वरिष्ठ पत्रकार वासिंद्र मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार वासिंद्र मिश्र

व्लादिमीर .. महानायक या तानाशाह ?

व्लादिमीर पुतिन ने साल 2000 में रूस के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी .. जब पहली बार पुतिन रूस की सत्ता पर काबिज हुए …. तब देश में उनके बारे लोगों को कुछ खास जानकारी नहीं थी सिवाय इसके कि पुतिन पहले रुस की सीक्रेट सर्विसेज केजीबी में रह चुके हैं और सेंट पीटर्सबर्ग के रहने वाले हैं ….पुतिन बहुत कम समय में देश के लिए एक अनजान शख्स से नेशनल लीडर बन गए … और फिर तानाशाह ..जिन्होंने अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर रूस की लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव कर खुद को 2036 तक प्रेसीडेंट घोषित कर दिया है

व्लादिमीर पुतिन की कार्यशैली और रूस की मौजूदा राजनैतिक व्यवस्था को समझने 1991 में हुए सोवियत संघ के विघटन और व्लादिमीर पुतिन के बचपन और फिर एक जासूस की उनकी जिंदगी को समझना होगा …
पुतिन का जन्म लेनिनग्राड में हुआ था जिसे मौजूदा वक्त में सेंट पीटर्सबर्ग कहा जाता है .. अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे पुतिन के दादा रूसी क्रांतिकारी और नेता व्लादिमीर लेनिन के कुक थे … वहीं पुतिन के पिता सोवियत नेवी में थे और मां फैक्ट्री वर्कर थीं … कहते हैं पुतिन के जन्म के बाद उनके दोनों भाइयों की मौत हो गई थी ..
पुतिन को बचपन से ही मार्शल आर्ट का शौक था .. उन्होंने 12 साल की उम्र से जूडो की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी और बाद में ब्लैक बेल्ट भी हासिल की … पुतिन सोवियत मार्शल आर्ट साम्बो में भी राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे थे .. पुतिन ने अपने हाइस्कूल में जर्मन भाषा भी सीखी और इसमें माहिर भी हैं … कहते हैं पुतिन को इंटेलीजेंस ऑफीसर पर बनी सोवियत फिल्में बहुत पसंद थी और बचपन में वो अक्सर ऐसे अधिकारियों की नकल करने की कोशिश किया करते थे .. शायद यही वजह थी कि युवा होते होते पुतिन ने सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी से जुड़ने का फैसला किया …

पुतिन ने लेनिनग्राड स्टेट युनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया और इसी दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ सोवियत युनियन से भी जुड़ गए .. इसी दौरान पुतिन की मुलाकात बिजनेस लॉ के प्रोफेसर एनाटोली सोबचक से हुई जो बाद में रूस का संविधान लिखने वाले थे और पुतिन के करियर में भी अहम भूमिका निभाने वाले थे ..

ग्रेजुएशन के बाद 1975 आते आते पुतिन ने केजीबी ज्वाइन कर ली …केजीबी का मतलब कमिटी फॉर स्टेट सिक्युरिटी से था .,. 1954 से लेकर 1991 तक ये सोवियत युनियन की मेन सिक्युरिटी एजेंसी थी … 10 साल तक केजीबी में अहम पदों पर काम करने के बाद 1985 में व्लादिमीर पुतिन को जर्मनी के ड्रेस्डन भेज दिया गया …

ड्रेस्डन में जासूस व्लादिमीर की पहचान एक ट्रांसलेटर की थी ….कहा जाता है कि उस वक्त केजीबी जर्मनी की लैटेस्ट टेक्नोलॉजी गुपचुप तरीके से सोवियत संघ में लेकर आ रही थी … कहते हैं इसमें व्लादिमीर पुतिन की अहम भूमिका थी.. और इस दौरान पुतिन का अनुभव बाद में उनके काम आने वाला था … एक पत्रकार के दावे के मुताबिक इस दौरान सोवियत वेस्ट जर्मनी के आतंकी गुट रेड आर्मी फैक्शन को मदद की थी इसमें भी व्लादिमीर पुतिन की अहम भूमिका रही थी .. पुतिन की ऑफशियल बायोग्राफी के मुताबिक पुतिन बर्लिन वॉल गिराए जाने के दौरान पैदा हुए हालात में जर्मनी में केजीबी की सारी फाइल्स जला दी थीं ताकि प्रदर्शनकारी उस पर कब्जा ना कर सकें …

