पहले गुरु , माँ और पिता
जो दिखलातें है समुंदर तल की वनस्पतियां
जो दे देते हैं हाथ में सूरज
और चुन लेते हैं अथाह भविष्य गर्भ से वेदनाओं के कांटे
माँ हथेलियों में बो लेती है सुकून स्नेह के बीज
पिता सीने पर उगाते हैं उज्जवल कठोर रक्षण के
कैक्टस
जिनसे टकराकर संसार की कठिनाइयाँ हो जाती
हैं लहूलुहान
माँ की आंखें जनती हैं रोज नए चाँद शीतल
चांदनी लिये
और उसके हर कदम पर बरसते हैं उंगलियों से
सितारे
सुनो , सन्तान
सुन सको तो सुनो
महसूस कर सको तो करो
की तुम्हारी जन्म बेला से
माँ स्त्री नही …
भूमि हो गयी – सरिता हो गयी – रोशनी हो गयी और हो गयी सन्तान रूपी ईश्वर की उपासक
पिता पुरुष नही ….
आकाश हो गए – पर्वत हो गए- आग हो गए
और हो गए समस्याओं के लिये यमराज
तुम चिह्न सको तो चिह्नना उनकी विवशताएं
पहचान सको तो पहचानना उनकी महत्ता
और पूछ सको तो पूछना उन मासूम सन्तानो से उनका दर्द
जिनके धरती – आकाश नही होते
पहले गुरु माँ बाप नही होते

फिर इस दिन को समझना – मनाना उत्सव दिल से , सम्मान से , समर्पण से
और रख देना गुरु के चरणों में सर्वस श्रद्धा सुमन

संजना तिवारी (एक शिक्षक)

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