उत्तर प्रदेश में मदरसों का धंधा बेतहाशा चल रहा है. देश-विदेश के विभिन्न स्रोतों से आने वाला फंड धंधेबाजों को मदरसे का धंधा चलाने के लिए आकर्षित करता है. कई भारतीय मध्य-पूर्व के देशों में महज इसलिए बस गए हैं कि वे वहां से फंड हासिल करें और अपने निजी अकाउंट से धन ट्रांसफर करते रहें. इसमें विदेशी अनुदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

मदरसे का धंधा चैरिटेबल सोसाइटी और चैरिटेबल ट्रस्ट का सहारा लेकर चलाया जा रहा है. मदरसे के धंधे की आड़ में ही तमाम अनैतिक गतिविधियां चलाई जा रही हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कुछ बुद्धिजीवियों ने मदरसों की आड़ लेकर चलाए जा रहे धंधे के खिलाफ सामाजिक मुहिम छेड़ दी है.

मदरसों में शरियत को ताक पर रखने, फंडिंग का बेजा इस्तेमाल करने और छात्र-छात्राओं के साथ अश्लील आचरण करने जैसे जघन्य कृत्यों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में व्यापक पैमाने पर मुहिम चल रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से उठी मशाल पूरे प्रदेश और देश में लौ जगाएगी. शिया धर्मगुरु और ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि धार्मिक शिक्षण के स्थान खुदा की इबादत की तरह पवित्र होते हैं, उसे अपने आचरणों से अपवित्र करना गैर-धार्मिक और गैर-इस्लामिक है.

उलेमा फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना सैयद कौकब मुज्तबा ने भी कहा कि मदरसों के नाम पर धंधा चलाने वाले तत्वों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई आवश्यक है. इस्लामिक साहित्य के विद्वान अल्लामा जमीर नकवी के नेतृत्व में कई बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों ने इसका बीड़ा उठाया है और इरान की अल मुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध व कुवैत से फंडेड लखनऊ के दो मदरसों से अभियान की शुरुआत की है.

लखनऊ के सआदतगंज स्थित कश्मीरी मोहल्ले में अल-ज़हरा एडुकेशनल एंड चैरिटेबिल सोसाइटी के तहत चल रहे मदरसा अल-ज़हरा और मदरसा खदीजतुल कुबरा को केंद्र में रख कर अभियान की शुरुआत की गई है. अल्लामा जमीर नकवी कहते हैं कि ये मदरसे छात्राओं को धार्मिक शिक्षण देने के लिए बने हैं. छात्राओं का मदरसा होने के कारण ये अधिक संवेदनशील हैं, इसलिए यहां से अभियान की शुरुआत की गई है. इन मदरसों में सुधार हुआ तो उसका व्यापक संदेश जाएगा और अन्य मदरसे भी सुधरने की तरफ अग्रसर होंगे. अधिकतर मदरसों में देश-विदेश के विभिन्न स्रोतों से धन आता है. इसका नाजायज इस्तेमाल हो रहा है.

इसके अलावा तमाम गैर शरियती गतिविधियां चलती हैं. यह अत्यंत चिंता का विषय है. नकवी कहते हैं कि अल-ज़हरा एडुकेशनल एंड चैरिटेबिल सोसाइटी का संस्थागत अकाउंट बैंक ऑफ बड़ौदा की नक्खास शाखा में है, लेकिन देश-विदेश के विभिन्न स्रोतों से आने वाला फंड लखनऊ के नादान महल रोड स्थित आईसीआईसीआई बैंक (अकाउंट नंबर- 000401408949) में जमा होता है. यह एनआरआई अकाउंट है, जो संस्था के अध्यक्ष सैयद शम्स नवाब रिजवी के नाम है.

संस्था के अध्यक्ष विदेश में ही रहते हैं, लेकिन उनके इस अकाउंट को संस्था के उपाध्यक्ष (वाइस प्रेसिडेंट) सैयद जहीर हुसैन रिजवी लखनऊ में ऑपरेट करते हैं. जबकि उक्त बैंक खाता मूल रूप से आईसीआईसीआई की कुवैत (सऊदी अरब) शाखा से सम्बद्ध है. नकवी इस पर सवाल उठाते हैं कि मदरसे को प्राप्त होने वाली समस्त धनराशियां आईसीआईसीआई के निजी खाते में प्राप्त की जाती हैं और फिर उसे संस्था के आधिकारिक खाते में स्थानान्तरित किया जाता है.

