एक सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने का काम हम भगवान या अपने देवताओं की ओर देखे बिना, इस ज़मीन और यहां के लोगों और अपने परिवार को देखते हुए कर सकते हैं. इस प्रयास में हम सबकी अपनी-अपनी भूमिकाएं हैं, लेकिन कुछ लोगों को अपना विशेष योगदान देना होगा. धार्मिक नेता अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं. वे अलग-अलग धर्मों के अनुयायियों को एक सार्थक संवाद के लिएएक प्लेटफार्म पर ला सकते हैं. वे अलग-अलग धर्मों और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं, ताकि आपसी मेल-मिलाप को बढ़ावा दिया जा सके. वे इस तथ्य पर ध्यान दे सकते हैं कि एक धर्म पर हमला सभी धर्मों पर हमला है.

पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन अपने हालिया लेख की शुरुआत करते हुए कहते हैं कि हाल की घटनाओं ने एक जीवंत, बहुलतावादी और सफल लोकतंत्र के रूप में भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया है. इस लेख में उन्होंने देश के सामाजिक और राजनैतिक संवाद में बढ़ते ध्रुवीकरण और सांप्रदायिकता पर अपनी चिंता व्यक्त की है.

सरन ने आगे लिखा है कि हमें गर्व है कि हम दुनिया केे सबसे सहिष्णु लोगों में से हैं. हम धर्म, संस्कृति और परंपरा, भाषा और जीवन शैली की विविधताओं को सेलिब्रेट करते हैं. विविधता भागीदारी से पैदा होती है, लेकिन यह उस समय जहर बन जाती है, जब विविधता से हम और वे का फ़र्क पैदा होता है. हिंदू-मुस्लिम अलगाव के द्वन्द्व की बुनियाद पर कोई अति-महत्वपूर्ण हिंदू पहचान नहीं बनाई जा सकती है.

दरअसल, अलगाव के बजाए हमें एक साझी आध्यात्मिक जमीन तलाशने की आवश्यकता है. यह साझी ज़मीन यूं ही नहीं मिलेगी. इसके लिए दृढ विश्वास के साथ निरंतर कोशिश की आवश्यकता होगी. यह साझी ज़मीन धार्मिक, क्षेत्रीय और नस्ली भेदभाव के मिटने से हासिल होगी.

हम ऐसा आदर्श राज्य कैसे बना सकते हैं? इसके लिए हमें वहीं से शुरुआत करनी चाहिए, जहां हम फ़िलहाल हैं. यहीं से हमें अपने साझा मूल्यों की पहचान करनी चाहिए, उन्हें मजबूती प्रदान करनी चाहिए और उसी के सहारे आगे का रास्ता तलाशना चाहिए.

अपने साझा मूल्यों की खोज के लिए मैं उदाहरण स्वरूप अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खां और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा दी गई शिक्षाओं को उद्धृत करूंगा. इन दो दूरदर्शी महापुरुषों ने दुनिया को धर्म के संकुचित दृष्टि के बजाए एक विस्तृत दृष्टिकोण से देखा और यह दिखाया कि कैसे एक मजबूत समावेशी सोच लोगों को बांटने के बजाए उन्हें एकजुट करती है.

पंडित मालवीय कहते हैं कि भारत केवल हिन्दुओं का देश नहीं है. यह मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों का भी देश है. यह देश उस स्थिति में मज़बूत होगा और तरक्की करेगा, जब यहां के लोग एक-दूसरे के साथ घुलमिल कर रहेंगे और एक-दूसरे का भला सोचेंगे. सर सैयद की सोच भी कुछ ऐसी ही थी. उन्होंने कहा था कि अलीगढ़ से शिक्षा प्राप्त छात्र इस सरज़मीन के कोने-कोने में जाकर आज़ादख्याली, सहिष्णुता और नैतिकता का प्रचार करेंगे. हालांकि सर सैयद और पंडित मालवीय के धार्मिक विचार एक-दूसरे से भिन्न थे, लेकिन बिना किसी संदेह के दोनों के बीच एक आध्यत्मिक एकरूपता थी. उन्हें मालूम था कि आध्यात्मिकता हर सीमा से परे है. वे जानते थे कि आत्मा अदृश्य शक्ति है, जो हमें हमारे पूर्वाग्रहों के बावजूद एकजुट करती है. वे इस बात को मानते थे कि भारत एक भगवान की छत्रछाया में एक सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र होगा.

अब सवाल यह उठता है कि एक भगवान की छत्रछाया से क्या तात्पर्य है? ऐसा देश कैसे वजूद में आएगा? तो इसका जवाब यह होता कि वो भगवान न हिंदू भगवान होगा, न मुस्लिम भगवान होगा और न ही ईसाई भगवान होगा. वह भगवान सार्वभौमिक और गैर-सांप्रदायिक होगा. वह भगवान सभी का स्वागत करेगा. किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा और न ही किसी तरह के भेदभाव को प्रोत्साहित करेगा.

एक सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने का काम हम भगवान या अपने देवताओं की ओर देखे बिना, इस ज़मीन और यहां के लोगों और अपने परिवार को देखते हुए कर सकते हैं. इस प्रयास में हम सबकी अपनी-अपनी भूमिकाएं हैं, लेकिन कुछ लोगों को अपना विशेष योगदान देना होगा. धार्मिक नेता अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं. वे अलग-अलग धर्मों के अनुयायियों को एक सार्थक संवाद के लिएएक प्लेटफार्म पर ला सकते हैं. वे अलग-अलग धर्मों और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं, ताकि आपसी मेल-मिलाप को बढ़ावा दिया जा सके. वे इस तथ्य पर ध्यान दे सकते हैं कि एक धर्म पर हमला सभी धर्मों पर हमला है.

राजनेता एकता और सभ्यता का ढांचा तैयार कर सकते हैं. वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सभी कानून निष्पक्ष और सही तरीके  से लागू हों. वे सांप्रदायिक शांति और सद्भाव के माहौल को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक कार्रवाई कर सकते हैं. वे डर की जगह उम्मीद को बढ़ावा दे सकते हैं. नागरिक व नेता आपसी सहयोग और अपने लोगों के साथ मिलकर अच्छे कामों को बढ़ावा दे सकते हैं. वे ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा दे सकते हैं, जिनके जरिए नस्लीय, धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक विभाजन को खत्म किया जा सके. वे एक मजबूत और बेहतर भारत को आकार देने में मदद कर सकते हैं.

डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका विश्व में लोकतंत्र के अग्रणी देश की अपनी भूमिका से पीछे हट रहा है और इसकी वजह से एक खालीपन आता जा रहा है. अपनी आध्यात्मिक एकता के जरिए और एक भगवान के अधीन, एक राष्ट्र बनकर, भारत अपनी पूरी क्षमता के साथ विश्व में लोकतंत्र का अग्रणी देश बन सकता है और अमेरिका द्वारा रिक्त किए गए स्थान को भर सकता है.

— (लेखक एक उद्यमी और समाजसेवी हैं और अमेरिका में रहते हैं.)

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