tuticorinतूतीकोरन संयंत्र को चालू करने के कुछ महीनों के भीतर ही जिला प्रशासन और टीएनपीसीबी को सार्वजनिक शिकायतें मिलनी शुरू हो गई थीं. धीरे-धीरे लोग प्रदूषण से रक्षा के लिए एकजुट होने लगे. 20 अगस्त, 1997 को, स्टरलाइट कारखाना स्थित तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के उप-स्टेशन के कर्मचारियों ने संयंत्र से निकलने वाले धुएं के कारण सिरदर्द, खांसी और दम घुटने की शिकायत की. 5 मई, 1997 को, स्टरलाइट के पास एक निर्माण इकाई में महिला श्रमिक बीमार पड़ गई और कई लोग स्टरलाइट में गैस रिसाव के कारण बेहोश हो गए, लेकिन फिर भी, टीएनपीसीबी ने कंपनी को क्लीन चिट दे दी.

तूतीकोरन में विवादास्पद स्टरलाइट कॉपर का दो दशकों से अधिक समय से स्थानीय लोग सार्वजनिक रूप से विरोध करते आ रहे हैं. स्थानीय लोगों को डर है कि चार लाख मीट्रिक टन क्षमता का धातु गलाने वाला हानिकारक प्रदूषण उनके लिए खतरनाक होगा. उन्हें सांस लेने की समस्या से ले कर कैंसर तक से पीड़ित होना होगा, बल्कि हो भी रहे हैं.

अनिल अग्रवाल के वेदांता समूह के स्वामित्व वाले स्टरलाइट  को आरोपों के बाद 2013 में अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था. लेकिन बाद में अदालत ने काम शुरू करने का आदेश दे दिया. हालांकि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ईके पलानि स्वामी इस मुद्दे की उचित जांच के बिना संबंधित मुद्दों को खारिज नहीं कर सकते हैं. अगर उन्होंने समय रहते कुछ किया होता तो एक दर्जन से अधिक निर्दोष नागरिकों का जीवन खत्म नहीं होता.

जाहिर है, उन हत्याओं की जांच होनी चाहिए और पूरी ईमानदारी से जांच होनी चाहिए. मुख्यमंत्री का जवाब है कि राज्य कानूनी माध्यम से स्टरलाइट संयंत्र को बंद करने के लिए कदम उठा रहा है. ये कदम अपर्याप्त है और इसमें बहुत देर हो चुकी है.

यह राज्य का कर्त्तव्य है कि इस तथ्य को सुनिश्चित करे कि पर्यावरण कानूनों का कठोर अनुपालन हो, ताकि फैक्ट्री के आसपास प्रदूषण न फैले. अनिल अग्रवाल, जो संयंत्र को फिर से चलाने और विस्तार करने पर जोर दे रहे हैं, उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र के अनुरूप काम करना सीखना चाहिए. ओड़ीशा के  नियामगिरी में बॉक्साइट खनन परियोजना समेत कई कंपनियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का स्थानीय लोगों ने जोरदार विरोध किया था. 24 मार्च, 2018 को हजारों स्थानीय निवासियों का इस दक्षिण भारतीय तटीय शहर की सड़कों पर सैलाब सा आ गया था. लोगों ने स्टरलाइट कॉपर कंपनी के संचालन को तत्काल बंद करने की मांग की थी. जनभावना सिर्फस्टरलाइट के खिलाफ ही नहीं, बल्कि जिला प्रशासन, पुलिस और तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के खिलाफ भी थी. गौरतलब है कि ये कारखाना 1998 में स्थापित किया गया था.

इस प्लांट के विरोध में व्यापारियों की एसोसिएशन ने भी अपने सभी सदस्यों को एक दिन के लिए अपने शटर डाउन करने का आह्वान किया था. मछुआरें, चालक, ऑटो रिक्शा यूनियन, मिनी बस ड्राइवर, चाय स्टॉल विक्रेताओं ने तुरंत इसका समर्थन किया. यदि इतने सारे लोग विरोध में थे, तो इसका मतलब समझा जा सकता है कि कैसे वहां के निवासी इस प्लांट से प्रभावित थे. इससे समझा जा सकता था कि सार्वजनिक क्रोध का स्तर क्या था. लेकिन, सरकार जनता क एगुस्से को समझ नहीं पाई. जाहिर है, सरकार को स्टरलाइट के इतिहास और गंभीर प्रदूषण की समस्या को जनता के गुस्से के आईने में देखना चाहिए था, जो उसने नहीं देखा. इस पूरे प्रकरण का खलनायक सिर्फ स्टरलाइट ही नहीं, बल्कि तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण और वन मंत्रालय भी रहा, जो नियमों को लागू करवाने में असफल रहा.

स्टरलाइट क्या है?