इसके अलावा अलग-अलग छोटी-छोटी धनराशियां मदरसे के खाते में जमा कराई जाती हैं. इसका क्या कारण है? इस तरह की गुत्थियों की वजह से यह सुनिश्चित नहीं होता कि मदरसों के लिए किन-किन स्रोतों से अनुदान राशि कितनी-कितनी और कब-कब प्राप्त हो रही है. जमीर नकवी कहते हैं कि कुवैत के सांसद सालेह अहमद आशूर की तरफ से भेजा गया धन भी इस्तेमाल हो रहा है, जिसकी पुष्टि बैंक खातों द्वारा होती है. इन खातों की जांच की कानूनी कार्रवाइयों के लिए भी पहल हो रही है, ताकि यह पता चल सके कि मदरसे की आड़ में काले धन का धंधा तो नहीं चल रहा है! जिस तरह की गतिविधियां सामने आई हैं, उससे इस तरह के संदेह पुख्ता होते हैं.

इन मदरसों के तहत लड़कियों के हॉस्टल और अनाथालय बनाए जाने के लिए हरदोई रोड के निर्जन इलाके में 12 हजार वर्ग फिट जमीन खरीदी गई. नकवी यह सवाल उठाते हैं कि जब जमीन खरीद ली गई, तो वहां हॉस्टल और अनाथालय क्यों नहीं बनवाया गया? क्या कारण है कि बालिकाओं के अनाथालय के लिए शहर से दूर बियाबान इलाके में भूमि खरीदी गई और हॉस्टल के नाम पर एक करोड़ की धनराशि खर्च दिखा कर लखनऊ के शाह नजफ रुस्तम नगर के सामने तीन फिट की संकरी गली में हॉस्टल के लिए एक घर (प्लॉट नं- 565, मकान नं.-390/067 (036) आधी राशि में खरीद लिया गया? हॉस्टल के लिए उक्त घर को 49 लाख 16 हजार रुपये में खरीदा गया, जिसकी रजिस्ट्री (दिनांक-21-12-2015) में 3 लाख 43 हजार रुपये का स्टाम्प लगा, यानि कुल 52 लाख 59 हजार रुपये लगे.

लेकिन इस हॉस्टल को एक करोड़ में खरीदा दिखाया गया. स्पष्ट है कि वित्तीय अनियमितता हुई. हॉस्टल के लिए खरीदे गए भवन के रख-रखाव और फिनिशिंग का काम रज़ा कंस्ट्रक्शन वर्क (295/113, अशरफ़ाबाद, थाना- बाजारखाला, लखनऊ) को दिया गया था, जिसके लिए उसे 12-01-2016 को 1 लाख 70 हजार 240 रुपये का भुगतान किया गया. अगर इस राशि को भी जोड़ दिया जाए तो हॉस्टल पर कुल 54 लाख, 29 हजार 240 रुपये ही खर्च हुए. फिर 45 लाख 70 हजार 760 रुपये कहां गए? यह सवाल सामने है.

विचित्र बात यह है कि मदरसे के कर्ता-धर्ता व अल-ज़हरा एडुकेशनल एंड चैरिटेबिल सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट सैयद जहीर हुसैन रिजवी ने आईसीआईसीआई बैंक के खाते से 01.12.2015 को 50 लाख 50 हजार 439 रुपये 41 पैसे निकाले. फिर 07.12.2015 को 10 लाख रुपये निकाले. दिनांक 14.12.2015 को फिर से 10 दस लाख रुपये निकाले गए. दिनांक 17.12.2015 को भी 10 लाख रुपये निकाले और फिर दो ही दिन बाद दिनांक 19.12.2015 को फिर पांच लाख रुपये निकाले. यानि संस्था के उपाध्यक्ष के हस्ताक्षर से महज 19 दिन में कुल 85 लाख 50 हजार 439 रुपये 41 पैसे निकाल लिए गए. इतनी बड़ी धनराशि आखिर किस मद में खर्च हुई? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है.

