आम आदमी वैसे तो बैंक में पैसा रखना सबसे सुरक्ष‍ित समझता है. लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो को-ऑपरेटिव सोसायटी को बैंक बता कर आम लोगों से डील करते हैं. ऐसे लोगों और संस्थानों को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही चेतावनी दे चुकी है. आर.बी.आई. का कहना है, को-ऑपरेटिव सोसायटी को बैंक बताने वाले संस्थानों में पैसा लागना घाटे का सौदा साबित हो सकता है.

रिजर्व बैंक  ने 29 नवंबर, 2017 को एक सर्कुलर जारी किया था. इस सर्कुलर के मुताबिक कुछ को-ऑपरेटिव सोसाइटी खुद के नाम के साथ ‘बैंक’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि सरासर कानून का उल्लंघन है.

इस सर्कुलर में आर.बी.आई. ने आम आदमी को हिदायत देते हुए कहा था कि वह ऐसी किसी भी को-ऑपरेटिव सोसाइटी से से बैंक के तौर पर लेन-देन करने से बचे क्योंकि अगर आप ने ऐसा किया तो आपको घाटा हो सकता है.

केंद्रीय बैंक ने अपने सर्कुलर में कहा, आर.बी.आई. के संज्ञान में आया है कि कुछ को-ऑपरेटिव सोसायटी अपने नाम के साथ ‘बैंक’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि ‘बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट, 1949 का उल्लंघन है.

वहीं सबसे अहम बात अगर आप इन सोसायटीज को बैंक समझ कर पैसा लगाते हैं, तो आपको बैंक डिपोजिट पर मिलने वाले इंश्योरेंस का फायदा नहीं मिलेगा. दरअसल डिपोजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) की तरफ से 1 लाख रुपए तक की रकम को इंश्योर किया जाता है.

दरअसल बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट में को-ऑपरेटिव बैंक को ही सिर्फ बैंक का नाम इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है. इसमें साफ लिखा गया है कि को-ऑपरेटिव सोसायटी ‘बैंक’ नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकते. लेकिन नाम में काफी ज्यादा समानता होने की वजह से कुछ को-ऑपरेटिव सोसायटी खुद को बैंक बताते हैं.

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