बुंदेलखंड पर सियासत तो खूब हुई, लेकिन बुंदेलखंड की हालत जस की तस है. बुंदेलखंड छोड़ कर लोग बाहर जा रहे हैं. पलायन कर रहे लोग कहते हैं कि बुंदेलखंड को पॉलिटिक्स और पाखंड का रोग लग गया है. उनका मानना है कि पाखंड और पॉलिटिक्स अलग-अलग नहीं हैं. बुंदेलखंड के पढ़े लिखे लोग इस पर हैरत जताते हैं कि त्रासदी के मारे इस क्षेत्र पर बनी फिल्म ‘बी फॉर बुंदेलखंड’ को देश-दुनिया में प्रशंसा और कामयाबी मिलती है, लेकिन यहां की ‘बी फॉर भुखमरी’ हटाने पर किसी का ध्यान नहीं जाता.

नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी, मायावती से लेकर अखिलेश यादव और अब योगी आदित्यनाथ तक की अलमबरदारी में बुंदेलखंड राजनीति का स्टेज बना हुआ है. इसी राजनीति में केंद्र से लेकर राज्य तक की सत्ता बदलती रही है, पाखंड यथावत है. तब से लेकर अब तक तमाम नेताओं के भाग्य बदल गए, लेकिन बुंदेलखंड के किसानों और आम लोगों की दशा नहीं बदली. छोटे किसानों का कर्जा माफ करने की योगी सरकार ने घोषणा भी कर दी, लेकिन जमीनी असलियत यही है कि अधिकांश किसानों पर बैंकों का नहीं, साहूकारों का कर्जा है.

साहूकारों का आपराधिक दबाव किसानों को मार रहा है. पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह कहते हैं कि साहूकारी अधिनियम 1934 में अंग्रेजों ने साहूकारी प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन अंग्रेज तो चले गए, पर देश से साहूकारी प्रथा नहीं गई. यह सरकार भी जानती है कि साहूकारों द्वारा गरीब किसानों और मजदूरों का शोषण जारी है. बुंदेलखंड और पूर्वांचल में लाखों छोटे किसानों की हालत बंधुआ मजदूरों जैसी हो गई है. अब तो बुंदेलखंड की त्रासदी में एक और आयाम जुड़ गया है, वह है वहां की गायें. किसान खुद भुखमरी का शिकार है तो गायों को कैसे खिलाए! बुंदेलखंड के लाखों किसानों ने अपनी गायें लावारिस छोड़ दी हैं.

बुंदेलखंड में अब आपको लावारिस गायों की भरमार सड़कों और कूड़े के ढेरों पर दिखेंगी. केंद्र की भाजपा सरकार हो या प्रदेश की भाजपा सरकार, गायों को लेकर उनकी रुदालियां तो आपको खूब सुनाई पड़ेंगी, लेकिन गायों की प्राणरक्षा के लिए कोई सटीक व्यवस्था नहीं बनाई जा रही है. अब राजनीति की दुकान चलाने में गाय एक और बिकने वाला जुमला बन गई है. बुंदेलखंड क्षेत्र में भूखों को रोटी खिलाने के लिए ‘रोटी बैंक’ का नायाब फार्मूला लागू करने वाले पूर्व पत्रकार संन्यासी तारा पाटकर ने अब भूखी गायों को बचाने का भी बीड़ा उठाया है. इस तपती गरमी में तारा पाटकर ने बुंदेलखंड से राजधानी लखनऊ तक की पदयात्रा की और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिल कर गायों को बचाने की गुहार लगाई. पाटकर ने एक हफ्ते तक राजधानी लखनऊ में गांधी प्रतिमा पर अनशन भी किया.

तारा पाटकर ने ‘रोटी बैंक’ के लिए घरों से एक रोटी निकालने के आह्वान में गाय के लिए एक और रोटी निकाल कर देने का आह्वान जोड़ दिया है. पाटकर घर की रसोई से पहली रोटी गाय के नाम पर निकालने की लोगों को शपथ दिला रहे हैं. पदयात्रा के दरम्यान भी 250 किलोमीटर के रास्ते में उन्होंने विभिन्न गांवों और कस्बों में तकरीबन पांच हजार लोगों को गौ सेवा की शपथ दिलाई. उन्होंने बुंदेलखंड की 10 लाख गायों के भोजन के लिए एक करोड़ लोगों को शपथ दिलाने का लक्ष्य रखा है.

