20 अप्रेल की शाम जब जहीर कुरैशी जी के निधन का समाचार सुना तो उनसे जुड़ी कितनी ही यादें लिपट कर रोने लगीं।जीवन भर अंधेरों से लड़ते रहे जहीर कुरैशी जी एकदम से मौत के अंधेरों में खो जायेंगे ,यह एकदम से विश्वास ही नहीं हुआ ।

ज़हीर कुरैशी जी से जो वैचारिक संबंध रहा ,वो अंततः गहरी मित्रता में भी रूपांतरित हुआ ।उनके साथ अक्सर बातचीत में हमारे समय के संकटों को लेकर चिंताएं और वैचारिक द्वंद्व साझा होते थे ।फासीवाद के लगातार गहराते खतरे को लेकर उनसे होती रहती बातों में हम दोनों का परस्पर अपने सिद्धांतों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का विश्वास विकसित होता रहा ।प्रतिबद्धता को लेकर इस तरह के विश्वास का अर्जन बहुत बड़ी उपलब्धि है ।

प्रगतिशील ,जनवादी मूल्यों और वामपंथी राजनीतिक चेतना के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता को अपनी गजलों और गीतों में जिस सहजता से जहीर कुरैशी जी ने अभिव्यक्त किया ,वह बेमिसाल है ।अपनी इस प्रकार की अभिव्यक्ति के माध्यम से वे अंधेरों से लड़ते रहे ।

जहीर कुरैशी जी ने कट्टर पंथी ,प्रतिगामी ,जन विरोधी प्रवृत्तियों का कड़ा प्रतिरोध किया ।वे धर्म निरपेक्ष मूल्यों के पक्षधर थे ।वे भोपाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय में अक्सर आते थे ।ईद पर उत्साह से हम मित्रों को अपने घर बुलाते थे ।राग भोपाली पत्रिका में उनकी रचनाएं अक्सर प्रकाशित होती थीं ।

जहीर कुरैशी जी का निधन हमारे समय की बहुत बड़ी क्षति है ।निजी तौर पर भी उनका अभाव हमेशा खलता रहेगा ।राग भोपाली के विगत दिनों प्रकाशित एक अंक में उनकी रचनाएं प्रकाशित हुई थीं ,वह अंक उन्हें लॉक डाउन के कारण नहीं दे सका ।

इसका दुख हमेशा ही कचोटता रहेगा ।राग भोपाली ने जहीर कुरैशी जी पर दो महत्व पूर्ण विशेषांक प्रकाशित किए थे ।इस वर्ष भी उनके 70 वर्ष पूर्ण होने पर एक और अंक प्रकाशित करने का तय हुआ था ।अब उनकी स्मृति में यह जरूरी काम होगा ।बहुत शिद्दत के साथ जहीर कुरैशी जी को श्रद्धांजलि अर्पित है।कामरेड जहीर कुरैशी  को लाल सलाम ।

शैलेन्द्र शैली

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