देश की गगनचुंबी इमारतें ख़तरे में हैं, पुल ख़तरे में हैं, बांध ख़तरे में हैं और ख़तरे में है करोड़ों लोगों की ज़िंदगी. वजह यह कि नामी-गिरामी सीमेंट कंपनियां नकली सीमेंट बनाकर उसे बाज़ार में उतार रही हैं. नकली सीमेंट के इस काले कारोबार में इन कंपनियों के अलावा राजनेता, नौकरशाह और कई सरकारी महकमे भी शामिल हैं. नकली सीमेंट के कारोबार से अरबों-खरबों रुपये की काली कमाई की जा रही है, लेकिन अफ़सोस! केंद्र और राज्य सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है.
page-1Aहम तक़रीबन हर दिन किसी इमारत, किसी पुल या किसी बांध के टूटने-ढहने की ख़बरें सुनते हैं और उससे होने वाली मौतों को अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लेते हैं. ऐसे विध्वंसों और उनसे होने वाली मौतों के लिए सीमेंट बनाने वाली कॉरपोरेट कंपनियां और उनके पिट्ठू संस्थान ज़िम्मेदार हैं, जो बाज़ार में नकली और मिलावटी सीमेंट सप्लाई कर रहे हैं. नकली सीमेंट बनाने और बेचने के गोरखधंधे में बाक़ायदा सुसंगठित सिंडिकेट शरीक है, जिसमें सीमेंट बनाने वाले बड़े उद्योगपति, उनकी पिट्ठू कंपनियां, सरकारी अधिकारी और महत्वपूर्ण सरकारी महकमे तक शामिल हैं. अभी हाल ही देश की राजधानी दिल्ली में इमारत गिरने से दस लोगों की मौत हुई. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के क़रीब बाराबंकी में अचानक पुल ढह जाने से यात्रियों से भरी बस नीचे गिरने से ऐसे बची कि पिछला हिस्सा नीचे लटका रह गया और अगले हिस्से में बोझ अधिक होने का कारण लोगों की जान बच गई.
एसीसी, अम्बुजा, अल्ट्राटेक जैसी कई नामी कंपनियों के बोरे (पैकेट) में नकली सीमेंट बाज़ार में अंटी पड़ी है. इसी सीमेंट से लोगों के घर बन रहे हैं और इसी सीमेंट से बड़े-बड़े सरकारी प्रतिष्ठान, पुल और बांध वगैरह बन रहे हैं. सरकारी काम का ठेका लेने वाले बड़े-बड़े ठेकेदार इसी नकली सीमेंट से सरकारी काम कर रहे हैं. सरकारी महकमे इस गोरखधंधे में लिप्त हैं और नकली सीमेंट को असली और नकली सीमेंट से बन रहे ढांचों को सही बताकर गुणवत्ता का सर्टिफिकेट जारी कर रहे हैं. इस खेल में सेंट्रल एक्साइज, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड, इन्कम टैक्स, सेल्स टैक्स, बिजली विभाग, बैंक और पुलिस यानी सब शामिल हैं. यह सीमेंट और कोई नहीं, बल्कि सीमेंट बनाने वाली नामी कंपनियां ही बना रही हैं और आम आदमी की जान की क़ीमत पर फ़ायदा लूट रही हैं. हम आपको विस्तार से बताएंगे कि सीमेंट बनाने वाले बड़े प्रतिष्ठान कैसे अपनी पिट्ठू कंपनियों से नकली सीमेंट तैयार कराते हैं, कैसे अपने बोरों में भरवा कर बाज़ार में भेजते हैं, पकड़े जाने पर कैसे अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं और कैसे उनका एक सुसंगठित सिंडिकेट काम करता है.

अकूत कमाई का अर्थशास्त्र
सीमेंट बनाने वाली बड़ी कंपनियां नमी के कारण पत्थर हो चुकी सीमेंट अपनी पिट्ठू कंपनियों को सप्लाई कर देती हैं. सीमेंट बनाने के नाम पर चल रहे तमाम कारखाने दरअसल बड़ी कंपनियों के एजेंट की तरह काम करते हैं. उन कारखानों में पत्थर सीमेंट और ख़राब हो चुकी सीमेंट की कुटाई-पिसाई होती है. सीमेंट का थोड़ा गुण बनाए रखने के लिए उसमें कुछ स्लैग पाउडर मिलाया जाता है. सीमेंट जैसा दिखने के लिए उसमें अलग से रंग भी मिलाया जाता है. यह नकली सीमेंट कौड़ियों के मोल बनती है और असली के मोल बिकती है. उन पिट्ठू कारखानों को बड़ी कंपनियां अपने बोरे भी सप्लाई करती हैं, ताकि बाज़ार में कोई संदेह नहीं रहे. इस नकली सीमेंट से होने वाली कमाई सिंडिकेट के जरिये बिल्कुल व्यवस्थित तरीके से बंट जाती है. इस गोरखधंधे के नेटवर्क में शासन-प्रशासन की हिस्सेदारी है.

