yogiयोगी सरकार कौन चला रहा है? इस सवाल से अधिक महत्वपूर्ण है कि योगी सरकार कौन हिला रहा है? योगी कैसे मुख्यमंत्री बने और अचानक वे प्रदेश की राजनीति की धुरी कैसे बन गए, यह पार्टी के शीर्ष नेताओं को पता है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखपुर चले गए थे. 18 मार्च 2017 की सुबह अमित शाह ने योगी से फोन पर बात की और दिल्ली बुलाया.

दिल्ली लाने के लिए चार्टर विमान भेजा… यह ऐसे ही थोड़े हो गया! अमित शाह जिस समय योगी को दिल्ली बुला रहे थे, उस समय मोदी-प्रिय केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा खुद के मुख्यमंत्री बनने की वाराणसी में पुष्टि-पूजा कर रहे थे. 17 मार्च की शाम को वे अपने नजदीकियों को शानदार पार्टी भी दे चुके थे. सारा परिदृश्य अचानक कैसे बदल गया? इस सवाल का जवाब वे लोग जानते हैं, जो योगी के पूरे व्यक्तित्व को ठीक से पहचानते हैं. वे यह कहते हैं कि योगी सरकार योगी ही चला रहे हैं, लेकिन कई लोग सरकार को हिलाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं. आज हम इस बात की विस्तार से चर्चा करेंगे कि योगी सरकार को कौन लोग हिला रहे हैं!

अमित शाह समय की संवेदनशीलता समझते हैं. 2019 के चुनाव के पहले पार्टी किसी अहितकारी परिस्थिति का सामना करे, यह शाह को गवारा नहीं. इसीलिए वे योगी सरकार को हिलाने वाले नेताओं को आगाह करने और शांत करने के लिए पिछले दिनों लखनऊ आए थे. अमित शाह योगी सरकार को गिराना या हिलाना अब नहीं चाहते. शाह योगी को मजबूत भी नहीं होने देना चाहते. इसमें अमित शाह मोदी की मंशा के साथ खड़े हैं. इसी इरादे से एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यालय के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र के हाथ में यूपी के शीर्ष नौकरशाहों की नकेल थमा दी, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल को सत्ता के समानान्तर खड़ा करने की कोशिश की.

मोदी का प्रयोग तो चल गया लेकिन शाह का प्रयोग कामयाब नहीं हो पाया. शाह-प्रयोग से संगठन कमजोर हुआ. बंसल की समानान्तर सत्ता भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई. योगी पर अनैतिकता और भ्रष्टाचार के आरोप तो नहीं लगे, लेकिन बंसल इन सबसे खूब ‘महिमा-भूषित’ हुए. जब बंसल अपने कृत्यों, अपनी संगतों और अपनी बदसलूकियों के कारण सुनाम बटोरने लगे, तब बड़े ही नियोजित तरीके से ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, सांसद छोटेलाल खरवार, हरीश द्विवेदी, विधायक हरीराम चेरो, भाजपा नेता रमाकांत यादव जैसे तमाम लोग खड़े किए जाने लगे. योगी की अनुभवहीनता, योगी का दुर्व्यवहार, योगी के नौकरशाहों की अराजकता, योगी से कार्यकर्ताओं में असंतोष, पूजा-पाठ करने वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना अनुचित, जैसी सार्वजनिक टिप्पणियां बंसल-बदनामी का नियोजित प्रति-उत्पाद हैं.

योगी सरकार के शीर्ष नौकरशाहों की अराजकता की बात में कुछ वास्तविकता है, इसकी चर्चा हम बाद में करते हैं. प्रदेश की राजनीति की नब्ज जानने-समझने वाले विश्लेषक कहते हैं कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हो सकती हैं, जिस वजह से वे योगी के मातहत होने को असहजता से ले रहे हैं. लेकिन बंसल तो पार्टी को मजबूती देने के लिए राजस्थान से बुलाए गए थे. उनका सत्ता और सरकार से क्या लेना देना कि वे सरकार की लगाम अपने हाथ में लेने की हसरतें पालने लगे और बेजा हरकतें करने लगे! इसी हरकत में बंसल उप चुनाव से लेकर राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव तक प्रत्याशी चुनने में अड़ंगा डालने की कसरत करने लगे. राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि इससे पार्टी पर नकारात्मक असर पड़ा और आगे मुश्किलें खड़ी होंगी.

