image_243342मुंबई में ज़हरीली शराब ने एक बार फिर कहर बरपा दिया. बीते 17-18 जून को मालवणी थाना अंतर्गत लक्ष्मी नगर झोंपड़पट्टी स्थित एक लोकल बार से खरीदी गई शराब पीने से 90 लोगों की मौत हो गई, जबकि सवा सौ से भी ज़्यादा लोगों को गंभीरावस्था में विभिन्न अस्पतालों में दाखिल कराया गया. पुलिस ने उक्त शराब की आपूर्ति करने वाले राजू हनुमंता पास्कर उर्फ लंगड़ा समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर लियाा. इस हादसे में राठौरी गांव और अंबुज वाड़ी के लोग बड़ी संख्या में शिकार बने. मरने वालों में ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूर एवं ऑटो रिक्शा चालक हैं, जो कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गुजरात के बताए जाते हैं. लापरवाही के आरोप में थानेदार समेत आठ पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया. मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मामले की शीघ्र व निष्पक्ष जांच के आदेश दिए, वहीं आबकारी विभाग ने भी अपने अधिकारियों-कर्मचारियों के खिला़फ जांच बैठा दी. हाल के वर्षों में मुंबई में यह दूसरी बड़ी घटना है. ग़ौरतलब है कि 2004 में भी मुंबई के विक्रोली इलाके में ज़हरीली शराब पीने से 87 लोगों की मौत हो गई थी.

स़िर्फ मुंबई नहीं, देश के अधिकांश हिस्सों की यही हालत है. हर जगह ज़हरीली शराब के कारोबारी इंसानों की जान से खेल रहे हैं. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश एवं ओडिसा में हर वर्ष ज़हरीली-नकली शराब के सेवन से बड़ी संख्या में लोग अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं. गुजरात, मिजोरम एवं नगालैंड, जहां शराब पर पूर्ण पाबंदी है, को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में शराब माफिया का एकछत्र राज है. पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान से शराब तस्करी करके दिल्ली समेत देश के बाकी हिस्सों में पहुंचना अब आम बात हो गई है. ज़हरीली, नकली या दीगर राज्यों से तस्करी करके लाई गई शराब की बिक्री का काम करने वालों को इलाकाई पुलिस और आबकारी विभाग की स्थानीय इकाई का संरक्षण परोक्षत: हासिल रहता है. बीते तीन जून को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद की शहर कोतवाली अंतर्गत जुराखन खेड़ा में ज़हरीली शराब पीने से दो सगे भाइयों समेत पांच लोगों की मौत हो गई थी. शासन ने ज़िला आबकारी अधिकारी, पुलिस चौकी प्रभारी एवं सिपाहियों समेत दस लोगों को निलंबित कर दिया, जबकि शहर कोतवाल को लाइन हाजिर कर दिया गया. ग़ौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में 12-13 जनवरी को उन्नाव और सूबे की राजधानी लखनऊ के मलिहाबाद इलाके में ज़हरीली शराब पीने से क़रीब तीन दर्जन लोगों की मौत हो गई थी. तब भी शासन ने आबकारी विभाग और पुलिस के क़रीब डेढ़ दर्जन अधिकारियों-कर्मचारियों का निलंबन, विभिन्न ज़िलों में छापेमारी और कुछेक हज़ार लीटर कच्ची-अवैध शराब की बरामदगी, जांच-पड़ताल करके अपना मुंह छिपाने-नाक बचाने की कोशिश की थी.

यह हादसा इस बार सामान्य दिनों में हुआ है. ऐसी घटनाएं अक्सर त्योहारों जैसे होली, दीवाली, क्रिसमस और नया साल आदि आने के एक-दो दिनों बाद सुनने को मिलती हैं. बीते वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में कठघर पुलिस थाना परिसर से ही शराब बेचे जाने का मामला सामने आया था. तब एसएसपी के निर्देश पर क्षेत्राधिकारी कठघर ने थाना परिसर स्थित ड्राइवर के कमरे पर छापा मारकर कई पेटी हरियाणा मार्का शराब बरामद की. इससे कुछ दिनों पहले चंदौसी-मुरादाबाद के बनियाठेर थाना क्षेत्र के कस्बा नरौली के मुहल्ला मंगलवाला अड्डा में पिता-पुत्र और मूढ़ापांडे इलाके के खाईखेड़ा मुहल्ले में एक दिहाड़ी मज़दूर को ज़हरीली शराब के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी थी. 2014 में ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के गीता कालोनी इलाके में पुलिस ने सोनीपत (हरियाणा)  से लाई गई शराब की एक बड़ी खेप समेत एक युवक को गिरफ्तार किया था. दिल्ली में हरियाणा और राजस्थान से तस्करी करके शराब लाने का धंधा अर्से से जारी है. अवैध, ज़हरीली, नकली शराब का कारोबार देश के विभिन्न हिस्सों में धड़ल्ले से चल रहा है. अवैध शराब का कारोबार न स़िर्फ अनगिनत जानें लेता है, बल्कि सरकार को भी राजस्व का नुक़सान पहुंचाता है.