एसीसी, अम्बुजा, बिरला, विक्रम, अल्ट्राटेक जैसी कई प्रसिद्ध कंपनियों के नाम पर नकली सीमेंट बनाने वाली फर्मों में प्रमुख रूप से मुजफ्फरनगर की कान्टिनेंटल सीमेंट फैक्ट्री, मेसर्स गणेश ट्रेडर्स, मेसर्स बालाजी ट्रेडर्स, मेसर्स सिंघल ट्रेडर्स, गाज़ियाबाद की मेसर्स चंद्रा कार्बन, मेसर्स शिव ट्रेडिंग कंपनी, बरेली की फर्म मेसर्स गुप्ता ट्रेडर्स और ऋषिकेश की मेसर्स निशा इंटरप्राइजेज शामिल हैं. ये कंपनियां नमी के कारण पथरा कर बेकार हो गई सीमेंट अपने ग्राइंडिंग कारखानों में पिसवाती हैं और उसमें सीमेंट का रंग एवं कुछ अन्य पदार्थ मिलाकर उसे फिर से सीमेंट जैसा बनाती (दिखाती) हैं. लेकिन, इस सीमेंट की गुणवत्ता न के बराबर रहती है. इसी सीमेंट को एसीसी, अम्बुजा, अल्ट्राटेक जैसी कई नामी कंपनियों के बोरों में भरा जाता है और फिर बाज़ार में सप्लाई किया जाता है. दु:खद पहलू यह है कि नमी के कारण बेकार हुई सीमेंट के पत्थर ज़्यादातर बड़ी कंपनियों की तरफ़ से ही पिट्ठू कारखानों को भेजे जाते हैं. ये बड़ी कंपनियां अपने बोरे भी भेजती हैं, जिनमें नकली सीमेंट भर कर बाज़ार में भेजी जाती है. ये नकली सीमेंट कुछ अन्य नामों से भी बाज़ार में बिक रही है. चौथी दुनिया के पास ऐसे आधिकारिक दस्तावेज हैं, जो साबित करते हैं कि नमी के कारण खराब हो चुकी सीमेंट उन्हीं बड़ी कंपनियों द्वारा फिर से ग्राइंड कराई जा रही है और उसमें सीमेंट और लौह चूर्ण वगैरह मिलाकर पैक करके बाज़ार में बेचा जा रहा है. इसके अलावा स्लैग पाउडर के नाम पर भी सीमेंट कंपनियां घनघोर घोटाले कर रही हैं. घटिया सीमेंट के गोरखधंधे ने पूरे देश को जकड़ रखा है.
नमीदार और ख़राब सीमेंट को पीस कर सीमेंट के रूप में उसका दोबारा इस्तेमाल करना अपराध है. भारतीय मानक ब्यूरो (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) भी इसकी पुष्टि करता है, लेकिन ब्यूरो की आड़ लेकर ही एसीसी, अम्बुजा, बिरला, विक्रम, अल्ट्राटेक जैसी कई प्रसिद्ध कंपनियां यह धंधा कर रही हैं. उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने भारतीय मानक ब्यूरो को ही फैक्ट्री उत्पाद की गुणवत्ता जांचने-परखने और उसके अनुरूप प्रमाणपत्र जारी करने का क़ानूनी अधिकार दे रखा है, लेकिन उसका बेजा इस्तेमाल हो रहा है. उत्तर प्रदेश तो नकली सीमेंट के गोरखधंधे का केंद्र बना हुआ है. सीमेंट असली है या नकली, इसकी जांच आगरा की विधि विज्ञान प्रयोगशाला करती है और बाक़ायदा प्रमाणपत्र जारी करती है. लेकिन, विडंबना यह है कि आगरा विधि विज्ञान प्रयोगशाला (फॉरेंसिक लैबोरेट्री) के पास सीमेंट टेस्टिंग के लिए ज़रूरी उपकरण और तकनीकी सुविधाएं हैं ही नहीं. आगरा फॉरेंसिक लैबोरेट्री को असली-नकली सीमेंट की पहचान करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो की तरफ़ से कोई मान्यता भी नहीं मिली हुई है, लेकिन धंधा बदस्तूर जारी है. निश्‍चित है कि प्रदेश के आला नौकरशाहों और ऊंची सियासी हस्तियों की मिलीभगत के बगैर यह संभव नहीं है. उत्पादन कम दिखाने के लिए कारखानों में बिजली की चोरी बेतहाशा हो रही है, जिसमें बिजली विभाग के अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह लिप्त हैं.

