gyjuyj
अपनी जनतंत्र यात्रा के पांचवे चरण में अन्ना ने कहा कि केंद्र सरकार जन लोकपाल बिल के नाम पर धोख़ा कर रही है. आज तक जन लोकपाल जनता को नहीं मिल पाया है. अन्ना ने सरकार की वायदाख़िलाफ़ी से क्षुब्ध होकर दिसंबर-जनवरी में फिर से दिल्ली में आंदोलन की राह पकड़ने का ऐलान करके केंद्र सरकार को सावधान कर दिया है…

उत्तर प्रदेश की जनता राज्य में बढ़ते भ्रष्टाचार, घोटालों, आतंकवाद, बेरोजगारी, लालफीताशाही, राज्य और केंद्र सरकारों की जनविरोधी नीतियों सहित तमाम मुद्दों को लेकर त्राहिमाम कर रही है. नेताओं पर से यहां की जनता का विश्‍वास उठ गया है. वह राजनीति से हटकर अपने लिए नई उम्मीदें तलाश रही है. जनता को यह उम्मीदें कभी बाबा रामदेव में दिखाई देती है, तो कभी समाजसेवी अन्ना हजारे उसे लुभाने लगते हैं. अन्ना हजारे की सादगी और बेबाकी की तो पूरी दुनिया कायल हो गई है. उनके भीतर कोई महात्मा गांधी का अक्श  देखता है, तो किसी को उनमें डॉ. राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण नज़र आते हैं. यही वजह थी कि अन्ना हजारे रिमझिम बारिश में 11 दिनों की जनतंत्र यात्रा लेकर उत्तर प्रदेश पहुंचे, तो जनता ने अन्ना का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. जनता ने अन्ना को आश्‍वस्त किया कि अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं. यात्रा के पांचवे चरण में यूपी पधारे अन्ना इस बात से आहत दिखे कि सांसदों ने सेंस ऑफ हाउस के प्रस्ताव का भी सम्मान नहीं रखा. केंद्र सरकार जन लोकपाल बिल के नाम पर धोख़ा कर रही है. दो वर्ष का समय बीत गया है, लेकिन जन लोकपाल अभी तक जनता को नहीं मिल पाया है. अन्ना ने सरकार की वादाख़िलाफ़ी से क्षुब्ध होकर कुछ माह बाद (दिसंबर-जनवरी में) फिर से दिल्ली में आंदोलन की राह पकड़ने का ऐलान करके केंद्र सरकार को एलर्ट कर दिया.
अपनी यात्रा के दौरान अन्ना जन लोकपाल के मसले पर जनता को सचेत करते रहे. दूसरी तरफ 2014 के लोकसभा चुनाव में चरित्रवान उम्मीदवारों को जिताने की मुहिम को भी अन्ना ने ख़ूब उछाला. पश्‍चिम से लेकर पूर्व तक क़रीब डेढ़ दर्जन जिलों (मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं, फर्रूखाबाद, शाहजहांपुर, सीतापुर, बहराइच, गोंडा, फैज़ाबाद, सुल्तानपुर, बदलापुर, जौनपुर, वाराणसी, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर) में जनता को जागरूक करने के लिए उन्होंने अलख जगाया. वह जिधर से भी गुजर रहे थे, जनता मतवालों की तरह उनके आगे-पीछे भाग रही थी. न बारिश उनके मंसूबों पर पानी फेर पाई, न ही आग उगलते हुए सूर्य देवता उनकी राह में व्यवधान खड़ा कर पाए. कोई अन्ना का चेहरा देखना चाहता था, तो कोई उनकी ललकार सुनना चाहता था. कई जगह तो अन्ना को जनता के दबाव में आकर जनसभा करनी पड़ी. सड़कों पर नौजवान उनकी फोटो लेने के लिए होड़ लगाए हुए थे. अन्ना कभी अपने रथ के भीतर चले जाते, तो कभी बाहर आकर ड्राइविंग सीट के बगल में बैठ कर लोगों का अभिवादन स्वीकार करने लगते. यह नजारा क़रीब-क़रीब पूरी यात्रा में दिखाई दिया. अन्ना के संघर्ष में बच्चे, बूढ़े और जवान, सभी अपनी तरफ़ से कुछ न कुछ आहूति देना चाहते थे. कोई तन से सेवा कर रहा था, तो कोई धन से मदद कर रहा था. अन्ना को जनतंत्र की लड़ाई लड़ने के लिए पैसे की भी आवश्यकता पड़ती है, यह बात किसी से छिपी नहीं है. अन्ना चाहते तो किसी पूंजीपति से मदद ले सकते थे, लेकिन वह जनता के बीच झोली फैला कर मदद मांगना ज़्यादा बेहतर समझते हैं. यही वजह थी कि जनसभा के दौरान चादर फैला कर चंदा मांगा जाता, तो दानपात्र भी लोगों के बीच घुमाया जा रहा था. लोग श्रद्धाभाव से योगदान दे रहे थे.