यदि ग़ैर सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें, तो अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले पांच वर्षों के भीतर क़रीब छह-सात सौ लोग ज़हरीली शराब के सेवन के चलते अपने प्राण गंवा बैठे. ऐसे अधिकतर मामलों में तो स्थानीय प्रशासन अपने स्तर से आर्थिक सहायता देकर अथवा दबाव बनाकर इस तरह हुई मौतों को मीडिया की नज़र से बचा लेने में कामयाब हो जाता है. राज्य के आजमगढ़, बुलंदशहर, मुरादाबाद, मेरठ, अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद, सहारनपुर, बहराइच, गाजीपुर, वाराणसी, प्रतापगढ़, भदोही, मिर्जापुर एवं जालौन में अवैध शराब का कारोबार होली-दीवाली जैसे त्योहारों के समय चरम पर होता है. नतीजतन, कई निर्दोष लोग मारे जाते हैं अथवा आंख की रोशनी गंवा बैठते हैं. कानपुर शहर में कुछ ठेके ऐसे हैं, जहां चौबीसों घंटे शराब उपलब्ध रहती है. सरकारी बंदी के बावजूद पुलिस की कृपा से वहां कोई पाबंदी या रोक-टोक नहीं है. आबादी के बीच मौजूद उक्त ठेके समाज के लिए नासूर हैं, लेकिन प्रशासन को परवाह इसलिए नहीं है, क्योंकि नज़राने का मामला थोड़ा संवेदनशील होता है! जबकि नियम यह है कि घनी आबादी के बीच, स्कूल-कॉलेज एवं धार्मिक स्थल के नज़दीक शराब ठेके नहीं होने चाहिए, लेकिन इस प्रावधान का पालन शायद ही कभी होता हो!

आबकारी विभाग एवं पुलिस की भूमिका मात्र इतनी रहती है कि वे ऐसी कोई घटना होने के बाद ही छापेमारी और गिरफ्तारी का काम अंजाम देते हैं. कई बार तो सरकारी ठेकों से ज़हरीली शराब बेचे जाने की घटनाएं सामने आई हैं. 2011 में होली के अवसर पर गाजीपुर में ज़हरीली शराब पीकर जान गंवाने वाले दो युवकों के कब्जे से मिली बोतल पर लगे रैपर पर मार्का मिस इंडिया, निर्माता यूबायो केमिकल्स अलीगढ़ दर्ज पाया गया था. त्योहारों पर बिकने वाली शराब पर अक्सर बैच नंबर तक लिखा नहीं होता. सवाल यह है कि सरकारी ठेकों पर ज़हरीली शराब आती कैसे है? क्या सरकारी ठेकेदार ज़हरीली शराब बनवाते हैं या ज़हरीली शराब बनाने वालों से उनकी साठगांठ है? अवैध शराब भट्ठियां किसके संरक्षण में चलती हैं? जानकारों का मानना है कि शराब ठेकेदार एवं सिंडिकेट अधिक लाभ के लालच में दूसरे राज्यों से तस्करी करके लाई गई शराब अवैध रूप से बेचते हैं और जब तस्करी की सस्ती शराब कम पड़ जाती है, तो वे कच्ची एवं ज़हरीली शराब बेचने से भी गुरेज नहीं करते. 2011 में आजमगढ़ में भी मिलावटी शराब पीने से 22 लोग मारे गए थे.

जनवरी 2012 में आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले के मइलावरम एवं पोरत्रागनर इलाके में ज़हरीली शराब पीने से 18 लोगों की मौत हो गई. नवंबर-दिसंबर 2012 में बिहार के पटना में 12, गया में 13 और आरा ज़िले में 29 लोगों ने ज़हरीली शराब पीकर अपनी जान गंवाई. राज्य सरकारों के भी अपने-अपने तर्क हैं. किसी को शराब पर प्रतिबंध लगाने पर राजस्व का घाटा दिखाई देता है, तो किसी का मानना है कि ऐसा करने से अवैध शराब का कारोबार ज़ोर पकड़ लेगा. जबकि इसके उलट सच्चाई यह है कि ज़हरीली शराब अक्सर सरकारी ठेकों से बिकती पाई जाती है. राज्य अथवा ज़िला कोई भी हो, ज़हरीली शराब के शिकार हमेशा निम्नवर्गीय, अल्प-आय वाले लोग होते हैं. आंध्र प्रदेश की घटना भी जनजातीय इलाकों में हुई थी. बिहार में भी मज़दूर, रिक्शा चालक, फेरी-खोमचे वाले ही जानलेवा शराब के शिकार बने. फरवरी 2012 में ओडिसा के कटक ज़िले में ज़हरीली शराब पीने से 32 लोगों की मौत हो गई और पांच दर्जन से ज़्यादा लोग बीमार हुए. इसी तरह 2009 में खुदरा ज़िले में 33 और 1992 में कटक में 200 लोग ज़हरीली शराब के शिकार बनकर अपनी जान गंवा बैठे थे. दिसंबर 2011 में पश्चिम बंगाल में 171, फरवरी 2010 में तमिलनाडु में 10 और जुलाई 2009 में गुजरात में 107 लोग मिलावटी-ज़हरीली शराब पीने से मारे गए थे.