तारा पाटकर ने ‘चौथी दुनिया’ से कहा, ‘बदहाल बुंदेलखंड में जितना बुरा हाल गायों का है, उतना पहले कभी नहीं रहा. भूख से तड़पती करीब 10 लाख गायें भोजन की तलाश में कूड़े के ढेर पर जा खड़ी हुई हैं और भूसा, चारा न मिल पाने के कारण कागज, पन्नी और गंदगी खा रही हैं. पहले हिन्दुओं के घरों में यह परंपरा थी कि गायों को खिलाने के लिए रोटी-चावल निकाला जाता था. लेकिन अब नई पीढ़ी इसे भूल गई है. हमारा ‘रोटी बैंक’ गरीब, लाचार और भूखों को खिलाने के लिए दो रोटी और थोड़ी सब्जी देने का आग्रह ढाई साल से करता आ रहा है. करीब एक हजार लोग रोटी बैंक को लगातार भोजन मुहैया करा रहे हैं.

अब लोगों से हम घर की रसोई की पहली रोटी गाय के नाम पर निकालने की अपील भी कर रहे हैं. साथ ही जन्मदिन, शादी-ब्याह व सालगिरह जैसे कार्यक्रमों में लोगों के साथ-साथ कम से कम 25-50 गायों को भोजन कराने का आग्रह भी कर रहे हैं. यह संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए हमने विश्व पर्यावरण दिवस से एक पदयात्रा शुरू की, जो गुरु गोरखनाथ की तपोभूमि महोबा से प्रारंभ हुई और 10 दिन में 250 किलोमीटर की दूरी तय कर लखनऊ पहुंची.

पदयात्रा के दौरान विभिन्न गांवों व कस्बों में हम अब तक पांच हजार से अधिक लोगों को गौ सेवा की शपथ दिला चुके हैं. कई स्थानों पर हमको निस्वार्थ रूप से गाय की सेवा में लगे तमाम लोग भी मिले. उनसे बहुत सारी रोचक जानकारियां मिलीं. हम लोगों से प्यासी गायों के लिए चिरही, टब व बाल्टी की व्यवस्था करने को कह रहे हैं. महोबा से 10 किलोमीटर दूर काली पहाड़ी गांव में सड़क किनारे ढाबा चलाने वाले दयाराम राठौर ने प्यासी गायों के लिए लंबी हौद बनवा रखी है, जिसमें रोज करीब दो सौ गायें, बैल और बछड़े पानी पीने आते हैं. इसी गांव के सीताराम पटेल ने डेढ़ साल पहले एक लावारिस गाय को पकड़ कर बांध लिया था और उसकी सेवा शुरू कर दी.

अब वह गाय पांच किलो दूध दे रही है. उसने एक बच्चे को भी जन्म दिया है. अब ये गाय उनके घर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है.’ भूखों और बेसहारा लोगों के लिए ‘रोटी बैंक’ खोलकर देश-विदेश में चर्चा में आए तारा पाटकर और उनके बुंदेली समाज ने अब बुंदेलखंड में भूख प्यास से तड़प रही गायों को बचाने की मुहिम भी अपने साथ जोड़ ली है.

बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने कहा कि मौदहा व भरूआ सुमेरपुर में शिव करन गुप्ता व राकेश शुक्ला व दिनेश शिवहरे जैसे गौ सेवक मिले, जो हादसे की शिकार चोटिल गायों को उठाकर अस्थाई रूप से बनाई गई गौशाला में ले जाते हैं और उनकी सेवा करते हैं. मौदहा के शिव करन तो अपने साथियों के साथ मरी हुई गायों के लिए गड्ढा खोदवाते हैं और उनको सम्मानपूर्वक दफना देते हैं. बिना किसी सरकारी मदद के ऐसा वे पिछले कई साल से कर रहे हैं.

कानपुर महानगर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों से तो अब देसी गायें पूरी तरह गायब ही हो चुकी हैं. पतारा ब्लॉक के हिरनी गांव में उन्हें मात्र एक देसी गाय मिली, जबकि दो हजार जरसी गायें और करीब छह हजार भैंसें घरों के बाहर बंधी मिलीं. जब गांव के लोगों से इस बारे में पूछा तो पता चला कि भले ही देसी गाय का औषधीय महत्व सबसे ज्यादा हो, लेकिन उसका व्यावसायिक मूल्य अब बहुत कम बचा है. इसलिए देसी गायों की ऐसी दुर्गति हो गई है.

