अमेरिका के रक्षा मंत्री चक हेगल ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद माहौल कुछ ऐसा बनाया गया कि उन्होंने अपनी मर्जी से पद छोड़ा है, लेकिन हक़ीक़त यह है कि ओबामा ने ही उनसे इस्तीफ़ा लिया है. कुछ दिनों पहले संपन्न हुए मध्यावधि चुनाव में ओबामा की पार्टी (डेमोक्रेट्स) की हार के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि ओबामा प्रशासन के किसी बड़े अधिकारी की विदाई हो सकती है. हेगल का इस्तीफ़ा काफी चौंकाने वाला रहा. अब हेगल के इस्ती़फे को ओबामा की विदेश नीति के यू-टर्न और युद्ध के मैदान में अमेरिका की वापसी के रूप में देखा जा रहा है.
page-11अमेरिका 9/11 के हमले के बाद से ही अफगानिस्तान में तालिबान के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ रहा है. पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार, साल 2014 के आख़िरी दिनों में अमेरिकी सेना की वापसी होनी थी. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वियतनाम युद्ध में भाग ले चुके रिपब्लिकन पार्टी के चक हेगल को डिफेंस सेक्रेटरी नियुक्त किया और उन्हें अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी की ज़िम्मेदारी दी. इसके साथ ही उनसे रक्षा बजट दुरुस्त करने के लिए भी कहा गया था, लेकिन पिछले कुछ समय से हेगल और राष्ट्रपति ओबामा के बीच मतभेद गहरा गए थे. हेगल ने सीरिया में अमेरिकी नीति का विरोेध किया था. सीरिया में ओबामा की नीतियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुज़ैैन राइस को एक पत्र लिखकर कहा था कि राष्ट्रपति ओबामा को सीरिया के राष्ट्रपति बसर-अल-असद के संबंध में अपनी राय स्पष्ट करनी चाहिए. इस वजह से हम कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि हमें किसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.
धीरे-धीरे सीरिया में आईएसआईएस की पकड़ मजबूत होती गई. इस ढिलाई के लिए ओबामा ने हेगल को ज़िम्मेदार माना और उनसे इस्तीफ़ा ले लिया.
राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा स्वयं को पीस प्रेसिडेंट के रूप में स्थापित करना चाहते थे. ओबामा एक ऐसा राष्ट्रपति बनना चाहते थे, जो अमेरिका और दुनिया में शांति लेकर आए. वह चाहते थे कि मध्य एशिया में जहां कहीं भी अमेरिकी सेना है, वह उनका कार्यकाल ख़त्म होने से पहले स्वदेश लौट आए, जिससे देश पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ कम हो, साथ ही युद्ध में मारे जाने वाले अमेरिकी सैनिकों की संख्या में भी कमी आए. इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्होंने चक हेगल को डिफेंस सेक्रेटरी नियुक्त किया था. उन्होंने इसके लिए एक रिपब्लिकन को इसलिए भी चुना, ताकि उन्हें इस काम में विपक्षी दल (रिपब्लिकन पार्टी) का समर्थन मिल सके. इराक के अनुभव के बाद अमेरिका में एक गुट इस बात तो लेकर नाराज़ था कि जिस तरह इराक से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद इराकी सैनिक आईएसआईएस का मुक़ाबला नहीं कर सके, कहीं वही स्थिति अफगानिस्तान में भी उत्पन्न न हो जाए. आईएसआईएस के इराक में युद्ध छेड़ने के बाद से ही मध्य एशिया के हालात ठीक नहीं हैं. ऐसे में, वहां से वापसी का निर्णय सही नहीं है.
