भारत अब विकासशील देश की जगह निम्न मध्यम आय वर्ग वाला देश हो गया है. विश्व बैंक ने जो नए पैमाने निर्धारित किए हैं उसके मुताबिक भारत अब पाकिस्तान और घाना जैसे देशों के साथ आ खड़ा हुआ है. आखिर, इस वर्गीकरण के क्या मायने हैं? इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा? इन सवालों का जवाब जानना जरूरी है, क्योंकि इससे आम लोगों में भ्रम की स्थिति बनी है. इनका जवाब तभी मिलेगा जब हम विश्व बैंक की कार्यप्रणाली और वर्गीकरण के तरीके को समझेंगे. इस लेख के जरिए हम ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. विश्व बैंक ने दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं केवर्गीकरण में बड़ा परिवर्तन करते हुए विकसित, विकासशील और अविकसित देशों की अपनी संकल्पना को खत्म कर दिया है. विश्व बैंक ने इसकी जगह प्रति व्यक्ति आय के आधार पर वर्गीकरण की एक नई पद्धति लागू की है. आइए सबसे पहले जानते हैं यह नई पद्धति है क्या…

world-bank साल जुलाई माह में विश्व बैंक दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के विश्लेेषणात्मक वर्गीकरण में संशोधन करता है. इसके लिए पिछले वर्ष की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को ध्यान में रखा जाता है. जुलाई 2015 के प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आधार पर विश्व भर की अर्थव्यवस्थाओं को निम्न भागों में बांटा गया है:

  • उच्च आय वर्ग – प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 12736 डॉलर से ज्यादा
  • मध्य आय वर्ग – प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1045 डॉलर से 12736 डॉलर
  •  मध्यम आय वर्ग को भी दो हिस्सों में बांटा गया है:-
  •  निम्न मध्यम आय – 1045 डॉलर से 4125 डॉलर तक
  •  उच्च मध्यम आय – 4125 डॉलर से 12736 डॉलर तक
  • निम्न आय वर्ग – प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1045 डॉलर से कम

इस आधार पर वर्गीकृत देशों की संख्या निम्न है:

आम तौर पर विकसित, विकासशील और अविकसित देश की शब्दावलियों का प्रयोग होता रहेगा, लेकिन विशेष मामलों में और विश्व बैंक द्वारा इस नए वर्गीकरण का प्रयोग होगा, क्योंकि उनके अनुसार पुराने वर्गीकरण से देशों की अर्थव्यवस्था की सही स्थिति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता था। नीतियां बनाने, उनको लागू करने और आर्थिक सामाजिक स्थितियों का आकलन और विश्लेेषण करने में सुधार लाने के लिए नया वर्गीकरण किया गया है. पहले दुनिया के अधिकतर देश विकासशील देशों के दायरे में आ जाते थे, जबकि उनकी आर्थिक स्थिति में बड़ा फर्क होता था. उदाहरण के लिए 4.25 बिलियन डॉलर जीडीपी वाला मालवी 338.1 बिलियन जीडीपी वाले मलेशिया के साथ नहीं रखा जा सकता. इसलिए मलेशिया को उच्च मध्यम आय वर्ग में रखा जाएगा और मालवी को निम्न मध्यम आय वर्ग में.

नए वर्गीकरण के मुताबिक भारत को निम्न मध्यम वर्गीय आय वाले श्रेणी में रखा गया है. इस वर्ग में भारत के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, जाम्बिया, घाना, ग्वाटेमाला और होंडुरास जैसे देश आते हैं. ब्रिक्स देशों में भारत एकमात्र ऐसा देश रह गया है जो निम्न मध्यम आय वर्ग में आता है. बाकी देश जैसे ब्राजील, रूस, चीन और साउथ अफ्रीका सभी उच्च मध्यम आय या उच्च आय वर्ग में चले गए हैं. सिंगापुर और यूएस को उच्च आय वर्ग में रखा गया है.