लागत कम, फ़ायदा अनाप-शनाप
नकली सीमेंट बनाने के धंधे से कंपनियों को अनाप-शनाप फ़ायदा है. एक बोरी सीमेंट बाज़ार में क़रीब 350 रुपये के आसपास बिकती है. सीमेंट इंडस्ट्री के एक जानकार के अनुसार, एक बोरी सीमेंट में मुश्किल से 20 से 30 रुपये का कच्चा माल लगता है. मशीनरी, बिजली-कोयले का खर्च, मानव संसाधन आदि सबको जोड़ दें, तो इतना ही और बैठता है यानी अधिकतम 60 रुपये. अब विपणन एवं विज्ञापन के 20 रुपये और जोड़ दिए जाएं, तो कुल क़ीमत पहुंचती है 80 रुपये. अधिकतम लेकर चलें, तो 100 रुपये. लेकिन, इसकी क़ीमत है तक़रीबन 350 रुपये या उससे भी अधिक यानी दोगुने से ज़्यादा का मुनाफ़ा. बाज़ार में 90 फ़ीसद वस्तुएं ऐसी हैं, जिनके दाम लागत से तीन-चार गुना तक अधिक हैं.

मुजफ्फरनगर की मेसर्स कॉन्टिनेंटल सीमेंट कंपनी तो बिना विधिक इजाजत के ग़ैर क़ानूनी तरीके से आईएसआई का मार्का लगाकर सीमेंट बेचने में रंगे हाथों पकड़ी भी जा चुकी है. उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के उप महाप्रबंधक आर के तयाल ने आधिकारिक तौर पर एसीसी लिमिटेड, अल्ट्राटेक सीमेंट और अम्बुजा सीमेंट लिमिटेड को इत्तिला की थी कि उनकी कंपनियों के बैग में नकली सीमेंट भरकर बाज़ार में भेजने का उद्योग बड़े पैमाने पर चल रहा है. नकली सीमेंट कॉन्टिनेंटल सीमेंट जैसी छोटी कंपनियों के अंदर बनाई जा रही है, लेकिन उसे भरने के लिए एसीसी, बिरला प्लस, गुजरात अम्बुजा, अल्ट्राटेक जैसी नामी कंपनियों के बैग इस्तेमाल किए जा रहे हैं. केवल मुजफ्फरनगर की कॉन्टिनेंटल सीमेंट कंपनी में की गई छापामारी में 25 हज़ार बोरे बरामद हुए, जिनमें नकली सीमेंट भरी थी और ये बोरे बाज़ार में भेजे जाने के लिए तैयार रखे थे. इस एक जगह से ही हर महीने नकली सीमेंट के 80 हज़ार बोरे बाज़ार में सप्लाई होते हैं. इस बारे में उन बड़ी कंपनियों के प्रबंधन को सूचित भी किया गया, लेकिन कंपनियों ने उस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया. भारतीय मानक ब्यूरो को भी आईएसआई की मुहर का बेजा इस्तेमाल करने की करतूतें पकड़े जाने की सूचना दी गई, लेकिन ब्यूरो ने भी उसे कोई महत्व नहीं दिया. ब्यूरो की विजिलेंस शाखा के लिए भी यह मामला गंभीर प्रतीत नहीं हुआ. हैरत यह है कि उद्योग मंत्रालय भी इस महत्वपूर्ण सूचना को दबाकर बैठ गया.