उक्त घटनाएं बताती हैं कि तमाम नियम-क़ानून व प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद अवैध शराब बनाने एवं बेचने वालों के हौसले किस कदर बुलंद हैं और ग़रीब-अल्प आयवर्गीय जनता क्षणिक सुख की खातिर किस तरह मौत के मुंह में जाने को विवश है. देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों एवं स्थानीय प्रशासन की नींद तभी खुलती है, जब ज़हरीली शराब पीकर लोग मरने लगते हैं. तब भी उनकी भूमिका स़िर्फ सख्त कार्रवाई के वादे और मुआवजा वितरण से आगे नहीं बढ़ पाती. देश के लगभग हर हिस्से में आबकारी विभाग की इकाइयां हैं और मद्य निषेध विभाग की भी. दोनों ही सक्रिय हैं, उनका लंबा-चौड़ा अमला है, मोटी-मोटी तनख्वाहें हैं, सुविधा शुल्क तो बहती हुई गंगा है. लेकिन, बाहर कौन से नियम-प्रावधान टूट रहे हैं, इससे उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं है. शासन-प्रशासन भी ऐसी घटनाएं प्रकाश में आने के बाद अपने चेहरे पर पड़ी ओढ़नी हटाता है, ज़हरीली-नकली शराब से सावधान करता है, अ़खबारों-टीवी में विज्ञापन देता है-शराब पीजिए, लेकिन केवल सरकारी ठेकों से खरीद कर, इधर-उधर से नहीं. फिर भी ज़हरीली-नकली शराब का कहर मौत बनकर लोगों पर टूट रहा है.

होम डिलीवरी और उधारी की सुविधा

राजू लंगड़ा के इस काले धंधे की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह उसके द्वारा अपने ग्राहकों को शराब की होम डिलीवरी और उधारी की सुविधा थी. जानकारी के मुताबिक, फोन पर ऑर्डर देने पर लंगड़े, उसकी पत्नी या फिर किसी अन्य द्वारा संबंधित ग्राहक तक शराब पहुंचा दी जाती थी. जिन ग्राहकों के पास पैसे नहीं होते थे, वे दो-चार दिनों में अपनी सुविधानुसार भुगतान कर देते थे. लंगड़े का कारोबार इसलिए भी चल निकला था, क्योंकि लाइसेंसी शराब की दुकानों पर आबकारी कर काफी बढ़ गया है. साथ ही उसे इलाकाई पुलिस और आबकारी विभाग के कर्मचारियों का संरक्षण हासिल बताया जाता है. लंगड़े को उक्त नकली-ज़हरीली शराब की आपूर्ति संजय गांधी राष्ट्रीय इद्यान, वसई और विरार के दूरदराज के इलाकों से होती थी. राजू लंगड़े का यह धंधा पिछले दस वर्षों से बेरोक-टोक चल रहा था. पुलिस आयुक्त राकेश मारिया भी आश्चर्य जताते हैं कि इस अवधि में लंगड़े के ़िखला़फ एक भी मामला दर्ज क्यों नहीं हुआ?

यूं तैयार होता है मौत का सामान

नकली-ज़हरीली शराब कई तरीकों से बनाई जाती है. महुआ और गुड़ के सीरे से बनाई गई शराब में नशा पैदा करने के लिए यूरिया खाद और ऑक्सीटोन भी मिलाया जाता है. ऑक्सीटोन वह इंजेक्शन है, जो गाय-भैंसों से दूध आसानी से निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जो प्रतिबंधित है. इसके अलावा कपड़ा धोने वाले सस्ते सर्फ (वॉशिंग पाउडर), मिथाइल एल्कोहल और विभिन्न तरह के घातक रसायनों का प्रयोग भी किया जाता है. ऐसी शराब जानलेवा होती है. अगर पीने वाला किसी तरह बच भी जाए, तो वह विभिन्न असाध्य बीमारियों का शिकार हो जाता है. मिथाइल एल्कोहल बगैर लाइसेंस नहीं मिलता, लेकिन मौत के सौदागरों के लिए इसे हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं है. जानकारों का मानना है कि एक लीटर रसायन से सौ-सवा सौ लीटर शराब तैयार की जा सकती है.

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