चेचन्या के राष्ट्रपति रमज़ान क़ादीरोव ने कहा कि यह एक असहनीय कृत्य है और इससे पूरी इस्लामी दुनिया आहत हुई है. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने इस कृत्य को अलोकतंात्रिक बताया. इसके अलावा कई देशों के प्रमुखों ने एक ओर पत्रकारों की हत्या की निंदा की, वहीं कॉर्टूनों के पुन: प्रकाशन पर भी कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि इस कृत्य के चलते पूरी इस्लामी दुनिया की भावनाएं आहत हुई हैं. शासक वर्ग के अलावा विभिन्न शख्सियतों एवं संगठनों की ओर से भी कॉर्टून छापने पर आपत्ति जताई गई. अल्जीरिया की स्टूडेंट यूनियन की ओर से एक बयान आया, जिसमें कहा गया है कि अगर फ्रांस ने स्वतंत्रता के नाम पर मोहम्मद साहब का अपमान बंद नहीं किया, तो सभी फ्रांसीसी संस्थानों का बहिष्कार किया जाएगा. इस यूनियन से 24 हज़ार विद्यार्थी जुड़े हुए हैं. दूसरी ओर अल्जीरिया की ट्रेड यूनियन के बुलनवाज़ ने आपत्ति जताते हुए कहा कि जब तक फ्रांस इस तरह के कृत्यों पर रोक नहीं लगाता, तब तक फ्रांसीसी उत्पादों का बहिष्कार जारी रहेगा. 

150107120309-charlie-hebdo-फ्रांस की पत्रिका शार्ली ऐब्दो ने मोहम्मद साहब का आपत्तिजनक कॉर्टून प्रकाशित किया है, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप पत्रिका के 12 लोगों की हत्या कर दी गई. इसकी निंदा पूरी दुनिया में हुई और सबने कहा कि पत्रिका का तरीक़ा ग़लत था और प्रतिक्रिया के रूप में हिंसा अपनाना भी बिल्कुल उचित नहीं है. दो भाइयों ने मिलकर पत्रिका के कार्यालय में जो हिंसा की, वह इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है. हालांकि, कुछ देशों में पत्रिका के व्यवहार पर प्रदर्शन हुए, लेकिन उनमें आक्रोश नहीं था. लेकिन, जब पत्रिका ने दोबारा कॉर्टून प्रकाशित किए, तो इस्लामी दुनिया के लोग आक्रोशित हो गए और विभिन्न देशों में विरोध प्रदर्शन होने लगे. कुछ स्थानों पर पुलिस के साथ झड़पें हुईं, जबकि कहीं-कहीं पर फ्रांसीसी संस्थानों को नुक़सान भी पहुंचाया गया. इन झड़पों, फ्रांसीसी संस्थाओं को नुक़सान पहुंचाने और धमकियां देने से एक बात खुलकर सामने आती है कि इस्लामी दुनिया में जहां एक ओर उक्त पत्रिका के पत्रकारों पर जानलेवा हमले की निंदा की जा रही है, वहीं पुन: कॉर्टून प्रकाशित करने और फ्रांसीसी जनता द्वारा उक्त अंक हाथों-हाथ लेने की कड़ी निंदा हो रही है. विश्‍लेषकों की मानें, तो फ्रांसीसी जनता के इस अमल ने दो संस्कृतियों के बीच बहुत बड़ी खाई पैदा कर दी है.
उक्त पत्रिका की प्रसार संख्या क़रीब 60 हज़ार है, लेकिन पुन: कॉर्टून प्रकाशित करने के बाद फ्रांस की जनता की पत्रिका में इतनी रुचि बढ़ गई कि उसकी लाखों प्रतियां हाथों-हाथ बिक गईं. जाहिर है, यूरोप की संस्कृति के पक्षधर लोगों को मुसलमानों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उक्त पत्रिका नहीं खरीदनी चाहिए थी, लेकिन जिस तरह से
लंबी-लंबी लाइनें लगाकर लोगों ने उसे खरीदा, उसने मुसलमानों के बीच नफ़रत बढ़ा दी. नतीतजन, फ्रांस और उक्त पत्रिका के लिए घोर आक्रोश पैदा हुआ. नफ़रत और आक्रोश का इज़हार मुस्लिम सरकारों, संगठनों एवं जनता की ओर से बड़े स्तर पर किया गया. पत्रिका में मोहम्मद साहब के आपत्तिजनक कॉर्टून प्रकाशित होने पर पाकिस्तान की असेंबली में निंदा प्रस्ताव परित किया गया और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने इसकी कड़ी निंदा की. ईरान के गृह मंत्रालय ने भी एक बयान में फ्रांसीसी पत्रिका की कड़े शब्दों में निंदा की और इसे इस्लाम धर्म का अपमान एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत क़रार दिया. तुर्की के प्रधानमंत्री अहमद दाऊद ओगलो ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपमान करने का लाइसेंस नहीं देती, पत्रिका ने ऐसा करके मुसलमानों को आक्रोशित किया है. तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यब अर्दगान ने अपने बयान में कहा कि ये कॉर्टून घृणात्मक हैं, हम इसकी अनुमति बिल्कुल नहीं देंगे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसका नोटिस लेना चाहिए, हम ऐसे कृत्य सहन नहीं करेंगे.