केंद्रीय उद्योग मंत्रालय को यह जानकारी दी गई थी कि बाज़ार में भेजी जा रही नकली सीमेंट कितनी घातक है. पकड़ी गई सीमेंट में लौह-चूर्ण (आयरन डस्ट) एवं अन्य ग़ैर ज़रूरी पदार्थ मिलाए गए थे. भारतीय मानक ब्यूरो के प्रावधानों (आईएस: 1489 (पार्ट-1) 1991) के मुताबिक, सीमेंट में लौह चूर्ण की मिलावट अत्यंत घातक है, लिहाज़ा पूरी तरह प्रतिबंधित है. निर्धारित मापदंडों के मुताबिक़, 65 प्रतिशत क्लीकर, 30 प्रतिशत फ्लाई ऐश और पांच प्रतिशत जिप्सम मिलाकर सीमेंट बनाने का प्रावधान है, लेकिन सीमेंट में तमाम ग़ैर ज़रूरी तत्व मिलाए जा रहे हैं और लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है. देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव को नकली सीमेंट के गोरखधंधे के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई और ऐसे आपराधिक कृत्य का पर्दाफाश करने वाले दस्तावेज़ भी सौंपे गए, लेकिन केवल दिल्ली की सत्ता ही ऊंचा नहीं सुनती, प्रदेश की सरकार तो और भी बहरी है. सरकार के अधिकारी इस अपंगता को और भी बढ़ाने का काम कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश, बिहार और पूर्वोत्तर के राज्यों में तो नकली सीमेंट बनाने में भूटानी पाउडर का धुंआधार इस्तेमाल हो रहा है. सीमेंट जैसा दिखने वाला उक्त पाउडर असली सीमेंट में मिलाकर बेचा जाता है. भूटानी पाउडर को कई लोग डोलोमाइट पाउडर भी बताते हैं. कई लोग तो इसे खाद के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि भूटान के कुछ खास क्षेत्रों की मिट्टी भी सीमेंट के रंग की होती है और पानी में घुलने पर सीमेंट जैसी ही दिखती है. इसी वजह से उसे सीमेंट के साथ मिलाकर बेचा जाता है. भूटानी पाउडर की सप्लाई में मेसर्स नोब मिनरल, हुअरपानी, समइसे भूटान का नाम प्रमुख रूप से सामने आया है. यहां से डोलोमाइट पाउडर के रूप में ही पैकेट्स सप्लाई किए जाते हैं. नकली सीमेंट का धंधा बेतहाशा बढ़ रहा है. बड़ी कंपनियों की पिट्ठू कंपनियां पकड़ी जाती हैं और छोड़ी जाती हैं, लेकिन बड़ी कंपनियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती. कुछ दिनों के लिए फैक्ट्री सील होती है और फिर खुल जाती है तथा नकली सीमेंट बनाने का धंधा बदस्तूर चलता रहता है.


गिरोहबंदी का आधिकारिक खुलासा, पर नतीजा टांय-टांय फिस्स…
अभी हाल ही कम्पिटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने सीमेंट कंपनियों पर मुना़फे का 50 फ़ीसद जुर्माना लगाया था. इस कार्रवाई से सीमेंट बनाने वाली बड़ी कंपनियों की गिरोहबंदी का आधिकारिक खुलासा हुआ था. सीसीआई ने 11 कंपनियों पर 6,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का जुर्माना लगाया था. सीसीआई ने सीमेंट कंपनियों के संगठन सीमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन पर भी जुर्माना लगाया. जुर्माने की चपेट में आए अम्बुजा सीमेंट, अल्ट्राटेक सीमेंट, इंडिया सीमेंट, एसीसी, श्री सीमेंट, जेपी सीमेंट, जेके सीमेंट, मद्रास सीमेंट, सेंचुरी सीमेंट, बिनानी सीमेंट और ग्रासिम को सीसीआई ने अपनी जांच में दोषी पाया था. अम्बुजा सीमेंट पर 632 करोड़, अल्ट्राटेक सीमेंट पर 546 करोड़ और इंडिया सीमेंट पर 177 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा. वहीं एसीसी पर 488 करोड़ और श्री सीमेंट पर 349 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा. ग्रासिम सीमेंट को 1637 करोड़, जबकि जेके सीमेंट को 128 करोड़ रुपये का जुर्माना भरना पड़ा. मद्रास सीमेंट को 282 करोड़, सेंचुरी सीमेंट को 274 करोड़, बिनानी सीमेंट को 167 करोड़ और जेपी सीमेंट को 1324 करोड़ रुपये जुर्माने के तौर पर भरने पड़े.