पाटकर ने कहा कि बुंदेलखंड की इस गंभीर समस्या के प्रति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यान आकृष्ट करने के लिए उन्होंने 23 जून से लखनऊ के जीपीओ पार्क में गांधी प्रतिमा के समक्ष एक सप्ताह का सामूहिक उपवास रखा. पाटकर ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार गायों की हालत सुधारने के लिए तत्काल प्रभावी कार्य योजना बनाए क्योंकि यह समस्या अब विकराल रूप धारण कर चुकी है.’ तारा पाटकर के साथ बुंदेली समाज के जसवंत सिंह सेंगर, मनोज सिंह चौहान, दीपक पचौरीव कई अन्य लोग भी उपवास पर बैठे. इन लोगों ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गौ-प्रेम किसी से छुपा नहीं है. उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में भी गायें पाल रखी हैं.

लिहाजा, वे बुंदेलखंड में मारी-मारी फिर रही भूखी-प्यासी लाखों गायों की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं! भीषण गर्मी में बुंदेलखंड में पानी की कमी के बाद गाय सबसे बड़ी समस्या बन गई है. गायों के नाम पर सरकार काफी पैसा खर्च कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पैसा सिर्फ कागजों पर खर्च होता है और जमीन पर गायें भूख प्यास से मर रही हैं. गायों के लिए सरकार की तमाम योजनाएं फेल हैं. समाजसेवी भी गाय के लिए काम करने का दिखावा अधिक कर रहे हैं. गौशालाएं भी सिर्फ दिखावा हैं. सरकार गायों के लिए काम करना चाहती है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाने से गायों की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है.

राजनीतिक दावों से भूख और प्यास नहीं मिटती
सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में भीषण गर्मी के इस मौसम में तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जा रहा है. आसमान से आग बरस रही है और पथरीली जमीन आग उगल रही है. बुंदेलखंड के लोगों की नियति बन चुकी है साल दर साल सूखा, अकाल और भुखमरी की त्रासदी झेलना. सियासत भी इन्हीं बदहाल लोगों के बूते फल-फूल रही है. बुंदेलखंड की सबसे बड़ी पीड़ा यहां पेयजल की समस्या है. झांसी शहर के लोगों को माताटीला और पहूंच डैम से पीने का पानी मिल जाता है. लेकिन शहर से दूर होते जाएं तो पानी की समस्या विकराल होती जाती है. गांवों में हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो गया है. कुएं सूखे हैं. भूगर्भ जल का स्तर पाताल में चला गया है. चुनिंदा लोगों के पास गहरे खर्चीले हैंडपंप हैं. लेकिन यह पानी कुछ खास लोगों की ही प्यास बुझाती है.

बुंदेलखंड के 80 प्रतिशत किसान कर्ज में डूबे हैं. रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में मजदूरी के लिए भाग चुके हैं. गांव के गांव खाली पड़े हैं, बियाबान. केंद्र सरकार की संसदीय समिति की रिपोर्ट तक यह बता चुकी है कि बुंदेलखंड से लोगों का अंधाधुंध पलायन हो रहा है. लेकिन राजनीतिक दलों को कैराना का पलायन दिखता है, उन्हें बुंदेलखंड का पलायन नहीं दिखता. केंद्र की रिपोर्ट कहती है कि बांदा से सात लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से तीन लाख, 44 हजार 920, महोबा से दो लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से चार लाख 17 हजार 489, उरई से पांच लाख 38 हजार 147, झांसी से पांच लाख 58 हजार 377 और ललित पुर से तीन लाख 81 हजार 316 लोग पलायन कर चुके हैं. केंद्र सरकार की यह रिपोर्ट दो साल पहले की है.

अब तो यह आंकड़ा और बढ़ चुका होगा, लेकिन सरकार वायदे चलाए जा रही है, कार्रवाई को काठ मारा हुआ है. विडंबना यह है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुंदेलखंड आकर यह कह चुके हैं कि पांच-पांच नदियों के होने के बाद भी बुंदेलखंड का प्यासा होना दुर्भाग्यपूर्ण है. मोदी ने कहा भी कि असली समस्या पानी के प्रबंधन की अराजकता है.

