नितिन गडकरी दरअसल देश को ये बता रहे थे कि देश में जितनी आशा जगी है, वो इसलिए जगी है क्योंकि हमने इतने ज्यादा वादे कर लिए और हमें पता ही नहीं था कि केंद्र में हमारी सरकार बनेगी. महाराष्ट्र का चुनाव देश का भविष्य बदलने वाला चुनाव नहीं था. भाषाओं के ऊपर लोगों को रिझाने का चुनाव नहीं था. वो चुनाव 2014 का आम चुनाव था, जिससे केन्द्र में सरकार बदली. इसलिए अब गडकरी जी का ये कहना कि मेरे बयान को संदर्भ से अलग हटकर देखा गया, गले नहीं उतरता. गले सिर्फ इतना उतरता है कि उन्होंने एक सच्चाई बयान की कि हमने जब जैसा मौका पाया, देश के हर आदमी से ऐसे वादे किए, जिससे वो खुश हो गया. अचानक किए गए इन वादों से देश के लोगों ने उन्हें वोट दे दिया और उनकी सरकार बन गई. जब सरकार बन गई, तो उन्हें यह समझ में नहीं आया कि सरकार चलाएं कैसे.


gadkariनितिन गडकरी जी द्वारा एक मराठी टीवी चैनल से की गई मशहूर बातचीत पूरे देश में चर्चा का विषय बनी. उस बातचीत में नितिन गडकरी ने कहा है कि हमें ये भरोसा नहीं था कि हम चुनाव जीतेंगे, इसलिए हमें ये राय मिली कि जितने तरह के वादे हो सकते हैं, वो वादे हम देश की जनता से करें. जब ये बातचीत सबके सामने आई, तो इसकी आलोचना शुरू हुई और इसपर बहस शुरू हुई. इसके बाद तत्काल नितिन गडकरी जी का एक खंडन आया कि उस बातचीत को संदर्भ से अलग हटकर देखा जा रहा है.

इसका क्या संदर्भ है, ये हमने जानने की कोशिश की. नितिन गडकरी उन व्यक्तियों में आते हैं, जो साहस भी रखते हैं, हिम्मत भी रखते हैं और साफ-साफ बोलते भी हैं. उन्होंने अपने मंत्रालय को चुस्त-दुरुस्त बनाया है, ताकि देश को लगे कि अगर कोई एक मंत्रालय काम कर रहा है, तो वो नितिन गडकरी जी का सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय है. अब प्रधानमंत्री जी ने उन्हें गंगा सफाई का भी काम सौंप दिया है. इस काम में वे कितना सफल हो पाएंगे, यह तो बाद में पता चलेगा.

लेकिन उन्होंने साफ-साफ बात की और ये कहा कि उनकी बात को उनके संदर्भ से अलग काटकर देखा जा रहा है, जो उचित नहीं है. उन्होंने इसका जिक्र महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का नाम लेकर किया. लेकिन महाराष्ट्र का चुनाव तो लोकसभा चुनाव के बाद हुआ था. सारे वादे तो लोकसभा चुनाव में किए गए थे, लोगों की आशाएं लोकसभा चुनाव से जगी थीं.

चाहे वो पाकिस्तान से सम्बन्धित बातचीत हो, रोजगार, गंगा सफाई, डीजल-पेट्रोल की कीमतें कम करने, धारा 370 खत्म करने, राम मंदिर बनाने, गौ हत्या रोकने, अलगाववादी नेताओं की सुविधाएं बंद करने, जवानों के भोजन की गुणवत्ता सुधारने, ओवैसी और रॉबर्ट वाड्रा को जेल भेजने, डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरते हुए मूल्य को रोकने, काला धन लाने, लोगों को 15 लाख रुपए देने, महिलाओं पर अत्याचार रोकने, आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर तोड़ने, किसानों की आत्महत्या रोकने, सबको आवास देने, कॉमन सिविल कोड लागू करने, लोकपाल लागू करने, टैक्स सुधार करने, इंस्पेक्टर राज खत्म करने, स्कूल, अस्पताल और कॉलेज खोलने, जैसे अन्य वादों की बात हो या फिर स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी, आदर्श ग्राम जैसे सपनों पर यकीन करने की बात हो, देश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी की झोली में इतने वोट डाल दिए, जितने उन्होंने स्वयं भी नहीं सोचे थे.

