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नई दिल्ली (ब्यूरो, चौथी दुनिया)। उत्तर प्रदेश में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने राम मंदिर मामले को गर्मा दिया। कोर्ट ने सलाह दी की मामले को आपसी सहमति से सुलझा लिया जाए अगर जरूरत पड़े तो कोर्ट इसमे दखल देगा। सवाल ये उठता है कि आखिर इस विवादित मसले को बाहर किस तरीके से सुलझाया जा सकता है।

दरअसल इस विवादित मसले के पक्षकार मानते है कि इसे कोर्ट के बाहर बैठकर सुलझाया जा सकता है। बशर्ते बाहर किसी तरह की बयानबाजी न हो। मंहत ज्ञानदास इसके लिए बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी को जिम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि सुब्रमण्यम स्वामी ने मामले को उलझा के रख दिया। वहीं दूसरे पक्ष इकबाल अंसारी का भी मानना है कि बातचीत से मसला सुलझाया जा सकता है। इसिलिए कोर्ट ने मध्य़स्था की बातचीत की है।

दोनों पक्षों ने इस बात को माना कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन बाहर का शोर बातचीत को कारगर तरीके से होने नहीं देता है। कोर्ट ने भी सुप्रीम कोर्ट की जल्द मांग की अर्जी ठुकराते हुए कहा कि ‘आपने बताया कि आप पार्टी पक्ष के नहीं हो’। दरअसल अयोध्या मामले में अन्य पक्षकारों ने कहा कि स्वामी ने हमे बताए बगैर की पिछली सुनवाई में केस मेंशन किया। उन्होने कहा स्वामी मामले में पार्टी नहीं है।

जानकारों का कहना है कि इतने बड़े विवाद होने के बावजूद अयोध्या में आजतक दंगे नहीं हुए। ये इस बात का सबूत है कि स्थानीय लोग मामले का समाधान दोनों तरफ से चाहते हैं लेकिन बाहर से आए राजनैतिक और सांप्रदायिक दबाव के चलके ऐसा हो नहीं पा रहा है। अब अगर केंद्र की मोदी सरकार निष्पक्ष तरीके से दोनों पक्षों को आमने सामने बिठाकर चर्चा करें तो निश्चित तौर पर कोई न कोई समाधान निकाला जा सकता है।

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