राजनाथ सिंह से जब यह पूछा गया कि यदि भाजपा को राज्यसभा में बहुमत हासिल हो जाए, तो क्या वह राम मंदिर के लिए प्रस्ताव लाएगी? इस पर उन्होंने कहा, यह काल्पनिक सवाल है. केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के पास संसद के ऊपरी सदन में 45 सदस्य हैं और मौजूदा कार्यकाल में उसे राज्यसभा में बहुमत हासिल होने की कोई संभावना नहीं है. 243 सदस्यीय सदन में विपक्ष के पास कम से कम 132 सदस्य हैं. राजनाथ का इशारा था कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को राज्यसभा में भी बहुमत मिल जाए, तो सारे मसले हल हो जाएंगे. राजनाथ सिंह ने कहा, अयोध्या में राम जन्मभूमि से जुड़ा विवाद निपटाने के लिए दो रास्ते हैं. पहला यह कि अदालत के ज़रिये इस मुद्दे का फैसला हो और दूसरा रास्ता यह है कि संसद इसके लिए क़ानून बनाए.

Rajnath-Singh-with-Mahant-Gअयोध्या जाकर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कह दिया कि राम मंदिर निर्माण के लिए क़ानून बनाने की लोकतांत्रिक शक्ति भाजपा के पास नहीं है, लिहाजा राम मंदिर के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करना होगा. इस तरह केंद्र की सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर मुद्दे पर अपनी विवशता तो जता दी, लेकिन अगले लोकसभा चुनाव की सियासत की भूमिका भी रख दी. राजनाथ सिंह ने कहा, भाजपा के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए इस मुद्दे पर इस बार भाजपा सरकार कुछ नहीं कर सकती. यानी लोकसभा का एक चुनाव और. गृहमंत्री ने यह ज़रूर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में रामलला के दर्शन करने ज़रूर आएंगे. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि संसद के शीर्ष सदन राज्यसभा में बहुमत की कमी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में बाधा है. इस वजह से भाजपा न कोई प्रस्ताव ला सकती है और न कोई क़ानून. लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के घोषणा-पत्र में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी शामिल था और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 समाप्त करने एवं समान नागरिक संहिता जैसे मसले भी शामिल थे. लेकिन, उक्त सारे मसले भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने के बाद भी अनछुए रह गए, क्योंकि राज्यसभा में भाजपा को बहुमत हासिल नहीं है. राजनाथ सिंह अयोध्या में राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष संत नृत्यगोपाल दास के बुलावे पर आए थे. उन्होंने दीनबंधु नेत्र चिकित्सालय में ओपीडी एवं चिकित्सक आवास निर्माण के लिए आयोजित भूमि पूजन-शिलान्यास समारोह में भी हिस्सा लिया और महंत नृत्यगोपाल दास समेत अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञान दास एवं महंत संतराम दास से बातचीत की. राजनाथ ने राम जन्मभूमि और हनुमान गढ़ी के दर्शन भी किए.
राजनाथ सिंह से जब यह पूछा गया कि यदि भाजपा को राज्यसभा में बहुमत हासिल हो जाए, तो क्या वह राम मंदिर के लिए प्रस्ताव लाएगी? इस पर उन्होंने कहा, यह काल्पनिक सवाल है. केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के पास संसद के ऊपरी सदन में 45 सदस्य हैं और मौजूदा कार्यकाल में उसे राज्यसभा में बहुमत हासिल होने की कोई संभावना नहीं है. 243 सदस्यीय सदन में विपक्ष के पास कम से कम 132 सदस्य हैं. राजनाथ का इशारा था कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को राज्यसभा में भी बहुमत मिल जाए, तो सारे मसले हल हो जाएंगे. राजनाथ सिंह ने कहा, अयोध्या में राम जन्मभूमि से जुड़ा विवाद निपटाने के लिए दो रास्ते हैं. पहला यह कि अदालत के ज़रिये इस मुद्दे का ़फैसला हो और दूसरा रास्ता यह है कि संसद इसके लिए क़ानून बनाए. लेकिन, दूसरे रास्ते में अड़चन यह है कि राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत का अभाव है. अब सुप्रीम कोर्ट को ही तय करना है कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा या नहीं. राजनाथ के इस बयान पर संघ एवं विहिप से जुड़े लोग मुंह बना रहे थे और भाजपा के प्रति निराशा जता रहे थे. लेकिन, वे संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान भूल गए, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अयोध्या में क़ानून एवं संविधान के माध्यम से राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि अदालत के फैसले पर संघ की प्रतिक्रिया भी क़ानून, संविधान एवं लोकतांत्रिक सीमाओं में ही होगी. संघ प्रमुख का विचार था कि अयोध्या मुद्दे का सही समाधान केवल संसद में क़ानून बनाकर ही हो सकता है.