लेकिन समस्या की शीर्ष स्तर तक पहचान होने के बावजूद उसे सुधारा नहीं गया. यह नेताओं के मुंह पर कालिख और तमाचा ही तो है कि जहां यमुना, चंबल, धसान, बेतवा और केन जैसी नदियां बहती हों वहां से लाखों लोग पलायन कर जाएं! जहां दस वर्षों में चार हजार से अधिक किसान खुदकुशी कर चुके हों! जहां पत्थर खोद कर नेता और माफिया करोड़पति और अरबपति हो रहे हों! बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के सात जिले झांसी, हमीरपुर, बांदा, महोबा, जालौन और चित्रकूट आते हैं. इन सात जिलों में 19 विधानसभा सीटें हैं. इन सभी सीटों पर भाजपा जीती है. लेकिन इस क्षेत्र असलियत क्या दिखती है, टूटी-फूटी सड़कें, मीलों दर मीलों सूखे खेतों का रेगिस्तान, छोटे-छोटे बियाबान पड़े गांव, फूस और खपरैल की छतों के नीचे बैठे सूखे मरियल लोग और मातमी सन्नाटा. यह फिल्मी पटकथा नहीं, बुंदेलखंड की वास्तविक तस्वीर है.

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ग्राम्य विकास राज्य मंत्री महेंद्र सिंह ने बुंदेलखंड को लेकर वादे तो बहुत सारे किए, लेकिन उन्हें जमीन पर यथार्थ होता देखने का कोई जतन नहीं किया. योगी ने अभी हाल ही में कहा था कि एक कॉल पर 30 मिनट में पानी का टैंकर पहुंच जाएगा. लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है. योगी ने कहा था कि पूरे बुंदेलखंड में एक हजार टैंकरों की व्यवस्था की जा रही है, जो पंचायत, ब्लॉक, तहसील और जिला मुख्यालयों पर रहेंगे और जहां भी पानी की जरूरत होगी 30 से 40 मिनट में वहां पहुंचा दिया जाएगा.

इसके साथ ही सभी थानों, सरकारी दफ्तरों में प्याऊ का इंतजाम होगा और हजारों नए हैंडपंप भी लगाए जाएंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुंदेलखंड जाकर कहा कि बुंदेलखंड में पानी की समस्या दो वर्ष में खत्म कर दी जाएगी. बुंदेलखंड को नई दिल्ली से सिक्स-लेन हाईवे से जोड़ा जाएगा. आने वाले पांच वर्षों में कई नए उद्योग लगेंगे और यहां के नौजवान को रोजगार मिलेगा, क्षेत्र से पलायन रुकेगा. बुंदेलखंड के लोगों ने इन योजनाओं के कारगर होने के लिए अगले चुनाव का इंतजार शुरू कर दिया है.

सरकार ने पेयजल के लिए यूपी जल निगम का एक टोल-फ्री नंबर भी दिया था. उस नंबर पर डायल कीजिए तो फोट उठता नहीं और उठता है तो बोलने वाला पुलिसिया अंदाज में बात करता है. बुंदेलखंड की तपती जमीन पर नेता बिना लाव-लश्कर लिए घूमें, तब उन्हें असलियत का पता चले. ललितपुर के तालबेहट ब्लॉक में ग्योरा गांव के लगभग आठ सौ परिवारों के लिए महज नौ हैंडपंप हैं. लेकिन इस गर्मी में केवल चार हैंडपंपों में ही थोड़ा-थोड़ा पानी आ रहा है. लोगों को ऐसे कुओं का पानी पीने के लिए विवश होना पड़ रहा, जिसमें कचरा रहता है. हैंडपंप के पानी में भी हानिकारक तत्व की अधिकता है.

