तिरंगा ख़फ़ा है ग़ज़ल कह रहा है सुनो हिंद वालों |

मुहाफ़िज ही अपने वतन का उदू है हुकूमत पे थू है।

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ये मज़्लूम के ज़ेर-ए-पा जो लहू है हुकूमत पे थू है।
लहू हू-ब-हू जा-ब-जा कू-ब-कू है हुकूमत पे थू है।

तिरंगा ख़फ़ा है ग़ज़ल कह रहा है सुनो हिंद वालों।
मुहाफ़िज ही अपने वतन का उदू है हुकूमत पे थू है।

वो जिस हाथ को ज़िद है तितली के पर और कलियों को मसले।
उसी हाथ में बाग़ की आबरू है हुकूमत पे थू है।

उधर अंधा क़ानून क़ातिल को मुंसिफ़ बनाये हुए है।
इधर बेक़सूरों का बहता लहू है हुकूमत पे थू है।

रियाया की चीख़ें भला कैसे संसद भवन को सुनायें।
वहाँ शोर है बेसबब गुफ़्तगू है हुकूमत पे थू है।

वो मजबूर ग़ुरबत के मारे मुसाफ़िर मरे जा रहे हैं।
सबब भूक है प्यास है और लू है हुकूमत पे थू है।

ख़ुदा ख़ैर करना की हर सिम्त है अब दुशासन का शासन।
रियाया बनी द्रौपदी रु-ब-रु है हुकूमत पे थू है।

इधर हुक्मरॉ झूठ ओढ़े बिछाये चला जा रहा है।
उधर दाँव पर मुल्क की आबरू है हुकूमत ए थू है।

‘विजय’ जानता हूँ कि सच बोलने पर मेरी मौत होगी।
मगर याद रखना मेरे बाद तू है हुकूमत पे थू है।

जा ब जा-जगह जगह,    कू ब कू-गली गली,    उदू-दुश्मन,   रियाया-जनता

|| विजय तिवारी’विजय’ ||

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