योगी सरकार को कौन लोग हिला रहे हैं इस पर चर्चा आगे बढ़ रही है, लेकिन इस बीच एक प्रसंग सामने रख दें कि बात रह न जाए. चलाने-हिलाने के बरक्स बचाने का मसला भी चर्चा में रहना चाहिए. मसलन, वक्फ घोटाले से लेकर गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में शरीक रहे पूर्व सपा नेता बुक्कल नवाब को विधान परिषद भेजे जाने पर योगी सहमत नहीं थे. फिर बुक्कल नवाब को कौन बचा रहा है? सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार में मंत्री मोहसिन रजा वक्फ घोटाले के दोषी हैं और उन पर मुकदमा भी दर्ज है. फिर मोहसिन रजा को कौन बचा रहा है? वक्फ घोटाले में सपा नेता आजम खान लिप्त हैं, सेंट्रल वक्फ काउंसिल ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर रखी है, लेकिन जांच नहीं हो पा रही है. सपा नेता आजम खान को कौन बचा रहा है? यह सवाल अपने मन में बनाए रखिए, इसके विस्तार में हम थोड़ी देर बाद चलते हैं.

योगी ने संकेतों में शाह को साधा

अभी हाल ही 11 अप्रैल को लखनऊ आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके आवास पर काफी देर बातचीत हुई. शाह उस दिन मुख्यमंत्री आवास पर ही रहे. राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने उस दिन यह स्पष्ट कर दिया गया कि यूपी सरकार कौन चला रहा है और कौन हिला रहा है. सरकार हिलाने में लगे कई तत्व शाह ने ही खड़े किए थे. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उस दिन भाजपा के प्रदेश दफ्तर नहीं गए. जबकि प्रदेश दफ्तर में उनके जाने का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था. शाह पूरे दिन मुख्यमंत्री आवास पर ही रहे और वहीं पर दोनों उप मुख्यमंत्रियों केशव मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा, संगठन मंत्री सुनील बंसल समेत अन्य नेताओं से मिले. राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री आवास से ही सीधे एयरपोर्ट चले गए. शाह ने ऐसा करके पूरी प्रदेश इकाई को यह स्पष्ट संदेश दिया कि अब तक जो कुछ भी हुआ, वह अब आगे नहीं होगा. शाह के जाने के बाद सरकार हिलाने का कार्यक्रम थोड़ा थम गया है. इसके बाद अमित शाह ने एक टीवी चैनल के जरिए भी प्रदेश संगठन और नेताओं को यह कहते हुए संदेश दिया कि योगी आदित्यनाथ की सरकार उत्तर प्रदेश की बेहतरीन सरकार है.

खैर, राष्ट्रीय अध्यक्ष जब लखनऊ आए थे, उसके 15 दिन बाद ही विधान परिषद का चुनाव होना था. विधान परिषद के कई प्रत्याशियों को लेकर योगी पहले से असहमत थे, लेकिन पार्टी के नीतिगत फैसलों को लागू करने को लेकर कोई अड़चन खड़ी नहीं हुई. जिस दिन शाह लखनऊ आए, मोहसिन रजा तो उसी दिन निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए गए थे, लेकिन बुक्कल नवाब का नामांकन नहीं हुआ था. बुक्कल का नाम ड्रॉप होने और धर्मेंद्र सिंह का नाम शामिल होने की चर्चा थी. शाह-योगी की वार्ता के बाद बुक्कल का रास्ता आखिरी तौर पर साफ हुआ और 17 अप्रैल को नामांकन दाखिल हो सका.

शाह ने दोनों उप मुख्यमंत्रियों से भी मुलाकात की और बंसल से भी बात की. राजभर की भी गलबहियां लीं और आशीष पटेल को विधान परिषद भेज कर अनुप्रिया पटेल को भी मनाया. शाह ने योगी को भी समझाया कि किन परिस्थितियों में यशवंत सिंह राज्यसभा नहीं भेजे जा सके और किन परिस्थितियों में धर्मेंद्र सिंह विधान परिषद नहीं जा सके. योगी निकाय चुनाव के समय धर्मेंद्र सिंह को भाजपा का प्रत्याशी बना कर मेयर बनवाना चाहते थे. लेकिन बंसल ने अड़ंगा लगा दिया. फिर गोरखपुर लोकसभा उप चुनाव में धर्मेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव दिया, इसे भी नकार दिया गया.

धर्मेंद्र का नाम कटने पर योगी ने गोरखधाम के दलित संन्यासी कमलनाथ का नाम रखा. लेकिन शाह और बंसल ने इसे भी नामंजूर कर दिया. दोनों ने धर्मेंद्र को न प्रत्याशी बनने दिया, न राज्यसभा भेजा और न विधान परिषद. पार्टी ने उप चुनाव में इसका खामियाजा भुगत लिया. विधान परिषद चुनाव के पहले हुए राज्यसभा चुनाव में भी शाह-बंसल ने योगी की पसंदगी-नापसंदगी का ख्याल नहीं रखा. योगी के लिए विधान परिषद से इस्तीफा देने वाले यशवंत सिंह को वे राज्यसभा भेजना चाहते थे. लेकिन बंसल ने एटा के हरनाथ सिंह यादव को सामने रख दिया. विधानसभा चुनाव की ऐतिहासिक जीत में योगी का योगदान पार्टी नेतृत्व को याद नहीं रहा.