पानी से होने वाली तमाम बीमारियां यहां के लोगों और बच्चों को ग्रसित किए हुई हैं. झांसी के बबीना ब्लॉक में रसीना गांव के लोगों का हाल बहुत बुरा है. इस गांव में डेढ़ सौ फीट खोदने पर भी पानी नहीं मिलता. लोग कई-कई किलोमीटर दूर के गांवों से पानी ढोकर लाते हैं. सिमरिया गांव में कहने के लिए 25 हैंडपंप हैं, लेकिन इनमें मात्र छह ही चालू हालत में हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुंदेलखंड आकर पांच-पांच नदियों के होने की बात तो करते हैं, लेकिन नदियों की खराब हालत के बारे में कुछ नहीं कहते. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बुंदेलखंड आकर पेयजल समस्या का जिक्र किया, लेकिन नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए किसी भी सरकारी योजना का कोई जिक्र नहीं किया. सरकार के पास यह रिपोर्ट है कि बेतवा नदी जानलेवा तौर पर प्रदूषित हो चुकी है. बेतवा का पानी किसी जहर से कम नहीं रह गया है. यह वैज्ञानिक शोध में प्रमाणित हो चुका है और इसकी रिपोर्ट सरकार तक भेजी जा चुकी है. बेतवा नदी के पानी में घुला रसायन शरीर को नुकसान पहुंचा रहा है.

एक समय बेतवा नदी का पानी शुद्ध था, लेकिन अब यह जहरीला हो चुका है. बेतवा नदी में काफी सिल्ट जम चुकी है और नदी का एक हिस्सा सिल्ट के कारण टापू में तब्दील हो चुका है. नदी के पानी में आर्सेनिक भी काफी मात्रा में है. पानी में जो तैलीय पदार्थ बह कर आता है, उस वजह से जानवरों की खाल उधड़ने लगती है. इलाके के लोग अगर नदी में नहा लेते हैं, तो शरीर पर फफोले हो जाते हैं. बांदा जिले के लगभग 300 से ज्यादा गांवों के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली केन नदी का वजूद भी खतरे में है.

लगभग दो दशक से चल रहा रेत-बालू के खनन का खेल इसे नष्ट कर रहा है. रेत माफिया के आगे सरकारें नतमस्तक रही हैं, जिस वजह से बुंदेलखंड की नदियों का भीषण नुकसान हुआ है. योगी सरकार की सख्ती के कारण खनन का धंधा थोड़ा थमा है, लेकिन रुका नहीं है. हथियारों के बल पर केन नदी का सीना अब भी खोदा जा रहा है. केन नदी छिछली होकर रह गई है. केन और बेतवा को जोड़े जाने की योजना और विनाशकारी साबित होने वाली है. जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह कहते हैं कि केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना ही गलत है.

इससे सिर्फ ठेकेदारों की जेब भरेगी. इससे गरीबों को कोई फायदा नहीं पहुंचेगा. अभी जो सिंचाई हो रही है, उतनी भी नहीं हो पाएगी. केन-बेतवा को जोड़ने की जरूरत ही नहीं है. बहरहाल, बुंदेलखंड के नदी नालों और पहाड़ों को बुरी तरह खोद डाला गया है और यह क्रम जारी है. बांदा में केन नदी का पुल पार करने के बाद महोबा को जोड़ने वाले 60 किलोमीटर के हाईवे-76 के दोनों किनारों पर सैकड़ों जगह हो रहे अवैध खनन को कोई भी देख सकता है. यह अलग बात है कि सरकार को यह नहीं दिखता. विस्फोट से खोखले किए जा रहे पहाड़ों और दिन-रात चल रहे क्रशर देखकर सरकार और माफिया के गठजोड़ का खुला खेल खुली तरह समझ में आता है. महोबा और चित्रकूट में ग्रेनाइट की खुदाई भी दिन-रात चल रही है. इस पर कोई अंकुश नहीं.

सीएम को दिखाने के लिए एक रात में तालाब भर देते हैं नौकरशाह
किसी क्षेत्र में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को आना हो तो नौकरशाहों की सक्रियता देखिए, रातभर में सड़कें तैयार हो जाएंगी, रास्ते धुल जाएंगे, इलाके में हरियाली और खुशहाली नजर आने लगेगी. किसी शहीद के परिजन से मिलने मुख्यमंत्री उनके घर जा रहे हों तो उस घर में बिजली का कनेक्शन लग जाएगा, फटाफट एसी और पंखे लग जाएंगे, यहां तक कि चादर तकिए तक बदल जाएंगे. मुख्यमंत्री के वहां से जाते ही अधिकारी अपनी मौलिक नंगई पर उतर आते हैं और सारे साजो-सामान उखाड़ लिए जाते हैं. तब लोगों को पता चलता है कि सुविधाएं तो मुख्यमंत्री जी को तकलीफ न हो इसके लिए लगाई गई थीं.