भाजपा गुमराह कर रही है: महंत नरेंद्र
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरी ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा लोगों को गुमराह कर रही है. महंत नरेंद्र ने कहा कि राम मंदिर मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी की नीयत सा़फ नहीं है और पार्टी संतों के साथ जनता को भी गुमराह कर रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा पहले लोकसभा में राम मंदिर बिल पास कराए और फिर कहे कि राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है. उन्होंने कहा कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह कहना कि राम मंदिर के लिए क़ानून इसलिए नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि भाजपा के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, यह सोचे-समझे इरादे से गुमराह करने के लिए दिया गया बयान है.


मंदिर-मस्जिद: शह-मात का खेल
अयोध्या में मंदिर और मस्जिद का मसला राजनीतिक दलों से लेकर धार्मिक संगठनों एवं क़ानूनी पक्षकारों, सबके बीच शह-मात का खेल बन गया है. मसले का समाधान तलाशने के बहाने सब अपनी-अपनी गोटियां आगे-पीछे करने में ही लगे हैं. कभी विश्व हिंदू परिषद को किनारे लगाने की कोशिश होती है, तो कभी विहिप सबको पीछे करके मुलायम के कंधे के ज़रिये श्रेय हासिल करने की कोशिश करने लगती है. पिछले दिनों भी ऐसा ही एक फॉर्मूला सामने आया और 70 एकड़ के विवादित परिसर में मंदिर एवं मस्जिद दोनों बन गए और सौ फीट की ऊंची दीवार से बांट भी दिए गए. अयोध्या प्रकरण के मूल वादी हाशिम अंसारी खुद चलकर हनुमान अखाड़ा आ गए और अखाड़ा परिषद के मुखिया महंत ज्ञान दास से मुलाकात कर उन्होंने यह फॉर्मूला निकाल लिया. फिर हाशिम अंसारी एवं महंत ज्ञान दास, दोनों ने कहा कि समाधान की बातचीत में विश्व हिंदू परिषद को किसी भी रूप में शामिल नहीं किया जाएगा. महंत ज्ञान दास ने उस समय कहा भी कि उन्होंने इस प्रस्ताव को लेकर लगभग सारे हिंदू प्रतिष्ठानों एवं मुख्य आध्यात्मिक गुरुओं से चर्चा की है, लेकिन इसमें विश्व हिंदू परिषद शामिल नहीं है. महंत बोले, हम ऐसे किसी भी कार्य के पक्ष में नहीं हैं, जिससे हमारे मुस्लिम भाइयों को लगे कि वे हार गए हैं. हमें मुट्ठी भर विहिप नेताओं की कोई परवाह नहीं है. महंत ज्ञान दास और हाशिम अंसारी के बयान को भी राजनीतिक प्रेक्षकों ने स्पष्ट रूप से राजनीति प्रेरित बताया था. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद इस प्रकरण से जुड़े पक्ष अदालत से बाहर समझौते के रास्ते पर माथापच्ची करते रहे हैं. अदालत को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं है. अयोध्या का मसला 1950 से ही विवाद में फंसा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मसले पर 30 सितंबर, 2010 को अपना फैसला सुनाया था. उस फैसले में हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को भगवान राम का जन्मस्थल बताया था और विवादित परिसर का दो-तिहाई हिस्सा हिंदू पक्षकारों को देकर बाकी एक-तिहाई हिस्सा मुस्लिम पक्षकारों को दे दिया था. इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया.


