अमेरिकी जनता के फैसले पर मुहर लगाते हुए नोबेल समिति ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया. जबकि तब तक उन्होंने कोई महत्वपूर्ण कार्य भी नहीं किया था. उस समय मैंने लिखा था कि नोबेल पुरस्कार उनके अश्‍वेत होने की वजह से या फिर शायद जॉर्ज बुश की वजह से यूरोप की उकताहट के चलते दिया गया. वह बर्लिन, ओस्लो या काहिरा जहां भी गए, उन्होंने नाटकीय और लीक से हटकर भाषण दिए. 
barack-obamaयह कहानी एक जापानी जल्लाद की है, जो अत्यंत फुर्ती और महारथ के साथ कैदियों का सिर कलम करता था. एक दिन किसी कुलीन व्यक्ति का सिर कलम किया जा रहा था, जल्लाद ने जैसे ही तलवार घुमाई, तो उस व्यक्ति ने जल्लाद से कहा, तुम अपने कार्य में असफल रहे, क्योंकि मैं अब तक ज़िंदा हूं. जल्लाद ने जवाब दिया, महोदय, अगर मैं आपकी जगह होता, तो अपनी गर्दन नहीं हिलाता. अमेरिका में हाल में घोषित हुए उपचुनाव के नतीजे राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल पर एक निष्ठुर फैसला हैं. हालांकि, उनके प्रशासन पर इन नतीजों से कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन उनकी स्थिति अब काफी कमज़ोर हो गई है. अमेरिकी सीनेट से डेमोक्रेटिक पार्टी का नियंत्रण निर्णायक तौर पर समाप्त हो गया है. रिपब्लिकन पार्टी को सीनेट में बहुमत के लिए केवल 6 सदस्यों की आवश्यकता थी, लेकिन उसने इससे दोगुनी सीटें हासिल कीं. हाउस ऑफरिप्रेजेंटेटिव में डेमोक्रेट्स की स्थिति और भी ख़राब है. अपने कार्यकाल के बाकी बचे दो सालों में ओबामा का प्रशासन न केवल कमज़ोर होगा, बल्कि एक निष्क्रिय प्रशासन बन जाएगा.
ऐसा क्यों हुआ? जब 2008 में ओबामा ने जीत हासिल की थी, तो उन्हें एक चमत्कार के तौर पर देखा गया था. उनके शपथ ग्रहण के समय लाखों लोग वाशिंगटन डीसी में एकत्र हुए थे. उनमें केवल अश्‍वेत ही नहीं, बल्कि अमेरिका के हर तबके के लोग शामिल थे. अमेरिका एवं दुनिया के दूसरे देशों में आर्थिक मंदी और लेहमन बंधुओं के दिवालिया हो जाने के बावजूद उम्मीद का वातावरण बना हुआ था. दरअसल, लोग उनसे 1933-40 में लागू हुई न्यू डील जैसी किसी घोषणा की अपेक्षा कर रहे थे. एक अश्‍वेत व्यक्ति का राष्ट्रपति चुना जाना अमेरिकियों के लिए बोनस की तरह था. यदि निर्वाचित राष्ट्रपति अश्‍वेत नहीं, तो कम से कम एक मिश्रित वंश से ज़रूर संबंधित थे. उनके नाम में मुस्लिम शब्द भी शामिल था. उनके पिता कीनिया के रहने वाले थे और मां लंबे समय तक इंडोनेशिया में रही थीं. शायद वह पहले ग्लोबल अमेरिकी थे, जो राष्ट्रपति बने थे. वह विधि के बहुत ही काबिल प्रोफेसर थे. वह एक आकर्षक पत्नी के पति और ख़ूबसूरत बेटियों के पिता हैं.

ओबामा के बारे में केवल यही कहा जा सकता है कि वह जीतने के लिए प्रभावी प्रचार तो कर सकते हैं, लेकिन नीतियों को कैसे लागू करना है, उन्हें नहीं मालूम. ऐसा करने के लिए अमेरिकी शासन व्यवस्था में एक हाथ से लेने और दूसरे हाथ से देने की प्रथा है. जॉन एफ कैनेडी एक आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, लेकिन वह कांग्रेस का भरोसा नहीं जीत सके.