पूरी व्यवस्था को सड़ाने के असली दोषी नौकरशाह हैं, जो नेताओं को आगे करके सबको बेवकूफ बनाते हैं और संसाधनों को लूटते हैं. बुंदेलखंड में भी ऐसा ही हुआ. मुख्यमंत्री को वहां जाना था तो नौकरशाहों ने रातो रात तालाब में पानी भर दिया. सूखे का मारा गांव अचानक पानी से लबालब हो गया. नौकरशाहों ने यह जादू दिखाया झांसी के सूखा पीड़ित गांव टांकोरी में. अधिकारियों की यह कारस्तानी देख कर गांव के लोग हैरत में आ गए, जब उन्होंने देखा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगमन के पहले गांव का विशाल तालाब रातो रात पानी से भर दिया गया. गांव वाले तैयारी में थे कि अर्से से सूखे पड़े तालाब के बारे में वे मुख्यमंत्री से शिकायत करेंगे कि पूरे क्षेत्र को कभी पानी मुहैया करने वाला तालाब वर्षों से सूखा पड़ा है, लेकिन प्रशासन लगातार जनता की शिकायतों की अवहेलना कर रहा है.

लेकिन क्षेत्र के लोगों ने सुबह देखा कि तालाब तो पानी से लबालब है. गांव वाले मुख्यमंत्री के सामने पोल न खोल दें, इसके लिए गांव के मानिंदों को पुलिस ने बुरी तरह धमकाया और मुंह न खोलने की हिदायत दी. गांव वालों ने डर के मारे मुख्यमंत्री के सामने कुछ नहीं बोला. कुछ मुखर ग्रामीणों को उनके घर में बंद कर पुलिस ने बाहर से कुंडी लगा दी थी. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में आपातकाल लगा था. मुख्यमंत्री को विकास का ‘दृश्य’ दिखाने के लिए गांव के तालाब को टैंकरों से भर दिया गया.

एक दिन पहले गांव का तालाब सूखा था, दूसरे दिन उसमें पानी लबालब भरा था. और मुख्यमंत्री कैसा कि उसे जमीनी हकीकत के बारे में कोई सूचना नहीं, कोई जानकारी नहीं.

बुंदेलखंड दौरे पर निकले मुख्यमंत्री ने तालाब के निरीक्षण का कार्यक्रम भी रखा था. इसके लिए मुख्यमंत्री ने झांसी-मवई गिर्द रोड पर उपेक्षित और सूखा प्रभावित गांव टांकोरी चुना था. मुख्यमंत्री को प्रसन्न करने के लिए प्रशासन ने मुस्तरा तालाब से आए नाले में पानी छोड़कर टांकोरी तालाब भर दिया गया. पानी भरने के लिए भारी तादाद में टैंकर लगाए गए थे. मुख्यमंत्री के वहां पहुंचने के पहले स्टेज सेट हो चुका था.

ग्राम प्रधान रामलाल अहिरवार और दूसरे प्रमुख लोगों को पुलिस ने दूर ही रोक लिया था. स्थानीय पत्रकारों को भी मुख्यमंत्री के पास फटकने नहीं दिया गया. मुख्यमंत्री को टांकोरी गांव के प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालय का निरीक्षण करने भी जाना था. पुलिस ने स्कूल के पास बने घरों में बाहर से कुंडी लगा दी थी, ताकि लोग मुख्यमंत्री तक पहुंच नहीं पाएं. बाद में स्थानीय प्रशासन ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर दूसरे जिलों से पुलिस मंगाई गई थी.