जब मध्य और पश्‍चिम एशिया में उठापटक मची हुई है, ऐसे में हेगल की डिफेंस सेक्रेटरी पद से विदाई होना इस बात का संकेत है कि अमेरिकी विदेश नीति की ओवरहॉलिंग हो रही है. खासकर, मध्य और दक्षिण एशिया के संबंध में निर्णायक बदलाव हो रहे हैं. ये बदलाव क्या हैं, कब होंगे और किस तरह लागू होंगे, इस बारे में अभी कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन बदलाव की बात इससे साबित होती है कि ओबामा ने हाल में अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के बने रहने के संबंध में एक खुफिया आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं. इस खुफिया आदेश में कहा गया है कि अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से वापस नहीं जा रही है. फिलहाल 9,800 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में बने रहेंगे. मई 2014 के एक आदेश के अनुसार, अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान में ज़मीनी ऑपरेशन करने पर एक तरह से पाबंदी थी. उन्हें केवल आपातकालीन स्थितियों में ही ज़मीन पर आतंकवादियों से मुक़ाबला करने की छूट थी. लेकिन, खुफिया आदेश के अनुसार, साल 2015 के लिए ओबामा ने एक बार फिर से अमेरिकी सेना को ज़मीनी कार्रवाई करने की खुली छूट दे दी है. इसका सीधा-सा मतलब है कि अफगानिस्तान, सीरिया और ईराक सहित मध्य एशिया के बहुत सारे शहरों में एक बार फिर खूनी खेल शुरू होने वाला है. ओबामा की पीस पॉलिसी असफल हो गई है. पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अंतर्गत साल 2014 के अंत में अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी होनी थी, जो अब 2016 तक के लिए टल गई है.
ओबामा की पीस पॉलिसी की वजह से ही इराक से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद आईएसआईएस ने वहां कब्जा कर लिया और वह अलकायदा की तरह पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बन गया. सीरिया और इराक में आईएसआईएस का खूनी खेल रोकने में डिफेंस सेक्रेटरी नाकाम हो गए. उनका इस्तीफ़ा इसी असफलता का नतीजा है. आईएसआईएस को लेकर व्हाइट हाउस का सीधा आदेश था कि कीप द प्रोफाइल लो एंड किल देम (उन्हें सिर उठाने न दें और ख़त्म कर दें). लेकिन हुआ इसके ठीक उलट. डिफेंस सेक्रेटरी ने आईएसआईएस को हाइलाइट कर दिया और इस बात का प्रचार किया कि हम उन्हें नहीं रोक पा रहे हैं. इससे उनके हौसले और बुलंद हो गए. एक साक्षात्कार में हेगल ने कहा कि आईएसआईएस दुनिया का सबसे अमीर, अत्याधुनिक, समर्पित और क्रूर आतंकवादी संगठन है. जहां ओबामा की पॉलिसी डिग्रेड एंड डिस्ट्रॉय थी, वह उसे अपग्रेड एंड एक्सिलेंस पर ले आए और उसे (आईएसआईएस) पनपने व बढ़ने का
मौक़ा दिया.
ओबामा ने खुफिया तरीके से एक आदेश पर हस्ताक्षर करके अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की भूूमिका बढ़ा दी है. इसके पहले अफगानिस्तान में अशरफ घानी के नेतृत्व में नई सरकार के साथ अमेरिका का समझौता हुआ था. इस मिशन को ऑपरेशन रिसॉल्यूट सपोर्ट नाम दिया गया. समझौते के अनुसार, साल 2015 तक 9,800 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में बने रहेंगे. 2015 के अंत में उनमें से आधे अमेरिकी सैनिक स्वदेश वापस रवाना हो जाएंगे. साल 2016 के अंत में अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा के लिए आवश्यक सैनिकों को छोेड़कर अन्य सभी वापस लौट जाएंगे. इस मिशन का उद्देश्य तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों के ख़िलाफ़ अफगानिस्तानी सैन्य बलों की सहायता करना है. हालांकि, अफगानिस्तानी सैन्य बलों को देश की सुरक्षा का पूरा अधिकार होगा. आने वाले समय में उन्हें नाटो के ज़रिये हथियार व प्रशिक्षण देकर और मजबूत बनाया जाएगा. नए आदेश में अमेरिकी जेट बॉम्बर और ड्रोन के ज़रिये अफगान कॉम्बैट मिशनों को हवाई समर्थन देने की अनुमति दी गई है. हवाई हमले करने के नियम भी आसान बना दिए गए हैं. अमेरिकी सैनिकों को आपातकालीन स्थिति में ही ज़मीनी लड़ाई लड़नी पड़ती, लेकिन हेगल द्वारा इस्तीफ़ा देने के बाद ओबामा ने जो आदेश दिए हैं, उनसे हवाई हमलों में तो निश्‍चित तौर पर इजाफा होगा.
