fixingलोकसभा सांसद और बीसीसीआई के महासचिव अनुराग ठाकुर ने बजट सत्र के दूसरे चरण में मैच फिक्ंिसग करने वालों को कड़ी सजा देने संबंधी प्राइवेट मेंबर बिल सदन में पेश करके सरकार को आइना दिखा दिया है. इस बिल को पेश कर उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि खेल मंत्रालय को खेलों के साथ हो रहे खिलवाड़ की कोई फिक्र नहीं है. उसके पास खेलों में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने की न तो नीति है और न ही नीयत. जब-जब क्रिकेट के मैदान से फिक्ंिसग का जिन्न निकलकर बाहर आया, तब-तब सरकार ने मैच फिक्ंिसग को रोकने के लिए क़ानून बनाने की बात कही, लेकिन मामला हर बार ठंडे बस्ते में चला गया. केंद्र में किसी भी दल की सरकार रही हो, किसी ने भी आज-तक गंभीरता से मैच फिक्सिंग पर रोक लगाने और आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की कोई कोशिश नहीं की. लेकिन बीसीसीआई के महासचिव और सत्तारूढ़ दल के सांसद अनुराग ठाकुर ने खेलों को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर जो पहल की है वह सराहनीय है.

मोदी सरकार को सत्ता में आए लगभग दो साल पूरे हो गए हैं, लेकिन क्रिकेट में हो रही मैच फिक्सिंग और अन्य अनियमितताओं पर लगाम लगाने के लिए उनकी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाए, जबकि उनके कार्यकाल के दौरान ही लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट आई. भारत में खेलों के क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए कई सालों से बहस चल रही है. इस बहस की शुरुआत साल 2011 में तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने नेशनल स्पोर्ट्स (डेवलपमेंट) बिल-2011 लाकर की थी. इस बिल का मुख्य उद्देश्य देश में कार्यरत विभिन्न खेल संगठनों के प्रशासनिक ढांचे में सुधार करना और पारदर्शिता लाना था. इस बिल को लेकर माकन उत्साहित थे, लेकिन विभिन्न खेल संगठनों के शीर्ष पदों पर बैठे राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों ने इस बिल का विरोध किया. अंततः माकन को खेल मंत्री के पद से हाथ धोना पड़ा. इसके बाद साल 2013 में आईपीएल में स्पॉट फिक्ंिसग का मामला उजागर हुआ. इसके पहले भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैच फिक्ंिसग के कई मामले सामने आ चुके थे, उनमें से कई मामलों में आरोपियों को दोषी करार देकर उनके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई भी की गई थी. कुछ खिलाड़ियों को आजीवन प्रतिबंध के साथ-साथ जेल की हवा भी खानी पड़ी थी, लेकिन भारत में ऐसा कुछ नहीं हुआ और न ही सरकारों ने इन मामलों से कभी कोई सबक लिया. इस वजह से आज तक देश में मैच फिक्ंिसग में लिप्त रहने वाले खिलाड़ियों और अन्य लोगों को भारतीय दंड संहिता या अन्य कानूनों के तहत कार्रवाई करने का प्रावधान नहीं हो सका. फिक्ंिसग के मामलों में पुलिस अधिक से अधिक आपराधिक षडयंत्र और धोखाधड़ी का मामला ही आरोपियों पर दर्ज कर पाती है.

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आईपीएल-6 स्पॉट फिक्ंिसग विवाद में जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मुद्गल की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी का गठन किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने अपनी जांच में आईपीएल की दो टीमों चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स के मालिकों को सट्टेबाजी और मैच फिक्ंिसग में लिप्त पाया था, इस वजह से इन दोनों टीमों पर दो वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया गया. साथ ही इनके आरोपी मालिकों के किसी भी क्रिकेट गतिविधि में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इन दोनों कमेटियों की रिपोर्ट्स मोदी सरकार के कार्यकाल में आईं लेकिन उनके खेल मंत्रालय ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. केंद्रीय खेल मंत्री सरबानंद सोनोवाल असम के मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में लगे रहे और खेलों से खिलवाड़ की रवायत बदस्तूर जारी रही.