बुंदेलखंड की भुखमरी बन रही है कामयाब फिल्मों की पटकथा

सुनने में तो मामला विवादास्पद दिखता है, लेकिन यह सच भी है कि देश की गरीबी बदहाली और फटेहाली दिखा-दिखा कर कई लोग बड़े-बड़े फिल्मकार बन गए. उन्होंने भारत की गरीबी और बदहाली दूर करने का जतन नहीं किया, बल्कि उसे विकसित दुनिया को बेचा और बड़े बन गए. खूब पुरस्कार और सम्मान बटोरे. ऐसे ही खोखले बड़प्पन पर लोग खुश होते हैं. त्रासदी के मारे बुंदेलखंड के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. बुंदेलखंड की भुखमरी भी फिल्मों का प्लॉट बन रही है और हिट हो रही है. हाल ही में बुंदेलखंड के अभागे किसानों पर बनी फिल्म ‘बी फॉर बुंदेलखंड’ कोलकाता फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत हुई है.

लोगों ने इस फिल्म की जमकर तारीफ की. फिल्म के निदेशक विशाल मौर्य और देवी प्रसाद लेंका को ‘बेस्ट डेब्यू फिल्म मेकर’ के अवॉर्ड से भी नवाजा गया. इस फिल्म को इतनी सराहना मिली कि अब इसके ‘गोल्डन फॉक्स अवॉर्ड्स’ के लिए चुने जाने की भी पूरी संभावना जताई जा रही है. सूखे से प्रभावित बुंदेलखंड के किसानों की बदहाली ही इस फिल्म के मूल में है. ‘बी फॉर बुंदेलखंड’ फिल्म की कहानी किसान राम सिंह और उसके बेटे लल्ला पर आधारित है. राम सिंह पर कर्जे का बोझ है और इस कर्ज को चुकाने के लिए उनका बेटा जमीन बेचने की बात करता है. राम सिंह इंकार करते हैं, तो बेटा गांव छोड़ कर जाने लगता है. विवश राम सिंह फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं. फिल्म की यह कथा बुंदेलखंड की क्रूर असलियत है.

आंकड़ों में बुंदेलखंड की बदहाली

भारतीय स्टेट बैंक के वर्ष 2016 के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के किसानों पर कुल कृषि ऋण 86,241.20 करोड़ है. भारतीय रिजर्व बैंक कहता है कि ढाई एकड़ से कम जोत वाले 31 प्रतिशत सीमांत और लघु किसानों को ऋण दिया गया है. यानि, प्रदेश सरकार ने लघु और सीमांत किसानों के कुल 27,419.70 करोड़ का कर्ज माफ किया. कर्जे का औसत प्रति किसान लगभग 1.34 लाख रुपए का है. सरकारी दस्तावेज कहता है कि कर्जा लेने वाले लघु और सीमांत कृषकों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ है.

जबकि 10 करोड़ किसानों में से 2.33 करोड़ लघु और दो करोड़ सीमांत कृषक हैं. स्पष्ट है कि इन सभी पर किसी न किसी प्रकार का कर्ज जरूर है. फिर सवाल उठता है कि सरकार ने किस आधार पर महज डेढ़ करोड़ कर्जदार किसानों की सूची बनाई? खैर, उत्तर प्रदेश का इस वर्ष (2016-17) का सालाना बजट 3.46 लाख करोड़ रुपए का है. सरकार को इस वर्ष के कुल बजट का 33 प्रतिशत हिस्सा कर्ज माफी के लिए बैंकों को देना होगा. इससे वित्तीय वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश को 49,960.88 करोड़ रुपए का राजकोषीय घाटा होगा. यह घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 4.04 प्रतिशत है. कर्ज माफी के बाद यह घाटा 55 प्रतिशत बढ़ जाएगा.

उत्तर प्रदेश की वित्तीय हालत पहले से ही खराब चल रही है. इस प्रदेश में किसानों की हालत यह रही है कि वर्ष 2013 में यहां 750 किसानों ने आत्महत्याएं की थीं. वर्ष 2016 में 1800 किसानों ने आत्महत्या की. आधे से अधिक आत्महत्याएं सूखाग्रस्त बुंदेलखंड और गरीब पूर्वांचल में हुईं. इन आत्महत्याओं का मुख्य कारण किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का ऋण और उससे भी अधिक साहूकारों का ऋण है. साहूकारों से किसानों ने 20 से 24 प्रतिशत ब्याज पर कर्जा ले रखा है. इसमें किसान की खेती-बाड़ी सब गिरवी पड़ी हुई है और किसान साहूकारों का बंधुआ मजदूर बन गया है. साहूकारों से किसानों को मुक्ति दिलाने की सरकार की तरफ से कोई कानूनी कोशिश नहीं हो रही है.

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