santoshbhartiya-sir-600राज्यसभा चुनाव संपन्न हो गए, लेकिन राज्यसभा चुनावों का कोई औचित्य समझ में नहीं आता. अब तो राज्यसभा का ही औचित्य समझ में नहीं आता. क्योंकि, राज्यसभा ज्यादातर उन लोगों के लिए बसेरा बन गई है, जो सरकार से काम निकलवाने में माहिर हैं. उन लोगों के लिए भी अड्‌डा बन गई है, जिनके पास अपार कालाधन है और जो अपने लिए सम्मान खरीदना, राज्यसभा के सदस्य का सम्मान, बहुत बड़ी बात मानते हैं. राज्यसभा सीटें, सुनते हैं कि काफी धन लेकर लोगों को दी जाती है. पहले यह धन पार्टी के खाते में जाता था, अब यह धन पार्टी नेताओं के व्यक्तिगत खाते में जाता है.

राज्यसभा का उद्देश्य यह था कि लोकसभा अगर कोई चूक करती है, कोई गलती करती है, कोई चीज छोड़ती है या किसी चीज को अनावश्यक बढ़ाती है, वैसे बिल को राज्यसभा चेक करे, उस पर विचार करे और लोकसभा को सुझाव के साथ लौटा दे. राज्यसभा पहले इस काम को करती थी. लेकिन, उन दिनों राज्यसभा में भूपेश गुप्ता हुआ करते थे, उन दिनों राज्यसभा में राजनारायण हुआ करते थे, उन दिनों राज्यसभा में चंद्रशेखर हुआ करते थे. यह ऐसे लोग थे, जो देश की समस्याओं के ऊपर गंभीरता से विचार करते थे और सवाल उठाते थे. राज्यसभा के पुराने सदस्यों के फैसले देखने से ऐसा लगता है कि वो कितने बड़े राजनेता थे और देश की समस्याओं को कितनी गहराई से समझते थे.

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चंद्रशेखर जी जब युवा तुर्क कहलाते थे, कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे, तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. लेकिन उन्होंने राज्यसभा में जिस तरह से बिड़ला के खिलाफ सवाल उठाए उसने इस देश के नौजवानों को बहुत ज्यादा प्रेरित किया. चंद्रशेखर कभी डरे नहीं कि बिड़ला के खिलाफ सवाल उठाने पर कहीं इंदिरा गांधी नाराज न हो जाएं.

राज्यसभा इसलिए भी कि राज्यसभा की एक दूसरी कल्पना भी है कि इस सदन में ऐसे लोग जाएं जो देश के बुद्धिजीवी हों, नाटककार हों, रंगकर्मी हों, संवेदनशील लोग हों, ताकि वो मानवीय नजरिए से लोकसभा के लिए हुए फैसलों की जांच-परख कर सकें. राज्यसभा में ऐसे लोगों को भी भेजे जाने की कल्पना थी, जो राजनीतिक दलों का काम तो करते हैं, पूरी तरह से पार्टी को खड़ा करने का काम करते हैं, लेकिन जिन्हें पार्टी खड़ी करने के लिए लोकसभा का चुनाव या विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ना होता है. ऐसे लोग राज्यसभा में जाएं और वहां से प्राप्त साधनों का इस्तेमाल पार्टी को बढ़ाने में करें, लोगों के बीच पार्टी की साख बढ़ाएं. लेकिन यह सिर्फ बीते जमाने की कल्पना थी. आज ऐसा कुछ नहीं होता.

आज राज्यसभा में बुद्धिजीवी, विशेषज्ञ, संवेदनशील लोगों की जगह, ऐसे लोग जाने की कोशिश करते हैं, जो जिंदगी में कभी लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकते. जिन्हें जनता को समझाना नहीं आता है, वो राज्यसभा में दांवपेंच लगा, तिकड़में लगा, अपने लिए पार्टी का टिकट या किसी भी पार्टी का वोट जुगाड़ लेते हैं. शायद, इसीलिए आज राज्यसभा के बारे में आम धारणा यह है कि यह सत्ता के दलालों का सबसे सुरक्षित स्थान बन गई है.

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कर्नाटक से खबर आई है कि वहां पर एक वोट सात करोड़ रुपये देकर खरीदा गया है. और, मैं जब यह लिख रहा हूं तो यह कोई रूपक नहीं है. कर्नाटक में हर व्यक्ति को मालूम है कि कौन पूंजीपति सात करोड़ रुपये में वोटों की बोली लगा रहा है. दो से तीन करोड़ रुपये प्रति वोट का दांव बहुत सारी जगह लगता दिखा रहा है. उत्तर प्रदेश में एक महिला मुंबई से आती है और खड़े होकर विधायकों को सीधे पैसे का प्रलोभन देती है. यह सारी बातें हम किसके लिए लिख रहे हैं.

मैं फिर दोहराता हूं कि सारी बातें आखिर हम लिख किसके लिए रहे हैं. क्या इलेक्शन कमीशन को इस बारे में नहीं पता? क्या राजनीतिक दलों के शीर्षस्थ नेताओं को इस बारे में नहीं पता? क्या राष्ट्रपति को इसके बारे में नहीं पता है? अगर नहीं पता है, तो इस देश के उन भोले भाले लोगों को, जो हर चुनाव को बड़ी आशा से देखते हैं और यह मानते हैं कि शायद इस चुनाव के बाद उनकी समस्याओं का कोई हल निकले, पर ऐसा होता नहीं है.

आवश्यकता इस बात की है कि तत्काल ऐसे चुनाव सुधार हों, जिसमें धन का, तिकड़म का, दलाली का या फिर बंदूक का कोई रोल न हो. देश के लोग लोकतंत्र के प्रति, इस देश के राजनीतिक दलों और राजनीतिक नेताओं से ज्यादा गंभीर हैं. वो लोकतंत्र को अपनी समस्याओं की हल की चाभी मानते हैं. लेकिन, लोगों की राय एक तरफ, राजनीतिक नेताओं की राय दूसरी तरफ. यह जो दूसरी तरफ राय रखने वाले लोग हैं, उन्होंने ही हर चुनाव का माखौल बना दिया है. आज राज्यसभा का वह उद्देश्य समाप्त हो गया है, जिसकी कल्पना हमारे संविधान सभा के सदस्यों ने की थी. अब, सदन में हीरेन मुखर्जी, भुपेश गुप्ता, ज्योर्तिमय बसु, राजनारायण और चंद्रशेखर जैसे लोग शायद कभी न दिखें. उस स्तर की बहस शायद कभी न हो, क्योंकि अब राज्यसभा थके हारे, विचारविहीन और गैरसमझदार लोगों का घर बन गया है. लेकिन, अभी भी राज्यसभा में ऐसे लोग हैं जो कभी-कभी राज्यसभा में चमत्कार दिखा देते हैं. पर, यह अपवाद होता है. राज्यसभा को उसके पुराने रूप में लौटाना अतिआवश्यक है और इस रूप में लाने की जिम्मेदारी आज तो राजनीतिक दलों की भी है. पता नहीं कब वो अपनी चूक को समझेंगे और अपनी इस गलती को सुधारेंगे.

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