विहिप ने मुलायम से मदद मांगी थी
वर्ष 2013 में अयोध्या की बहुचर्चित चौरासी कोसी परिक्रमा के दरम्यान विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से मिलकर राम मंदिर निर्माण के लिए सहयोग मांगा था. विहिप नेता अशोक सिंघल ने मुलायम सिंह यादव से मध्यस्थता करने का अनुरोध किया था. विश्व हिंदू परिषद ने मुलायम सिंह यादव को राम मंदिर के निर्माण का रास्ता सा़फ करने के लिए हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने का प्रस्ताव दिया था. बताया गया था कि मुलायम सिंह ने भी उस प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन समय के अंतराल के साथ ही विहिप की यह पहल भी बेमानी की कवायद साबित हुई. उस समय विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल एवं स्वामी चिन्मयानंद ने मुलायम के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मुलाकात की थी. मुलाकात के बाद विहिप नेताओं ने कहा था, हमने मुलायम सिंह को उनकी घोषणा के बारे में याद दिलाया कि जिस दिन अदालत कह देगी कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी दूसरे ढांचे को गिराकर किया गया था, वह मंदिर के निर्माण का समर्थन करेंगे. अशोक सिंघल ने कहा था कि दूसरे सभी नेताओं के मुकाबले मुसलमानों में मुलायम की स्वीकार्यता सबसे ज़्यादा है और उन्हें मध्यस्थता करने और इस प्रक्रिया की शुरुआत के लिए पहल करनी चाहिए, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था. विहिप से जुड़े एक सक्रिय नेता ने कहा कि भाजपा और संघ की नाराज़गी के कारण विहिप की यह पहल ठोस शक्ल नहीं ले सकी.


दोनों पक्ष चाहते हैं मंदिर-मस्जिद दोनों बनें
सुलह-समझौते से अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद के निपटारे में जुटे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञान दास ने कहा कि वह राम मंदिर का निर्माण चाहते हैं, लेकिन खून के गारे से नहीं. दास ने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह उनके पास आए थे. वह भी आपसी सहमति या न्यायालय के आदेश से ही मंदिर निर्माण के पक्षधर हैं. राजनाथ सिंह को बता दिया गया है कि उनका (दास का) इस मसले के हल के लिए सुलह-समझौते का प्रयास चल रहा है. वह पक्षकारों के लगातार संपर्क में हैं. ज्ञान दास का दावा है कि मोहम्मद हाशिम अंसारी समेत ज़्यादातर पक्षकारों का समर्थन उनके साथ है. इसलिए वह इस मसले के शांतिपूर्ण हल के लिए निश्ंिचत हैं. ज्ञान दास ने कहा, हम चाहते हैं कि मंदिर का निर्माण दूध के गारे से हो. यह कभी नहीं चाहेंगे कि मंदिर का निर्माण खून के गारे से हो.
महंत ज्ञान दास ने कहा कि वह चाहते हैं कि रामलला विराजमान स्थल पर गर्भगृह रखते हुए भव्य राम मंदिर का निर्माण हो और उससे थोड़ी ही दूरी पर मस्जिद भी बन जाए. दास ने कहा कि पक्षकारों से उनकी कई चरणों में बात हो चुकी है. विवाद से जुड़े ज़्यादातर पक्षकार अधिग्रहीत परिसर के पास स्थित मस्जिद को वृहद रूप देकर उसका विस्तार कम से कम एक एकड़ में करने के पक्षधर हैं. उन्होंने कहा कि मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण सौहार्दपूर्ण वातावरण में हो, ताकि देश में अमन-चैन कायम रहे. इस बीच बाबरी मस्जिद के वयोवृद्ध पक्षकार मोहम्मद हाशिम अंसारी ने कहा कि वह मामले के सौहार्दपूर्ण हल के लिए ज्ञान दास के मत से सहमत हैं. अंसारी ने कहा कि यदि मसले के हल में सभी पक्षों के अधिकारों का ध्यान रखकर शांतिपूर्ण हल निकलता है, तो वह दास के साथ हैं. ग़ौरतलब है कि इस मसले के शांतिपूर्ण हल के लिए अंसारी और ज्ञान दास के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं. इसके पहले भी अंसारी एवं महंत ज्ञान दास मिलकर राम मंदिर और मस्जिद के निर्माण का फॉर्मूला सुझा कर सुर्खियों में आ चुके हैं.

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