विश्व बैंक ने यह वर्गीकरण देशों की अर्थव्यवस्थाओं को सटीक ढंग से विश्लेषित करने के लिए किया क्योंकि पहले एक ही वर्ग में ऐसे देश आ जाते थे जिनमें भारी आर्थिक असमानता है. विश्लेषण, अध्ययन और नीतियों में सुधार के लिए वर्गीकरण को बेहतर और वैज्ञानिक बनाने के लिए ये सुधार किए गए. लेकिन भारत को ध्यान में रखते हुए अगर इस वर्गीकरण पर नजर डालें, तो इसमें कई असंगतियां और खामियां नजर आती हैं.

इन्हें समझने के लिए सबसे पहले हम विश्व बैंक के इतिहास पर एक नजर डालते हैं, ताकि विश्व बैंक की स्थापना के उद्देश्यों और मंतव्यों को समझा जा सके. विश्व बैंक एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान है जो संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत काम करता है. इसका लक्ष्य दुनिया से गरीबी का उन्मूलन करना है. विश्व बैंक की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1944 में प्रमुख रूप से यूएस और ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी. विश्व बैंक का मुख्य कार्यालय वाशिंगटन डीसी में है. इसकी स्थापना के पीछे उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह हो गए यूरोपियन देशों का दोबारा निर्माण करना था. विश्व बैंक का पहला अध्यक्ष युजिन मेयर को बनाया गया और बैंक ने पहला कर्जा 1947 में फ्रांस को दिया. लेकिन जल्दी ही पूरी स्थिति बदल गयी और विश्व बैंक का रुख पूरी तरह से लैटिन अमेरिकी, अफ्रीकी और एशियाई देशों के विकास की ओर मुड़ गया. 1950 और 60 के दशक में बांधों, विद्युत ग्रिडों, सिंचाई प्रणालियों और सड़कों पर बैंक का सबसे ज्यादा ध्यान था. बैंक के कर्ज को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के लिए बैंक द्वारा दी जानी वाली तकनीकी सहायता की मांग सदस्य देशों में बढ़ती गयी. 1970 के बाद कृषि क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा तो विश्व बैंक ने भी अपना ध्यान उस ओर कर लिया. विकास की योजनाएं सिर्फ ढांचागत विकास की बजाय व्यक्ति आधारित होने लगीं. खाद्य उत्पाद, ग्रामीण और शहरी विकास, जनसंख्या, स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी योजनाएं इस तरह से बनाने की कोशिश होने लगी, ताकि सीधे गरीबों तक पहुंच सकें.

1980 में बैंक ने अपने को सामाजिक विकास पर और अधिक केन्द्रित किया. सामाजिक जीवन में शिक्षा, संचार, सांस्कृतिक विरासत और बेहतर सरकार सब शामिल थी. इस बदले परिदृश्य के मद्देनजर विश्व बैंक के स्टाफ में भी विस्तार हुआ, पहले जहां सिर्फ इंजीनियर, अर्थशास्त्री और वित्तीय विश्लेेषक होते थे, अब उनमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होने लगे, जैसे जन नीति विशेषज्ञ, समाज विज्ञानी वगैरह.

वर्तमान में बैंक ने अपने निम्न लक्ष्य निर्धारित किए हैं: अपने इन्हीं लक्ष्यों की पूर्ति के लिए बैंक ने इस नए वर्गीकरण के मानदंड को लागू किया है. इसके मुताबिक भारत को निम्न मध्यम वर्ग में रखा गया है, लेकिन जहां तक भारत का सवाल है यह वर्गीकरण कहीं से  परिस्थितियों का सही आकलन नहीं करता है. भारत को जिन देशों के साथ रखा गया है उनमें और भारत की अर्थव्यवस्था में जमीन-आसमान का फर्क है. भारत जीडीपी के आधार पर दुनिया की सातवें स्थान की अर्थव्यवस्था है और जहां तक क्रय शक्ति क्षमता (परचेजिंग पावर पैरिटी) की बात है, भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है.

भारत की क्रय क्षमता या खरीदारी की ताकत का ही कमाल है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी कंपनियां भी भारतीय बाजार में अपना उत्पाद लाना चाहती हैं. नवीन औद्योगीकरण की सूची में शामिल भारत जी-20 देशों में से एक प्रमुख अर्थव्यवस्था है. ब्रिक्स देशों में भी इसकी अर्थव्यवस्था का एक खास स्थान है और पिछले दो दशकों से इसकी विकास दर 7 प्रतिशत बनी हुई है. महाराष्ट्र यहां का सबसे धनी राज्य है और अकेले उसकी  जीडीपी पाकिस्तान या पुर्तगाल से ज्यादा है. भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और 2014 के बाद से इसकी वृद्धि दर चीन से भी ज्यादा है. भारत ने अपनी यह विकास दर तब भी कायम रखी है जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी के बादल छाए हुए हैं.