हालांकि पुतिन की आलोचक रूसी अमेरिकी पत्रकार माशा गेसन के मुताबिक पुतिन और उनके सहयोगियों का काम सिर्फ प्रेस क्लिपिंग्स जमा करने का था … हालांकि 1990 तक जर्मनी में रहे पुतिन सोवियक संघ के विघटन से पहले लेनिनग्राड लौट आए थे और आने वाले एक दशक में वो रूस पर राज करने की तैयारी और अनुभव हासिल करने वाले थे …

1991 में व्लादिमीर पुतिन ने केजीबी से इस्तीफा दे दिया था… उस वक्त पुतिन लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक पर थे … कहा जाता है सीक्रेट सर्विसेज के एक डीसेंट से एजेंट रहे व्लादिमीर पुतिन का राजनीति में आना महज एक संयोग था .. हालांकि इसके बाद जो कुछ पुतिन ने किया उसमें बहुत बड़ी भूमिका जासूसी के वक्त के उनके अनुभवों की रही
1991 में पुतिन ने जिस वक्त केजीबी से इस्तीफा दिया था उस वक्त सोवियत के प्रेसीडेंट और जनरल सेक्रेटरी मिखाइल गोर्बाचोव की पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त की नीतियों के खिलाफ आंदोलन चरम पर था …. उनके विरोधी तख्तापलट की तैयारी कर रहे थे … तख्तापलट की कोशिश के ठीक दूसरे दिन पुतिन ने केजीबी से इस्तीफा दे दिया … बाद में पुतिन ने कहा “As soon as the coup began, I Immediately decided which side I was on… तख्तापलट की ये कोशिश नाकाम रही थी लेकिन दिसंबर आते आते बढ़ते विरोध के बीच मिखाइल गोर्बाचोव को इस्तीफा देना पड़ा
इसी दौरान पुतिन के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई… पुतिन ने केजीबी से इस्तीफे के बाद सेंट पीटर्सबर्ग में मेयर के ऑफिस में काम करना शुरू कर दिया था … मेयर थे प्रोफेसर एनाटोली सोबचक.. राजनैतिक उथल पुथल के माहौल में उन्हें एक मज़बूत शख़्स की ज़रूरत थी और तब उन्हें केजीबी के अधिकारी रहे व्लादिमीर पुतिन सबसे सही विकल्प नज़र आए … और इस तरह पुतिन का राजनैतिक जीवन शुरू हुआ ..

1996 में एनाटोली सोबचक के चुनाव हारने के बाद व्लादिमीर पुतिन ने मॉस्को का रुख किया और एक साल बीतते-बीतते नए रूस के पहले राष्ट्रपति रहे बोरिस येल्तसिन के प्रेसीडेंशियल स्टाफ के डिप्टी चीफ बन गए… और अगले ही साल 1998 में बोरिस येल्तसिन ने पुतिन को फेडरल सिक्युरिटी सर्विस का डायरेक्टर नियुक्त कर दिया …
पुतिन बोरिस येल्तसिन के बहुत खास बन चुके थे .. 1999 में येल्तसिन ने पुतिन को प्रधानमंत्री बना दिया था …. उस वक्त पुतिन की छवि येल्तसिन के Loyalist leader से ज्यादा की नहीं थी ..

