अयोध्या में स्थित कामता प्रशाद सुंदर लाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय से बी एस सी की शिक्षा ग्रहण करते हुये घटित उस एतिहासिक घटना का संस्मरण आपको बताना चाहता हूँ जिसे राम जन्मभूमि परिसर का ताला खुलने की घटना के रूप में जाना जाता है।

अध्ययन के दौरान साकेत कालेज के अधिकतर छात्रों की तरह मैं भी अयोध्या के विभिन्न मंदिरों में किराए के कमरे में प्रवास किया करता था। राम जन्म भूमि के बेहद निकट स्थित मंदिर में प्रबास से पूर्व विगत दो वर्षों में तीन विभिन्न मंदिरों में प्रबास करते हुये अयोध्या नगरी की अधिकतर गलियों, मंदिरों और वातावरण के साथ पूर्ण साक्षात्कार का अवसर प्राप्त हुआ। श्री राम जन्मभूमि परिसर के प्रवेश पर स्थित लोहे के गेट के बाहर, पास में स्थित कुटिया में दशकों से होने वाला अखंड कीर्तन हमारी दिनचर्या का एक हिस्सा हुआ करता था, अक्सर उस कीर्तन में प्रतिभाग का अवसर प्राप्त होता था। कीर्तन के दौरान गेट पर लटकते बदरंग ताले की छवि आज भी यादों में सजीव है।

1 फरवरी, 1986, अयोध्या अन्य सामान्य दिनों की तरह ही थी। दिन ढलते ढलते फ़ैज़ाबाद कोर्ट से निकले एक आदेश ने उस दिन को एतिहासिक बना दिया। बाहर उठते कोलाहल ने अचानक मेरा ध्यान खीचा, बाहर निकल कर देखा तो एक 50 से 100 लोगों का झुंड श्री राम के नारे लगता श्री राम जन्म भूमि की तरफ आता दिखाई दिया, मैं भी उस झुंड का हिस्सा बन गया जिसमें साधू, एडवोकेट और नाम मात्र के सुरक्षा कर्मी मौजूद थे ।

परिसर का ताला खुलने की जानकारी ने हमे उत्साह से लबरेज कर दिया। कुछ मिनटों तक तले की चाभी ढूँढने की बात होती रही, अन्य लोगों से इतर हम कुछ अति उत्साही युवाओं से राम काज में होता विलंब गवारा नहीं था, पास में पड़े ईंट से ताले को तोड़ने की होड़ लग गई, सुरक्षा कर्मियों ने फर्ज अदायगी में हमें रोकने का अनुरोध भरा प्रयास किया, परन्तु बर्षों से जंक खाये ताले की शहादत तो चंद प्रहारों में ही हो गई थी।

तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्य मंत्री को फ़ैज़ाबाद न्यायालय में जज के एम पाण्डेय के फैसले की भनक भी नहीं थी और मुझे पूरा यकीन है कि मुख्यमंत्री को ताला खुलने की त्वरित कार्यवाही की जानकारी भी बाद में मिली। मेरे उक्त कथन के पक्ष में कुछ विंदुओं पर गौर करें। –

अगर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की जानकारी में ताला खुलता तो क्या अचानक चंद वकीलों, साधुओं और गिनती के पुलिस कर्मियों की उपस्थिती में दशकों से लगा ताला तोड़ कर खोला जाता ?

जज के एम पाण्डेय के प्रोन्नति की फाइल पर मुख्यमंत्री द्वारा उक्त निर्णय का हवाला दे कर रोक लगा दी जाती?

श्री राम जन्म भूमि के परिसर पर लगे ताले को लगाने का कोई वैधानिक दस्तावेज़ / आदेश नहीं था, प्रशासन द्वारा महज़ सुरक्षा कि दृष्टि से उक्त ताले को लगाया गया था, उक्त आदेश के बारे में अयोध्या में यह हकीकत सर्व विदित थी कि जज के एम पाण्डेय ने रामलला को बंधन मुक्त करने के लिए अपनी सहभागिता समझते हुये आनन फानन में दस्तावेज़ों के न होने के आधार पर उक्त आदेश दिया, जज ने स्थानीय जिलाधिकारी एवं एस पी के व्यक्तिगत आश्वासन के बाद वादी वकील को ताकीद किया कि तुरन्त ताला खोल लो, इससे पहले कि इस आदेश पर ऊपर से कोई रोक लगे, और आनन फानन में ताला खोल दिया गया।

अनजाने में घटित इस आकस्मिक घटना का श्रेय लेना तत्कालीन सरकार की मजबूरी बन गयी थी।

आज 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्री राम मंदिर के शिलान्यास के दिन उक्त संस्मरण लोगों से साझा करना प्रासंगिक लगा।

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