1.25 अरब की जनसंख्या और विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले भारत की हाल की संवृद्धि तथा इसका विकास मौजूदा समय की अत्यंत उल्लेखनीय सफलताओं में से है. हाल के दशक में भारत के कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व क्रांति हुई है, जिसकी वजह से काफी समय से अनाज के लिए दूसरे देशों पर निर्भर यह देश कृषि के वैश्विक पॉवर हाउस में बदल गया है और आज अनाज का शुद्ध निर्यातकर्ता है. औसत आयु बढ़कर दोगुने से भी अधिक हो गई है, साक्षरता की दर में चौगुनी बढ़ोतरी हुई है, स्वास्थ्य-संबंधी परिस्थितियों में सुधार हुआ है और देश में अच्छे ख़ासे मध्य वर्ग का आविर्भाव हुआ है. आज भारत औषधियों, इस्पात, सूचना तथा अंतरिक्ष-संबंधी प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में विश्वस्तर की जानी-मानी कंपनियों का घर बन चुका है. आज इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी आवाज़ माना जाता है, जो इसके विशाल आकार और संभावनाओं के अनुरूप है.

देश की अर्थव्यवस्था में ऐसे बुनियादी बदलाव हुए हैं, जिससे  हम ग्लोबल स्तर पर एक मजबूत देश के रूप में उभर रहे हैं. जल्द ही भारत विश्व का सबसे विशाल और अत्यंत युवा श्रमशक्ति वाला देश बन जाएगा. साथ ही देश में तेजी से शहरीकरण हो रहा है. प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ लोग रोज़गार व अवसरों की तलाश में कस्बों और शहरों का रुख कर रहे हैं. यह इस सदी का विशालतम ग्रामीण और शहरी प्रवासन (माइग्रेशन) है. भारत अपनी श्रमशक्ति का किस तरह से विकास करता है और अपने बढ़ते हुए नगरों व कस्बों की संवृद्धि के लिए किस तरह की नई योजनाएं तैयार करता है – इन्हीं चीज़ों से आगामी समय में देश और इसके निवासियों का भविष्य निर्धारित होगा.

लोगों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करने, रिहायशी मकानों और बुनियादी सुविधाओं (इं़फ्रास्ट्रक्चर) का गठन करने के लिए ज़रूरी पूंजी निवेश की ज़रूरत होगी. भारत की 40 करोड़ से अधिक जनता यानी ग़रीबी के चंगुल में फंसे विश्व के एक-तिहाई ग़रीबों का उत्थान करना भारत के लिए चुनौती है. और, हाल में (अकेले 2005-2010 के बीच) ग़रीबी के चंगुल से छूटने वाले 5.3 करोड़ लोगों में से कइयों के दोबारा इसमें फंस जाने की आशंका है. वास्तव में जनसंख्या में वृद्धि होने से भारत के कुछेक सर्वाधिक ग़रीब राज्यों में पिछले वर्षों में ग़रीबों की कुल संख्या बढ़ी है.

राज्यों, जातियों तथा स्त्री-पुरुषों के बीच भेदभाव समेत सभी स्तरों पर मौजूद समस्त प्रकार की असमानताओं पर ध्यान देना होगा. भारत के सर्वाधिक ग़रीब राज्यों में ग़रीबी की दर अत्यंत विकसित राज्यों की तुलना में तीन से चार गुना अधिक है. जबकि भारत की वार्षिक औसत प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2011 में 1,410 थी (विश्व के मध्यम आय वर्ग के देशों में सर्वाधिक ग़रीब देशों के बीच स्थान) – उत्तर प्रदेश में, जिसकी जनसंख्या ब्राज़ील से भी अधिक है, यह मात्र 436 और भारत के सर्वाधिक ग़रीब राज्यों में से एक बिहार में केवल 294 थी. ऐसे वर्गों को मुख्य धारा में लाने की, जिससे ये आर्थिक संवृद्धि के लाभों का उपयोग कर सकें और महिलाओं को (विश्व की आधी जनसंख्या) अधिकारिता देने की ज़रूरत होगी, ताकि उन्हें देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने में अपना न्यायोचित स्थान मिल सके.