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली भीषण हार के मनोवैज्ञानिक भय से दबी भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव मोदी और योगी के चेहरे को आगे रख कर लड़ा. विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद योगी को किनारे कर दिया गया. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनने की पार्टी आलाकमान की विचार-प्रक्रिया में योगी कहीं शामिल नहीं थे. पिछड़े का पक्ष देखते हुए पहले मौर्य का पलड़ा भारी रहा, फिर छवि-पक्ष के नजरिए से डॉ. दिनेश शर्मा का नाम उभरा, लेकिन सब पर मोदी के पसंदीदा केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का नाम एकबारगी छा गया. मनोज सिन्हा गाजीपुर में जोरदार सभा का आयोजन कर मोदी को पहले से प्रसन्न कर चुके थे. इस बीच अमित शाह और संघ के अलमबरदारों से योगी की दिल्ली में मुलाकात हुई. विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक विजय के मौके पर शाह और संघ दोनों ही भाजपा के सामने स्वतंत्र रेखा खींचने का हिंदू युवा वाहिनी को मौका नहीं देना चाहते थे. विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारने की समानान्तर घोषणा को कितनी जद्दोजहद के बाद न्यूट्रल किया जा सका था, यह आलाकमान को याद था. खैर, उसके बाद परिदृश्य बदला और योगी मुख्यमंत्री के लिए चुन लिए गए.

इसके साथ ही योगी को हिलाते रहने की भी रूपरेखा रची गई, ताकि योगी मजबूत जड़ न जमा पाएं. नृपेंद्र मिश्र और सुनील बंसल के इर्द-गिर्द शक्ति-पुंज रचा गया जिससे तंत्र योगी-केंद्रित न होने पाए. नौकरशाहों की तैनाती तबादले भी नृपेंद्र मिश्र और सुनील बंसल ही तय करने लगे. प्रमुख सचिव और सचिव नियुक्त करने तक के मुख्यमंत्री के अधिकार में अड़ंगेबाजी होती रही. योगी को अपनी पसंद का मुख्य सचिव नहीं नियुक्त करने दिया गया. योगी ने ओपी सिंह को डीजीपी नियुक्त करने का प्रस्ताव भेजा तो उसे काफी दिन लटकाए रखा गया. उत्तर प्रदेश पुलिस संगठन करीब एक महीने तक बिना डीजीपी के रहा, लेकिन योगी नहीं माने. आखिरकार केंद्र को ओपी सिंह को रिलीव करना ही पड़ा.

योगी को कमजोर करने का कुचक्र

न केवल योगी की मुख्यमंत्री की कुर्सी को कमजोर करने का कुचक्र किया गया, बल्कि उनकी पारम्परिक गोरखपुर संसदीय सीट पर भी योगी की पकड़ ढीली कर उनका राजनीतिक भविष्य धूमिल करने का षडयंत्र रचा गया. योगी के मुख्यमंत्री बनने से खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट के उप चुनाव में बंसल ने इसी इरादे से योगी की पसंद का प्रत्याशी न देकर योगी के धुर विरोधी शिवप्रताप शुक्ल के खास आदमी उपेंद्र शुक्ल को टिकट दिला दिया. इसके साथ बंसल ने यह भी तिकड़म रचा कि उपेंद्र शुक्ल भी उप चुनाव हार जाएं, ताकि हार का पूरा ठीकरा योगी के सिर फोड़ दिया जाए.

बंसल के इशारे पर भाजपाइयों ने ही बसपा नेता हरिशंकर तिवारी समेत कई विरोधी पक्षों के साथ मिल कर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ वोट डलवाए. उप चुनाव में अपने प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में न शाह गए और न मोदी. मजा देखिए कि संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले ने भी लखनऊ की बैठक में संघ के कार्यकर्ताओं से उपचुनावों के बजाय 2019 के आम चुनाव पर ध्यान केंद्रित करने को कहा. उस बैठक में योगी भी मौजूद थे और बंसल भी.