स्टरलाइट स्थानीय रूप से इस रूप में जाना जाता है कि 1200 टन प्रति दिन, 400,000 टन प्रति वर्ष तांबा धातु गलाने वाली कंपनी है. ये वेदांता लिमिटेड की एक व्यावसायिक इकाई है, जो लंदन स्थित वेदांता रिसोर्सेज पीएलसी की सहायक कंपनी है. इसके मालिक अनिल अग्रवाल ने खुद को एक चतुर और आक्रामक व्यवसायी के रूप में स्थापित किया है, जिन्होंने बिहार से स्क्रैप डीलर के रूप में काम शुरू कर संपत्ति बनाई है. 2017 में, उनकी शुद्ध संपत्ति 3.3 अरब डॉलर (21,485 करोड़ रुपये) था. वेदांता माइनिंग गैर-लौह धातुओं – तांबा, जस्ता और एल्यूमीनियम को परिष्कृत करने में माहिर हैं.

जब विवादों में घिरे

1992 में, महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम द्वारा स्टरलाइट को 500 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी, जो प्रति वर्ष 60,000 टन तांबा गलाने वाला और रत्नागिरी के तटीय जिले में संबंधित सुविधाओं की स्थापना के लिए आवंटित की गई थी. 15 जुलाई, 1993 को रत्नागिरी के जिला कलेक्टर ने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (इंडिया) लिमिटेड को एक पत्र भेजा, जिसमें कंपनी को  योजनाबद्ध धातु गलाने वाले प्लांट निर्माण कार्य को निलंबित करने के लिए कहा. स्थानीय लोगों द्वारा एक साल तक आंदोलन किया गया और धातु गलाने से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए सरकार ने एक समिति की नियुक्ति की. समिति ने पाया कि ऐसे उद्योग क्षेत्र के नाजुक तटीय पर्यावरण को खतरे में डाल देंगे.

गैस से होने लगी परेशानी

तूतीकोरन संयंत्र को चालू करने के कुछ महीनों के भीतर ही जिला प्रशासन और टीएनपीसीबी को सार्वजनिक शिकायतें मिलनी शुरू हो गयी थी. धीरे-धीरे लोग प्रदूषण से रक्षा के लिए एकजुट होने लगे. 20 अगस्त, 1997 को, स्टरलाइट कारखाना स्थित तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के उप-स्टेशन के कर्मचारियों ने संयंत्र से निकलने वाले धुएं के कारण सिरदर्द, खांसी और दम घुटने की शिकायत की. 5 मई, 1997 को, स्टरलाइट के  पास एक निर्माण इकाई में महिला श्रमिक बीमार पड़ गईं और कई लोग स्टरलाइट में गैस रिसाव के कारण बेहोश हो गए, लेकिन फिर भी, टीएनपीसीबी ने कंपनी को क्लीन चिट दे दी. 2 मार्च 1999 को, स्टरलाइट  के पास ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन के 11 श्रमिकों ने गैस रिसाव के कारण परेशानी की शिकायत की और उनको अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. टीएनपीसीबी और जिला प्रशासन एक बार फिर स्टरलाइट के बचाव में आया और कंपनी को क्लीन चिट दे दी. इतना ही नहीं, टीएनपीसीबी ने स्टरलाइट को सालाना 40,000 टन से सालाना 70,000 टन क्षमता की अनुमति दे दी.

तूतीकोरन निवासियों ने 21 नवंबर, 24 नवंबर और 12 दिसंबर, 2000 को भारी बारिश के बाद वर्षा जल के साथ स्टरलाइट के विषाक्त अपशिष्ट जल मिलने के बारे में टीएनपीसीबी से शिकायत की. स्टरलाइट के विषाक्त अपशिष्ट जल से स्थानीय पानी भी दूषित हो गया. 21 सितंबर, 2004 को सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी (एससीएमसी) ने स्टरलाइट का निरीक्षण किया. टीम ने स्टरलाइट की हाउसकीपिंग को कमजोर पाया और सिफारिश की कि कंपनी के प्रस्तावित विस्तार के लिए प्रतिदिन 391 से 900 टन प्रति दिन (300,000 टन प्रति वर्ष) उत्पादन क्षमता को पर्यावरणीय मंजूरी दी जानी चाहिए. यह भी पाया गया कि प्रस्तावित विस्तार के हिस्से के रूप में सूचीबद्ध कई संयंत्र को पहले ही बनाया जा चुका था. समिति ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को विभिन्न पर्यावरणीय कानूनों के तहत उचित कार्रवाई करने के निर्देश दिए.

22 सितंबर, 2004 को समिति के निरीक्षण के एक दिन के भीतर, पर्यावरण और वन मंत्रालय ने उस संयंत्र के लिए स्टरलाइट को पर्यावरणीय मंजूरी जारी की, जिसका निर्माण पहले से ही शुरू हो चुका था. 16 नवंबर, 2004 को टीएनपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट जमा की. इसने पुष्टि की कि कंपनी अनियमित उत्पादन में लगी हुई है. इस साल 70,000 टन की अनुमति क्षमता के मुकाबले 1,64,236 टन उत्पादन हुआ था. यह पाया गया कि तांबा धातु गलाने वाला, रिफाइनरी, सल्फ्यूरिक एसिड प्लांट, फॉस्फोरिक एसिड प्लांट, कन्वर्टर्स समेत संपूर्ण फैक्ट्री कॉम्प्लेक्स पूरा होने के विभिन्न चरणों में था. अक्टूबर 2004 में पर्यावरण मंजूरी जारी की गई और अक्टूबर में ही सल्फ्यूरिक एसिड संयंत्र पूरा हो गया था. इन संयंत्रों में से किसी ने भी टीएनपीसीबी से कोई निर्माण लाइसेंस प्राप्त नहीं किया था.