अल-ज़हरा एडुकेशनल एंड चैरिटेबिल सोसाइटी से हासिल दस्तेवज बताते हैं कि अनाथ बच्चों, विधवाओं, रोगियों वगैरह की सहायता के नाम पर भी बैंक से अंधाधुंध पैसे निकाले जाते हैं. दिनांक 10.04.2014 को 1 लाख 11 हजार 265 रुपये निकाले गए तो अगले ही दिन 11.04.2014 को संस्था के बैंक ऑफ बड़ौदा के आधिकारिक खाते से 11 हजार 395 रुपये निकाले गए. फिर उसके भी अगले दिन 12-04-2014 को 51 हजार 548 रुपये निकाले गए. तीन दिन बाद 15.04.2014 को फिर 1 लाख रुपये निकाले. उसी दिन कुर्बानी के नाम पर 10 हजार रुपये निकाले गए. दूसरे ही दिन 16.04.2014 को अनाथों के नाम पर 32 हजार 489 रुपये निकले.

उसी दिन 7 हजार 850 रुपये और निकले. 17.04.2014 को फिर 21 हजार 709 रुपये निकाले गए. यह कुछ बानगियां हैं. इस तरह बैंक खाते से बेतहाशा पैसे निकाले जाने के तमाम आंकड़े सामने आए, जिनकी जांच हो तो यह पता चले कि फंड में मिल रहा धन आता है, तो जाता कहां और किस तरह है! किन लोगों की सहायता में धन जाता है, इसका पूरा ब्यौरा गहराई से जांच-पड़ताल का विषय है और यह भीषण भ्रष्टाचार का अंदेशा देता है. मदरसे का सालाना खर्च करोड़ में दिखाया जाता है. इसका ब्यौरा देखेंगे, तो आपको आश्चर्य होगा.

इसमें ऐसे खर्चे भी शामिल हैं जो कभी होते ही नहीं. लोग कहते हैं कि इरान के अल मुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध होने के कारण शिक्षकों-कर्मचारियों के वेतन जैसे कई खर्चे तो वहां से आते हैं. हालांकि उलेमा फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना सैयद कौकब मुज्तबा कहते हैं कि इरान के उक्त यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध बताना भी फर्जीवाड़ा है, क्योंकि इस विश्वविद्यालय का कोई शैक्षणिक कार्यकलाप भारत में है ही नहीं. इस यूनिवर्सिटी का नाम ही फर्जी गोरखधंधों में चल रहा है.

अल्लामा जमीर नकवी कहते हैं कि लड़कियों के मदरसे का सारा प्रबंधन पुरुषों के हाथ में है. मदरसे का अर्थ-सूत्र कुवैत में बैठे सैयद शम्स नवाब रिजवी और कुवैत के सांसद सालेह आशूर के हाथों में है, तो लखनऊ में मैनेजमेंट की बागडोर सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट सैयद जहीर हुसैन रिजवी और सेक्रेटरी मुज्तबा हुसैन के हाथों में है. लड़कियों के मदरसे में सोसाइटी के सेक्रेटरी मुज्तबा हुसैन के बेटे सिब्तैन हुसैन और नूरैन हुसैन की भी जबरदस्त घुसपैठ है. यहां तक कि सेक्रेटरी के बेटे को भी संस्था से पैसे मिलते हैं. आईसीआईसीआई बैंक से मिले दस्तावेज ऐसे कई अजीबोगरीब लेन-देन का खुलासा करते हैं.

मसलन, सोसाइटी में चपरासी रहे अम्बर मेहदी को कुछ ही अंतराल में दो लाख रुपये दिए गए. पैसे प्राप्त करने वाले लोगों की फेहरिस्त में कई नाम ऐसे हैं, जिन्हें बार-बार संस्था की तरफ से लाखों रुपये दिए जा रहे हैं या वे संस्था की तरफ से बार-बार पैसे निकाल रहे हैं, वह भी लाखों में. अम्बर मेहदी संस्था में चपरासी थे. अम्बर की दो बेटियां बेबी फातिमा और जेबा फातिमा उसी मदरसे में पढ़ती थीं. आज बेबी फातिमा उसी मदरसे की प्रिंसिपल बनी बैठी हैं. लेकिन बेबी फातिमा उर्फ फरहा हदीस खान को प्रिंसिपल बनाए जाने के बाद ही अम्बर मेहदी को सोसाइटी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

