लखनऊ में दफ्तर खोलने के साथ ही आजमगढ़ जाने और जनसभा को संबोधित करने के ओवैसी के ऐलान से सपा के शीर्ष गलियारे में बेचैनी है. एलआईयू की रिपोर्ट है कि ओवैसी की घोषणा पर आजमगढ़ में खासी चर्चा है और उनकी जनसभा सफल बनाने के लिए मुसलमानों का कट्टरपंथी तबका अभी से सक्रिय हो गया है. ओवैसी की जनसभा को न्यूट्रल करने के लिए भाजपा ने भी महंत आदित्य नाथ को जनसभाओं में वहां उतारने का मन बनाया है. सपा को एलआईयू की रिपोर्ट के जरिये एक आधार भी मिल रहा है कि ओवैसी को आजमगढ़ आने से फिर रोक दिया जाए.
18hyayk04--Asad_HY_1555069gहरियाणा एवं महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की जीत से सतर्क समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं को अपने खेमे में बनाए रखने के साथ-साथ और अधिक मुस्लिम समर्थन जुटाने में लग गई है. मुलायम सिंह यादव के फिर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अभी राष्ट्रीय एवं प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की तैयारियां चल ही रही थीं, तभी बीच में हरियाणा और महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव आ गया. हरियाणा में सपा ने भाजपा के ख़िलाफ़ इनेलो की खूब मदद भी की, लेकिन महाराष्ट्र में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) की मौजूदगी ने सपा को बेचैन रखा. एमआईएम ने महाराष्ट्र में दो सीटें भी जीत लीं. तीन सीटों पर वह बहुत कम अंतर से हारी और नौ सीटों पर तीसरे स्थान पर रही. यानी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एमआईएम ने नोटिस लिए जाने लायक अपनी शिनाख्त दर्ज करा ली. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव परिणाम की सीटवार समीक्षा करने पर आप साफ़-साफ़ देखेंगे कि एमआईएम ने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस एवं एनसीपी के वोट काटे. इसके बाद जब एमआईएम ने अपना अगला पड़ाव उत्तर प्रदेश को बनाने का ऐलान किया, तो सपा की बेचैनी बढ़ गई. साफ़ है कि एमआईएम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट काटने ही आ रही है. एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तो इस बारे में आधिकारिक तौर पर ऐलान भी कर दिया है. साथ-साथ एमआईएम ने बिहार एवं पश्‍चिम बंगाल की तरफ़ भी क़दम बढ़ाने की घोषणा की है.
2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर एमआईएम अपनी रणनीति बना रही है. ओवैसी ने इस बार भी मुलायम सिंह के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ को प्रमुख रूप से अपना लक्ष्य बनाया है. इसके पहले भी ओवैसी ने कई बार आजमगढ़ जाने की कोशिश की है, लेकिन क़ानून व्यवस्था के सवाल पर ओवैसी को वहां जाने से राज्य सरकार ने कई बार रोका है. अब तो नवंबर में लखनऊ में एमआईएम का बाकायदा दफ्तर खोलने की घोषणा भी कर दी गई है. जब लखनऊ में एमआईएम का दफ्तर खुलेगा, तो पार्टी प्रमुख भी उद्घाटन के मौ़के पर मौजूद रहेंगे. ओवैसी ने कहा भी है कि उत्तर प्रदेश में एमआईएम अपना आधार और प्रभाव क्षेत्र बढ़ा रही है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम के अनुभव के आधार पर ओवैसी ने उत्तर प्रदेश को लेकर अपनी रणनीति बदल दी और अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी हैं. ओवैसी ने स्वीकार किया है कि महाराष्ट्र में कुछ पहले से एमआईएम को सक्रिय हो जाना चाहिए था, लेकिन उत्तर प्रदेश में मजबूत होने के लिए अभी पर्याप्त समय है.
