भूले थे। उनकी मौत के बाद ही अमर जी को पता चला था कि मैं उनके बाबू जी से भी करीब था।
एक किस्सा और, किडनी का बड़ा आपरेशन कराकर अमर दिल्ली लौटे थे। सपा से अलग हो चुके थे। तमाम आलोचक उन्हें दलाल कहते थे। एक रात फोन आया। बोले, मैं अमर बोल रहा हूं।अ भी मरा नहीं।उ न्होंने उलहना दिया कि मैं मिलने क्यों नहीं आया? खैर मैं अगले दिन पहुंचा। फिर वही किस्से दर किस्से। इसी दौरान उन्होंने अपना यह भी रंज जताया कि बिरादरी का होने के बाद भी मैंने ना कभी कोई फायदा लिया और न ही दिया? कहा,भाई अच्छे हो ,लेकिन कम्युनिस्ट टाइप हो। सो ज्यादा आगे नहीं बढ़ोगे। मैं मुस्कराता रहा । तो वे तमाम कम्युनिस्ट नेताओं के जीवन से जुड़े दोहरे मापदंडों के किस्से सुनाते रहे।
एक दौर वे कामरेड सुरजीत सहित कई के करीबी भी थे। केंद्र में मोदी युग शुरू हो गया था। उन्होंने स्वीकार किया था कि अब बाजार में उनसे बड़ा इवेंट मैनेजर आ गया है। पूरा खेल बदलने वाला है। मैंनें चुटकी ली, आपसे बड़े खिलाड़ी तो नहीं हो सकते?इ स पर उन्होंने ठहाका लगाया बोले, आप नहीं समझ रहे ये दोनों गुजराती नेता मेरे बाप हैं। वैसे भी मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। वर्ना ,मिलकर और धमाल दिखाते। बातचीत के दौरान मोदीजी की सराहना भी कर रहे थे ।उस दिन बोले थे, सेंगर साहब आप की पत्रकार बिरादरी नेताओं से ज्यादा भ्रष्ट है। मैंनें एतराज किया तो बोले, आप जैसे नान प्रैक्टिकल पत्रकारों की बात नहीं कर रहा। लखनऊ के कई ऐसे बड़े पत्रकारों को जानता हूं जो मेरे हाथ से ही लाखों ले गये। ये लोग सियासी करेप्शन पर खूब लिखते, बोलते हैं ,तो मुझे गुस्सा आता है। मैं खरी खरी कहता हूं तो हल्ला मचाते हैं कि अमर सिंह दलाल है। एक सवाल पर वे बोले थे,सियासत में कौन हरिश्चंद्र है,? मेरा मुंह न खुलवाओ। ऐसे मुंहफट थे अमर सिंह। उनसे दोस्ती भी बुरी थी और दुश्मनी भी।
सादर नमन ! विलक्षण प्रतिभा वाले अमर सिंह अपनी औघड़ राजनीति के लिए लंबे समय तक याद किए जाएंगे। भले प्रति नायक की भूमिका में।
अलविदा ! सियासत के बेढब खिलाड़ी!