शरियत कहता है कि महिलाओं के लिए बने धार्मिक मदरसों को अगर पुरुष संचालित कर रहा हो, तो उसे इस्लामिक नियमों का सख्ती से पालन करना होगा. लेकिन इन मदरसों में इसका ठीक उल्टा हो रहा है. मदरसा प्रबंधन देखने वाले लोग फिल्मी हस्तियों के साथ उठते-बैठते हैं. क्लबों में शराब पीते हैं, नाचते हैं और पाश्चात्य कपड़े पहन कर डोलते हैं. शरियत का उल्लंघन इस हद तक है कि सोसाइटी के सेक्रेटरी मदरसे में पढ़ने वाली छात्राओं का हिजाब हटवा कर उन्हें संबोधित करने से कतई परहेज नहीं करते. जबकि छात्राओं को पढ़ाने के लिए मदरसे में महिला शिक्षिकाएं नियुक्त हैं. नकवी इस पर भी सवाल उठाते हैं कि उक्त दोनों मदरसे 10 साल से छोटी उम्र की बच्चियों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए बने थे, लेकिन तीन-चार साल से वहां बालिग लड़कियां पढ़ाई जाने लगीं.

उर्दू अखबार नकीब के एडिटर मौलाना असीफ जायसी कहते हैं कि उसूलन तो लड़कियों के मदरसे मौलानाओं द्वारा संचालित होने चाहिए और मदरसे का अंदरूनी प्रबंधन मौलानाओं की बेगमों और अन्य महिला सदस्यों द्वारा देखा जाना चाहिए. मौलाना जायसी कहते हैं, लेकिन इनका क्या है, ये तो धंधे और चंदे के लिए मदरसा खोल लेते हैं, इन्हें शरियत से क्या लेना देना! विडंबना यह है कि मदरसे की कई छात्राओं और शिक्षिकाओं के साथ सोसाइटी के प्रेसिडेंट सैयद शम्स नवाब रिजवी समेत कई लोगों के व्हाट्स-एप और ई-मेल पर भेजे गए आपत्तिजनक प्रस्ताव और बगैर हिजाब के फोटो भेजने के मेल-संदेश पकड़े जाने के बावजूद उन हरकतों पर पर्दा डाल दिया गया.

लड़कियों को पासपोर्ट बनवाने और विदेश बुलवाने के लिए दबाव देने के मेल-संदेश भी पकड़े जा चुके हैं. लड़कियों के मदरसों में हो रही इस तरह की बेजा हरकतों पर उर्दू अखबार नकीब के एडिटर मौलाना असीफ जायसी कहते हैं, सोसाइटी के मालिक शम्स के बारे में ऐसी जानकारियां तो मिलती रही हैं, खुद तो कुवैत में रहते हैं, लेकिन उन्होंने अपने कुछ खास लोगों को यहां रख छोड़ा है. कोई मजहबी व्यक्ति होता तो धार्मिक संस्था के रूप में मदरसे की स्थापना करता.

लेकिन वह मजहबी आदमी तो हैं नहीं, वह तो किसी का एजेंट हैं, बहुत चालू किस्म का आदमी है वो, उसका धर्म-वर्म से तो कोई लेना-देना है नहीं. इसने केवल चोला पहन रखा है. मदरसा वगैरह खोलना तो वैसे ही है. इसके पीछे मकसद कुछ और है. उसके खिलाफ बहुत सी खबरें आती हैं. ये आदमी खुद ठीक नहीं है. उस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए. शम्स बाहर से बहुत बड़ी रकम लाता है, लेकिन उसके बारे में सरकार को जानकारी देता है या नहीं, यह तो सरकार ही बता सकती है.

जायसी यह भी कहते हैं कि इस्लामी विद्वान अल्लामा जमीर नकवी ने मदरसे की आड़ में चल रही करतूतें पकड़ी हैं और उसके खिलाफ अभियान चला रहे हैं. अल्लामा जमीर नकवी ने कहा कि जो लोग पवित्र मदरसों को अपवित्र कर रहे हैं, उन पर धर्मगुरुओं को सख्ती से पेश आना चाहिए. नकवी कहते हैं, यहां तो सोसाइटी के प्रेसिडेंट के साथ-साथ सारे पदाधिकारी अपनी हरकतों में मुब्तिला हैं. प्रेसिडेंट की करतूतों के बारे में आपने सुना. वाइस प्रेसिडेंट सैय्यद ज़हीर हुसैन रिज़वी भी वैसे ही हैं.