येल्तसिन ने 1999 में पुतिन को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया … तब तक सोवियत संघ के विघटन के लगभग 10 साल बीत चुके थे … बोरिस येल्तसिन के Economy Reforms के दावे पूरे नहीं हो पाए थे … एक दशक बाद लोगों को अहसास हो रहा था कि देश पर लगे पश्चिमी देशों के प्रतिबंध खत्म होने के दावे भी हवा हो चुके हैं … देश में अराजकता चरम पर है और जनता आर्थिक पाबंदियों के बोझ तले दबी हुई है … लगा… उम्रदराज हो चुके बोरिस येल्तसिन कई बार सार्वजनिक स्थानों पर नशे में धुत नज़र आने लगे थे … उस वक्त पूरा देश एक युवा और जोश से भरे नेता की ज़रूरत महसूस कर रहा था … जो व्लादिमीर पुतिन के रूप में सामने आ गया था ..

कहते हैं शुरुआत में पुतिन ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए मना कर दिया था … जिसका खुलासा उस वक़्त रूसी राष्ट्रपति भवन ‘क्रेमलिन’ के सलाहकार रहे सर्गेई ने किया .. सर्गेई के मुताबिक “पुतिन ने कहा कि वो इसके लिए तैयार नहीं हैं’’… ये भी कहा जाता है कि येल्तसिन को पुतिन का नाम उनके पीआर अधिकारी ग्लेब पावलोव्सकी ने सुझाया था …
इसी दौरान रूस में रूस में अपार्टमेंट्स पर बम से हमले किए गए थे जिसमें 300 लोग मारे गए .. इस घटना को Russian Apartment Bombings कहा जाता है … इस घटना और चेचेन्या के साथ चल रहे युद्ध को लेकर प्रधानमंत्री के तौर पर व्लादिमीर पुतिन की नीतियों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था ..

1999 के दिसंबर में बोरिस येल्तसिन के इस्तीफे के बाद पुतिन कार्यकाली राष्ट्रपति बने और तीन महीने बाद हुए चुनावों में उन्हें 53 फीसदी वोट के साथ जीत हासिल हुई… पुतिन ने वित्तमंत्री रहे मिखाइल कास्यानोव को प्रधानमंत्री बना दिया …
मिखाइल कास्यानोव ने एक बार कहा था कि बोरिस येल्तसिन और वो खुद चाहते थे पुतिन पुरानी नीतियों को जारी रखें .. इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर साथ काम करने की बात मान ली थी …

पुतिन ने लगभग 20 साल पहले बतौर राष्ट्रपति रूस की कमान संभाली थी… इसके साथ ही रूस में बड़े बदलाव की तैयारी भी शुरू हो गई थी … जुडो के ब्लैक बेल्ट रहे रूसी राष्ट्रपति की कार्यशैली में भी वही छल और आक्रामकता नज़र आने वाली थी … लेकिन लोकप्रिय नेता होते हुए भी पुतिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे साथ ही विरोधियों के खिलाफ सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल के लिए भी पुतिन को जिम्मेदार ठहराया गया

कभी राष्ट्रपति तो कभी प्रधानमंत्री के तौर पर रूस की कमान संभाल रहे पुतिन ने अपनी एक खास इमेज बना रखी है … इसकी शुरुआत उन्होंने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर पहले चुनाव में विद्रोही चेचेन्या इलाकों में फाइटर जेट उड़ाकर कर दी थी .. फिर ब्लैक सी फेस्टिवल में बाइकर्स के साथ पहली पंक्ति में नज़र आना .. जिम में एक्सरसाइज करना .. जुडो कराटे करते हुए नज़र आना …..साइबेरिया में बिना शर्ट पहने घुड़सवारी करना.. ये पुतिन की माचो इमेज बिल्डिंग का हिस्सा रहा है ..
पुतिन की निजी जिंदगी के बारे में लोग कम ही जानते हैं .. उनकी शादी 1983 में ल्युडमिला से हुई थी… 2013 में इनका तलाक हो गया .. इसके बाद पुतिन ने कई बार ये संकेत दिए कि वो शादी कर सकते हैं लेकिन किससे … इसका खुलासा पुतिन ने कभी नहीं किया .. 2008 में पुतिन के जिम्नास्ट अलिना काबाएवा से संबंधों की बात सामने आई थी .. कहा गया कि दोनों के कई बच्चे भी हैं .. हालांकि कभी भी पुतिन ने इसकी पुष्टि नहीं की … जिस अखबार ने इसका खुलासा किया उसे कुछ दिनों बाद ही बंद कर दिया गया …