सरकार बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी का उत्साह इतना बढ़ गया था कि उन्होंने हर चुनाव में हर राज्य से कांग्रेस को हटाने की तैयारी न केवल शुरू कर दी, बल्कि सफलतापूर्वक कांग्रेस को हटा भी दिए. उन्होंने कहा कि जब दिल्ली में हमारी सरकार है, तो अगर राज्य में भी हमारी सरकारें होंगी तो विकास बहुत अच्छा होगा. वो सारे वादे जो मोदी जी ने चुनाव में किए या प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस तरह अपना एजेंडा बनाया, वो तभी लागू हो सकता है जब राज्यों में भी प्रधानमंत्री मोदी के विचार वाली सरकारें हों.

कार्यकर्ता भी उत्साहित थे, नेता भी उत्साहित थे, देश की जनता भी उत्साहित थी और उसने वो सब प्रधानमंत्री मोदी जी की झोली में डाला जो उन्होंने चाहा. लेकिन अब जब नितिन गडकरी कहते हैं कि मेरी बात संदर्भ से हटकर देखी जा रही है, तो नितिन गडकरी गलत कहते हैं. नितिन गडकरी दरअसल देश को ये बता रहे थे कि देश में जितनी आशा जगी है, वो इसलिए जगी है क्योंकि हमने इतने ज्यादा वादे कर लिए और हमें पता ही नहीं था कि केंद्र में हमारी सरकार बनेगी. महाराष्ट्र का चुनाव देश का भविष्य बदलने वाला चुनाव नहीं था.

भाषाओं के ऊपर लोगों को रिझाने का चुनाव नहीं था. वो चुनाव 2014 का आम चुनाव था, जिससे केन्द्र में सरकार बदली. इसलिए अब गडकरी जी का ये कहना कि मेरे बयान को संदर्भ से अलग हटकर देखा गया, गले नहीं उतरता. गले सिर्फ इतना उतरता है कि उन्होंने एक सच्चाई बयान की कि हमने जब जैसा मौका पाया, देश के हर आदमी से ऐसे वादे किए, जिससे वो खुश हो गया. अचानक किए गए इन वादों से देश के लोगों ने उन्हें वोट दे दिया और उनकी सरकार बन गई. जब सरकार बन गई, तो उन्हें यह समझ में नहीं आया कि सरकार चलाएं कैसे.

अब नया चुनाव आने वाला है. देश को एक भी ऐसा पूर्णकालिक वित्त मंत्री नहीं मिला, जो अपने विषय को जानता हो. कानून में पारंगत अरुण जेटली देश के वित्त मंत्री हैं. वित्त मंत्रालय की हालत हमारे सामने है. देश को कोई पूर्णकालिक रक्षा मंत्री नहीं मिला. अभी जो रक्षा मंत्री हैं, वो रक्षा मंत्रालय के कम, प्रधानमंत्री मोदी या भारतीय जनता पार्टी के बचाव में ज्यादा लगी रहती हैं.

शिक्षा मंत्रालय की तबाही उन्होंने की, जिन्हें शिक्षा मंत्रालय का एबीसीडी भी नहीं आता. प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में भी जो मंत्री नहीं हैं, ब्यूरोक्रेट हैं, उनमें अपने-अपने विषयों के ज्ञाताओं की संख्या बहुत नगण्य है और शायद इसीलिए देश रक्षा, आतंकवाद, अर्थव्यवस्था, हर मोर्चे पर हिचकोले खा रहा है. अगर इसका जरा भी अंदाजा भारतीय जनता पार्टी को चुनावों के समय होता, तो वो ऐसे लोगों की तलाश शुरू करती जो देश को विकास के रास्ते पर ले जाने वाले विषयों के माहिर हैं.

लेकिन यह समझ में नहीं आता है कि अगर चुने हुए लोग इस श्रेणी में नहीं आते, तो प्रधानमंत्री मोदी ने बाहर से विशेषज्ञों को अपनी टीम में क्यों नहीं लिया. कोई भी पारंगत नहीं होता, लेकिन वो पारंगत बनने की कोशिश करता है. हमें अगर कार चलानी नहीं आती, तो हम अच्छा ड्राइवर रखते हैं. जो जिस विषय का जानकार हो, वो जब उस विषय को देखता है, तो देश कम हिचकोले लेता है. लेकिन अभी तो पूरा मंत्रिमंडल ही उन लोगों से भरा पड़ा है, जो उस विषय के ज्ञाता हैं ही नहीं.