बहरहाल, ऊपर शिवप्रताप शुक्ल का नाम आया तो वह प्रसंग भी ध्यान में रखते चलें. शुक्ल और योगी का विरोध जगजाहिर है. योगी के कारण ही वर्ष 2002 के बाद शुक्ल कभी कोई चुनाव नहीं जीत पाए. 2002 के विधानसभा चुनाव में योगी ने भाजपा प्रत्याशी शिवप्रताप शुक्ल के सामने राधा मोहन अग्रवाल को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़वा दिया. अग्रवाल चुनाव जीत गए और शुक्ल हार गए. उसके बाद शुक्ल राजनीतिक वृष्टिछाया क्षेत्र में चले गए. योगी को हिलाने की काट तैयार कर रहे शाह-बंसल का ध्यान शुक्ल की तरफ गया और अचानक शुक्ल फिर से मुख्य धारा में ला दिए गए. शुक्ल राज्यसभा भी पहुंच गए और केंद्र में राज्य मंत्री भी बना दिए गए.

राजनीतिक गतिविधियों पर बेबाक टिप्पणी करने वाले पूर्व आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह कहते हैं कि योगी को विवश मुख्यमंत्री बना कर रखे जाने की कोशिश हुई. दो उप मुख्यमंत्रियों के साथ सुनील बंसल के रूप में ‘सुपर सीएम’ रखने की हरकत आखिर क्या बताती है! प्रदेश में विभाजित नेतृत्व देकर भारतीय जनता पार्टी आखिर कौन सा लक्ष्य साधना चाहती है! नौकरशाही की तैनाती जब दिल्ली से तय होगी तो नौकरशाह सीएम की क्यों सुनेंगे! सिंह कहते हैं कि नौकरशाही की अराजकता केंद्र प्रेरित है और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा.

सिंह यह भी कहते हैं कि खनन, परिवहन, पीडब्लूडी, आबकारी, पंजीरी, गन्ना, पंचायती राज जैसे कई विभागों में भ्रष्टाचार की पकड़ बढ़ाने के लिए शासन में योजनाबद्ध अराजकता फैलाई गई. थानों और तहसील स्तर पर बिना घूस दिए कोई काम नहीं हो रहा है और अन्य दलों से भाजपा में आए लोग खुली दलाली कर रहे हैं. बंसल जैसे नेताओं की ‘कृपा’ से भाजपा के ईमानदार और निष्ठावान कार्यकर्ताओं का काम नहीं हो रहा है.

मोहसिन, रिज़वी, बुक्कल और आज़म को कौन बचा रहा है?

अब उस सवाल पर फिर से आते हैं कि घोटालों में लिप्त नेताओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून के शिकंजे में लाना चाहते हैं तो आखिर वे ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं? इन नेताओं में से एक भाजपा में पहले से हैं, एक सपा छोड़ कर आए हैं और तीसरे अभी भी सपा में हैं. इन नेताओं को आखिर कौन ताकतवर नेता बचा रहा है? हजारों करोड़ के वक्फ घोटाले में यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा, सपा छोड़ कर भाजपा में आए विधान परिषद सदस्य बुक्कल नवाब उर्फ मजहर अली खां और सपा नेता आजम खान के नाम हैं. सेंट्रल वक्फ काउंसिल (सीडब्लूसी) की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट भीषण वक्फ घोटाले का पर्दाफाश करती है.

कमेटी ने इस मामले की फौरन सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की, लेकिन केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कमेटी की रिपोर्ट दबा दी और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के प्रमुख डॉ. सैयद एजाज अब्बास नकवी को सेंट्रल वक्फ काउंसिल से बाहर कर दिया. मुख्तार अब्बास नकवी सेंट्रल वक्फ काउंसिल (सीडब्लूसी) के चेयरमैन भी हैं. सीडब्लूसी की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के अध्यक्ष रहे डॉ. एजाज अब्बास नकवी ने ‘चौथी दुनिया’ से कहा, ‘अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पहले तो मुझसे कहा कि वक्फ घोटाले की रिपोर्ट से मोहसिन रजा का नाम हटा दे. मैंने मंत्री को ड्राफ्ट रिपोर्ट ही भेजी थी. ड्राफ्ट रिपोर्ट फाइनल नहीं होती.

मुझे मंत्री का आदेश मानना था. लेकिन मंत्री महोदय ने मेरी ड्राफ्ट रिपोर्ट को ही सार्वजनिक कर दिया, जबकि उन्हें ऐसा नहीं करके फाइनल रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए था. इसके बाद मंत्री महोदय ड्राफ्ट रिपोर्ट और फाइनल रिपोर्ट के बीच खेलने लगे. इसका सीधा तात्पर्य था कि वे मोहसिन रजा को दबाव में लेकर उन पर उपकार लादना चाहते थे, ताकि मोहसिन उनसे हमेशा उपकृत रहें. मैंने इसका लिखित विरोध किया. इस पर उन्होंने मुझसे यूपी का प्रभार ले लिया और चंडीगढ़ भेज दिया, जहां वक्फ है ही नहीं. फिर मुझे काउंसिल से ही हटा दिया. मंत्री ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट दबा दी, ताकि उसकी सीबीआई जांच ही न हो सके. इस तरह मुख्तार अब्बास नकवी न केवल मोहसिन रजा को बल्कि बुक्कल नवाब, आजम खान और शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को भी बचा रहे हैं.’