लोकसभा में बिल पेश करते वक्त अनुराग ठाकुर ने कहा कि फिलहाल देश में मैच फिक्ंिसग पर लगाम लगाने के लिए कोई क़ानून नहीं है, इसे रोकने के लिए क़ानून का होना बेहद जरूरी है. उन्होंने जो बिल संसद में पेश किया है उसमें फिक्ंिसग के दोषियों को दस साल की सजा देने का प्रावधान है. बिल में नेशनल स्पोर्ट्स एथिक्स कमीशन का गठन करने के साथ-साथ अन्य कई प्रावधान हैं. साल 2013 में आईपीएल में हुई स्पॉट फिक्ंिसग में लिप्त पाए गए खिलाड़ियों के खिलाफ कोई क़ानून नहीं होने की वजह से कड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी. बीसीसीआई ने उनके क्रिकेट खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया. इस बात को ध्यान में रखते हुए अनुराग ठाकुर ने कहा कि मौजूदा समय में फिक्ंिसग का दोषी पाए जाने पर खिलाड़ी को आईपीसी की जिन धाराओं के तहत सजा दी जाती है उनसे खिलाड़ी बच निकलते हैं. क्योंकि ये धाराएं खेलों पर लागू नहीं होती हैं. इसके साथ ही इस बिल में एक  राष्ट्रीय स्तर की एथिक्स बॉडी बनाने का प्रस्ताव है, जो डोपिंग और फिक्ंिसग की रोकथाम, उम्र संबंधी फर्जीवाड़ा व महिला खिलाड़ियों का शोषण रोकने जैसे मामलों को देखेगी. नेशनल स्पोर्ट्स एथिक्स कमीशन में जज सहित खेल जगत से जुड़ी खेल हस्तियां होंगी. आयोग के पास सुनवाई और सजा निर्धारित करने का अधिकार होगा.

यदि अनुराग ठाकुर द्वारा पेश बिल संसद में पारित हो जाता है तो फिक्ंिसग में लिप्त खिलाड़ियों पर न केवल आजीवन प्रतिबंध लगेगा बल्कि उन्हें दस साल कैद की सजा भी होगी. इसके साथ ही उसे रिश्‍वत की पांच गुना राशि जुर्माने के रूप में भरनी होगी. उम्र और लिंग संबंधी फर्जीवाड़ा करने पर छह महीने की जेल और एक लाख रुपये का जुर्माना लगेगा. बिल में न सिर्फ खिलाड़ियों बल्कि प्रशिक्षकों और खेल संघों के पदाधिकारियों के दोषी पाए जाने पर भी सजा का प्रावधान है. उन्हें आशा है कि यह बिल देश के खेलों में ईमानदारी को प्रोत्साहित करने और खेलों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करेगा.

खेलों में सुधार के लिए अनुराग ठाकुर ने एक संविधान संशोधन बिल भी प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में ही लोकसभा में पेश किया, जिसमें खेल को राज्य सूची के विषय से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल करने का प्रस्ताव है. खेल के समवर्ती सूची में शामिल होने पर, खेलों का समन्वित विकास होगा. राज्य और केंद्र की सरकारें बेहतर तरीके से खेलों पर ध्यान दे सकेंगी और इसके विकास की योजनाएं बना सकेंगी.