रिज़वी ने भी मदरसे से ही सम्बद्ध रही एक अध्यापिका से शादी कर ली, जबकि वह पहले से शादी-शुदा था. रिजवी की पत्नियों के लिए मदरसे के पैसों से ही घर खरीदे गए हैं. इसके अलावा भी रिज़वी की कई चल-अचल सम्पत्तियों के बारे में पता चला है. इसीलिए मदरसों के गोरखधंधों की जांच सीबीआई से होनी चाहिए. जांच का विषय यह भी है कि संस्था के अध्यक्ष सैयद शम्स नवाब रिजवी जब विदेश में ही रहते हैं, तो संस्था के नवीनीकरण समेत तमाम कानूनी औपचारिकताएं कैसे पूरी हो जाती हैं? इसमें जरूर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है.

मदरसे में आतंक का साम्राज्य है. संस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, आपत्तिजनक प्रलोभन-प्रस्ताव या गैर वाजिब गतिविधियों के खिलाफ जिसने भी मुंह खोला, उसे फौरन बाहर निकाल दिया जाता है. बर्खास्त होने वालों में कर्मचारी, अध्यापिकाएं और छात्राएं शामिल हैं. प्रबंधन के शीर्ष अधिकारियों की बेजा हरकतों या भ्रष्टाचार के खिलाफ उंगली उठाने वाली कई अध्यापिकाओं और छात्राओं के प्रबंधन को लिखे गए विरोध पत्र, उनसे जबरन लिखवाए गए इस्तीफे, संस्था में व्याप्त अराजकता, आपत्तिजनक व्यवहार और तानाशाही के खिलाफ दिए गए लड़कियों के तमाम बयान चौथी दुनिया के पास उपलब्ध और सुरक्षित हैं. हम उन अध्यापिकाओं और छात्राओं का नाम नहीं छाप रहे हैं.

लेकिन यह हकीकत है कि कुछ अध्यापिकाओं और छात्राओं ने अत्याचार-अनाचार के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फुंक दिया है. संस्था के प्रेसिडेंट व अन्य पदाधिकारियों द्वारा लड़कियों को लिखे गए आपत्तिजनक व्हाट्सएप मैसेज और ई-मेल संदेश वगैरह भी चौथी दुनिया के पास सुरक्षित हैं. इसके भी प्रमाण हैं कि जिसने प्रबंधन के आगे सिर झुका दिए, उसके आगे सारी सुख-सुविधाएं बिछा दी गईं. ऐसे कुछ खास शख्स को मदरसों में अध्यापिकाओं को नियुक्त करने का सर्वाधिकार भी दे दिया जाता है और उसके नाम व फोन नंबर के साथ अखबार में विज्ञापन भी छपने लगता है.

इस्लामी बुद्धिजीवी और धार्मिक जमात के लोग इसे दुर्भाग्यपूर्ण और इस्लाम विरोधी आचरण बताते हैं. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास कहते हैं कि औपचारिक रूप से मामला पेश होने पर बोर्ड इसके खिलाफ एक्शन ले सकता है. बाकायदा कमेटी गठित कर जांच कराई जाएगी और उस अनुरूप कार्रवाई की जाएगी. मौलाना अब्बास कहते हैं कि मदरसे जैसी पाक-पवित्र जगहों पर इस तरह की गतिविधियां चलती हैं, तो ऐसे मदरसों को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए.

बोर्ड में इस मामले को औपचारिक रूप से पेश किए जाने के बारे में पूछने पर अल्लामा जमीर नकवी कहते हैं कि इस मामले को न केवल बोर्ड बल्कि कानून की प्रत्येक दहलीज तक ले जाए जाने की तैयारी है. नकवी कहते हैं, धीरे-धीरे हम लखनऊ और यूपी के सारे मदरसों के सुधार की पहल कर रहे हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े उलेमा फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना सैयद कौकब मुज्तबा ने इस बारे में पूछने पर कहा कि सोसाइटी अगर मदरसा बोर्ड से मान्यता लिए बगैर मदरसा चला रही है तो यह गैर कानूनी है. विदेश से आने वाले फंड की निगरानी के लिए बने विदेशी अनुदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत अगर क्लीयरेंस नहीं ली गई है तो यह आपराधिक कृत्य के दायरे में आएगा. इस पर सीधे कार्रवाई की जा सकती है.