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार के एक मंत्री के घोटाले में फंसने के विवाद से बचना चाहते थे. खास तौर पर वे बुक्कल नवाब को विधान परिषद भेजे जाने के पक्ष में नहीं थे. बुक्कल नवाब पर वक्फ के साथ-साथ गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में भी एफआईआर दर्ज है. रिवर फ्रंट घोटाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई का फैसला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही था. लेकिन केंद्र के कद्दावर मंत्री की अजीबोगरीब सियासत आड़े आ गई. मुख्तार अब्बास नकवी को अमित शाह का साथ भी मिल गया.

मुख्यमंत्री ने शिया वक्फ बोर्ड के छह सदस्यों अख्तर हसन रिज़वी, सैयद वली हैदर, अफशा ज़ैदी, सैयद अज़ीम हुसैन, विशेष सचिव नजमुल हसन रिज़वी और आलिमा ज़ैदी को हटा कर कार्रवाई की रस्म अदायगी कर ली. मामले की सीबीआई जांच का मसला पेचों में ही उलझ कर रह गया. सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिग कमेटी की रिपोर्ट के साथ-साथ सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी भी यह सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि वक्फ घोटाले की सीबीआई जांच होगी तो उसमें सबसे पहले यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा फंसेंगे.

मोहसिन रजा ने लखनऊ में चौक स्थित पुरानी मोती मस्जिद की जमीन पर अवैध कब्जा करके अपना घर बनवा रखा है. इसके अलावा मोहसिन रजा ने उन्नाव के सफीपुर में भी वक्फ सम्पत्ति बेची थी, जिसमें कब्रिस्तान भी शामिल था. बोर्ड की जांच में यह बात सही पाई गई कि मोहसिन रजा ने वक्फ आलिया बेगम सफीपुर उन्नाव के केयर टेकर (मुतवल्ली) रहते हुए वक्फ सम्पत्ति बेच दी थी. वक्फ की सम्पत्ति तीन हिस्सों में पहली वर्ष 2005 में, दूसरी 2006 और तीसरी मार्च 2011 में बेची गई.

सेंट्रल वक्फ काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, वक्फ घोटाले में सपा नेता आजम खान और उनकी पत्नी तंजीम फातिमा के नाम हैं. जौहर यूनिवर्सिटी में वक्फ की जमीन रजिस्ट्री कराने और प्रभाव का इस्तेमाल कर शत्रु सम्पत्ति को जौहर यूनिवर्सिटी में शामिल करने के मामले में काउंसिल ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर रखी है. सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान ने मौलाना जौहर अली एजुकेशन ट्रस्ट का गठन कर उसके लिए वक्फ बोर्ड का फंड आवंटित कर दिया. कमेटी ने यह भी कहा कि आजम खान की सरपरस्ती के कारण सुन्नी वक्फ बोर्ड ने लंबे समय से सम्पत्तियों का सर्वे नहीं कराया.

बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारुकी ने चार साल में 90 करोड़ रुपए की सम्पत्ति बनाई, जबकि उन्हें कोई मासिक वेतन नहीं मिलता. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की एक लाख 50 हजार सम्पत्तियां थीं जो घटकर एक लाख 30 हजार हो गई हैं. भौतिक निरीक्षण में सुन्नी वक्फ सम्पत्तियां महज 32 हजार बची पाई गई हैं, बाकी सब पर अवैध कब्जा हो चुका है, या सम्पत्तियां बेची जा चुकी हैं. ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ सम्पत्तियों का भी हुआ है. शिया वक्फ बोर्ड की प्रदेश में आठ हजार सम्पत्तियां थीं, जो घटकर तीन हजार रह गईं. पांच हजार वक्फ सम्पत्तियों पर मोटी रकम लेकर अवैध कब्जा करा दिया गया या उन्हें बेच डाला गया.

सेंट्रल वक्फ काउंसिल ने वक्फ सम्पत्तियों की हेराफेरी पर प्रदेश सरकार को श्वेत पत्र जारी करने की सलाह दी थी और सीबीआई से जांच कराने को कहा था. इस सिफारिश पर केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की औपचारिकता तो पूरी की, लेकिन कमेटी की रिपोर्ट यूपी सरकार को नहीं भेजी. केंद्र के इशारे पर नाचने वाले प्रदेश के नौकरशाह भी इस पर ठंडे पड़ गए. जबकि प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने यह स्पष्ट कहा था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले हुए. इसे देखते हुए सरकार ने शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड के घोटालों की सीबीआई जांच के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस पर अपनी सहमति की मुहर लगाई, फिर भी मामला अटका रह गया.

