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नई दिल्ली: आपने फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ तो ज़रूर देखी होगी. आखिर देखें भी क्यों ना फिल्म है ही इतनी ज़बरदस्त. इस फिल्म में सबसे ज्यादा जिस किरदार को सराहा गया वो था फुन्सुख वांगडू और यह किरदार आमिर खान ने निभाया था. लेकिन क्या आप जानते हैं की ये किरदार महज़ कोरी कल्पना नहीं बल्कि यह किरदार असलियत में है. सोनम वांगचुक ही वह शख्स हैं, जिससे प्रभावित होकर 3 इडियट्स में आमिर खान का किरदार तय किया गया था।

सोनम वांगचुक स्टूडेंट्स एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) के संस्थापक निदेशक है। उन्होंने कहा कि उनकी योजना हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ आल्टरनेटिव्स खोलने की योजना है जिसमें बिजनस, टूरिजम समेत कई अन्य डिसिप्लिन होंगे।

उनसे एक बार पूछा गया कि उन्होंने अपना प्राइवेट स्कूल क्यों नहीं खोला? इस पर उन्होंने कहा कि या तो आप एक बड़ा तालाब बनाओ और पानी भर-भरकर उसके स्तर को ऊपर उठाओ या आप सागर में पानी डालो। मेरे लिए सागर में पानी डालना ज्यादा मायने रखता है।

वांगचुक ने सरकारी स्कूलों पर काम करने का फैसला किया क्योंकि ज्यादातर आम बच्चों को वहीं पढ़ने जाना पड़ता है। उन्होंने 1994 में ऑपरेशन न्यू होप को शुरू करने में मदद की जो सरकारी स्कूल व्यवस्था में बड़ा सुधार लाने के लिए सरकार, ग्राम समुदायों और सिविल सोसायटी की साझा पहल है। ऑपरेशन के हत जिन वैकल्पिक उपायों एवं अन्य नवीन कदम उठाए गए हैं, उसका परिणाम भी सामने आया है। वांगचुक ने बताया कि पहले बोर्ड एग्जाम्स में छात्रों के फेल होने की दर करीब 95 फीसदी थी लेकिन इस पहल के बाद स्कूल बोर्ड परीक्षाओं में फेल होने वाले छात्रों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है।

मई का महीना था और गर्मी चरम पर थी। वांगचुक ने देखा कि उनके स्कूल के बीच एक पुल के अंदर रखी बर्फ नहीं पिघली। उन्होंने महसूस किया कि जब बर्फ पर सीधे प्रकाश की किरण पड़ती है तो यह पिघलता है और अगर छाये में रहे तो यह लंबे समय तक नहीं पिघलेगा। गांवों के ऊपर जमे बर्फ के विशाल तालाब को छाया मुहैया कराना तो संभव नहीं था लेकिन उन्होंने उल्टे शंकु के आकार में बर्फ के स्तंभ बनाए। इस तरह के आकार का यह फायदा हुआ कि बर्फ का बहुत कम हिस्सा सीधे सूरज के सामने आया और इस तरह से ज्यादा मात्रा में पानी को रोकने में मदद मिली।

2013 में ठंडी के मौसम में वांगचुक और उनके छात्रों ने 1,50,000 लीटर जमे पानी की मदद से छह फीट लंबा बर्फ का स्तंभ खड़ा किया। 3,000 मीटर की ऊंचाई पर उनकी टीम ने ग्रैविटी का इस्तेमाल करते हुए अपस्ट्रीम से पानी का छिड़काव किया। पाइप से छिड़के गए पानी ने वाष्पकण को जमीन पर गिरने से पहले बर्फ में बदल दिया।

बसंत के दौरान इन कृत्रिम ग्लेशियर्स से पानी को टैंकों में संग्रह किया जाता है और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम की मदद से लगाए गए पौधों को यह पानी दिया जाता है। लद्दाख के सबसे बड़े आइस कोन से करीब दस लाख लीटर्स पानी की सप्लाई होती है। कृत्रिम ग्लेशियर्स को आइस ‘स्तूप’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह देखने में तिब्बती धार्मिक इमारत के जैसा लगता है।

इस अविष्कार के लिए वांगचुक को प्रतिष्ठित रॉलेक्स अवॉर्ड फॉर एंटरप्राइज पिछले साल मिला। पुरस्कार के तौर पर मिली 1 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव्स की फंडिंग के लिए किया गया। स्कूल में ऐसे सिस्टम को अपनाया जाएगा जिसमें छात्र अपनी शिक्षा का खर्च खुद उठा सकेंगे। विभिन्न हिमालयायी देशों के छात्रों शिक्षा, संस्कृति और पर्यावरण पर रिसर्च करने के लिए यहां आएंगे।

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