फिक्ंिसग का दायरा केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है, कुछ समय पहले वैश्‍विक स्तर पर टेनिस और फुटबॉल में फिक्ंिसग होने की बातें भी सामने आईं थीं. साल 2014 में इंग्लैंड के फुटबॉल लीग क्लबों के सात खिलाड़ियों को कथित मैच फिक्ंिसग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. यूरोपियन यूनियन पुलिस ऑर्गनाइजेशन (यूरोपोल) की जांच टीम को एक दो नहीं बल्कि 380 फुटबॉल मुक़ाबलों में मैच फिक्सिंग के सबूत मिले थे. इनमें यूरोपियन चैंपियनशिप और विश्‍वकप फुटबॉल के क्वालीफाइंग मुक़ाबले भी शामिल थे. वहीं टेनिस में विंबल्डन जैसी बड़ी प्रतियोगिता में फिक्ंिसग की संभावना इस साल जनवरी में एक मीडिया रिपोर्ट में जताई गई थी. भारत में क्रिकेट के अलावा फुटबॉल, टेनिस, कबड्डी और कुश्ती जैसे कई खेलों की लीग्स शुरू हुई हैं, ऐसे में इन खेलों में भी फिक्ंिसग की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता, ऐसे में निश्‍चित  तौर पर फिक्ंिसग को रोकने के लिए एक बेहतर और सुदृढ़ क़ानून की आवश्यक्ता है. जो बिल अनुराग ठाकुर ने संसद में पेश किया है, उस बिल को किसी संसदीय कमेटी के पास भेजने से पहले उस पर संसद के दोनों सदनों में गंभीरता से विचार होना चाहिए. ताकि खेल प्रेमियों का खेल और खिलाड़ियों पर विश्‍वास बना रह सके.

संसद में शांत खिलाड़ी

संसद में जिस कार्यक्षेत्र का व्यक्ति पहुंचता है, उससे आशा की जाती है कि वह संसद में उस क्षेत्र की बेहतरी के लिए सवाल उठाएगा और बेहतर योजनाएं बनाने में सरकार की मदद करेगा, लेकिन संसद में ऐसा होता नहीं दिखा. मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद जब राज्यसभा सांसद मनोनीत किया गया था, तब यह आशा की गई थी कि सचिन खेलों के विकास और बेहतरी के लिए कदम उठाएंगे. संसद में खेलों से संबंधित विषयों पर अपनी राय रखेंगे, लेकिन सचिन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. हालांकि सचिन तेंदुलकर ने यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह को खेलों के विकास से जुड़ा एक विस्तृत ब्लू प्रिंट सौंपा था. जिसमें उन्होंने बुनियादी स्तर पर खेलों के विकास का रास्ता सुझाया था. उनकी सलाह  केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं थी. उनका जोर निचले स्तर पर खेलों के  सर्वांगीण विकास से देश में खेल-संस्कृति का विस्तार कराने पर था, लेकिन खेल मंत्रालय ने  सचिन के सुझावों पर न ही कोई विचार किया और न ही उस दिशा में कोई कदम उठाए. ऐसे में खिलाड़ियों निराशा होती है.

सचिन के अलावा पूर्व हॉकी खिलाड़ी दिलीप टिर्की, कीर्ति आजाद, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे खिलाड़ी संसद में हैं. कीर्ति आजाद ने डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें भाजपा की सदस्यता खोनी पड़ी. दिलीप टिर्की तो साल 2012 से राज्यसभा में हैं. वह हॉकी की बदहाली की बात करते हैं लेकिन खेलों के विकास के लिए संसद में आवाज बुलंद नहीं करते. हाल ही में ओलंपिक पदक विजेता बॉक्सर एमसी मेरीकॉम और पूर्व टेस्ट क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को भी  भारत के राष्ट्रपति ने राज्यसभा सांसद मनोनीत किया है. 1952 से ही कई खिलाड़ी संसद में रहे हैं. निशानेबाज कर्णी सिंह, हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खान, क्रिकेटर चेतन चौहान और मोहम्मद अजहरुद्दीन और एथलीट ज्योतिमय सिकदर संसद  पहुंचीं लेकिन खेलों के विकास  के लिए इन्होंने बहुत कम भूमिका निभाई. खेलों से जु़ड़े इन सांसदों का खेलों के प्रति लगाव तो बना रहा लेकिन देश में खेलों की दशा सुधारने का गंभीर प्रयत्न करता इनमें से कोई नहीं दिखाई दिया.

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