खान अशु

पानी की टंकी में डूबने से मौत के गाल में समाए मासूम की खबर से उपजा अवसाद अभी जहन से हटा भी नहीं था…! इस कलयुगी मां के लिए दिल से निकले उद्गार होठों पर हीअटके थे…! बेटे और बेटी में फर्क करने की इस दौर की कहानी पर यकीन करने को दिल भी नहीं कर रहा था और न ही इस युग में टोने-टोटके की बातों पर विश्वास करने की हिम्मत हो पा रही थी…!

ऐसे में रिश्ते को कलंकित करने वालों का एक और चेहरा शहर के सामने आ खड़ा हुआ…! अपने कलेजे के टुकड़े को तालाब के गहरे पानी के हवाले करने वाले क्रूर चेहरों ने फिर शहर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई…! सदियों पुराना जमाना, बेटे-बेटियों में फर्क करते लोग, जादू-टोने के शिकंजे में फंंसकर इंसानियत को खुद से दूर कर बैठे अमानुष, एक फिर बार शहर की छाती पर मूंग दलते दिखाई देने लगे हैं…! ईश्वर, अल्लाह, भगवान, खुदा ने खुद की मौजूदगी का अहसास दिलाने के लिए बनाए मां के रिश्ते के यह रंग देखकर अब खुद खुदा भी दंग ही होगा, पसोपेश में होगा, दुखी और अवसाद से भरा भी होगा…! उसकी सोच और उसकी कल्पना में कहां और कैसे चूक रह गई, सोचकर ईश्वर अपनी बनाई दुनिया के लिए निराशा से ही भरा होगा…! अपने बच्चे की एक किलकारी सुनकर दुनिया का दुख भूल जाने वाली मां अपने दिल के टुकड़े को मौत का दर्द कैसे दे सकती है…? जिस औलाद की खातिर उसने नौ महिने अपने साथ वजन लादे रखा और उसको दुनिया में लाने के लिए खुद की जान को दांव पर लगा दिया, उसकी जान लेने का ख्याल भी अपने पास से कैसे गुजरने दे सकती है…? लोग कहते हैं, दुनिया बदल गई है, युग बदल गया, जमाना बदल गया है… लेकिन हकीकत यह है कि न दुनिया बदली और न ही युग में कोई बदलाव आया है… जमीन अपनी जगह पर है, आसमान अब भी बिना सहारे लोगों के सिरों पर मौजूद है, चांद, सूरज, सितारे, नदियां, पहाड़, पेड़, पौधे सब अपने उन्हीं कामों को अंजाम दे रहे हैं, जो वह सदियों से देते आए हैं…! बदलाव हुआ है तो महज इंसान में, उसकी सोच में, उसकी नीयत और उसके दिमाग में पनपते गंदे कीड़े में…! मासूमों की जान से अपने हाथ लहुलुहान करने वाले इन पिशाचों के लिए दुनिया की हर सजा छोटी ही है, ईश दरबार में भी जब यह हाजिर होंगे, तो उसे ऐसे लोगों के लिए कोई अलग सजा सोचने पर विवश होना पड़ेगा…!

पुछल्ला
दम तोड़ती संवेदनाएं
कोरोना काल में हुए बड़े नुकसानों में सबसे बड़ी हानि और ह्रास को शामिल किया जाए तो वह होगा इंसान के दिल से खत्म होती संवेदनाएं। बरसों-बरसा में किसी एक गांव, शहर, दूर-दराज, रिश्तेदारों, परिवार में हो जाने वाली एक मौत पर दिल कई दिनों तक बेचैन रहने के हालात हुआ करते थे। मौत के साथ उससे जुड़े किस्से याद आने लगते और उसकी अच्छाईयों का जिक्र करते हुए उसके साथ जुड़े काले अध्याय को पर्दा डालने के हालात बन जाया करते थे। मौत ने अपना ऐसा ताण्डव दुनिया, देश, समाज, शहर में मचा रखा है, कि किसी मौत पर जुबां से महज यही निकल पाता है, वह भी गया…! मौत के प्रति खत्म होती संवेदनाएं आने वाले समय में क्या हालात बनाएंगी कहा नहीं जा सकता।

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