चेचेन्या के राष्ट्रपति रमज़ान क़ादीरोव ने कहा कि यह एक असहनीय कृत्य है और इससे पूरी इस्लामी दुनिया आहत हुई है. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने इस कृत्य को अलोकतंात्रिक बताया. इसके अलावा कई देशों के प्रमुखों ने एक ओर पत्रकारों की हत्या की निंदा की, वहीं कॉर्टूनों के पुन: प्रकाशन पर भी कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि इस कृत्य के चलते पूरी इस्लामी दुनिया की भावनाएं आहत हुई हैं. शासक वर्ग के अलावा विभिन्न शख्सियतों एवं संगठनों की ओर भी कॉर्टून छापने पर आपत्ति जताई गई. अल्जीरिया की स्टूडेंट यूनियन की ओर से एक बयान आया, जिसमें कहा गया है कि अगर फ्रांस ने स्वतंत्रता के नाम पर मोहम्मद साहब का अपमान बंद नहीं किया, तो सभी फ्रांसीसी संस्थानों का बहिष्कार किया जाएगा. इस यूनियन से 24 हज़ार विद्यार्थी जुड़े हुए हैं. दूसरी ओर अलजज़ाइर की ट्रेड यूनियन के बुलनवाज़ ने आपत्ति जताते हुए कहा कि जब तक फ्रांस इस तरह के कृत्यों पर रोक नहीं लगाता, तब तक फ्रांसीसी उत्पादों का बहिष्कार जारी रहेगा. ग़ौरतलब है कि अल्जीरिया के बाज़ार में सबसे अधिक फ्रांसीसी उत्पाद ही होते हैं. मोरक्को में भी काफी आक्रोश है. वहां की जनता, सिविल सोसायटी, व्यापारिक संगठनों एवं अन्य कई वर्गों की ओर से फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार की घोषणा की गई है. मोरक्को की जनता की नाराज़गी और सरकार की आपत्ति दूर करने के लिए फ्रांस ने अपने विदेश मंत्री को मोरक्को भेजने की घोषणा की है. पाकिस्तान के ़फैसलाबाद अंजुमन व्यापारी सिटी की ओर से पत्रिका की कड़ी निंदा की गई. मिस्र के सरकार प्राधिकरण दारूलअता की ओर कहा गया कि पत्रिका के इस कृत्य ने दुनिया भर के मुसलमानों को आहत किया है, जिसका अंजाम बुरा हो सकता है. क़तर में अल्लामा क़रज़ावी के नेतृत्व में मुस्लिम उलेमा एवं विद्धानों की अंतरराष्ट्रीय यूनियन की ओर से कहा गया कि पत्रिका के इस कृत्य से एकता की भावना और सांस्कृतिक संवाद को नुक़सान पहुंचा है. सउदी अरब के मशहूर आलिम दीन शेख़ ग़ामदी का कहना है कि पत्रिका ने पूरी दुनिया के मुसलमानों की भावनाएं आहत की हैं.
पूरी इस्लामी दुनिया में होने वाले प्रदर्शन बता रहे हैं कि पत्रिका ने मुसलमानों को काफी आक्रोशित किया है. कार्टून के प्रकाशन के बाद नाइजीरिया में 45 चर्चों को नुक़सान पहुंचाया गया. पांच होटलों एवं 36 दुकानें लूट ली गईं. प्रदर्शनों के दौरान पांच लोगों की मौत हो गई, जबकि 128 लोग घायल हुए, जिनमें सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं. इसके अलावा फ्रेंच कल्चरल सेंटर के भवन को आग लगा दी गई. पाकिस्तान के शहर कराची में फ्रांस के दूतावास के सामने प्रदर्शन हुए, जिसमें पुलिस के साथ हुई झड़प में पत्रकार आसिफ़ हसन को सीने में गोली लगी, जिन्हें तुरंत जिन्ना अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां ऑपरेशन करके उनकी जान बचाई गई. इसके अलावा भी कई लोग घायल हुए. पाकिस्तान के ही शहर मुल्तान में प्रदर्शनकारियों ने फ्रांस का झंडा जलाया और पेशावर एवं लाहौर में भी बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. अफगानिस्तान के शहर जलालाबाद में मुतीउर्रहमान अहमद ज़ई अहमद के नेतृत्व में विशाल प्रदर्शन किया गया, जिसमें फ्रांस से कूटनीतिक संबंध ख़त्म करने की मांग की गई.