अमेरिकी जनता के फैसले पर मुहर लगाते हुए नोबेल समिति ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया. जबकि तब तक उन्होंने कोई महत्वपूर्ण कार्य भी नहीं किया था. उस समय मैंने लिखा था कि नोबेल पुरस्कार उनके अश्‍वेत होने की वजह से या फिर शायद जॉर्ज बुश की वजह से यूरोप की उकताहट के चलते दिया गया. वह बर्लिन, ओस्लो या काहिरा जहां भी गए, उन्होंने नाटकीय और लीक से हटकर भाषण दिए. धीरे-धीर लोगों को लगने लगा कि ओबामा ने वादे तो बहुत किए, लेकिन पूरे बहुत कम किए. उन्होंने ग्वांतनामो-बे जेल बंद करने की बात की, लेकिन उनकी इस कोशिश को नाकाम बना दिया गया. अमेरिकी मुद्रा डॉलर की सेहत सुधारने की उनकी कोशिश भी कारगर साबित नहीं हो सकी. फेडरल रिज़र्व के चेयरमैन बेन बर्नान्क को अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए अचानक सेंट्रल बैंक से कई ट्रिलियन डॉलर की निकासी करनी पड़ी. इस मुद्दे पर कांग्रेस में मतभेद था, जो नीति निष्क्रियता का कारण बना. उनकी स्वास्थ्य नीति को लेकर रिपब्लिकन्स ने सदन में अपनी ज़बरदस्त नाराज़गी ज़ाहिर की थी. स्वास्थ्य नीति, जिसे ओबामा-केयर के नाम से जाना जाता है, जो शायद उनके कार्यकाल के बाद भी जारी रहे, को लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन पर नस्ल भेदी टिप्पणियां भी कीं. दरअसल, अमेरिकी सियासत से रंगभेद लगभग समाप्त हो चुका था.
उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान इराक युद्ध की आलोचना की थी, लेकिन अफगानिस्तान युद्ध में खुद को उलझा कर दो गलतियां कीं. पहली यह कि उन्होंने पद संभालते ही सेना वापस नहीं बुलाई और दूसरी यह कि जब सेना वापस बुलाई गई, तब तक वहां के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ था. हालांकि, काहिरा में उन्होंने अपने भाषण में मुस्लिम देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों में नई शुरुआत के संबंध में कुछ उत्साहवर्द्धक बातें कही थीं, लेकिन फिलिस्तीनियों की हालत सुधारने के लिए उन्होंने कुछ भी नहीं किया. उनकी केवल एक उपलब्धि हो सकती है कि ओसामा बिन लादेन उनकी निगरानी में मारा गया. लेकिन, इसके बावजूद वह दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे. वर्ष 2012 में उनका चुनाव प्रचार 2008 की तरह अलग और अनोखा था. उन्होंने फंड इकट्ठा करने के लिए अनोखे तरीके अपनाते हुए सोशल मीडिया और कार्यकर्ताओं के बड़े समूह को इस काम में लगाया. लोगों को उनके भाषण उत्साही, भावुक एवं मज़ेदार लगते थे. दूसरे कार्यकाल के लिए उनकी जीत ने रिपब्लिकन पार्टी को कुछ समय के लिए हतोत्साहित कर दिया था, लेकिन अचानक ये चुनाव आ गए, जिनमें रिपब्लिकन पार्टी के पास मिट रोमनी जैसा कोई राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं था, लिहाज़ा बाजी पलट गई.
बहरहाल, ओबामा के बारे में केवल यही कहा जा सकता है कि वह जीतने के लिए प्रभावी प्रचार तो कर सकते हैं, लेकिन नीतियों को कैसे लागू करना है, उन्हें नहीं मालूम. ऐसा करने के लिए अमेरिकी शासन व्यवस्था में एक हाथ से लेने और दूसरे हाथ से देने की प्रथा है. जॉन एफ कैनेडी एक आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, लेकिन वह कांग्रेस का भरोसा नहीं जीत सके. लिंडन जॉनसन को यह मालूम था कि परिणाम कैसे प्राप्त किए जाते हैं. जिमी कार्टर ईमानदार व्यक्ति थे, लेकिन राष्ट्रपति के तौर पर उनका प्रदर्शन निराशाजनक था. कार्टर, जॉर्ज वाशिंगटन की तरह अनुभवी नहीं थे, न ही उनमें नीतिगत फैसले लेने की क्षमता थी. कैनेडी को जहां एक तरफ़ सीनेटर के तौर पर बहुत कम अनुभव था, वहीं उनका प्रशासनिक अनुभव न के बराबर था. चुनाव जीतना अलग बात है और एक शासक के तौर पर अपने फैसलों से नतीजे हासिल करना अलग.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here