भाजपा नहीं सुधरी तो हिंदूवादी राजनीति का बेहतर विकल्प बनेगी हिंदू युवा वाहिनी

राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता अपने ही नेताओं के पैर खींचने और अपने कद से ऊपर किसी को बर्दाश्त नहीं करने की मनोवैज्ञानिक बीमारी से मुक्त नहीं हुए तो हिंदू युवा वाहिनी उत्तर प्रदेश में हिंदूवादी राजनीति का बेहतर विकल्प बन कर उभर जाएगी. यूपी में एक और ‘शिव सेना’ को ताकतवर तरीके से खड़े होने से रोकना है तो भाजपा के शीर्ष नेताओं को अपने व्यवहार और अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा. किसी को मुख्यमंत्री बना कर उसकी सरकार हिलाने की हरकतों से बाज आना होगा. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि हिंदू युवा वाहिनी की सबसे बड़ी ‘यूएसपी’ उसके नेता का बेदाग चरित्र है, जो आम लोगों को काफी प्रभावित करता है. आने वाले दिनों में धर्मीय ध्रुवीकरण की सियासत जैसे-जैसे परवान चढ़ेगी, हिंदू युवा वाहिनी की मांग बढ़ेगी.

भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जन भावना भांपते हुए ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाहिनी कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दिया कि वे भ्रष्ट नौकरशाहों की स्टिंग करें, भ्रष्टाचार के खिलाफ सबूत जुटाएं. इस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. ऐसा कह कर योगी ने विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद निष्पंद पड़े वाहिनी कार्यकर्ताओं को फिर से जाग्रत करने का काम किया. योगी ने गोरखनाथ मंदिर के तिलक सभागार में हिंदू युवा वाहिनी के संभाग और विभाग पदाधिकारियों के साथ बैठक की और तैयार की गई कार्ययोजना के कार्यान्वयन की उन्हें जिम्मेदारी सौंपी.

योगी ने वाहिनी के कार्यकर्ताओं से यह भी कहा कि ग्राम स्वराज अभियान के तहत चलाई जा रही सभी 15 योजनाओं के क्रियान्वयन पर वे कड़ी नजर रखें और इसमें गड़बड़ी करने वाले अफसरों और कर्मचारियों को चिह्नित करें. अगर कहीं लापरवाही और भ्रष्टाचार नजर आए तो खुद मोर्चा न खोलें बल्कि फौरन सरकार के संज्ञान में लाएं. जरूरत पड़े तो अधिकारियों के भ्रष्टाचार का स्टिंग भी करें और सबूत जुटाएं.

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंदू युवा वाहिनी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को गरीब बेटियों की शादी के लिए भी आगे आना चाहिए. इसके लिए जहां भी 11 जोड़े तैयार हो जाएं, वहां फौरन ही सामूहिक विवाह की व्यवस्था कराई जाए. मुख्यमंत्री ने वाहिनी के कार्यकर्ताओं से दलित बस्तियों में जाने, उनके साथ नियमित सहभोज करने और उन्हें मुख्यधारा में लाने का जतन करने का भी निर्देश दिया और उन्हें इस बात के लिए भी सतर्क किया कि वे इस पर नजर रखें कि दलितों को सरकारी योजनाओं का लाभ समुचित तरीके से मिल रहा है कि नहीं. हिंदू युवा वाहिनी का सक्रिय होना बेवजह नहीं है. अब अचानक सक्रिय दिखने लगी हिंदू युवा वाहिनी गोरखपुर उप चुनाव में कहीं नहीं दिखी. इसका अर्थ भाजपा आलाकमान को समझ में आ गया है.

दूसरी तरफ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर हटाने के मामले में हिंदू युवा वाहिनी के कूद पड़ने का भी अपना राजनीतिक मतलब है. इस मसले में कूदते हुए हिंदू युवा वाहिनी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 48 घंटे के भीतर जिन्ना की तस्वीर हटा लेने का अल्टिमेटम दे डाला. वाहिनी ने कहा है कि निर्धारित समय सीमा में अगर जिन्ना की तस्वीर नहीं हटाई गई तो वाहिनी के कार्यकर्ता जबरन उस तस्वीर को वहां से हटा देंगे. विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर का मसला उठाया भाजपा सांसद सतीश गौतम ने, लेकिन इसे ले उड़ी हिंदू युवा वाहिनी.

