यह आज की पीढ़ी को शायद ही पता हो कि डॉ. लोहिया अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाते थे क्योंकि उसी दिन दिन शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर में फांसी दी गयी थी।

भारत में समाजवादी विचारधारा को एक आन्दोलन का स्वरूप प्रदान करने तथा उसे प्रभावी रीति से प्रचारित करने वाले चितकों में डॉ. राममनोहर लोहिया का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। वे एक गांधीवादी चिन्तक राजनीतिक , इतिहासकार , अर्थशास्त्री दार्शनिक तथा विख्यात लेखक थे। जीवन के प्रायः सभी पक्षों पर उन्होने गहन चिन्तन किया तथा भारतीय परिस्थितियों में इसे व्यावहारिक बनाने के उपायों का सफलतापूर्वक आजीवन अन्वेषण किया। डॉ. लोहिया गांधीवादी थे लेकिन उनके विचारों में उग्रता थी। वे क्रान्तिकारी थे लेकिन उनके विचारों में असाधारण रचनात्मकता थी। वे एक विख्यात एवं सक्रिय राजनीतज्ञ थे , किन्तु उनकी शैली एवं कार्यो में सिद्धान्तों के प्रति असाधारण लगाव था। उन्होने समाजवाद के महान उददेश्यों की भारतीय संदर्भो में व्याख्या की तथा उसे व्यावहारिक बनाया।


डॉ. राममनोहर लोहिया पर मार्क्सवाद एवं गाँधीवाद दोनों का बहुत गहरा प्रभाव था। उन्होने अपनी निराली शैली में इन दोनों महान विचारधाराओं के प्रमुख सिद्धांतों की व्याख्या की तथा उनमें समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। मुक्त चिन्तन , निर्भीकता , मौलिकता और अनूठा समन्वयवाद उनके व्यक्तित्व की सहज विशेषताऐं थी। इन्ही के आधार पर उन्होने एक नई समाजवादी व्यवस्था का स्वप्न देखा था। उन्होने आधुनिक सभ्यता को स्वीकार किया किन्तु उसमें भी सुधार करते हुए उसे और अधिक आधुनिक बनाने का प्रयास किया। डॉ . लोहिया शांतिवादी होते हुए भी प्रबल विद्रोही और महान क्रान्तिकारी थे। आधुनिक भारत को इसी की आवश्यकता है।

निरंकुश शासन का विरोध
डॉ . लोहिया को निरंकुश शासन स्वीकार्य नहीं था। वे आर्थिक एवं राजनीतिक विकेन्द्रीकरण के समर्थक थे। वे आर्थिक एवं राजनीतिक सत्ता को राज्य , प्रांत , जिला तथा ग्राम स्तर पर बांटकर चैखम्बा राज्य की स्थापना करना चाहते थें
कहा जाता है कि बिहार आंदोलन के समय यदि लोहिया जिन्दा होते तो आंदोलन कि परिणीति कुछ और होती पर शायद नियति

ऐसे महान मानव को नमन

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