मौलाना मुज्तबा कहते हैं कि लखनऊ में कुछ ही मदरसे मान्यता प्राप्त हैं, बाकी तो सब धंधे हैं और दुकानें चल रही हैं. कई तो केवल कागजी होते हैं. कई मदरसे तो घरों में चल रहे हैं, जहां पर कट्टरपंथ की तालीम दी जा रही है. कई ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिसमें मदरसा चलाया जा रहा है, लेकिन रजिस्ट्रेशन में कागजों पर मदरसा नाम हटा कर चैरिटेबल या ट्रस्ट लगा देते हैं. मौलाना कहते हैं कि लखनऊ में सुल्तानुल मदारिस, नाजमिया, तंज़ीमुल मुकातिब जैसे कुछ ही मान्यता प्राप्त इदारे हैं, जो बाकायदा नियम-कानून से चल रहे हैं.

यहां खास तौर पर उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुदानित 359 मदरसों की सूची में मदरसा अल-ज़हरा और मदरसा खदीजतुल कुबरा के नाम नहीं हैं. मौलाना सैयद कौकब मुज्तबा का कहना है कि सुविधाओं और धन (फंड) की लालच में दुकानों की तरह मदरसे खोले जा रहे हैं. मदरसों में धन का लेनदेन इतना अधिक है कि मदरसा बनाकर कोई जल्दी ही अमीर बन जाता है. इस वजह से धार्मिक शिक्षा देने के बजाय मदरसे धन कमाने का धंधा बन गए हैं.

धन का धंधा करने वाले फर्ज़ी मदरसों की बाढ़

पूरे उत्तर प्रदेश में फर्जी मदरसों की बाढ़ है. विभिन्न स्रोतों से मिलने वाले फंड और आर्थिक सहायता के प्रलोभन में मदरसों का धंधा चल रहा है. उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में तकरीबन दो सौ ऐसे मदरसे पाए गए जो हकीकत में नहीं, केवल सरकारी फाइलों पर चल रहे थे. मदरसों के नाम पर ये सरकार से करोड़ों रुपये प्राप्त भी कर रहे थे. इन फर्जी मदरसों के पतों पर पढ़ाने-लिखाने का काम नहीं, बल्कि अलग-अलग किस्म की दुकानदारी चल रही थी. कहीं कोई चाय की दुकान चला रहा था, तो कोई ब्यूटी पार्लर. किसी के घर का एक कोना मदरसा दिखाया जा रहा था, तो कहीं खाली पड़ा प्लॉट.

लखनऊ में भी ऐसे एक घर को मदरसा दिखा कर सरकारी धन को लंबे अर्से से चूना लगाया जा रहा था. जबकि असलियत में वहां मदरसा होने की कोई शिनाख्त ही नहीं थी. कागज पर जिस घर में मदरसा दिखाया जा रहा था, वहां छानबीन करने पर कोई हिंदू किरायेदार पाया गया. उसने वहां मदरसा होने की बात पर गहरा आश्चर्य जाहिर किया. कई मस्जिदों को भी मदरसा दिखाया जा रहा है. मेरठ में करीब 50 मदरसे फर्जी पाए गए थे.

इनमें से कई तथाकथित मदरसों में परचून की दुकान या कोई दूसरा धंधा चलता हुआ पकड़ा गया. फर्जी मदरसों का धंधा लंबे समय से चल रहा है. धंधा करने वाले लोग सरकारी नुमाइंदों से मिलीभगत करके सरकार से मिलने वाली धनराशि की बंदरबांट कर लेते हैं. ऐसे कई मदरसों की मान्यता भी रद्द की गई.

लेकिन तथ्य यही है कि ऐसे फर्जी मदरसों को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग और सम्बद्ध सरकारी विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों का संरक्षण मिला हुआ है. ऐसे भी उदाहरण सामने आए हैं कि फर्जीवाड़ा पकड़े जाने पर कुछ दिनों के लिए उन्हें किनारे कर दिया जाता है और कुछ अंतराल के बाद उनका धंधा फिर से चालू हो जाता है.

