ऐतिहासिक घटनाएं चुनौतियां लेकर आती हैं. बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद आज़ाद भारत की पहली ऐसी घटना है, जिसने हमारी राष्ट्रीयता और धर्म निरपेक्षता को एक साथ चुनौती दी है. साठ साल से चल रहे विवाद की सुनवाई खत्म हो गई है. अब फैसले का व़क्त आया है. हालांकि यह भी तय है कि फैसला आते ही मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंच जाएगा. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, संघ परिवार और विश्व हिंदू परिषद अदालत का फैसला आने से पहले ही यह कहने लगे हैं कि अगर फैसला उनके पक्ष में नहीं आता है तो वे इसे नकार देंगे. संघ परिवार इस फैसले को संगठन की खोई हुई ज़मीन वापस जीतने का ज़रिया मान रहा है. इसलिए कहा जा सकता है कि अगर फैसला उनके पक्ष में नहीं आता है तो संघ परिवार और विहिप देश में धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश करेंगे. अगर वे अपने षड्‌यंत्र में कामयाब हो जाते हैं तो देश के कई इलाक़ों में गुजरात जैसा माहौल बन सकता है. आल इंडिया बाबरी एक्शन कमेटी या मुस्लिम पक्ष की तऱफ से कोई बयान नहीं आ रहा है. वे शांत हैं.

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद क्या होगा? यह ऐसा सवाल है, जिसे लेकर लोगों के मन में शंकाएं हैं, डर है. अदालत का फैसला यह तय करेगा कि अयोध्या की विवादित ज़मीन पर किसका अधिकार है. हिंदू संगठनों का या फिर मुस्लिम वक्फ बोर्ड का. किसी साधारण हिंदू या मुस्लिम शख्स के जीवन पर इस फैसले से कोई फर्क़ नहीं पड़ने वाला है, लेकिन फैसले के बाद उत्पन्न होने वाले माहौल को लेकर लोग चिंतित हैं. यह बात भी तय है कि फैसला जो भी हो, मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंचेगा, लेकिन डर इस बात का है कि फैसले के बाद देश में क़ानून व्यवस्था की समस्या न खड़ी हो जाए. इसी खतरे को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र से अतिरिक्त सुरक्षाबलों की मदद ली है.