अपने पहले कार्यकाल में पुतिन ने पश्चिमी देशों के नेताओं के बीच भी अच्छी छाप छोड़ी थी .. लेकिन देश में पुतिन उस नीति पर काम कर रहे थे जिसके जरिए उन्हें भविष्य में कोई चुनौती ना दे पाए ….. पुतिन का पहला निशाना वो 8 उद्योगपति बने जिन्होंने कभी पुतिन को सत्ता तक पहुंचाने में मदद की थी और रूस की 46 फीसदी अर्थव्यवस्था पर इनका कब्जा था .. कहते हैं पुतिन को डर था कि आगे चलकर ये लोग अपने अथाह धन को राजनैतिक प्रभाव में बदलने की कोशिश करेंगे….जिनके खिलाफ कार्रवाई हुई उसमें दुनिया का चौथा सबसे अमीर शख्स मिखाएल खोदोरकोव्स्की भी शामिल था …. उस वक्त ये रूस का सबसे अमीर उद्योगपति था.. टैक्स चोरी के आरोप में मिखाएल को गिरफ्तार कर लिया गया ….. उसकी तेल कंपनी यूकोस का विघटन कर दिया गया और उसकी संपत्ति पुतिन के सहयोगियों ने आपस में बांट ली ..अंदेशा था कि पुतिन को अपने इस तानाशाही रवैये के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना झेलनी होगी लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उल्टा … पश्चिमी देशों में उद्योगपतियों मे इस मौके का फायदा उठाने की होड़ लग गई … इस दौरान तेल की कीमतें बढ़ रही थीं इसका असर ये हुआ की पश्चिमी देशों की कपंनियों ने रूस में निवेश करना शुरू कर दिया वहीं रूस अपने पैसों का निवेश पश्चिमी देशों में करने लगा .. .रूस के लोगों को इसका फायदा मिला … लोगों में पुतिन की छवि पूंजीवादी वर्ग से लड़ने वाले राष्ट्रपति की छवि बन गई …

हालांकि ये बात भी सच थी कि लोकतंत्र वाले रूस में चुनाव व्लादिमीर पुतिन के मुताबिक ही होते हैं .. संविधाव के मुताबिक पुतिन तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे तो उन्होंने 2008 में दमित्री मेदवेदेव को राष्ट्पति बना दिया और खुद प्रधानमंत्री बन गए ..हालांकि सब जानते थे कि मेदवेदेव केवल कागजों में ही राष्ट्रपति थे और असल कमान पुतिन के हाथ में ही थी .. इसी दौरान संविधान में संशोधन हुआ और अगले चुनाव से राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 से बदलकर 6 साल का कर दिया गया .. 2012 में पुतिन तीसरी बार राष्ट्रपति बने और उन्होंने मेदवेदेव को प्रधानमंत्री बना दिया ..

ऐसा नहीं था कि रूस में जनता विरोध नहीं कर रही थी .. पुतिन पर हर बार चुनाव में धांधली के आरोप लगे … 2011 में लाखों लोगों ने इसके खिलाफ विरोध किया .. सोवियत संघ के विघटन के बाद ये देश में होने वाला सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन था .. .हर बार पुतिन इसे दबाने में सफल रहे …

2014 में क्रीमिया को रूस में मिलाने .. मिडिल ईस्ट में रूस का दखल बढ़ाने, चीन के साथ रिश्ते अच्छे करने और आंतरिक विरोधों को हैंडल करने के तरीकों की वजह से पुतिन को पसंद करने वालों की संख्या भी कम नहीं हुई.. उन्हें पसंद करने वाले लोग घटते बढ़ते रहे ..

पुतिन पर मानवाधिकार उल्लंघन के भी आरोप लगे … खासकर उद्योगपतियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर .. कहते हैं पुतिन के विरोधियों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया … या फिर उनकी संदिग्ध हालत में मौत हो गई .. युक्रेन की राजधानी में हुई रूस के निर्वासित पूर्व सांसद डेनिस वोरोनेन्कोव की हत्या में भी पुतिन का नाम सामने आया था .. केजीबी के पूर्व एजेंट अलेक्जेंडर लिटविनिन्को की हत्या में भी पुतिन पर आरोप लगे थे ..