रूस की राजधानी मास्को में एक बड़े प्रदर्शन की तैयारी चल रही थी, लेकिन प्रशासन ने उसकी अनुमति नहीं दी. कुर्दिस्तान के पहीरान शहर में मुस्तफ़ा मोहम्मद के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन में कहा गया कि इस आपत्तिजनक कॉर्टून ने अरबों को नाराज़ कर दिया है. अलकुदस में भी प्रदर्शन हुआ. यह प्रदर्शन नुसरत बनी के नाम से मस्जिद-ए-अक्सा के मैदान में हुआ. जिस समय यह प्रदर्शन हो रहा था, मैदान में इजराइली सेना भी बड़ी संख्या में मौजूद थी, लेकिन कोई हादसा नहीं हुआ. इसी तरह जॉर्डन की राजधानी ओमान की मशहूर मस्जिद हुसैनी के सामने एक मैदान में हज़ारों लोगों ने एकत्र होकर पत्रिका और फ्रांस की नीति के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. प्रदर्शन का नेतृत्व जॉर्डन नेशनल कमीशन नामक संगठन ने किया. प्रदर्शनकारी ट्रंगल सर्किल की ओर से फ्रांसीसी दूतावास में प्रवेश करना चाहती थी, लेकिन सुरक्षाबल के जवानों ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया, जिसके चलते उनके और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प भी हुई. उक्त पत्रिका के विरोध में एक प्रदर्शन अलजज़ायर में हुआ, जिसमें बच्चे और महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हुए. प्रदर्शनकारी फ्रांसीसी दूतावास तक जाना चाहते थे, लेकिन उनके तेवर देखकर पुलिस ने उन्हें नहीं जाने दिया. नतीजतन पुलिस के साथ उनकी झड़प हुई, पथराव हुआ और पुलिस पर शीशे के टुकड़े फेंके गए. जवाब में पुलिस ने पानी की बौछार की. इस भिड़ंत में कई पुलिसकर्मी घायल हुए.
इसी तरह सूडान की राजधानी ख़रतूम की जामा मस्जिद के सामने हज़ारों लोगों ने प्रदर्शन किया, लेकिन जनाक्रोश को देखते हुए यहां भी पुलिस ने उन्हें फ्रांसीसी दूतावास तक जाने नहीं दिया. मूरीतानिया में नुवाकशूत में भी जबरदस्त प्रदर्शन हुआ. प्रदर्शनकारियों ने पत्रिका और फ्रांस के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की. प्रदर्शनकारी फ्रांसीसी दूतावास जाकर प्रदर्शन करना चाहते थे, लेकिन हालात को देखते हुए पुलिस ने उन्हें रोक दिया, तो उन्होंने फ्रांस के झंडे को आग लाकर अपना आक्रोश व्यक्त किया. इस प्रदर्शन में उलेमा और इमामों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया. इस्तांबुल में अलहया अलअख्विया लिलसहाबा के नेतृत्व में एक समूह जामा मस्जिद अलफ़ातह के सामने एकत्र हुआ और उसने पत्रिका के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. नारेबाज़ी के दौरान कुछ लोग हमलावर दोनों भाइयों पर नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया. रूस के उत्तर-पूर्व में स्थित मुस्लिम बाहुल्य लोकतांत्रिक चेचेन्या की राजधानी गरज़ूनी में लाखों लोगों ने आपत्तिजनक कॉर्टून के प्रकाशन और इस्लाम का अपमान करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में अन्य राज्यों से भी मुसलमान बड़ी संख्या में शामिल हुए. इन चिंताजनक हालात में ईसाइयों के आध्यात्मिक गुरु पोप फ्रांसिस का बयान सराहनीय है. पोप ने फ्रांसीसी पत्रिका में प्रकाशित हुए आपत्तिजनक कॉर्टूनों की निंदा करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी कुछ सीमाएं होनी चाहिए. पोप के अनुसार, किसी भी धर्म का मज़ाक उड़ाना अच्छी बात नहीं, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति मेरी मां के ख़िलाफ़ अपशब्द प्रयोग करे, तो उसे मेरा घूंसा खाने के लिए तैयार रहना चाहिए.
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उक्त अपमानजनक कॉर्टूनों के प्रकाशन के ख़िलाफ़ इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी की ओर से अब तक कोई कड़ी प्रतिकिया सामने नहीं आई है. संगठन के महासचिव ऐयाद मदनी केवल यह घोषणा करके अपनी ज़िम्मेदारियों से बरी हो गए हैं कि ओआईसी चार्ली ऐब्दो के ख़िलाफ़ फ्रांसीसी एवं यूरोपीय अदालतों में जाने का इरादा रखती है. हालांकि, दुनिया यह जानती है कि इन अदालतों से मुसलमानों को न्याय मिलने की कोई आशा नहीं है. उत्तरी क़फ़क़ाज़ स्थित पूर्व रूसी देश अंगूशीतिया की राजधानी मगास में भी विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें 20 हज़ार से अधिक लोगों ने शिरकत की. अंगूशीतिया के प्रमुख यूनुस बेग यूकोरो ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि हम देश के नागरिकों की धार्मिक भावनाएं आहत किए जाने की कोशिशों का निरंतर मुक़ाबला करते हैं.

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