इस्लामिक चैरिटी फंड पाने में यूपी सबसे अव्वल

विदेशी अनुदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के आंकड़े भी बताते हैं कि इस्लामिक चैरिटी से फंड लेने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश पहले नम्बर पर है. राज्य के उत्तर पूर्वी हिस्से पर नेपाल बॉर्डर से जुड़े इलाकों पर चलने वाले एनजीओ को इसी तरह का फंड मिल रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर में छोटा सा कस्बाई शहर है इटवा.

यहां तकरीबन दो दशक पहले अल फ़ारूक नामक संस्था की स्थापना कतर आधारित सैलाफी विचारधारा के उपदेशक और स्थानीय मौलाना शेख साबिर अहमद मदनी ने की थी. कतर के राज परिवार द्वारा चलाए जा रहे ट्रस्ट से इस संस्थान को करोड़ों रुपये मिल रहे हैं. इस धन का इस्तेमाल अनाथालयों और मदरसों के निर्माण में दिखाया जाता है.

लेकिन यह मूल सैलाफी विचारधारा पर चल रहा है, जो सूफी मत के बिल्कुल खिलाफ है. कतर स्थित शेख ईद बिन मोहम्मद अल थानी चैरिटेबल एसोसिएशन अंतरराष्ट्रीय चैरिटी संगठन के रूप में प्रदर्शित करता है, लेकिन इसके संस्थापक अब्दअल रहमान अल नुयामि को अलकायदा और अन्य इस्लामिक समूहों को फंडिंग के आरोप में अमेरिका द्वारा दिसंबर 2003 में वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जा चुका है.

उत्तर प्रदेश में मदरसा व अन्य धार्मिक-सामाजिक सेवा में लगी संस्था सफा एजुकेशनल एंड टेक्निकल वेलफेयर सोसाइटी को भी कुछ ही अर्से में कुवैत से करीब पांच करोड़ रुपये मिल चुके हैं. इस फंड को भी शैक्षणिक दिखाया गया, लेकिन असलियत यही है कि वह सैलाफी विचारधारा फैलाने में ही इस्तेमाल हो रहा है. सफा समूह का मुख्य दानदाता जमियत ऐहायुत तुरस अल इस्लामी है, जो रिवाइवल ऑफ इस्लामिक हेरिटेज सोसायटी नाम के अन्य चैरिटी से जुड़ा है.

अल कायदा नेटवर्क से जुड़े होने के कारण इस सोसायटी पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है. उत्तर प्रदेश के नेपाल से जुड़े इलाकों में सैलाफी विचारधारा फैलाने में लगे मदरसों का जाल बिछ गया है. नेपाल के अंदर भी मदरसों में भारतीय छात्र ही ज्यादा पढ़ रहे हैं. यूपी और नेपाल के इन मदरसों को सउदी अरब के प्रसिद्ध चैरिटी रबीता अल आलम अल इस्लामी या मुस्लिम वर्ल्ड लीग से फंड मिलता है. मुस्लिम वर्ल्ड लीग की गतिविधियां संदेहास्पद हैं.

मुस्लिम वर्ल्ड लीग अफगानिस्तान समेत कई देशों में वैश्विक जेहाद के समर्थन में विश्व के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त संसाधनों के वितरण को संयोजित करता है. इसी लीग ने 1988 में पाकिस्तान में रबीता ट्रस्ट की स्थापना की थी, जिसे 9/11 की घटना के बाद अमेरिका ने इसके अलकायदा से जुड़े होने के चलते प्रतिबंधित कर दिया था.

उत्तर प्रदेश के मदरसों को सर्वाधिक चंदा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब से मिल रहा है. इसके बाद कुवैत, ब्रिटेन और कनाडा का स्थान आता है. मदरसों के जरिए ही आईएसआईएस का धन उत्तर प्रदेश लाए जाने का भी खुलासा हुआ है. यूपी के हरदोई में हाल ही गिरफ्तार हुए आंतकी अब्दुल शमी कासमी उर्फ शमीउल्लाह ने केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए को बताया कि आईएसआईएस बड़े ही शातिर तरीके से अपने धन की घुसपैठ करा रहा है. शमीउल्लाह के मुताबिक मदरसों और चैरिटेबल ट्रस्ट के जरिए आईएसआईएस की रकम यहां आ रही है. शमीउल्लाह 2007 में विधानसभा चुनाव भी लड़ चुका है.

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