इराक के अनुभवों से यह जाना जा सकता है कि अफगानिस्तान को छोड़ना अमेरिका के लिए कितना घातक हो सकता है. इराक में अमेरिका ने सेना तो बनाई, उसे ट्रेनिंग भी दी, लेकिन ऐसा नेटवर्क स्थापित नहीं किया, जिससे पूरे देश को नियंत्रित और निर्देशित किया जा सके. अमेरिकी सेना जैसे ही इराक से हटी, वहां आतंकवादी काबिज हो गए. सरकार केवल नाम मात्र की रह गई. देश के अधिकांश हिस्से आतंकवादियों की चपेट में आ गए. अब ओबामा को यह डर सता रहा है कि कहीं अफगानिस्तान से वापस जाते ही वहां भी इराक जैसी स्थिति न हो जाए. कहीं वहां फिर से अलकायदा या आईएसआईएस का कब्जा न हो जाए. इसलिए मजबूरन ओबामा को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा. अब नीतियों में जो बदलाव हुआ है, उससे वॉर प्रेसिडेंट वॉपरियर प्रेसिडेंट बन जाएंगे. अब वह जॉर्ज बुश की तरह एक निर्दयी और दुर्दांत युद्ध में जाने वाले हैं. खुफिया दस्तावेज़ में इस बात का भी जिक्र है कि आईएसआईएस को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए किस तरह के हथियारों और तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.
अमेरिकी नीति में बदलाव से सीधे तौर पर भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान प्रभावित होने वाले हैं. अफगानिस्तान से अमेरिका के लौटने की ख़बर से पाकिस्तान इस मुगालते में था कि अमेरिका के जाते ही वह सेना, आईएसआई और तालिबान की मदद से अफगानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा. और, उसे एक बार फिर अपने प्रभाव वाले क्षेत्र (एरिया ऑफ इन्फ्लुएंस) में बदल देगा. लेकिन, ओबामा के खुफिया दस्तावेज़ के ज़रिये अमेरिकी सेना को इस बात का ग्रीन सिग्नल मिल गया है कि चाहे जैसे भी हो, आईएसआईएस का ख़ात्मा किया जाए. अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगी. अमेरिकी सेना की मौजूदगी और उसके द्वारा सुरक्षा देने की वजह से भारत की पकड़ मजबूत रहेगी और पाकिस्तान किनारे होता चला जाएगा. अमेरिकन प्रेजेंस का मतलब यह है कि जब तक वह यानी अमेरिका अफगानिस्तान में रहेगा, तब तक अफगानिस्तान से लगे पाकिस्तान के कबीलाई इलाकों में ड्रोन हमले करता रहेगा. अमेरिका की वजह से भारत और इजरायल की नज़दीकियां भी बढ़ेंगी. इसके संकेत भी अभी से दिखाई पड़ने लगे हैं. भारत ने हाल में इजरायल के साथ एक बड़ा रक्षा सौदा किया है.
अफगानिस्तान एक बार फिर से युद्ध के मैदान में तब्दील होने वाला है. कुल मिलाकर अमेरिकी विदेश नीति में मूलभूत परिवर्तन आ गया है. इस वजह से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत एवं ईरान आदि के साथ उसके नीतिगत और कूटनीतिक रिश्ते बदलने वाले हैं. आतंकवाद के ख़ात्मे के नाम पर एक नया गठजोड़ होने जा रहा है, जिसमें अमेरिका एक बार फिर से आक्रामक भूमिका में होगा. इजरायल और भारत भी उसका सहयोग करेंगे, लेकिन यह सहयोग अप्रत्यक्ष ही रहेगा. अमेरिका के साथ इस नई योजना में सऊदी अरब और तुर्की भी होंगे. इस नई योजना को कार्यान्वित करने के लिए तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.

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