शिक्षा तथा कौशल विकास के स्तर को अधिकाधिक उन्नत करना पूरी दुनिया में समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण होगा. हालांकि प्राथमिक शिक्षा काफी हद तक सर्वव्यापी (यूनिवर्सलाइज़) हो चुकी है, अधिगम (लर्निंग) संबंधी परिणाम काफी नीचे हैं. काम करने की आयु वाली जनसंख्या का 10 प्रतिशत से भी कम माध्यमिक शिक्षा पूरी कर पाया है और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वालों में आज के बदलते रोज़गार बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने लायक जानकारी और कुशलता की कमी है.

स्वास्थ्य-संबंधी देखभाल भी समान रूप से महत्वपूर्ण होगी. हालांकि भारत के स्वास्थ्य-संबंधी संकेतकों में सुधार हुआ है, माताओं और बच्चों की मृत्यु दरें बहुत नीचे हैं और कुछ राज्यों में इनकी तुलना विश्व के सर्वाधिक ग़रीब देशों के आंकड़ों से की जा सकती है. भारत के बच्चों में कुपोषण विशेष रूप से चिंता का विषय है, जिनके कल्याण से भारत के प्रतीक्षित जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्रा़िफक डिविडेंड) का स्तर निर्धारित होगा. इस समय विश्व के कुपोषण का शिकार बच्चों का 40 प्रतिशत (21.7 करोड़) भारत में है.

देश की अवसंरचना-संबंधी आवश्यकताएं काफी अधिक हैं. तीन ग्रामवासियों में से एक की सभी मौसमों के दौरान खुली रहने वाली सड़क तक पहुंच नहीं है और पांच राष्ट्रीय राजमार्गों में से एक ही चार गलियारों वाला(फोर लेन) है. बंदरगाहों और हवाईअड्डों की क्षमता पर्याप्त नहीं है तथा रेलगाड़ियां बहुत धीरे चलती हैं. अनुमान है कि 30 करोड़ लोग राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से नहीं जुड़े हैं और जो जुड़े भी हैं उन्हें अक्सर आपूर्ति में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्र अभी छोटा है और पूरी तरह विकसित नहीं है.

दीर्घकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था के शानदार प्रदर्शन के पीछे यहां की युवा आबादी, बचत करने की प्रवृत्ति, बढ़िया निवेश दर और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ बेहतर सामंजस्य है. भारत में अगले तीन दशकों में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने के साथ आधी सदी में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है. भारत ने 2015-16 के दौरान विश्व बैंक के विकास मानदंड में 7.65 की वृद्धि दर के साथ सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और 2016-17 में इसके 8 प्रतिशत से ज्यादा रहने का अनुमान है. सेवा क्षेत्र में भी भारत 9 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है. स्टार्टअप के मामले में भी भारत की बादशाहत है और आगामी वर्षों में इसके विश्व की स्टार्टअप राजधानी बनने की प्रबल संभावना है. वर्तमान में स्टार्टअप के मामले में यह विश्व में चौथे स्थान पर है.

2014-15 के दौरान 3,100 तकनीकी स्टार्टअप स्थापित हुए. खेती उत्पादों में भी भारत का स्थान पूरी दुनिया में दूसरा है. भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग भी दुनिया में दूसरी स्थान पर है. यहां 21.48 मिलियन वाहनों का सालाना उत्पादन होता है. दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार के रूप में यहां 2015 में 600 बिलियन डॉलर का रिटेल बाजार कारोबार हुआ. इन सब प्रमाणों और परिस्थितियों को देखते हुए विश्व बैंक को इस वर्गीकरण पर पुनः विचार करना चाहिए, ताकि भारत की अर्थव्यवस्था का सही आकलन हो सके, वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के योगदान को और बढ़ाया जा सके और भारत के संबंध में सटीक नीतियां बनायी जा सके.

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