अब वाहिनी के उपाध्यक्ष आदित्य पंडित कह रहे हैं कि एएमयू से जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए उन्होंने कसम खा रखी है. आप क्या यह समझ रहे हैं कि हिंदू युवा वाहिनी की यह सक्रियता बेवजह है? वाहिनी का बढ़ता कद भी भाजपा में योगी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. हिंदू युवा वाहिनी पहले पूर्वांचल में प्रभावशाली थी, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे प्रदेश में मजबूत होती गई. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों की तादाद बेतहाशा बढ़ गई. उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य की नाराजगी या ईर्ष्या का बड़ा कारण यह भी रहा है. मौर्य यह कह भी चुके हैं कि ‘बाहरियों’ के बढ़ते प्रभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. विडंबना यही है कि भाजपाइयों को सपाई या बसपाई बाहरी नहीं दिखते.

योगी जब मुख्यमंत्री चुने गए थे तब भी भाजपा के कुछ नेताओं ने हिंदू युवा वाहिनी का मसला उठाया था. तब यह कहा गया था कि हिंदू युवा वाहिनी संघ में विलीन हो जाएगी. वाहिनी के बढ़ते कद से बेचैन भाजपाइयों ने वाहिनी पर गुंडागर्दी में लिप्त रहने जैसे आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. इस पर योगी को सार्वजनिक बयान देना पड़ा. योगी ने कहा कि हिन्दू युवा वाहिनी कहीं भी गुंडागर्दी नहीं कर रही है. ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया है.

योगी ने कहा कि अगर हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं द्वारा गुंडागर्दी किए जाने के मामले सामने आते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी. लेकिन गुंडागर्दी की बातें कहना वाहिनी के खिलाफ महज एक दुष्प्रचार है, क्योंकि समाज में वाहिनी की प्रतिष्ठा उसके पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के अनुशासित और मर्यादित रहने के कारण है. हिंदू युवा वाहिनी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक वाहिनी चुप रही, लेकिन स्थितियों पर निगरानी और उसके विश्लेषण का काम तो चल ही रहा था.

हमारे नेता के साथ भाजपा जैसा व्यवहार कर रही है, हम उसे भी देख रहे हैं और भाजपा नेताओं के बयानों और टिप्पणियों पर नजर भी रख रहे हैं. हम अपने नेता के सम्मान को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हैं. आत्मसम्मान ही हिंदू युवा वाहिनी का रक्त और संस्कार है. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन कर योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी की ताकत पूरे देश और दुनिया को दिखा दी है. हम अब अधिक प्रभावकारी ताकत दिखाने के लिए समर्थ हैं. अब हमारा ध्यान और लक्ष्य 2019 का लोकसभा चुनाव है.’ हिंदू युवा वाहिनी के उक्त नेता की यह टिप्पणी सरकार चलाने के आत्मविश्वास का संदेश देने वाली और सरकार हिलाने वालों को संभल जाने की चेतावनी देने वाली है…

किसके हाथ में योगी के नौकरशाहों की नकेल

योगी सरकार के शीर्ष नौकरशाहों की नकेल किसके हाथ में है, यह कोई छुपी-छुपाई बात नहीं है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने यूपी की नौकरशाही का सेटअप कैसा रहेगा, इस पर कवायद शुरू कर दी थी. स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर ही यह हुआ होगा. यूपी की नौकरशाही तय करने की जिम्मेदारी संभाली थी प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र ने. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजीव भटनागर को मुख्य सचिव के रूप में जारी रखने का मन बना लिया था, लेकिन नृपेंद्र मिश्र कुछ और गुणा-गणित में लगे थे.

फिर अचानक योगी को केंद्र से यह संदेश मिला कि वे राजीव कुमार को यूपी का मुख्य सचिव बनाए जाने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दें. राजीव कुमार नृपेंद्र मिश्र के बहुत ही खास रहे हैं. मुख्यमंत्री के लिए यह अप्रत्याशित था, लेकिन राजीव कुमार की छवि और क्षमता को लेकर कोई नैतिक संकट या सवाल नहीं था, लिहाजा योगी ने उस पर अपने हस्ताक्षर कर दिए. राजीव कुमार के मुख्य सचिव बनने के बाद योगी को बड़ा झटका तब लगा जब उन्हें अपने प्रमुख सचिव पद से अवनीश अवस्थी को हटाना पड़ा. मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के रूप में अवनीश दो महीने काम कर चुके थे, तब उन्हें वहां से हटा कर सूचना विभाग का प्रमुख सचिव बनाया गया.

ऐसा इसलिए हुआ कि पीएमओ के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र ने अपने दूसरे विश्वासपात्र आईएएस अफसर एसपी गोयल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रमुख सचिव बनाने का निर्णय ले लिया था. इन फैसलों के जरिए प्रधानमंत्री मोदी योगी को यह संदेश दे रहे थे कि यूपी भी मोदी ही चलाएंगे, योगी नहीं. यही वजह है कि मोदी ने योगी के मुख्यमंत्री बनते ही नृपेंद्र मिश्र को जरूरी सलाह देने के लिए लखनऊ भेजा और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में योजनाकारों की पूरी टीम अलग से लखनऊ भेजी थी.