अन्ना की जनतंत्र यात्रा का आगाज यूपी के मुरादाबाद से हुआ. भाजपा और कांगे्रस सहित सभी राजनीतिक दलों से दूरी बना कर चल रहे अन्ना यात्रा के दौरान संविधान के साथ हो रहे खिलवाड़ को मुद्दा बनाते रहे. उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारा संविधान यह इजाजत नहीं देता है कि कोई भी पार्टी या पक्ष जनतंत्र पर अतिक्रमण करे, लेकिन संविधान को दरकिनार कर ऐसा किया गया. अन्ना जगह-जगह जनता को बताते रहे कि संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि पक्ष या पार्टियां चुनाव लड़ें,  सत्ता हासिल करें और देश का राजकाज पक्ष-पार्टियों द्वारा चलाया जाए. राजनीतिक दलों के संविधान के खिलाफ चुनाव लड़ने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए समाजसेवी अन्ना ने देश में फैले भ्रष्टाचार, लूट-पाट, गुंडागर्दी, दहशत और आतंकवाद के लिए राजनीतिक दलों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए इतना ही कहा कि आज़ादी के 66 वर्षों के बाद जनता सवाल कर रही है कि अंगे्रजों के चले जाने के बाद बस फर्क इतना हुआ है कि गोरे चले गए और काले आ गए. जनता अगर जागरूक हो जाए, तो संपूर्ण व्यवस्था परिर्वतन से बहुत बड़ी ताक़त का निर्माण होगी. यह ऐसी ताक़त होगी, जो देश के भ्रष्ट, गुंडे, लुटेरों की सरकार को उखाड़ फेंकेगी. पार्टी तंत्र जनतंत्र पर हावी हो गया है. उन्होंने कहा कि जनता यह भूल गई कि राज्य विधानसभा और संसद की अपेक्षा जन संसद सर्वोपरी है. उनका स्थान सबसे ऊंचा है.
बात अन्ना की जनतंत्र यात्रा के प्रभाव कि की जाए, तो उनको जगह-जगह व्यापक समर्थन मिल रहा है. उनकी बातों को जनता गंभीरता से सुन रही है. ओजस्वी अन्ना सभी मुद्दों पर बात कर रहे हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जातिगत रैलियों पर रोक के फैसले को अहम बताते हुए अन्ना पूरे देश में इस फैसले को लागू करने के पक्षधर बने. मुरादाबाद में उन्होंने कहा कि भाजपा और मोदी सांप्रदायिक हैं, तो रामपुर में चीनी घुसपैठ के प्रति उनकी नाराज़गी सामने आई. बरेली में अन्ना को जहां सभा करना था, वहां की लाइट ही ग़ायब हो गई. अन्ना ने यहां पत्रकारों से वार्ता करते हुए देश के मौजूदा हालात पर दुख व्यक्त किया, तो वह इस बात से भी नाराज़ दिखे कि कुछ सांसदों ने अमेरिका के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मोदी को वीजा नहीं देने की मांग की थी. उनका कहना था कि देश के आंतरिक मामले बाहर नहीं जाने चाहिए. अन्ना ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का चुनाव सीधे कराए जाने की वकालत भी की. फर्रूखाबाद पहुंच कर उन्होंने मोदी और राहुल दोनों को ही प्रधानमंत्री पद के अयोग्य क़रार दे दिया. यहां बारिश की वहज से उनकी जनसभा नहीं हो पाई, तो उन्होंने पूरे शहर में जनतंत्र यात्रा को घुमाकर लोगों को अपनी उपस्थिति का एहसास कराया. शाहजहांपुर में उन्होंने अपने संघर्ष को आज़ादी की दूसरी लड़ाई क़रार देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र को चुनाव से पहले जन लोकपाल लाना पड़ेगा, अन्यथा सत्ता से जाना होगा. सीतापुर में अन्ना ने कपिल सिब्बल पर निशाना साधा. अन्ना अपनी यात्रा के दौरान जगह-जगह जोर देते रहे कि देहातों के सर्वांगीण विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है. अन्ना ने जनतंत्र की लड़ाई के लिए सदस्यता अभियान भी चला रखा है. करीब पचास हजार लोगों को वह जनतंत्र मोर्चा में शामिल कर चुके हैं. अन्ना के साथ समाजवादी चिंतक और निर्भिक पत्रकार संतोष भारतीय भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे. वह भी देश के ताजा हालात से दुखी दिखे. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि यह अवैध लोगों की संसद है. उन्होंने जनता से आज़ादी की दूसरी लड़ाई का सेनानी बनने की अपील ली.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here