कम्पिटीशन कमीशन ने अपनी जांच में सीमेंट कंपनियों को कार्टेलाइजेशन (गिरोहबंदी) का दोषी पाया. आपसी मिलीभगत से सीमेंट का मनचाहा दाम बढ़ाने और अराजक किस्म से सीमेंट की उत्पादकता बढ़ाने-घटाने के मामले में सीसीआई ने 39 कंपनियों की जांच की थी, जिसमें 11 कंपनियां दोषी पाई गईं. सीसीआई ने अपनी जांच में पाया कि सीमेंट कंपनियों ने सीमेंट का उत्पादन घटाकर बाज़ार में नकली किल्लत पैदा की, जिससे नकली सीमेंट बाज़ार में पूरी की पूरी खप गई. इस जांच के बाद यह साबित हो गया कि देश में सीमेंट कंपनियों का सुसंगठित सिंडिकेट काम कर रहा है, जिसके जरिये कंपनियां तमाम घपले कर रही हैं. उल्लेखनीय है कि भारत में सीमेंट के 183 बड़े और 360 छोटे प्लांट हैं. अधिकतर छोटे प्लांट बड़ी कंपनियों के पिट्ठू के बतौर काम करते हैं. सीमेंट उद्योग का समेकित राष्ट्रीय कारोबार 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का है.
 


दाऊद की सरपरस्ती!
सुनने में अजीब लगता है, लेकिन यदि आप इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों से बात करें, तो आपको यह संकेत मिलेगा कि नकली सीमेंट के धंधे में लगी कंपनियों को कुख्यात आतंकी सरगना दाऊद इब्राहिम की भी सरपरस्ती हासिल है. भारत के अलावा कई और देशों में भी दाऊद का धन रीयल इस्टेट के धंधे में लगा हुआ है. बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के अलावा अफ्रीकी देशों के ढांचागत विकास के काम में भी दाऊद ने बड़ी तेज गति से अपना धंधा फैलाया है. इस काम के लिए भारत से बड़े पैमाने पर बड़ी-बड़ी कंपनियों की बाक़ायदा सील बंद नकली सीमेंट के बोरों से लदे जहाज अफ्रीकी देशों के लिए रवाना होते हैं, लेकिन सब छद्म नामों से. खुफिया एजेंसी के सूत्र ने बताया कि दाऊद ने सोमालिया, जिंबाब्वे, कांगो और सूडान जैसे चार अफ्रीकी देशों को अपने धंधे का केंद्र बनाया है. अफ्रीकी देशों में भी अकूत फैले भ्रष्टाचार और अराजकता का दाऊद खूब फ़ायदा उठा रहा है. वह अफ्रीका में बड़े पैमाने पर ज़मीन भी खरीद रहा है, ताकि बाद में उसे कृषि उत्पादन के लिए पट्टे पर दिया जा सके. विकास कार्यों के ठेके में वह भारत के साथ-साथ पाकिस्तान से भी नकली सीमेंट मंगवा रहा है.
भारत में रीयल इस्टेट के धंधे में शरीक रहने के साथ-साथ दाऊद इब्राहिम ओडीशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे खनिज समृद्ध राज्यों में पैठ बनाने के लिए माओवादियों के साथ गठजोड़ करने की पहल कर रहा है. कोयला और अन्य खनिजों के क्षेत्र में अवैध खनन पर वह अपनी पकड़ कायम करना चाहता है. भारत में रीयल इस्टेट का धंधा दाऊद अपनी बहन हसीना पारकर के जरिये चला रहा था, लेकिन उसकी हाल ही में हुई मौत के बाद अब वह अपने किसी ख़ास आदमी को यह काम सौंपने की तैयारी में है, जो भारत में रहते हुए उसका रीयल इस्टेट एम्पायर देख सके. दाऊद का ख़ास छोटा शकील वैसे तो डी कंपनी में नंबर तीन का स्थान रखता है, लेकिन कंपनी के सबसे बड़े गढ़ मुंबई के सारे ऑपरेशन्स वही संभालता है. बॉलीवुड के अलावा देश में फैले रीयल इस्टेट, अवैध वसूली और ड्रग्स का सारा धंधा शकील के ज़िम्मे ही है. दूसरी तरफ़ दाऊद का छोटा भाई अनीस डी कंपनी का फाइनेंसशियल हेड है. कंपनी के सारे लेन-देन का नियंत्रण अनीस के हाथ में है. इसके अलावा भारत से बाहर थाइलैंड, इंग्लैंड, दुबई, पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों में रीयल इस्टेट से जुड़े सारे काम भी अनीस इब्राहिम ही देखता है. नकली सीमेंट का कारोबार और रीयल इस्टेट के धंधे आपस में जुड़े हुए हैं, जिसकी निगरानी अनीस ही रखता है.

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