पुतिन पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे खासकर पनामा लीक के बाद .. पनामा पेपर लीक में पुतिन और उसके सहयोगियों पर आरोप लगे कि इन्होंने टैक्स हैवन माने जाने वाले देशों और फर्जी कंपनियों में बड़े पैमाने पर पैसा छुपा रखा है … रूस की सरकार ने पूरे खुलासे को बहुत ही चालाकी से हैंडल किया …. इसे पुतिन और रूस के खिलाफ क्या गया स्कैंडल करार दिया गया .. कहा गया कि ये रूस की स्थिरता को निशाना बनाने के लिए किया गया है ..

पुतिन पर आरोप सिर्फ इतने ही नहीं थे .. पुतिन और उनकी सरकार पर आरोप लग रहे थे कि रूस में आने वाले पैसों पर पुतिन के करीबियों का ही कंट्रोल था.. इस कंट्रोल की बदौलत पुतिन के करीबी अमीर होते जा रहे थे और राजनैतिक घूसखोरी के लिए बड़े पैमाने पर पैसे जमा किए जा रहे थे .. ताकि पश्चिमी देश के बाजारों में निवेश कर समय आने पर उनके ही खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा सके …

व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में भी दखलअंदाजी के आरोप लगे .. कहते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप को जिताने में पुतिन की अहम भूमिका रही …कहा जाता है कि रूस के हैकर्स ने अमेरिका के साइबर वर्ल्ड पर कब्जा कर रखा था जिसने डोनाल्ड ट्रंप की जीत में अहम भूमिका निभाई … डेमोक्रैट्स उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की छवि खराब कर दी गई … डेमोक्रैट्स के समर्थकों में आपसी विरोध पैदा कर दिया गया … इस तरह से डोनाल्ड ट्रंप को मजबूत किया जाता रहा.. बाद में राजनैतिक विश्लेषकों ने कहा कि पुतिन ने अपने पड़ोसी देश युक्रेन में अमेरिकी दखलअंदाजी का बदला लिया था .. 2014 में युक्रेन में जो क्रांति हुई थी उसके बाद व्लादिमीर पुतिन ने क्रीमिया को रूस में मिलाने में जीत हासिल कर ली थी .. पुतिन हमेशा ये मानते रहे कि युक्रेन और रूस के बाकी पड़ोसी देशों में अस्थिरता के लिए अमेरिका जिम्मेदार था …

पुतिन की ऐसी नीतियों की वजह से उनके आलोचक भी ये मानते हैं कि भले ही देश की संस्थाए कमजोर हों लेकिन पुतिन को कमजोर नहीं आंका जा सकता .. कहा जाता है कि पुतिन के करीबियों को ताकत और संपत्ति जुटाने की पूरी छूट मिली हुई है … आलोचक ये भी कहते हैं कि रूस में चाहे जैसे मर्जी मतदान करा लीजिए ..पुतिन ही विजेता साबित होंगे .. कहते हैं इस वक्त रूस में पुतिन को पसंद करने और उनसे नफरत करनेवालों की संख्या लगभग बराबर ही होगी … पुतिन ने एक बार कहा था A KGB officer is never a Former KGB Officer .. यानि जो एक बार केजीबी अधिकारी बन जाता है वो फिर हमेशा ही केजीबी अधिकारी रहता है … इसीलिए पुतिन ने रूस को एक अधिकारी की तरह ही चलाया है .. उनके आलोचक मानते हैं कि पुतिन को उनके फैसले का विरोध करने वाले बर्दाश्त नहीं … और कई बार असुरक्षा की ये भावना सामने आ जाती है … इसका ही नतीजा है कि उन्होंने रूस के संविधान में बदलाव कर दिए है …. ये बदलाव ही 2036 तक राष्ट्रपति बने रहने का अधिकार देता है …

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