नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला जारी है. कार्यक्रम का शीर्षक है, भविष्य का भारत – आरएसएस का दृष्टिकोण है. मंगलवार को आज सरसंघचालक मोहन भागवत ने कार्यक्रम में आए लोगों को संबोधित किया और अलग-अलग मसलों पर संघ की राय रखी.
कई राजनीतिक दलों द्वारा यह कहा जाना कि आरएसएस देश के संविधान में विश्वास नहीं रखता, वह उसे नहीं मानता, इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि संघ संविधान को मानकर चलता है. संविधान के खिलाफ जाकर हमने कोई काम किया हो, ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं है. उन्होंने संघ और राजनीति के बीच संबंधों पर भी खुलकर बात की. सरकार के कामकाज में दखल के आरोपों और अटकलों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि लोग कयास लगाते हैं कि नागपुर से फोन जाता होगा, यह बिल्कुल गलत बात है.
संघ प्रमुख ने कहा कि राजनीति और सरकार की नीतियों पर संघ का कोई प्रभाव नहीं है. वह हमारे स्वयंसेवक हैं और समर्थ हैं, अपने क्षेत्र में अपना काम करने के लिए. देश की व्यवस्था में जो सेंटर संविधान से तय हुआ है, वही चलता है और चलना चाहिए, ऐसा हमारा मानना है.
इसके साथ ही मोहन भागवत ने उन लोगों को करारा जवाब दिया है, जो आरएसएस को केवल हिंदू धर्म का संगठन बताकर उसकी आलोचना करते हैं. उन्होंने कहा, हिंदू राष्ट्र में जब यह कहा जाने लगेगा कि यहां मुसलमान नहीं चाहिए, केवल वेद ही चलेंगे तो यह हिंदुत्व नहीं रहेगा. हिंदुत्व का मतलब जोड़ना है, सबको साथ लेकर चलना है. हमारी संकल्पना ही यही है कि हम अपने मन में सबके कल्याण की भावना रखते हैं.
साथ ही, उन्होंने कहा कि राष्ट्र के लिए एक विचार को लेकर, एक नीति का स्वप्न लेकर काम करने वालों के पीछे खड़े हो जाओ- ऐसा हम जरूर कहते हैं. वह नीति किसी भी दल की हो सकती है. राष्ट्रहित की सोचकर स्वयंसेवक नागरिक के नाते अपना कर्तव्य करते हैं. संघ के कार्य में दायित्व धारी कार्यकर्ता राजनीति में बिल्कुल भी नहीं पड़ते हैं. हां, स्वयंसेवक स्वतंत्र हैं, वह कर भी सकते हैं और नहीं भी.