एक दिन स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मन्दिर शाहजहांपुर में बिस्मिल के पास किसी काम से गये। अशफाक उस वक्त शायराना मूड में थे और अचानक जिगर मुरादाबादी की चंद लाइनें गुनगुनाने लगे लाइनें थीं-
“कौन जाने ये तमन्ना इश्क की मंजिल में है,
जो तमन्ना दिल से निकली फिर जो देखा दिल में है।।”

क्यों राम भाई! मैंने मिसरा कुछ गलत कह दिया क्या?

बिस्मिल सुन कर मुस्कुरा दिए, अशफाक को अटपटा लगा और कहा,’क्यों राम भाई! मैंने कुछ गलत कह दिया क्या?’ बिस्मिल ने जबाब दिया- नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया! यह बात नहीं। मैं जिगर साहब की बहुत इज्जत करता हूं मगर उन्होंने मिर्ज़ा गालिब की पुरानी जमीन पर घिसा पिटा शेर कहकर कौन-सा बडा तीर मार लिया, कोई नयी रंगत देते तो मैं भी इरशाद कहता।

उस वक्त अशफाक को कुछ अच्छा नहीं लगा और चुनौती भरे अंदाज में कहा,
“तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी उच्च दर्जे की है
बिना कुछ बोले राम प्रसाद बिस्मिल’ ने कहा-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजु ए-कातिल में है

इस मस्ती , दीवानगी और भाव से लड़े ये दीवाने !

जुबाने-हाल से अशफ़ाक़ की तुर्बत ये कहती है,
मुहिब्बाने-वतन ने क्यों हमें दिल से भुलाया है?

बहुत अफसोस होता है बडी़ तकलीफ होती है,
शहीद अशफ़ाक़ की तुर्बत है और धूपों का साया है!

जिन्दगी वादे-फना तुझको मिलेगी ‘हसरत’,
तेरा जीना तेरे मरने की बदौलत होगा।

कहते हैं ये उनकी आखिरी तस्वीर है जो श्री गणेश शंकर विद्यार्थी ने खराब तबियत के बावजूद कानपुर से लखनऊ जा कर इस शहीद की अंतिम यात्रा के दौरान जिद कर खिंचवाई थी !
शत शत नमन 💐

Adv from Sponsors