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद क्या होगा? यह ऐसा सवाल है, जिसे लेकर लोगों के मन में शंकाएं हैं, डर है. अदालत का फैसला यह तय करेगा कि अयोध्या की विवादित ज़मीन पर किसका अधिकार है. हिंदू संगठनों का या फिर मुस्लिम वक्फ बोर्ड का. किसी साधारण हिंदू या मुस्लिम शख्स के जीवन पर इस फैसले से कोई फर्क़ नहीं पड़ने वाला है, लेकिन फैसले के बाद उत्पन्न होने वाले माहौल को लेकर लोग चिंतित हैं. यह बात भी तय है कि फैसला जो भी हो, मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंचेगा, लेकिन डर इस बात का है कि फैसले के बाद देश में क़ानून व्यवस्था की समस्या न खड़ी हो जाए. इसी खतरे को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र से अतिरिक्त सुरक्षाबलों की मदद ली है और कई साल से बैरक में बैठी पीएसी की भी तैनाती कर दी गई है. प्रधानमंत्री ने भी ज़िम्मेदार मंत्रियों और खु़फिया एजेंसियों के साथ बैठक की है. लालकृष्ण आडवाणी ने भी अपनी पार्टी के नेताओं से यह अपील की है कि फैसले से संबंधित कोई भी बयान संतुलित होकर दें. हर तरफ एक अनजाने खौ़फ का मंजर है. यह फैसला केंद्र सरकार, राज्य सरकार, राजनीतिक दलों, मीडिया और देश की जनता के लिए परीक्षा की घड़ी है. सबके सामने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला एक चुनौती के रूप में उभर कर आने वाला है. सबसे बड़ी चुनौती इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने है. बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर अदालत का फैसला न स़िर्फ न्यायपूर्ण हो, बल्कि वह न्यायपूर्ण दिखना भी चाहिए, ताकि देश की जनता उसके फैसले को सही मानकर भावना भड़काने वालों को चुप करा सके. इस फैसले पर दुनिया भर की नजर है. इस फैसले से धर्म निरपेक्षता, अल्पसंख्यकों के अधिकार के बारे में विश्व भर में भारत की साख बनेगी. साथ ही यह फैसला देश की राजनीति पर असर डालेगा. इसके लिए यह ज़रूरी होगा कि फैसला सा़फ-सा़फ अक्षरों में हो, ताकि कोई इसकी अपने हिसाब से व्याख्या न कर सके. 1992 में सुप्रीमकोर्ट के प्रतीकात्मक कारसेवा शब्द का अर्थ संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपने हिसाब से लगा लिया था.
उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार के सामने चुनौती है. इस फैसले का सबसे ज़्यादा असर उत्तर प्रदेश में होने वाला है. जिस तरह से विश्व हिंदू परिषद ने लोगों को एकजुट करने के लिए यह हनुमत जागरण अभियान चलाया है और जिस तरह इस संगठन से जुड़े धार्मिक नेताओं के बयान आ रहे हैं, उससे यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अदालत का फैसला अगर उनके खिला़फ जाता है तो वे उस फैसले को मानने से इंकार कर देंगे. ऐसे में उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था का संकट खड़ा हो सकता है. ऐसा देखा गया है कि हमारे देश में जब भी इस तरह का माहौल खड़ा होता है, समाज में मौजूद शरारती तत्व भावनाओं को भड़काने में नहीं चूकते हैं. अदालत के फैसले के बाद हिंसा को रोकने की पहली ज़िम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार की होगी.
केंद्र सरकार के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है. 1992 में नरसिम्हाराव की सरकार सोती रही. 6 दिसंबर के दिन पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने जब प्रधानमंत्री से बात करने के लिए फोन किया था तो उनके निवास से यह बताया गया कि प्रधानमंत्री सो रहे हैं. नरसिम्हाराव की सरकार में रहे मंत्रियों के ज़रिए अब तो यह भी बातें सामने आ चुकी हैं कि खु़फिया जानकारी होने के बावजूद केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया. केंद्र सरकार की यह ज़िम्मेदारी होगी कि अदालत के फैसले को अयोध्या में लागू किया जाए. केंद्र को पूरे देश पर नज़र रखनी होगी. फैसले के बाद अगर कहीं हिंसा भड़कती है तो वह उस स्थिति में अविलंब निर्णय ले और भड़की हिंसा से निपटने के लिए कठोर फैसले लेने में पीछे न हटे. राजनीतिक फायदे से ज़्यादा देश के भविष्य पर ध्यान देकर फैसला लेने की चुनौती है.
इस विवाद ने भारतीय जनता पार्टी को पूरे देश में फैलाया और फिर इसी विवाद की वजह से देश की जनता ने ही भाजपा को खारिज़ भी कर दिया. लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के नेताओं से यह अपील की है कि वे बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर संतुलित बयान दें. देखना यह है कि आज की भारतीय जनता पार्टी में उनकी बातों को कौन तरजीह देता है. यह विश्वास करने में थोड़ी मुश्किल है कि विपरीत फैसला आने पर भारतीय जनता पार्टी के नेता उसे मान लेंगे और संघ के एजेंडे से खुद को अलग कर लेंगे. संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और भारतीय जनता पार्टी के नेता, कार्यकर्ता एवं समर्थक एक ही विचारधारा को मानने वाले हैं. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि संघ ने भारतीय जनता पार्टी को अपनी विचारधारा पर लाने के लिए ही नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाया है. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी हाशिए पर चली गई है और यही सबसे बड़ा खतरा है.
विवेक और सहानुभूति का दरिया बहेगा या फिर माहौल विषाक्त होगा यानी फैसले के बाद देश का क्या परिदृश्य होगा, यह कहना फिलहाल तो मुश्किल है. मामला अदालत में था तो किसी दिन फैसला आना ही था. इस फैसले के बाद मीडिया का रोल भी चुनौतीपूर्ण होगा. यह कहते हुए दु:ख होता है कि मीडिया की ग़ैर ज़िम्मेदारी की वजह से देश में दंगे भी भड़के हैं. गुजरात के दंगे हों या आडवाणी की रथयात्रा, मीडिया के कुछ वर्गों ने आग में घी डालने का काम किया था. एक बार फिर ऐसा मौक़ा आया है. मीडिया के लिए भी यह चुनौती है कि वह किस तरह देश के लोगों का दिमाग़ बनाता है. शांति और भाईचारे का संदेश देता है या फिर समाज में कलह और घृणा फैलाने का काम करता है.
यह परीक्षा की घड़ी है. संभव है कि अदालत आंखों पर पट्टी बांधकर सबूतों और बयानों पर अपना फैसला सुनाएगी, राजनीतिक दल अपना खेल खेलेंगे, नेता अपना फायदा-नुक़सान देखेंगे, सरकारें अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश करेंगी, असामाजिक तत्व समाज में ज़हर घोलेंगे, लेकिन इन लोगों की करतूतों को समझना ही हमारी और आपकी सबसे बड़ी चुनौती होगी.

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