मुख्यमंत्री सचिवालय पर अपने खास नौकरशाह बिठाकर प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई अच्छा लोकतांत्रिक संदेश नहीं दिया. प्रदेशभर में यही संदेश प्रसारित हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सचिवालय में अपने जासूस बिठा रखे हैं. इस तरह की चर्चा परिचर्चाओं ने प्रदेश की शीर्ष नौकरशाही को अराजक होने का मौका दिया. योगी के संत मित्र ने कहा कि जासूसी तो उसकी होती है जिसका कुछ छुपा हुआ होता है, जिसका जीवन पारदर्शी हो, उसकी कोई क्या जासूसी कर लेगा.

नाईक भी नहीं करा पाए आज़म के खिला़फ कार्रवाई

वक्फ घोटाले की सीबीआई जांच कराने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो असफल हुए ही, राज्यपाल राम नाईक भी कामयाब नहीं हो पाए. राज्यपाल ने वक्फ घोटाले के आरोपियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा, लेकिन आलाकमान ने हरी झंडी नहीं दिखाई. राज्यपाल राम नाईक ने सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान के खिलाफ सरकारी और वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति के दुरुपयोग को लेकर कार्रवाई करने की लिखित अनुशंसा की थी.

आजम खान पर सरकारी सम्पत्तियों और वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों पर कब्जे के साथ-साथ हेराफेरी और सरकारी खजाने का दुरुपयोग करने के गंभीर आरोप हैं. मदरसा आलिया पर कब्जा करने के साथ-साथ आजम खान पर उनके निजी जौहर विश्वविद्यालय में सरकारी गेस्ट हाउस बनवाने और स्पोर्ट्स स्टेडियम का सामान रामपुर ले जाने का भी आरोप है. राम नाईक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर कहा था कि भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर मामलों में त्वरित कानूनी कार्रवाई आवश्यक है. राज्यपाल का यह पत्र राष्ट्रपति और केंद्र सरकार को भी भेजा गया, लेकिन वह रास्ते में ही कहीं खो गया.

सम्पत्ति के बड़े भुक्खड़ निकले बुक्कल

समाजवादी पार्टी छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए बुक्कल नवाब सम्पत्तियों के बड़े भुक्खड़ निकले. सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट यही कहती है. गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में बुक्कल नवाब के खिलाफ वजीरगंज थाने में मुकदमा दर्ज है. सदर तहसीलदार की शिकायत पर बुक्कल के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत केस दर्ज किया गया था. बुक्कल पर गोमती रिवर फ्रंट योजना के अंतर्गत जमीन देने के एवज में गलत तरीके से करोड़ों रुपए का मुआवज़ा लेने का आरोप है. बुक्कल ने ऊंचा मुआवजा लेने के लिए गोमती नदी की जमीन को अपना बताया और अपने दावे को सही ठहराने के लिए जाली दस्तावेज तैयार कराए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के आदेश पर बनी उच्च स्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार सदर ने यह मुकदमा दर्ज कराया. जांच समिति ने कहा कि बुक्कल नवाब ने गोमती नदी के जियामऊ स्थित जमीन को अपना बताने के लिए 22 अगस्त 1977 के जिस फैसले का सहारा लिया वह संदेहास्पद है. तब राजस्व विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव अरविंद कुमार ने अदालत के समक्ष हाजिर होकर बताया था कि अगस्त 1977 में बेगम फखरजहां के निधन के बाद नायब तहसीलदार ने जियामऊ गांव की जमीन मजहर अली खान उर्फ बुक्कल नवाब पुत्र आबिद अली खां निवासी शीशमहल के नाम कर दी थी.

लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश में बनी जांच समिति ने कहा कि अगस्त 1977 का निर्णय और राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जानकारी दोनों ही संदेहास्पद है. इसके बाद ही इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई, जिसके बाद शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बुक्कल नवाब को लखनऊ के वक्फ मोती मस्जिद के मुतवल्ली पद से बर्खास्त कर दिया था. बुक्कल पर वक्फ की जमीन की प्लॉटिंग कर उसे बेचने का भी आरोप है. उन्होंने अपनी पत्नी महजबीं आरा को वक्फ की सम्पत्ति उपहार में दे दी. इस सम्पत्ति की कीमत सौ करोड़ से अधिक है. सभी जानते हैं कि इन्हीं घोटालों से बचने के लिए बुक्कल नवाब ने भाजपा की शरण ली. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बोझ को ढोना नहीं चाहते थे, लेकिन आखिरकार वे भी विवश हो गए.

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