लखनऊ में दफ्तर खोलने के साथ ही आजमगढ़ जाने और जनसभा को संबोधित करने के ओवैसी के ऐलान से सपा के शीर्ष गलियारे में बेचैनी है. एलआईयू की रिपोर्ट है कि ओवैसी की घोषणा पर आजमगढ़ में खासी चर्चा है और उनकी जनसभा सफल बनाने के लिए मुसलमानों का कट्टरपंथी तबका अभी से सक्रिय हो गया है. ओवैसी की जनसभा को न्यूट्रल करने के लिए भाजपा ने भी महंत आदित्य नाथ को जनसभाओं में वहां उतारने का मन बनाया है. सपा को एलआईयू की रिपोर्ट के जरिये एक आधार भी मिल रहा है कि ओवैसी को आजमगढ़ आने से फिर रोक दिया जाए. इसके पहले भी शांति व्यवस्था में व्यवधान की आशंका बताकर ओवैसी को आजमगढ़ जाने से रोका गया है, लेकिन वह इस बार वहां जाने के लिए अडिग हैं. कहते हैं, चाहे कुछ हो जाए, इस बार तो आजमगढ़ ज़रूर जाऊंगा. संसद में मुस्लिम सांसदों की आमद का ग्राफ लगातार गिरते जाने को एमआईएम ने मुद्दा बनाया है. यह मुद्दा कट्टरपंथी मुस्लिमों के कंधे से होकर मुस्लिम समुदाय में प्रभाव कायम कर रहा है. यह मुद्दा मजबूत बनाने के लिए एमआईएम ने सभी तथाकथित सेकुलर पार्टियों को निशाने पर लेना शुरू किया है और समुचित अनुपात में मुस्लिम प्रत्याशियों को मौक़ा न देने का सार्वजनिक आरोप लगाने का अभियान तेज कर दिया है. एमआईएम मुस्लिम समुदाय के लोगों को यह समझा रही है कि संसद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व न होने की वजह से मुस्लिम समुदाय का सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक मसले तो उपेक्षित हुए ही, सियासी तौर पर भी मुसलमानों के हाशिए पर चले जाने की आशंका बढ़ गई है. एमआईएम चाहती है कि मुस्लिम मतदाताओं के वोट अन्य पार्टियों में न बंटें, बल्कि उसे ही समेकित रूप से मिल जाएं. मुस्लिम लीग बनने की कोशिश कर रही एमआईएम के प्रमुख ने अपनी कई सभाओं में कहा है कि भारत में एक ऐसी पार्टी होनी चाहिए, जो केवल मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करे, उनके मसलों के साथ घालमेल न करे. अन्य पार्टियों में वोट बंटने के कारण ही मुसलमानों का संसद में प्रभावशाली प्रतिनिधित्व नहीं है.
अभी हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद न चुने जाने का मसला सपा के लिए पहले से सियासत का मसला बना हुआ था, लेकिन अब एमआईएम ने भी इस मसले को पूरी ताकत से उठाना शुरू कर दिया है. मुसलमानों से यह कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का 19 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद एक भी मुस्लिम सांसद का न होना समुदाय के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. एमआईएम मानती है कि मुस्लिम वोटों के इधर-उधर बंटने के कारण ही सहारनपुर, मुजफ्फर नगर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल एवं मेरठ जैसे इलाकों में भाजपा के प्रत्याशियों की जीत हुई. राजनीतिक प्रेक्षकों का भी मानना है कि एमआईएम मुसलमानों के स्वाभाविक पक्षधर के रूप में अपना स्थान बना सकती है. इससे खास तौर पर सपा-कांग्रेस और आम तौर पर बसपा एवं अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को मुस्लिम वोटों का ऩुकसान हो सकता है. मुस्लिम पक्षधरता की राजनीति के इस सार्वजनिक ऐलान से मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत को झटका लगा है और अब सपा समेत तमाम राजनीतिक दल नई रणनीति बनाने में जुट गए हैं.
सपा की राष्ट्रीय एवं प्रदेश कार्यकारिणी, दोनों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अच्छी-खासी तादाद में बढ़ाया जा रहा है. सपा का थिंक टैंक मुसलमानों के बीच सपा को भाजपा के एकमात्र ताकतवर प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित करने का पक्षधर है. सपा इस कैंपेन में लगी है कि मुसलमानों को आश्‍वस्त किया जा सके कि खास तौर पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर सकती है. नई कार्यकारिणी में शामिल होने वाले मुस्लिम प्रतिनिधि भी सपा के इस अभियान में तेजी से लगने वाले हैं. बसपा प्रमुख मायावती का अभी जो बयान आया है, उससे भी सपा की इन कोशिशों को बल मिला है. मायावती ने कहा कि देश भर में भाजपा की लहर नहीं, बल्कि कांग्रेस विरोधी लहर चल रही है. साफ़ है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रति मुसलमानों का रुझान बहुत जल्द लौटने वाला नहीं है और उसका फ़ायदा बसपा को भी मिलता नहीं दिख रहा. सपा के कद्दावर मुस्लिम नेता अहमद हसन कहते भी हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा से टक्कर लेने वाली पार्टी केवल सपा है.

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