brekgitअब सभी को पता चल गया है कि ब्रिटेन की अगली प्रधानमंत्री एक महिला होंगी. कंजरवेटिव पार्टी की संसदीय दल की दो दौर की वोटिंग के बाद तीन पुरुष उम्मीदवार प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर हो गए. हालांकि दो उम्मीदवार तो पहले ही दौर में बाहर हो गए थे, जबकि तीसरे उम्मीदवार मिशेल गोव, जो ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर हो जाने (ब्रेक्जिट) के बड़े प्रचारकों में से थे, दूसरे दौर में जाकर बाहर हुए. जब बोरिस जॉनसन अपनी उम्मीदवारी का ऐलान करने वाले थे, तभी उनके मित्र गोव ने उनके साथ विश्वासघात किया इसलिए वे ब्रिटिश लोगों में गैर भरोसेमंद समझे जाने लगे थे. इसके बाद केवल दो महिला उम्मीदवार ही मैदान में रह गई थीं. इनमें थेरेसा मे को दो तिहाई वोट मिले, जबकि एंड्रिया लीड्सम को एक चौथाई. थेरेसा मे अनुभवी राजनेता हैं. वे कंजरवेटिव पार्टी की चेयरपर्सन और छह साल तक गृह मंत्री (गृह सचिव) रह चुकी हैं. यह हालिया दौर में किसी गृह मंत्री का सबसे लंबा कार्यकाल रहा है. लीड्‌सम की अभी बतौर नेता ठीक से परख नहीं हुई है. हालांकि वे 2010 से संसद में हैं, लेकिन वे केवल एक जूनियर मंत्री रही हैं.

अब पार्टी के साधारण सदस्यों को इन दो महिला नेताओं में से किसी एक को अपना नेता चुनना है जो यूनाइटेड किंगडम की अगली प्रधानमंत्री होंगी. लीड्सम के मैदान से हट जाने के बाद अब थेरेसा मे का प्रधानमंत्री बनना तय हो चुका है. ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर आने (ब्रेक्जिट) के पक्ष में टोरी पार्टी के सदस्यों में ज़बरदस्त रुझान था. इसलिए एक कम अनुभव वाला उम्मीदवार जीत जाए, इसकी गुंजाइश कम ही थी.

जैसी अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति 24 जून के बाद (ब्रेक्जिट के जनादेश के बाद) देखने को मिली, वैसी स्थिति मैंने पिछले 51 वर्षों के अपने ब्रिटेन प्रवास के दौरान कभी नहीं देखी थी. हम कह सकते हैं कि हमारे यहां एक प्रधानमंत्री था जिसने जनमत संग्रह के नतीजे आने के बाद अपने इस्तीफे की घोषणा कर(लेकिन नए नेता के चुनाव तक पद पर बने रहने का फैसला कर) खुद को पंगु बना लिया. इसका नतीजा यह हुआ कि जब तक कोई नया नेता प्रधानमंत्री पद संभाल नहीं लेता, तब तक ब्रेक्जिट के संबंध में कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता. उम्मीद है कि नई सरकार सितंबर के शुरू में अपना कार्यभार संभाल लेगी, लिहाज़ा दो महीने तक यहां कोई सीरियस सरकार नहीं रहेगी. हालांकि इस स्थिति का एहसास यहां की सड़कों पर नहीं दिखेगा. यहां ब्रिटिश लोगों की ज़िन्दगी अपने सामान्य रफ़्तार से चलती रहेगी, लेकिन ये भी तय है कि इस दौरान सियासी दुनिया में अव्यवस्था बनी रहेगी. ऐसी स्थिति में कोई दूसरा देश अस्थिरता का शिकार हो जाता, लेकिन बहुत पुराना देश होने के कारण ब्रिटेन मेंं ऐसी स्थिति पैदा नहीं होगी.

दरअसल ब्रेक्जिट वोटिंग, जिसे बेशक जनमत संग्रह कहा जाना चाहिए, की उत्पत्ति कंजरवेटिव पार्टी के हालिया इतिहास में छुपी हुई है. उस दौरान मार्गरेट थैचर के नेतृत्व को यूरोप-हिमायती सांसद मिचेअल हेसेलटाइन ने 1990 में चुनौती दी थी. थैचर पहले राउंड में पर्याप्त वोट हासिल करने में नाकाम रही थीं. उन दिनों विजेता पक्ष को अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से 10 प्रतिशत अधिक वोट हासिल करना होता था. नतीजा यह हुआ कि उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था.

उसके बाद से थैचर के समर्थक टोरी (कंजरवेटिव) यूरोप से ऩफरत करने लगे थे. इस झगड़े ने जॉन मेजर को बहैसियत एक कमजोर प्रधानमंत्री बना दिया. इसका खामियाजा पार्टी को लगातार तीन पराजय के रूप में भी भुगतना पड़ा. इसके बाद वर्ष 2005 में डेविड कैमरन ने कंजरवेटिव पार्टी को जीत दिलाई.

पार्टी को टूटने से बचाने के लिए कैमरन ने जनमत संग्रह का आदेश दिया था. दरअसल यह फैसला एक जुआ था और इसमें वे हार गए. अब कोई नहीं जानता कि नई सरकार बन जाने के बाद भी पार्टी टूटने से बच पाएगी या नहीं. पार्टी में आपसी रंजिश और वैचारिक मतभेद अब इतने बढ़ गए हैं कि यहां शांति की संभावना कम ही दिखती है.

यह बदलाव का क्षण है. जल्द ही नए नेता को यूके के ईयू से बाहर जाने की वार्ता के लिए अपनी रणनीति तैयार करनी होगी. उम्मीद है कि इसमें कम से कम दो साल का समय लगेगा. फिर इसके बाद वैकल्पिक उपाय की तलाश में भी कम से कम दो साल का समय लगना तय है. वर्ष 2020 में जाकर हमें पता चल पाएगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं. दरअसल इस तरह का जुआ केवल ब्रिटिश ही खेल सकते हैं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here