प्रदूषण जारी रहा

23 मार्च, 2013 को तूतीकोरन शहर में दम घुटने, खांसी, आंखों की जलन, गर्भपात जैसी गंभीर समस्याओं की शिकायत लोगों ने की. 29 मार्च, 2013 को वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम के उल्लंघन का हवाला देते हुए इसे बंद करने का आदेश दिया गया था. 23 मार्च, 2013 को स्टरलाइट के सल्फ्यूरिक एसिड प्लांट की चिमनी पर वायु प्रदूषण मापने वाले उपकरण के जरिए पता चला कि सल्फर डाइऑक्साइड  स्तर अनुमति प्राप्त सीमा से लगभग तीन गुना अधिक था.

1998, 1999, 2003 और 2005 की एनईईआरआई रिपोर्टों से पता चलता है कि संयंत्र ने उत्सर्जन के माध्यम से पर्यावरण को प्रदूषित किया था, जो टीएनपीसीबी द्वारा वायु अधिनियम के तहत और प्रदूषण के निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं था और यह जल अधिनियम के तहत टीएनपीसीबी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं था. टीएनपीसीबी ने कुछ समय के लिए लिए काम करने की सहमति को नवीनीकृत नहीं किया था, फिर भी स्टरलाइट नवीनीकरण के बिना अपने संयंत्र का संचालन जारी रखे हुए था. 1997 से 2012 तक पर्यावरण के कारण होने वाले नुकसान और लंबी अवधि तक वैध नवीनीकरण के बिना संयंत्र संचालन करने के लिए कंपनी को नुकसान का भुगतान करना चाहिए.

हर घर में एक बीमार व्यक्ति है

तूतीकोरन शहर और आसपास के गांवों के निवासी अपने पानी और हवा को प्रदूषित करने के लिए कारखाने को दोषी ठहराते हैं, जिससे स्वास्थ्य समस्याओं की एक श्रृंखला का निर्माण होता है. 25 वर्षीय एस पासुपथी ने अपने दो साल के बेटे हरीश को चार अलग-अलग दवाई दे रहे है, जो लगातार छाती के संक्रमण से पीड़ित हैं. उनको और सेल्वा राज, जो तमिलनाडु के तूतीकोरन में एक वेल्डर है, को अपने बच्चे को हर हफ्ते अस्पताल ले जाने होता है. वे लोग अपने उपचार और दवाओं पर 1000 रुपये खर्च कर रहे हैं. एक वर्ष पहले तक वह ठीक था. पासुपथी कहते है कि बच्चे को वह अपनी  गोद  में अस्पताल ले जाता है.

डॉक्टरों का कहना है कि स्टरलाइट संयंत्र के आसपास रहने से समस्या गंभीर हो जा रही है, लेकिन डॉक्टर ये बात छाती संक्रमण के कारण के रूप में नहीं लिखते हैं. स्टरलाइट एक घनी आबादी वाले क्षेत्र में दुनिया का सबसे विशाल धातु गलाने वाले कंपनी को विस्तारित करने की योजना बना रहा है. 2015 की परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट के मुताबिक, 4.6 लाख से अधिक लोग इसके आसपास रहते है. दो दशकों से तूतीकोरन में एक्टिविस्ट इस क्षेत्र की वायु और जल संसाधनों को दूषित करनेकी वजह स्टरलाइट बताते है. पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट के अनुसार, धातु गलाने वाला मुख्य प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड और कण पदार्थ हैं.

संयंत्र के आसपास रहने वाले लोगों ने कहा कि वे शुरुआत में इसके हानिकारक प्रभाव से अंजान थे, लेकिन उन्हें अपने बीमार स्वास्थ्य के मुख्य कारण का अब पता चल गया है. सेल्वा राज कहते है कि हमारे गांव के हर घर में, कम से कम कुछ लोग किसी प्रकार की बीमारी से पीड़ित हैं. बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इस साल जनवरी में, जब उन्होंने सुना कि स्टरलाइट एक और संयंत्र स्थापित कर धातु गलाने की क्षमता को दोगुना करने की योजना बना रहा है, तो उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा का भय और मजबूत हो गया. उन्होंने आंदोलन शुरू किया. वे कुमाररेयपुरम गांव में रहते है, जो संयंत्र से काफी नजदीक है. दो महीने के दौरान ही उनके समर्थन में काफी लोग आ गए. इन लोगों ने सरकार से संयंत्र बंद करने की मांग की.

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