5 अगस्त को भादों के महीने का कृष्ण पक्ष है. द्वितीया तिथि है. 4 अगस्त मंगलवार को पंचक प्रारम्भ हुए हैं, शाम आठ बजकर 45 मिनट पर. पंचक 9 अगस्त की शाम छह बजकर नौ मिनट तक चलेंगे.

पंचक में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है. निर्माण कार्य खासतौर पर वर्जित किया गया है. जिन लोगों ने ज्योतिष और वास्तु के सबसे बड़े ग्रन्थ भृगु संहिता का अध्ययन किया होगा, उन्हें पता होगा कि पंचक को कितना खराब मुहूर्त कहा गया है.

गरुण पुराण में भी पंचक की चर्चा है. इसे बेहद अशुभ बताया गया है. अयोध्या में इसी बेहद अशुभ मुहूर्त में भगवान राम के मंदिर का शिलान्यास होने वाला है.

भाद्रपद या भादों का महीना भी अशुभ होता है. हरिवंश पुराण के अनुसार, ये महीना देवरात्रि के दूसरे चरण की शुरुआत होता, इसलिए इसमें भगवान नारायण गहरी नींद में होते हैं. इसलिए इस महीने शुभ कार्य पूरी तरह से वर्जित होते हैं. देवरात्रि की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है, देवउठनी एकादशी को इस रात्रि की सुबह हो जाती है.

मतलब, भादों के महीने में भूमि पूजन और वह भी पंचक में. यानी अशुभता का करेला नीम पर चढ़ा दिया गया है.

इस मामले में एक अशुभता और है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी श्रीमती जी का त्याग कर चुके हैं. व्यक्ति अगर शादी न करे तो कोई बात नहीं, वह धार्मिक अनुष्ठान कर सकता है. विधवा या विधुर अर्धखंडित व्यक्ति माना जाता है. शास्त्रों में ऐसे व्यक्तियों को निजी हित में अनुष्ठान करने की इजाजत दी गई है. ऐसे व्यक्ति सामाजिक या पारिवारिक अनुष्ठान नहीं कर सकते.

लेकिन जिस व्यक्ति ने पत्नी को त्याग दिया है, उसे पूर्ण खंडित माना जाता है. ऐसा व्यक्ति न पारिवारिक अनुष्ठान कर सकता है, न सामाजिक, उसे व्यक्तिगत यानी अपने हित में भी अनुष्ठान करने की इजाजत नहीं है. वह केवल और केवल प्रायश्चित कर सकता है.

अश्वमेध यज्ञ से पहले इक्ष्वाकु वंश के कुलगुरु वशिष्ठ ने भगवान राम से सात तरह के प्रायश्चित कराये थे. फिर सीता माता की उनके वजन के बराबर की सोने की प्रतिमा के साथ भगवान को अनुष्ठान की इजाजत दी थी.

जाहिर है कि मोदी से प्रायश्चित तो कराया नहीं जायेगा.

इस तरह पांच अगस्त को होने जा रहे इवेंट को संक्षेप में समझें तो अशुभ महीने में, महाअशुभ समय में बेहद ही अपात्र व्यक्ति से मंदिर का शिलान्यास कराया जा रहा है.

राम मंदिर ट्रस्ट में जो लोग हैं, उनसे अपन को कोई शिकायत नहीं है. ट्रस्ट में संघियों का दबदबा है और अपन इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि सनातन धर्म को जैन बौद्ध पारसी मुस्लिम ईसाइयों से नहीं, आरएसएस से ही सबसे ज्यादा खतरा है. इन लोगों से नियमों परम्पराओं के पालन की अपेक्षा हम नहीं करते.

ट्रस्ट में एक सज्जन और हैं जो स्वयं को शंकराचार्य कहते हैं, हालांकि सनातन धर्म का हर समझदार अनुयायी जानता है कि वे फर्जी शंकराचार्य हैं. उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी फर्जी शंकराचार्य मान चुका है. जी आप सही समझे, हम वासुदेवानंद जी की ही बात कर रहे हैं. उनसे आप क्या उम्मीद करेंगे.

अलबत्ता, महंत नृत्यगोपाल दास शास्त्री विद्वान इंसान हैं.प्रतिष्ठित वैष्णव संत हैं. एक समय हम उनको व्यक्तिगत तौर पर बहुत अच्छे से जानते थे. वे भी हमारे परिवार के लोगों को नाम लेकर बुलाते थे. ये बात जरूर समझ में नहीं आ रही है कि उन्होंने इन सभी चीजों का विरोध क्यों नहीं किया?

आरएसएस मंदिर बनवाने की जल्दी में इसलिए है कि उसे 2024 के लोकसभा चुनाव की टाइमिंग मिलानी है. मंदिर बनने में साढ़े तीन साल का समय लगना है. तीन चार महीने फिनिशिंग में और लगेंगे, और आप देखेंगे कि इधर लोकसभा चुनाव की घोषणा होगी और उधर मंदिर में दर्शन प्रारम्भ होंगे.

तब आरएसएस के पास चुनाव जीतने के लिए कुछ और होगा नहीं. तब तक अर्थव्यवस्था और ध्वस्त कर दी गई होगी, बेरोजगारी और बढ़ गई होगी, समाज में जाति और धर्म के आधार पर लड़ाई और तेज कर दी गई होगी, कश्मीर थोड़ा और सुलगने लगा होगा, चीन भारत की सीमा में थोड़ा और अंदर आ चुका होगा, भारत के लोकतंत्र, मीडिया और न्यायपालिका की शाख दुनिया की नजरों में थोड़ी और गिर गई होगी, भारत को अमेरिका के चरणों में थोड़ा और झुका दिया गया होगा, तब आरएसएस राम मंदिर के गुम्बद पर खड़ा होकर चुनाव जीतने की कोशिश करेगा.

इस गणित को ध्यान में रखिये….

अगर आपने पूरी पोस्ट पढ़ ली है तो धन्यवाद…
अनिल जैन की वाल से साभार ।

पत्रकार श्री Rajendra Chaturvedi

#हरिबोल

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