ये सब देखने पर नितिन गडकरी की बात समझ में आती है कि हमने बिना तैयारी के वादों के आधार पर सरकार तो बना ली, लेकिन उसके बाद गाड़ी हिचकोले खाने लगी. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री कार्यालय में ऐसे लोग भरे हुए हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी के लिए लिखे जाने वाले भाषण या उन्हें देने वाले टॉकिंग प्वाइंट ्‌स को भी क्रॉस चेक नहीं करते हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री के मुंह से इतने सारे महान सत्य बोलवाए जा रहे हैं.

जिसमें सबसे ताजा सत्य यह है कि इस देश के 125 करोड़ लोगों को उनके घर की चाबी दे दी गई है. यानि इस देश के 125 करोड़ लोगों को छत मिल गई है, घर मिल गया है. ऐसा घर मिल गया है, जिसमें ताला लगाया जा सके. बाकी चीजों के बारे में तो इस देश के लोग आस-पास देख ही रहे हैं, पर यह एक उदाहरण बताता है कि प्रधानमंत्री मोदी के जरिए प्रतिदिन जनता को महान सत्य परोसने वाली टीम कितनी सार्थक टीम होगी.

इतना तो अवश्य ही होगा कि हर मंत्री के साथ संघ के एक नामांकित व्यक्ति को ऐसे जासूस में ढाल दिया गया है, जिससे न केवल मंत्री डरता है, बल्कि सचिव भी डरता है.

मैं ये सारी बात इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि अब विकास का समय गया. चुनाव का और नए वादों का समय आ गया है. अब अवश्य धारा 370, पाकिस्तान से लड़ने और राम जन्मभूमि जैसे मुद्दों की बात होगी और रोजी-रोटी, महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे सवाल छू-मंतर हो जाएंगे. प्रधानमंत्री जी या भारतीय जनता पार्टी को यह स्थिति इसलिए ज्यादा रास आ रही है, क्योंकि विपक्ष के लोग उनसे भी ज्यादा कूढ़मगज हैं. वो भी उन सवालों को नहीं उठाते हैं, जो इस देश की जनता को छूते हैं. उन्हें लग रहा है कि राफेल का सवाल बोफोर्स की तरह लोगों को मथेगा. दो दिन पहले मुझसे कुछ लोग मिलने आए, जो भारतीय जनता पार्टी से थे.

मैंने उनसे पूछा कि राफेल डील से आपको डर नहीं लगता? लेकिन फिर मैंने उनसे पूछा कि आप ये बताइए कि राफेल डील कहां तक पहुंचा है? उन्होंने मुस्कुराते हुए एक बात कही कि राफेल कभी बोफोर्स बन ही नहीं सकता, क्योंकि बोफोर्स को उठाने वाला कौन था और राफेल को उठाने वाला कौन है, ये जरा सोच लीजिए, समझ लीजिए, देख लीजिए. उनकी बात में सच्चाई है या नहीं है ये तो पाठक जानें, पर लगता जरूर है कि सवाल उठाने के लिए जिस साख की जरूरत होती है, उस साख के लोग अब विपक्ष में नहीं बचे हैं.

अब जो दौर आया है या जो दौर आ रहा है, वो कितनी संभावनाएं लाएगा, पता नहीं, लेकिन नए डर जरूर लाएगा. वो डर सत्ता पक्ष की तरफ से भी होंगे और विपक्ष की तरफ से भी होंगे. इन दिनों लोकतंत्र के नाम पर जो परंपराएं और परिभाषाएं बनाई जा रही हैं या सामने रखी जा रही हैं वो बताती हैं कि हममें रास्ता देखने की शक्ति सचमुच नहीं बची है.

सच क्या है और झूठ क्या है, इसका कोई पैमाना अब हमारे सामने नहीं है. जितना ज्यादा प्रचार, जितना ज्यादा सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर लें और जो लोग जिस खबर को सही मान लें, वही सत्य है. भले ही उसमें सत्य का अंश रंच मात्र न हो. इसलिए अब तो सच और झूठ देखने की नजर, सच और झूठ की परिभाषा और सच और झूठ को समझने की शक्ति, देश में कितनी बची है, ये आने वाले समय में सिर्फ एक ही शक्ति तय करेगी और वो है इस देश की जनता.

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